"समर...बहुत छोटी बात है, फिर भी मैं ही तुम्हे समझा देता हूँ, जैसा कि मैंने कहा कि जो हमारे साथ थी वो सेजू की परछाई थी, इसका मतलब ये, कि जो असली सेजू के साथ हो रहा है कहीं न कहीं वही उसकी परछाई के साथ भी किसी न किसी दूसरे रूप में हुआ!
मतलब! सेजू के साथ एक खेल खेला जा रहा है, मीन परि वाला, तो परछाई वाली सेजू के साथ भी एक खेल हुआ..टूर वाला!
अब मैं तुम्हे बता दूं..कि सेजू अगर वहां खाना खा रही है तो यहां पर उसकी परछाई भी खाना खायेगी पर कुछ और, किसी और जगह पर बैठ कर किसी और माहौल में!
शायद अब तुम समझ गए होंगे,
परछाई के साथ वो होगा जो असली के साथ हो रहा है, पर जो परछाई के साथ हुआ, वो असली के साथ नहीं होगा!
जैसा कि..मैंने सेजू की परछाई को अभी अभी समाप्त कर दिया है, तो असली सेजू समाप्त नहीं हुई है...
क्या अब तुम समझ गए समर....????" देव ने समर के सवालों को पूरी तरह खत्म करने की गरज से, सब कुछ समझाया।
"लेकिन देव...अब अगर तुमने सेजू की परछाई को खत्म कर दिया है तो उसे तो ये बात पता लग गयी होगी जिसने सेजू की परछाई को बनाया था???" कहते हुए देविका की जुबान लड़खड़ाई।
"बिल्कुल....इसलिए तुम लोग अब ये धागे पहन लो! क्योकि वो जो भी है...अब हम सब को छोड़ेगा नहीं! क्योकि वो ये भी जान गया होगा कि हम असली सेजू को बचाना चाहते हैं!" कहते हुए देव ने अपने जेब से एक पैकिट निकाली और उसमें से कुछ लाल धागे।
सभी ने उन धागों को अपनी अपनी कलाइयों पर बाँध लिया था।
"ध्यान रहे...इस धागे को खोलने का मतलब है अपनी अकालमृत्यु को आमंत्रित करना..." देव ने कहा।
"पर..अब आगे हमें करना क्या होगा??" पीकू ने पसीने को पोछते हुए कहा।
"बस एक छोटा सा काम..." देव ने कहा।
"लेकिन अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम्हे सॉल्यूशन नहीं पता और हमें सॉल्यूशन ढूंढना पड़ेगा??" समर ने देव को शक भरी नजरों से देखा।
देव हँसने लगा..."बस बस यार! अब मुझे ही विलेन मत समझने लगो! अभी भी मैं श्योर नहीं हूं कि असली विलेन कौन है इस कहानी का...मेरा अब दो लोगो पर शक है, एक सेजू की मां सपना और दूसरा कमलावती... लेकिन कोई तीसरा भी हो सकता है।" देव ने कहते हुए गम्भीरता ओढ़ी।
"सेजू की मां???" पीकू चौक कर बोला।
"हां..." कहते हुए देव ने सपना का कुत्ते की बलि देने वाली सारी बात अपने दोस्तों को बता दी।
"यकीन नहीं होता....सपना आंटी!" देविना बोली।
"ये ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी है देविना! यहां कुछ भी मुमकिन है..." कहते हुए देव किसी ख्याल में खो गया।
सभी लोग सोफे पर बैठे, उनकी आंखों की नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी, वो जान गए थे कि सेजू उनसे दूर है और किसी बड़ी मुसीबत में भी..
सुबह के साढ़े चार कब बज गए थे, ये किसी को पता नहीं चला, पीकू की मां का चेहरा भी ये सब जान कर सफेद पड़ गया था, वो सब के लिए चाय बना कर लाई,
"तुम लोग कुछ घण्टे रेस्ट करो, उसके बाद हम सब उसी झील पर चलेंगे जहां हमें जयंत मिला था और हमने उसे वही छोड़ा भी था...हो सकता है कुछ मदद वो भी हमारी कर दे।" देव ने चाय का एक घूंट गले से उतार कर कहा।
"पर वो काम कौनसा है..जिसके बारे में तुम कह रहे थे कि बस एक छोटा सा काम करना है??" समर ने पूछा।
"वो मैं झील पर ही बताऊंगा।" देव ने कहा।
इसके बाद सबने सोने की तो बहुत कोशिशें कीं मगर...किसी की आंख नहीं लगी, न ही कोई अपने घर गया।
सभी लोग, देव के ही घर में फ्रेस और रेडी हो गए थे।
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देव अपने कमरे में बंद था और वो न जाने क्या कर रहा था, दस बज चुके थे और यही वो वक़्त था जब सभी ने झील पर जाने की सोची थी, सभी लोग बाहर बैठे देव का ही इंतजार कर रहे थे,
"अब ये देव कहाँ गया...??" समर ने कहा।
"बस आ गया..." देव ने कहा, उसने अपने कांधे पर एक बैग टांगा हुआ था।
"इस बेग में क्या है??" देवीना ने पूछा।
"वही चीजें जो हमारे काम आ सकती हैं।" देव ने सहूलियत के साथ जवाब दिया।
पीकू की मां काफी डरी और घबराई हुई थी,
"बेटा...जरुरीं है क्या आप लोगो का इस मसले में पड़ना??? सेजू का तो कोई नहीं जानता कि वो कहाँ है पर आप लोग क्यों अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं??? पीकू! समझा बेटा अपने दोस्तों को???" पीकू की मां ने रुआंसी सी आवाज में कहा।
"मासी! मैं आपकी चिंता समझता हूं...पर अब हम लोग पीछे नहीं हट सकते...क्योकि पीछे हटने का मतलब है अपनी जान बिना कुछ किये ही गवा देना..हां! अब अगर हम लोग पीछे हटे तो या तो जिंदगी भर परेशान रहेंगे या फिर मार दिए जाएंगे..क्योकि उस को हमारी दखलंदाजी की खबर लग गई है।" देव ने पीकू की मां को समझाया।
पीकू की मां की सिसकी निकल गई और साथ ही आंसुओ का एक गुवार भी बह आया।
देव ने उन्हें संतावना दी और वो सब झील की ओर एक कार से बढ़ गए।
कार में सुई पटक सन्नाटा पसरा हुआ था, कोई कुछ नहीं बोल रहा था,
कुछ ही देर में कार झील के पास रुकी।
वो लोग बारी बारी से कार से उतरे!
और चट्टानों और झाड़ियों के रास्ते से आगे बढे।
सब लोग अब झील के पास ही खड़े थे, देव जयंत को लेने गया था जो मंदिर के पुजारी के पास था।
"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या होने वाला है और क्या हो रहा है..." पीकू ने गम्भीरता से कहा पर झील में एक कंकर फेंका।
और तभी जयंत और देव वहां पहुँचे!
"आज रात सपना मतलब सेजू की मां, एक नर बलि देगी! हम सबको उसे वो काम करने से रोकना है...मैं नहीं जानता कि उनका मकसद क्या है पर मैंने कल सुना था कि वो कुछ पाना चाहती है..." देव ने कहा।
"पर वो किसकी बली देंगी???" देविना ने कन्फ्यूज होते हुए कहा,
"यही तो देखना है..." देव ने कहा, "हमारे साथ जयंत भी होगा..., अगर हम सपना आंटी को नर बली देने से रोक दें तो हो सकता है सेजू उस भ्रम से निकल जाए।" देव ने कहा।
ये सुन कर सभी के चेहरों पर एक उम्मीद झलकी!
"मगर हम उन्हें कैसे रोकेंगे??" पीकू बोला।
"तुम सबको बस मेरे साथ चलना है, मैंने अपने सारे हथियार, मतलब सारी तंत्रों-मंत्रों की बुक्स रख ली हैं और बहुत कुछ मैंने याद भी कर रखा है,
एक बात और रात तक हम लोग यहीं रुकने वाले हैं..." देव ने कहा तो सभी चौके,
"क्यों...???"
"क्योकि मैं इस मंदिर के पुजारी जी से कुछ चीजों को पवित्र करवा के रखना चाहता हूं...जिससे हम लोग बच सकें।" देव बोला।
सभी ने किसी तरह झील पर ही दिन गुजारा, और आधी रात भी!
उन्होंने वहीं पंडित जी के साथ खाया पिया,
पुजारी जी सबको अजीब नजरो से देख रहे थे, उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो...जैसे वो मन ही मन कुछ सोच रहे हों।
समर इस बात को फील कर पा रहा था, आखिर उसने हिम्मत जुटा कर पूछ ही लिया - "माफ कीजियेगा, पुजारी जी! आप हम सब को इस तरह क्यों देख रहे हैं....??"
क्रमशः....