Confession - 1 in Hindi Horror Stories by Swati books and stories PDF | Confession - 1

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Confession - 1

शुभांगी तुम्हें हमारे साथ चलना ही होगा। यह प्रोजेक्ट हम चारों का है, इसलिए हम चारों जायेंगे । विशाल ने सबको अपना फैसला सुना दिया । विशाल ठीक कह रहा है, जैसे पिछली बार भी हम चारों गए थें, तो इस बार भी यही होना चाहिए । मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है । अब रिया ने भी अतुल की हाँ में हाँ भरी । शुभांगी ने तीनों को गौर से देखा और आराम से कुर्सी पर बैठते हुए बोली कि ," मुझे समझ नहीं आता कि तुम लोग मुझे क्यों फाॅर्स कर रहे हों? मैं सारा थ्योरी वर्क संभल लूंगी, तुम बस जाओ और रिसर्च करो । तुम्हें पता है, मेरी माँ नहीं मानेगी, और फिर मेरे जाने के बाद वो भी अकेली हो जायेगी। शुभांगी दो दिन की बात है, पिछली बार भी तुमने अपनी मम्मी से झूठ बोला था। इस बार भी कह देना कि बिना जाए नंबर नहीं मिलेंगे । विशाल भी उसके पास कुर्सी पर आकर बैठ गया । हाँ, यार ! साथ में मज़ा आएगा । थ्योरी सब मिलकर कर लेंगे और इस बार का यह रिसर्च हमारे प्रोजेक्ट की यू एस पी होगी। अतुल ने भी ज़ोर देते हुए कहा । जब हम पक्षियो की भाषा समझने वाले आदमी के पास गए थे तो हमने अच्छा स्कोर किया था। तो यह तो और दिलचस्स्प है । रिया की बात में दम तो है ।

शुभांगी ज़्यादा मत सोचो, हम लोग इस फ्राइडे उत्तराखंड के धनपुर की रिट्ज वैली जा रहे हैं। मेरी गाड़ी से चलेंगे, और सोमवार को सुबह निकल पड़ेगे । अब विशाल यह कहकर सुनसान हो चुकी लाइब्रेरी से निकल गया और अतुल भी उसके साथ हो लिया । रिया शुभांगी को समझाते हुए बोली, चल न यार पिकनिक हो जायेगी । आंटी इतनी भी सख़्त नहीं है, जितना तू उन्हें समझती है । मेरी माँ बस डरपोक है, मुझे लेकर वो बहुत डरती है। वो तो मैं उन्हें कॉलेज के पेपर्स और नंबर्स का कहती रहती हूँ तो वह चुप हों जाती है । वरना उनका कहना है कि लड़कियाँ शाम को अपने घर ही लौट आनी चाहिए । शुभांगी ने मुँह बनाकर कहा तो रिया को हँसी आ गई । जो भी है, तू आ रही है और मैं अपने बॉयफ्रेंड सागर को भी बुला रही हूँ । बड़े दिनों से हमने साथ में मज़े नहीं किये। वे दोनों इस बात पर हँस पड़े और रिया बाय कह चली गई । शुभांगी ने देखा लाइब्रेरी में कोई नहीं है। सिर्फ बाहर काउंटर पर मेम बैठी होंगी। उसे भी चलना चाहिए। पाँच बज चुके है।

जब उसकी नज़र सामने वाले लॉकर गई तो पॉल एंडरसन के ऊपर लिखी बुक को उसने उठा लिया। बुक के पहले पेज पर एंडरसन की तस्वीर बनी हुई है । पता नहीं, कैसे यह कर लेते होंगे । बड़ी मुश्किल से इन पर लिखी यह बुक मिली है । उसने पहले पन्ने को थोड़ा सा पढ़ा ही है, तभी उसे महसूस हुआ कि लाइब्रेरी में उसके अलावा कोई और भी है । हो सकता है, मेम हो या कोई रह गया हो । आखिर इतनी बड़ी लाइब्रेरी है । यह सोचकर वो फ़िर पढ़ने लगी। मगर इस बार उसे कुछ गिरने की आवाज़ आई तो वह अपनी कुर्सी से खड़ी हो उस तरफ़ जाने लगी, जहाँ से आवाज़ आई थीं । पीछे की तरफ़ उसने जाते हुए चारो ओर नज़र घुमाई, मगर कोई नहीं है। थोड़ा सा आगे बड़ी तो देखा कि चार -पाँच किताबें नीचे गिरी हुई हैं । कोई है ? कौन है ? शुभांगी पूछती गई। तभी एक किताब उसके सामने उड़कर दूसरी तरफ जाने लगी । वह बड़ी बुरी तरह डर गई और ज़ोर से चिल्लाई और अपना सामान उठा बाहर की तरफ भागने लगी । काउंटर पर मेम को न देखकर उसकी हालत और ख़राब हो गई।

शुभांगी कहाँ जा रही हों? साइन तो करके जाऊँ। उसने पीछे मुड़कर देखा तो मेम है । इतनी डरी हुई क्यों लग रही हो? मेम को देख वह थोड़ा सम्भली । मेम अंदर कोई है ? किताबें हवा में उड़ रही थीं। क्या ? खिड़की खुली रह गई होगी । हवा चल रही होंगी । मेम ने एंडरसन की बुक उसके हाथ से लेते हुए कहा, " इनकी बुक पढ़ोंगी तो डर ही जाऊँगी। यह तो सारी ज़िन्दगी मरे हुए लोगों से बात करते रहे और एक दिन खामोशी से मर गए । कैसे आज तक नहीं पता चला। इनकी बॉडी भी किसी को नहीं मिली। मेम कहती जा रही है । और शुभांगी के चेहरे का रंग बदलता जा रहा है । मेम इस किताब में है क्या? कुछ नहीं बस इनके ज़िन्दगी के कुछ अनुभव। चलो, अब साइन करो। मुझे लाइब्रेरी बंद करनी है। तुम्हारी आदत है, जाते-जाते भी कोई बुक लेकर बैठ जाती हो । इसे कल इशू करवाना। अभी यहीं रहने दो । शुभांगी ने साइन किये और बाहर निकल गई । अँधेरा होने वाला था, सर्दियों में रातें भी जल्दी लम्बी हो जाती है । शुभांगी के घर से लाइब्रेरी ज्यादा दूर नहीं है । साउथ दिल्ली की सड़क साफ़ है। चारों और पेड़ । कभी- कभी उसे दिल्ली की सड़के किसी हिल स्टेशन की सड़कों से कम नहीं लगती । मैंने जो अंदर देखा वो मेरा भ्रम था या सचमुच कुछ ? उसने खुद से सवाल किया । उसका फ़ोन बजा। मोबाइल पर माँ का नाम देखकर उसने कदम जल्दी बढ़ाने शुरू कर दिए । और कुछ ही मिनटों में वह घर के अंदर पहुँच गई। फ़ोन क्यों नहीं उठाती ? माँ ने शुभांगी को झाड़ लगाई।अभी देखा । तू और तेरे बहाने।

माँ शुकवार हम प्रोजेक्ट के सिलसिले में दो दिन के लिए बाहर जा रहे हैं। सोमवार तक आ जायेगे । शुभांगी ने खाना खाते हुए कहा । ऐसे कौन से प्रोजेक्ट पर काम कर रही हों ? जिसमे घर से बाहर जाना पड़ता है । माँ फेलोशिप के लिए यह प्रोजेक्ट " हमारे देश की कुछ अविश्वसनीय बातें " करना पड़ेगा। शुभांगी ने मुँह में चम्मच डालते हुए कहा । कहाँ जाना है ? बस माँ उत्तराखंड की तरफ ज्यादा दूर नहीं है । जल्दी आ जायेगे । जो भी है बेटा, तुझे पता है मुझे बड़ी फ़िक्र लगी रहती है । अब यह बाहर जाने के प्रोजेक्ट बंद करो और क्लास में बैठकर ही पढ़ाई किया करो। माँ की आवाज़ में आदेश है । यह कॉलेज का आख़िरी साल है और ये सब आखिरी सेमेस्टर का पेपर वर्क है। प्रोजेक्ट से मास्टर्स में एडमिशन लेना और भी आसान हो जाएगा । शुभांगी ने खाना खत्म करके अपनी प्लेट उठाते हुए कहा। अब तुझे ज्यादा पता होगा। जा अब सो जा। माँ ने बात वही ख़त्म कर दी ।

शुभांगी अपने कमरे में अपनी किताबें लेकर बैठ गई । जब उसे प्रोजेक्ट का ध्यान आया तो उसने अपना ईमेल चेक किया । विशाल की द्वारा भेजी फाइल खुलते ही उसके होश उड़ गए । हमें पॉल एंडरसन के ऊपर रिसर्च करना है। इनके बारे में लाइब्रेरी में पढ़ रही थीं। पहले तो विशाल ने किसी भगवत भूटा का जिक्र किया था । जो बिना घर देखे वास्तुशास्त्र कर देते हैं। इसने चेंज कब किया। मुझे बताया भी नहीं। इससे बात करती हूँ। यह सब सोचकर ही उसने विशाल को फ़ोन कर लिया । घंटी बज रही है। मगर उसने फ़ोन नहीं उठाया । शुभांगी ने फ़ोन रख अपने लैपटॉप को खोला और इंटरनेट पर एंडरसन बारे मैं पढ़ने लगी। पॉल एंडरसन एक पादरी थें । वे लोगों की मदद करते करते थें । जिनके करीबी मर जाते । वह उनसे उनकी बात कराते थें। यानि अगर हम किसी अपने को अपने मन की बात नहीं बोल पाए तो वह उसकी आत्मा को बुलाकर उनसे लोगों की बात कराते थें। एक तरह से लोग अपने अपनों से किसी अधूरी बात का कॉन्फेशन करते थें । फ़िर न जाने कैसे यह गायब हो गए और कुछ समय बाद इन्हें मरा हुआ मान लिया गया। शुभांगी ने ये सब पढ़कर फ़िर विशाल को फ़ोन किया। मगर इस बार भी उसने फ़ोन नहीं उठाया तो उसने अतुल को फ़ोन किया । हेलो अतुल ! हाँ, शुभांगी , क्या हुआ ? तुमने बताया नहीं कि तुम लोगों ने प्रोजेक्ट बदल लिया है । उसकी आवाज़ में खीज थीं । अरे ! यार वो भगवत भूटा को सुनील एंड ग्रुप ने पहले ही अपने प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया । इसलिए हमने पॉल एंडरसन को ले लिया । इनकी वजह से हमारे नंबर भी ज़्यादा आएंगे । किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि हम पॉल एंडरसन की लाइफ थ्योरी लेने वाले हैं । यह सबसे अलग और बढ़िया होगा क्यों क्या कहती हो ? अतुल की आवाज़ में उत्साह है । मुझे नहीं लगता, हमें किसी और को ढूंढ़ना चाहिए । क्या मिलेगा इनकी लाइफ के बारे में खोजकर । शुभांगी अब इतनी जल्दी कुछ और नहीं हों सकता और यकीन मानो हम टॉप करेंगे । शुभांगी कुछ नहीं बोली ।

पहले उसका मन किया वो लाइब्रेरी वाली घटना अतुल को बताये । मगर उसे फ़िर समझ आ गया कि वो मज़ाक उड़ाएगा और वो खुद भी तो पूरी तरह कन्वेन्स नहीं है कि जो उसने देखा वो सच था । कल मिलते हैं । कहकर शुभांगी ने फ़ोन रख दिया। रिया को फ़ोन करना बेकार है। वैसे इसमें बुराई क्या है । अगर हमने टॉप कर लिया तो मास्टर्स में एडमिशन लेना और आसान हो जायेगा। यह आखिरी साल हम सबके लिए बहुत ज़रूरी है। मेरी वजह से किसी को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए। शुभांगी ने लैबटॉप बंद किया और सोने के लिए बिस्तर पर आ गई। कुछ देर बाद उसे नींद आ गई।

सपने में पॉल एंडरसन को देखकर वह डर की वजह से उठ गई। उसने पानी पिया । अपने कमरे में चारों और देखा एक अलग सा सन्नाटा उसे महसूस हुआ । जैसे कोई कमरे से गुज़र कर निकला हो। उसने सोचा, वह माँ के पास जाए। मगर उसने न जाना ही ठीक समझा । उसने पानी पिया और टेबल पर रखी अपने पापा की फोटो पर उसकी नज़र गई । वह फोटो हाथ में लेकर बड़े प्यार से उन्हें देखने लगी। ढाई साल की वह, अपने पापा की गोद में कितनी खुश लग रही हैं । पापा भी मुझे छोड़कर जल्दी चले गए । यह मेरे साथ उनका आखिरी फोटो है। एक सड़क हादसे में उसके पापा की मौत हो गई थी। यह सब सोचते हुए फोटो पर अपनी उँगलियाँ फेरी । तभी उसे फ़ोटो फ्रेम पर किसी की परछाई महसूस हुई। उसने झटके से पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं है। बड़ी सावधानी से फ़ोटो को टेबल पर रख दिया और कमरे से निकल कर अपनी माँ के कमरे में चली गई । माँ आराम से सो रही है । उसने सोचा, यही सो जाती हूँ। आज अपने कमरे में सोने का मन नहीं कर रहा है । वह सोती माँ के साथ लिपट कर सो गई।

सुबह जब कॉलेज पहुँची तो वहाँ विशाल, रिया और अतुल उसकी ही राह देख रहे है । क्यों शुभांगी सारी तैयारी हो गई? विशाल ने पूछा । कल तुम कॉल क्यों रही थी मैं अनन्या के साथ था। वह हँसते हुए बोला । तुम सब मज़े करने में लगे हों। मगर मुझे लगता है कि हमें इस बार कोई और व्यक्ति ढूंढना चाहिए । तुम्हारे इसी मज़े के चक्कर में मुझे कल रात नींद नहीं आई । उसने कल सपने वाली बात उन्हें बतायी तो रिया बोल पड़ी," यार हम दिन भर जिनके बारे मैं बात करते हैं, वहीं लोग हमारे सपने में आते हैं ।ज़्यादा मत सोच। वह बहुत साल पहले ही मर चुके है और हमें मुश्किल से दो दिन भी वहाँ नहीं रुकना। हम वहाँ से नैनीताल के लिए निकल जायेगे । सो डोंट थिंक मच । रिया ने कहा और सबने उसकी हाँ में हाँ मिलाई।

शुभांगी कॉलेज की क्लास में बैठे अपने नोट्स बना रही है । थोड़ी देर बाद ज़ोर की हवा चली और क्लॉस के खिड़की दरवाज़े बंद हो गए । उसने अपनी किताबें उठाई और गेट खोल बाहर जाने को हुई। मगर दरवाज़ा खुल ही नहीं रहा है। वह ज़ोर से बोलने लगी कि कोई है? और दरवाज़ा पीटती रही । मगर सिर्फ़ ज़ोर की हवा उसके बाल हिला रही है, जैसे कोई उसकी तरफ़ बढ़ा आ रहा हो। वह अब चिल्लाने लगी। दरवाज़ा खोलो, कोई तो खोलो । मगर दरवाज़ा नहीं खुला और टेबल की किताबें हवा में उड़ने लगी । उसके हाथ से किताबें भी छूट गयी । वह ज़ोर से चिल्लाने लगी, कौन है ? कौन है ? कोई दरवाज़ा खोलो ?? ?? तभी कमरे की लाइट बंद हो गई और शुभांगी को लगने लगा कि कुछ बुरा होने वाला है । तभी धीरे-धीरे कमरे का दरवाज़ा खुलने लगा और वह किसी अनजान डर से दरवाज़े से पीछे हटने लगी।