Vikram-Vedha film Review in Hindi Film Reviews by Jitin Tyagi books and stories PDF | विक्रम- वेधा फ़िल्म समीक्षा

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विक्रम- वेधा फ़िल्म समीक्षा

पहले साउथ फिल्मों का रीमेक बॉलीवुड के डायरेक्टर करते थे। और अच्छा-खासा पैसा कमा लेते थे। लेकिन जब साउथ के डायरेक्टरस को पता चला तो उन्होंने खुद ही अपनी फिल्मों के रीमेक बॉलीवुड के हीरो के साथ बनाने शुरू कर दिए। वैसे ये अच्छी बात हैं। क्योंकि वो लोग अपना फ़िल्म आईडिया अच्छे से समझते हैं। इसलिए वो फ़िल्म अच्छी बनाते हैं। जैसे- कबीर सिंह, जर्सी, नायक, और अब विक्रम वेधा,--- वरना बॉलीवुड वाले तो, जो उनका आईडिया लेकर बकवास सी फ़िल्म बनाते हैं। उसके क्या कहने!

फ़िल्म में विक्रम(सैफ अली खान) पुलिस वाला हैं। जिसका मानना हैं। कि समाज से अपराध खत्म करना जरूरी हैं। और उसके लिए अगर अपराधी को भी खत्म करना पड़े तो इस बात का अफसोस नहीं होना चाहिए आखिर अपराधी को उसके कृत्यों की सजा मिली हैं। दूसरी तरफ वेधा हैं। जो पहले छोटा गुंडा होता हैं। लेकिन ज़िंदगी में घटने वाली घटनाओं के कारण बड़ा गुंडा बन जाता हैं। विक्रम की पत्नी जो राधिका आप्टे हैं। वो वेधा का अदालत में केस लड़ रही हैं। अब इसके आगे फ़िल्म पहली से कितनी अलग हैं। और कितनी एक जैसी उसके लिए फ़िल्म देखनी पड़ेगी।

जब दिमाग में फ़िल्म का आईडिया क्लियर हो, तो निर्देशन करने में कोई भी परेशानी नहीं आती। और ना ही फ़िल्म कैसे दिखाई जाएगी या कहानी कैसे कहीं जाएगी इसमें कोई समस्या आती हैं। पुष्कर और गायत्री ने फ़िल्म के सामान्य सीन को भी इस तरह का बनाया हैं। कि उनमें एक नयापन लगता हैं। और उसके पीछे आने वाली बैकग्राउंड आवाज़ उस सीन को और दमदार बना देते हैं। फ़िल्म के डायलॉग सीन में बिल्कुल फिट बैठते हैं। खास कर जब उन्हें ऋतिक रोशन बोलता है। फ़िल्म को देखते हुए कहीं भी बोरियत नहीं लगती, और सेकंड हांफ में तो फ़िल्म जो रफ्तार पकड़ती हैं। वो तो बस देखने लायक हैं। और उसमें में भी ऋतिक की एंटी, हालांकि फिल्म में डार्क सीन ज्यादा हैं। पर वो होते ही आखिर फ़िल्म का विषय भी तो डार्क ही हैं। इस बार क्लाइमेक्स में पहले वाली से एक्शन थोड़ा ज्यादा हैं। तो वो लोग जिन्हें फ़िल्म शुरुआत के आधे घण्टे में धीमी गति से चलती हुई लगेगी। वो अंत के एक्शन से जरूर खुश हो जाएंगे।

फ़िल्म के अंदर हर किसी ने अपने रोल को अच्छे से निभाया हैं। सैफ अली खान वो एक्टर हैं। जिसको आजतक किसी भी फ़िल्म में ओवरएक्टिंग करते हुए नहीं देखा, ये बन्दा कैसा भी रोल हो उसे पूरी ईमानदारी से निभाता हैं। इसको विलेन को रोल मिलें, पारिवारिक, रोमांटिक, या एक्शन हीरो का ये उसमें पूरी तरह फिट हो जाता हैं। और दूसरी तरफ ऋतिक रोशन क्या कहने, इस फ़िल्म में एक्टिंग, चलना, हँसना, बोलना, एक्शन हर चीज़ परफेक्ट, फ़िल्म देखते वक़्त पुरानी वाली के विजय सुलहपथि याद तो आएंगे। पर ऋतिक रोशन की उनसे तुलना करने का मन नहीं करेगा। ऋतिक ने अपनी एक्टिंग से ये बता दिया हैं। कि वेधा का रोल निभाने के लिए जरूरी नहीं कि विजय का ही अनुसरण किया जाए। रोल ऐसे भी निभाया जा सकता हैं। और यहीं कारण हैं। कि इस बन्दे के लड़कियों से ज्यादा लड़के फैन हैं।


कुल मिलाकर फ़िल्म देखने लायक हैं। और ये उस ऑडियंस के लिए तो हैं। ही जो थिएटर में बैठकर केवल फ़िल्म देखना चाहती हैं। शौर मचाना, सिटी बजाना चाहती हैं। ना कि दिमाग़ इस्तेमाल करना, हालांकि इसमें दिमाग इस्तेमाल करने जैसा कुछ हैं। भी नहीं,

बस जो ध्यान रखने की बात हैं। वो हैं। कि अच्छाई और बुराई के बीच में जो चीज़ होती हैं। जिसे कुछ लोग "ग्रे साइड" और कुछ "ब्लैक एंड वाइट" कहते हैं। उस कॉन्सेप्ट को ये फ़िल्म लेकर चलती हैं। यानी किसी चीज़ पर एक दम से विश्वास मत करों बल्कि उसका संदर्भ भी जान लो