लेकिन आज अनुपम ने छाया के हाथ की बनी चाय पी ली थी।चाय पीने से शरीर मे गर्मी जरूर आयी लेकिन वह इतना भीग चुका था कि उसे बार बार छींक आने लगी।उसके शरीर और हाथ पैरों में दर्द होने लगा।छाया विक्स की डिब्बी ले आयी।उसने विक्स की डिब्बी खोलकर लगाने के लिये हाथ बढ़आया।अनुपम उसके हाथ को झटकते हुए बोला,"दूर हटो।"
"क्यो हतु।तुम्हारी पत्नी हूँ।तुम्हारी सेवा करना मेरा धर्म है
"मैं कितनी बार कह चुका हूँ।तुम मेरी पत्नी नही हो।""
"तुम मुझे अपनी पत्नी नही मानते तो कोई बात नही,"छाया बोली,"तुम्हारे साथ रहती हूँ।तुम्हारी सेवा करना मेरा हक है"
छाया ने जबरदस्ती अनुपम की छाती और सिर पर विक्स लगा दी।इससे उसे राहत मिली और वह सो गया।'सुबह अनुपम बिस्तर से नही उठा।उसे बुखार था।तब वह ड्राइवर से बोली,"रामु साहब को बुखार है।'
"डॉक्टर के पास ले चलते है।"
और छाया उसे डॉक्टर के पास ले गयी।डॉक्टर ने कुछ टेस्ट कराए और टाइफाइड बता दिया।डॉक्टर ने दवा के साथ आराम करने के लिए कहा था।
अनुपम के बीमार पड़ने पर छाया उसकी सेवा करने लगी।अनुपम नही चाहता था छाया ऐसा करे।अनुपम उसे डाँटता फटकारता पर वह चू भी नही करती थी।अनुपम पन्द्रह दिन बिस्तर में पड़ा रहा।छाया रात दिन उसकी सेवा करती रही।उसकी दवा खाने का ध्यान रखती।और वह स्वस्थ हो गया।
अनुपम के बीमार पड़नेE पर उसके व्यवहार में भी परिवर्तन आया।अब वह उसके हाथ का बना खाना खाने लगा।छाया ने धीरे धीरे सारे काम अपने जिम्मे ले लिए।पहले अनुपम हर समय उसे डांट फ़टकार करता रहता।उससे उल्टा सीधा भी बोल देता।लेकिन अब वह ऐसा नही करता था।
अनुपम की जिंदगी में आने वाली छाया पहली औरत थी।कभी कभी वह सोचता।छाया शिक्षित,सुंदर और समझदार है।फिर वह उससे क्यो चिढ़ता है?क्यो उससे दूर रहता है?क्यो उसे पत्नी का दर्जा देने के लिए तैयार नही है।इन सब प्रश्नों का उसे एक ही जवाब नजर आता।अगर उससे शादी करने का प्रस्ताव आया होता तो वह उसे देखते ही पहली बार मे ही पसन्द कर लेता।परन्तु उसके भाई ने ऐसा न करके गुंडों की मदद लेकर उसकी जबरदस्ती शादी करा दी थी।इसी वजह से अनुपम ने उसे अभी तक अपनाया नही था।प्यार की जगह उससे नफरत करता था।
लेकिन अब धीरे धीरे नफरत कम होने लगी।अनुपम उसके साथ दोस्ती का व्यवहार करने लगा।उसमे आ रहे परिवर्तन से छाया खुश थी।
करवा चौथ।इस दिन औरते भूखी प्यासी रहकर रात को चांद देखकर ही खाना खाती है।छाया ने भी व्रत रखा था।वह भी दिनभर भूखी प्यासी रही थी।
शाम को सजधजकर उसने औरतो के साथ पूजा की थी।रात को चांद देखकर वह अनुपम के पास पहुंची।जैसे ही उसने पैर छुए अनुपम बोला,"यह क्या करती हो?"
"पति के पैर छूना पत्नी का धर्म है।"
"लेकिन मैं तो तुम्हे अपनी पत्नी नही मानता।'
"तुम चाहे न मानो।मैं तुम्हे अपना पति मानती हूँ।तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे।'
"यह तो जबरदस्ती है।'
"तुम कुछ भी समझो,",छाया बोली,"मैं इस घर मे दुल्हन बनकर आयी हूँ।जिस घर मे औरत की डोली जाती है वहाँ से उसकी अर्थी ही उठती है।तुम पत्नी का दर्जा नही दोगे तो मैं तुम्हारी दासी बनकर ही रह लुंगी।
" छाया तुम सचमुच में महान हो।मेरी गलती थी जो तुम्हे दुत्कारता रहा,"छाया के व्यवहार ने अनुपम को पिघला दिया।वह उसे अपनी बाहों में लेते हुए बोला,'तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी।'