Mamta ki Pariksha - 84 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 84

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ममता की परीक्षा - 84



"दीदी !" कहने के बाद बिरजू की तरफ से एक पल की खामोशी भी रजनी को अखर रही थी।
उसके आगे के शब्द सुनने के लिए रजनी की बेकरारी बढ़ती जा रही थी। खुद पर काबू रखते हुए वह अधीरता से बोली, "हाँ, बोलो, सुन रही हूँ। बोलो न, क्या बताना चाहते थे ?"

बिरजू असमंजस में था। सोच रहा था, क्या करे ? बताए या न बताए ? लेकिन वह खुद भी जानना चाहता था कि आखिर असलियत क्या है उस तस्वीर के अमर भैया की जेब में होने का ? अमर भैया तो शायद नहीं भी बताएँगे.. और फिर कोई उनसे पूछेगा भी कैसे ? उनके पर्स में झाँक लिया यह जानकर कहीं वह नाराज न हो जाएँ। अब एक ही रास्ता बचता है इस जिज्ञासा को शांत करने का और वो ये कि अब रजनी दीदी से ही पूछ लिया जाय .. लेकिन कैसे ? यदि मेरा अनुमान गलत हुआ तो ? रजनी दीदी को बुरा नहीं लगेगा ?'

अगले ही पल उसने निर्णय कर लिया कि अब चाहे जो हो, पूछना तो पड़ेगा ही सो संयत होकर शांत स्वर में बोला, " दीदी, मैं ये जानना चाहता था कि क्या आप अमर नाम के किसी युवक को जानती हैं ?"

अचानक अमर का नाम उसे स्तब्ध कर गया था। पल भर में ही उसके दिमाग में सैकड़ों सवालों ने जन्म ले लिया।

'ये बिरजू अमर को कैसे जानता है ? इसका अमर से क्या संबंध है ? ये अचानक अमर की बात क्यों कर रहा है ?'

तभी उसके दिमाग ने सरगोशी की, 'क्या बेवजह की शंका लेकर बैठ गई है। पहले पता तो कर कि बिरजू किस अमर की बात कर रहा है ? हो सकता है वह तेरा ही अमर हो , या यह भी हो सकता है कि वह कोई दूसरा अमर हो। दूसरा कोई हुआ तब तो कोई बात नहीं लेकिन भगवान करे वह तेरा ही अमर हो तब तो तुझे उसका पता भी चल ही जायेगा। उसकी मजबूरी और पापा की होशियारी का भंडाफोड़ तो श्याम पहले ही कर चुका है वह वीडियो दिखाकर। अगर उसका पता चल जाता है तो वह तुझसे और दूर नहीं भाग सकता। वह वीडियो दिखाकर उसे निरुत्तर किया जा सकता है। उसे बताया जा सकता है कि अब उसे कोई चिंता नहीं करनी चाहिए.. और फिर हो सकता है वह उस पर तरस खा ले। उसका प्यार उसे वापस भी मिल सकता है। फिर देर किस बात की ? पहले पता तो चले कौन है वो ?'

फोन मुँह के ठीक सामने लाते हुए रजनी तेजी से बोली, "कौन अमर ? अमर नाम का एक ही व्यक्ति तो नहीं होगा न इस दुनिया में ?"

"जी दीदी, अमर नाम है उसका .....अमर अग्रवाल !" बिरजू ने आराम से अमर का पूरा नाम बताया।

"ओह, तो अमर वहाँ है ?" रजनी ने अधीरता से पूछा।

"आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया दीदी। मेरा सवाल अभी भी वही है कि क्या आप अमर को जानती हैं ?" बिरजू ने शांतिपूर्वक रजनी से फिर पूछा। इस प्रतिप्रश्न ने रजनी की अधीरता को और बढ़ा दिया।

"हाँ, मैं जानती हूँ अमर को ! मैं तुम्हें सब कुछ बताऊँगी लेकिन प्लीज़ मुझे ये बताओ अमर को तुम कैसे जानते हो और वो अभी कहाँ है ?" रजनी अधीरता से बोल पड़ी।

उसकी आवाज में छिपी चिंता व बेकरारी को बिरजू भलीभाँति समझ रहा था सो जवाब में वह उसे पूरी बात बताता चला गया।

पूरी बात सुनकर रजनी के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी। उसका दिल कर रहा था काश ! कोई चमत्कार होता और उसके पंख निकल आते, परियों जैसे ! एक पल की भी देर नहीं करती वह अपने प्रियतम से मिलने में। मिलकर उन्हें मना ही लेती। उन्हें समझा लेती कि उन्हें कितनी बड़ी गलतफहमी हुई है। हाँ, ये उनकी गलतफहमी ही तो है जो वो ये समझते हैं कि मैं उनके साथ उनकी गरीबी में उनका साथ नहीं दे सकती। मैं उन्हें यकीं दिला दूँगी की मैं उनके साथ हर हाल में खुश होकर रह लूँगी।'

और फिर अचानक अपने माथे पर अपने हाथ से मारते हुए बोली, "धत्त तेरे की ! मैं भी कितनी पागल हूँ ! यह खबर सुनते ही जहाँ मुझे तुरंत निकल जाना चाहिए था अमर से मिलने के लिए, मैं यहाँ बैठकर ख्याली पुलाव पका रही हूँ। नहीं, और देर करना अब ठीक नहीं। ईश्वर का लाख लाख शुक्र है उनका पता तो चला।"

खुद ही खुद से बड़बड़ाती वह अपने कक्ष से बाहर निकल गई। बाहर बरामदे में ड्राइवर श्याम बेंच पर बैठा हुआ था।

उसे देखते ही भाग कर उसके पास आया, "अरे बेबी ! आप बाहर क्यों आए ? मुझे आवाज देना चाहिए था न आपको ? क्या चाहिए आपको ?"

खुशी से चहकते हुए रजनी बोली, "मुझे कुछ भी नहीं चाहिए अंकल ! बस अब मुझे यहाँ से छुट्टी चाहिए।"

"क्या कह रही हो बेबी ? अभी आपकी तबियत ठीक नहीं है। आपको आराम करना चाहिए। सेठजी को पता चलेगा तो मुझ पर गुस्सा होंगे।" श्याम ने चिंता जतलाई।

" तुम फिक्र न करो अंकल ! मैं हूँ न !" कहते हुए रजनी वापस अपने कक्ष में चली गई और बेड के साथ ही लगा हुआ बेल का स्विच दबा दिया।
बेल चीख उठी थी। तेज कदमों से चलती हुई एक नर्स ने उसके कमरे में प्रवेश किया, "क्या हुआ बेबी ? क्यों बुलाया हमको ? कुछ माँगता क्या आपको ?" अधेड़ नर्स ने अपने एंग्लो इंडियन लहजे में पूछा।
बेड पर से नीचे उतर कर पैर पटककर रजनी तुनकते हुए उसी के लहजे में बोली, " हमको कुछ नहीं हुआ आँटी ! लेकिन क्या आप चाहती हैं कि हमको कुछ हो जाए ? हमको अभी तक तो कुछ नहीं हुआ है लेकिन अब जरूर कुछ न कुछ हो जाएगा अगर हमको अभी का अभी अस्पताल से छुट्टी नहीं मिलेगा।"

"तुम ऐसा कैसे बोल रहा है बेबी ? छुट्टी ऐसे कैसे मिल जाएगा तुमको ? डॉक्टर ने तुमको रेस्ट लेने को बोला है और तुम जाने को बोल रहा है। कैसे पॉसिबल है ?" नर्स ने उसको प्यार से समझाना चाहा।

"आँटी, हम भी कुछ नहीं जानता। बस तुम डॉक्टर को जाकर बताओ कि हम को छुट्टी माँगता।" कहते हुए रजनी हँस पड़ी।

रजनी को अपनी नकल उतारते देखकर वह नर्स थोड़ी झेंप गई थी। बोली, "ओके ! हम डॉक्टर साहब को जाकर पूछकर आता है। तुम बेड पर ही रेस्ट करो। तुमसे रिक्वेस्ट है प्लीज !"
कहने के बाद वह मुड़कर चली गई थी कमरे से बाहर। रजनी एक बार फिर बेड पर बैठी अमर के बारे में सोचने लगी।
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दारोगा विजय से मिलने जाने के लिए तैयार अमर बिरजू को आते हुए देखकर रुक गया।
बिरजू के चेहरे पर फैली मुस्कान देखकर अमर भी मुस्कुरा पड़ा।
उसके नजदीक आते ही अमर ने उससे पूछ ही लिया, "अरे बिरजू, क्या बात है ? आज तो तू बहुत खुश लग रहा है ? हमें भी कुछ बताएगा कि अकेले अकेले ही मुस्कुराते रहेगा ?"

" भैया, सच पहचाना आपने ! आज मैं बहुत खुश हूँ.. और मैं क्यों खुश हूँ यह जानकर आप भी खुश हो जाएंगे।" बिरजू ने रहस्य भरे स्वर में मुस्कुराते हुए कहा।

"तो फिर देर किस बात की ? चल बता दे मुझे भी ताकि मैं भी थोड़ा खुश हो जाऊँ !" अमर ने अपनी जिज्ञासा शांत करने की मंशा से पूछ लिया।

बिरजू अभी कुछ कहने के लिए मुँह खोलने ही जा रहा था कि तभी अमर के चेहरे पर अचानक फैल गए हैरत के भाव को देखकर उसने अपने पीछे मुड़कर देखा। उसके घर के पीछे पगडंडी पर से कोई रईस सा दिखनेवाला शहरी व्यक्ति उन्हीं की तरफ बढ़ा आ रहा था। बिरजू को नजरअंदाज करते हुए अमर की निगाहें उस अधेड़ शहरी रईस पर ही जमी हुई थीं और नजदीक आते ही अमर के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा, " अरे सेठ जमनादास जी ! आप और यहाँ ?"

क्रमशः