Apang - 60 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 60

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

अपंग - 60

60

------

जीवन में हर बात कहाँ सोची हुई होती है ? आदमी सोचता कुछ है, होता कुछ है और यह हर रोज़, हर पल होता है | विधाता का लिखा हुआ भला कौन टाल सकता है ? एक उम्र होती है जब आदमी हर परिस्थिति से जूझ सकता है | फिर एक समय होता है जब आदमी टूटने लगता है, वह कमज़ोर पड़ जाता है | यही हाल भानु का हो रहा था |

भानु पहले बहुत पक्की थी, एक चट्टान जैसी लेकिन अब पुरानी चट्टान जैसे बुरबुराने लगी थी |वह कमज़ोर हो गई थी, साथ ही भाग्यवादी भी | मनुष्य अनुभवों के सहारे ही अपने जीवन की परिभाषा बनाता है | मज़े की बात यह है कि परिभाषाओं में बदलाव होते रहते हैं | कभी खुद को भी लगता है कि यह बात हमने ही कही है अथवा सोची है जिसका हम ही विरोध कर रहे हैं ! अब भानु भाग्यवादी होती जा रही थी |

भानु और रिचार्ड दोनों का ही ख्याल था कि राजेश फिर से भानु के पास आकर अपने पति व पिता होने का अधिकार जमाएगा | राजेश को अपने मर्द होने पर बहुत गर्व था, इसीलिए वह उस छोटी सी मगर नाज़ुक और महत्वपूर्ण बात को समझ नहीं पाता था कि पति और पिता की संवेदनाओं के बिना आख़िर किस बूते पर वह अधिकार दिखा सकता है ? केवल सामाजिक तौर पर ! लॉ के जेश एक ऐसे देश में था जहाँ संबंधों पर कोई सेंसर नहीं था लेकिन भारतीय पति अपनी पत्नी पर दृष्टि रखने का पूरा अधिकार रखता था | यह बात सही थी कि भानु अपने भीतर बहुत शक्तिशाली होने की कोशिश कर रही थी लेकिन यह बात भी उतनी ही सही थी कि राजेश पुनीत का लीगल पिता था | राजेश के मन में इस भाव ने ग्रंथी बाँध रखी थी कि वह मर्द था, कुछ भी कर सकता था लॉ के कटघरे में खड़ा करके, बाँधकर, समाज से डराकर ! भानुमति ! वह एक औरत थी और चाहे वह खुद कहीं भी मुँह मारता फिरे, उसको अपनी पत्नी पर पूरा अधिकार था |

भानु के पास रिचार्ड का सहारा था उसके पास वर्ना वह अपने उस सो-कॉल्ड पति से पिटती ही तो रहती |कुछेक दिन ही बीते थे कि भानु के पास कोर्ट का नोटिस पहुँच गया | राजेश ने कोर्ट में फरियाद की थी कि वह एक भारतीय पति है और पत्नी के रिलेशंस किसी और के साथ वह बर्दाश्त नहीं कर सकता | रिचार्ड पर उसका बस नहीं चला, चलता तो वह सबसे पहले उसे ही गोली से उड़ा देता लेकिन वह जानता था कि वह उस देश में किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था |इसीलिए उसने कोर्ट का नोटिस दिया था |

उन दिनों शायद दो-तीन दिनों से रिचार्ड अपनी व्यस्तता के कारण भानु के पास भी नहीं जा पा रहा था | मन में कहीं बहुत परेशान था किंतु उसका समाधान समझ नहीं पा रहा था |

"रिचार्ड ! प्लीज़ घर आ जाओ --" भानु का स्वर रिचार्ड को काफ़ी डरा हुआ लगा |

"क्या हुआ भानु ?" रिचार्ड तुरत ही एपार्टमेंट में एम् भानु के साथ था |

"क्या होगा रिचार्ड ?" भानु बेहद घबराई हुई थी, उसके जाते ही वह उससे एक उस बेल की भाँति लिपट गई जो झुकी हुई हो, टूटने जा रही हो और अचानक किसी मज़बूत वृक्ष की अपनी ओर झुकी हुई टहनी से लिपट वह फिर से सीधी होने लगी हो |

फूट-फूटकर रो पड़ी वह, शब्द गले में रुंधे हुए रह गए | रिचार्ड उसके मन की हालत समझ रहा था | कैसे समझाए ? कैसे इस कमज़ोर बेल में जान डाले ? उसने उसे कसकर अपने आलिंगन में भर लिया |

"डू यू थिंक, दिस इज़ द सौल्यूशन ऑफ़ द प्रॉब्लम ?"रिचार्ड ने उसका सिर सहलाते हुए पूछा |

"क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आता ---" सुबकियों के बीच उसके टूटे-फूटे शब्द निकले |

"तुम क्या करोगी --जो भी करेगा तुम्हारा लॉयर करेगा | तुम्हें बस तैयार रहना होगा उस बात के लिए जो तुम चाहती हो |"

भानु के मुख से कुछ भी नहीं निकला |वह रिचार्ड से अलग होकर सोफ़े में धँस गई | इस शरीफ़ आदमी का भी जीना हराम हो गया है ! उसने सोचा, न जाने कितनी बार सोचती थी |

"डोंट यू वॉन्ट टू गैट रिड ऑफ़ दिस रिलेशन ?"

फिर वही ---क्या जानता नहीं है रिचार्ड ? उसे उस पर भी खीज आई जबकि उसका क्या अपराध था ? यही कि वह हर पल उसकी सहायता करता रहा था ?

"आय एम फैड अप ऑफ़ ऑल दिस, आई नो सो यू आर बट --लड़ाई तुम्हारी है, तुम्हें तैयार रहना होगा, ऑफ़ कोर्स आय एम विद यू --" वह उठा और किचन में से पानी ले आया |

" प्लीज़ हैव वॉटर एंड ट्राय टु बी रिलैक्स ---" कहाँ से हो रिलैक्स --नोटिस में साफ़ लिखा था कि राजेश बच्चे का पिता है और बच्चे की माँ किसी मर्द के साथ रहती है, इसलिए वह क़ानून से इल्तज़ा करता है कि उसके बच्चे को पिता के पास रहने की इज़ाज़त दी जाए | भानु इसी बात से भयभीत  थी कि कहीं कोर्ट फ़ैसला उसके फ़ेवर में न दे दे |

"मैं अपने बच्चे को तो नहीं दूँगी ---" वह अपने आँसू पोंछते हुए बड़बड़ाई |

"कोई नहीं ले सकता तुम्हारे भानु ---तुम माँ हो --" फिर उसने भानु से कहा

"पुनीत बोल सकता है, कोर्ट उससे ही पूछेगा कि वह क्या चाहता है ? तुम बिलकुल चिंता मत करो ---"

दिन गुज़रते जा रहे थे, भानु ऑफ़िस जाती, काम में मन लगाने की कोशिश करती लेकिन उदासी उसका पीछा न छोड़ती |

"चलो--लैट अस गो आउट फ़ॉर डिनर -- " रिचार्ड ने एक दिन आकर पुनीत के सामने कहा |

"जैनी ! प्लीज़ बी रेडी एंड चेंज हिज़ क्लोथ्स ----"

"यस सर ---" जैनी पुनीत को लेकर उसके कमरे में चली गई |

पुनीत खुश होकर रिचार्ड के गले में झूल गया और एक प्यारी सी पप्पी देकर

" हर हाइनेस ! प्लीज़ बी रेडी ---" उस दिन रविवार था | पहले रिचार्ड अपने एम्प्लॉयीज़ के लिए कितनी पार्टीज़ देता रहता था | कम से कम दो महीने में एक, कभी -कभी महीने में दो भी | अब क्या हो गया था ? कितने महीनों से उसने कोई पार्टी थ्रो नहीं की थी और इस छोटे से परिवार के साथ ही समय गुज़ारने में उसे आनंद आने लगा था | लोगों का मज़ा किरकिरा हो रहा था, बातें बनाने में उनका क्या जाता था ? और रिचार्ड क्यों किसी के दबाव में आता ? पहले वह किसी और बात में खुश होता था, आज वह पुनीत को बाहों में भरकर खुश होता है | समय-समय की बात है | उसने अपना मुँह भानु की ओर घुमाया |

"ओह ! गेट रेडी माय हाइनेस ----" वह भानु के करीब आ गया | जानता था, उसका मन नहीं था लेकिन वह उसको चेंज के लिए ले जाना चाहता था | ऐसे तो कब तक ?

इस बीच पुनीत कई बार भानु से पूछ चुका था;

"हू वाज़ दैट पर्सन ?"

भानु जानती थी, बच्चे के ऊपर उस घटना का बहुत ख़राब असर पड़ा था |

"व्हाई डोंट यू सैटिस्फ़ाइ द चाइल्ड ? " रिचार्ड पूछता | वह सूनी आँखों से उसकी तरफ़ देखती रह जाती |

बच्चे को मनोवैज्ञानिक रूप से समझना, समझाना बहुत ज़रूरी होता है लेकिन ----!!