Towards the Light – Memoirs in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

नमस्कार

स्नेही मित्रो

पता ही नहीं चला जीवन कब इस कगार पर आकर खड़ा हो गया और न जाने कितने-कितने प्रश्न पूछने लगा ;

"बताओ, क्या किया, ताउम्र ? पूरी उम्र ऐसे ही भटकते रहे ?

खोजते रहे किसी न किसी को, कभी ईश्वर को, अल्ला को ? कौन मिला ? हाँ, बस खुद को नहीं देखा, न ही जाना-पहचाना ? एक ऐसी डगर पर चलते रहे जिसका पता ही नहीं था कि किधर जाती है ? मुड़ती भी है या सीधे नाक की सीध में चलना होता है ! बस, घूमते रहे वृत्त में, यादों के दरीचों में --याद तू भी कहाँ जाती है ? और अब जब उम्र के इस मुहाने पर आ गए हैं तो लगता है कि हम रहे वृत्त में और जीवन न जाने कहाँ दौड़ गया ! हमने तो सारा समय खो ही दिया | काश ! एक बार फिर से वही समय हमारे सामने आ खड़ा हो और कहे ;

"तू भी क्या याद रखेगा बंदे, ले दिया तुझे एक और जीवन, तेरे आज से जुड़ा | अब करले जो तू करना चाहता था ---"

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ मित्रो, और हम खड़े-खड़े बादलों का इधर से उधर जाना, पवन का तूफ़ान में परिवर्तित होना, लहरों का एक-दूसरे में मिलना, बिछुड़ना और अपने आपको किनारे पर खड़े रहकर लहरों का ख़ुद अपने ऊपर हँसना देखते रहे |

'हम न जाने क्यों यह याद ही नहीं रख पाते कि हमारा जीवन समय की एक कड़ी है, जीवन का प्रत्येक क्षण अमूल्य है | समय की धारा लगातार बहती जाती है | कितने समय का हम सदुपयोग कर सके ?, यही विचारणीय बिंदु है : अन्यथा वक्त हाथ से निकल ही रहा है और हम ताक ही रहे हैं, आज भी ताके जा रहे हैं |

आज समय प्रश्नकर्ता के रूप में हमारे समक्ष खड़ा है और हम इधर से उधर ताके जा रहे हैं क्षण क्षण जुड़कर दिन बनते हैं, दिन जुड़कर सप्ताह, सप्ताह जुड़कर महीने, महीने जुड़कर वर्ष और वर्ष जुड़कर हमारी आयु बन गई है और हम क्षण का महत्व जान ही नहीं पाए | आज जब हम सोचते हैं तब माथे पर पसीना भर जाता है, हाथ-पैर कंपित होने लगते हैं। हाय ! इतनी जल्दी हमारे लौटने का समय आ गया ?

क्या किसी के आँसू पोंछ सके ? क्या किसी भूखे पेट को भोजन करा सके ? क्या किसी के चेहरे पर मुस्कराहट ला सके ? वक़्त जो पूछता है, पूछता ही है --हमारा अंतर खुद ही हमसे पूछता है और हम अनुत्तरित खड़े रह जाते हैं | क्या उत्तर दें स्वयं को भी ?

पिछले कुछ दिनों का एक संस्मरण याद आ गया |

अपने आँखों के डॉक्टर के पास आँखें दिखाने गई थी | शब्दों के अधिक संस्सर्ग में रहने के कारण ज़रूरी हो जाता है कि समय पर चैकअप करा लिया जाए | ऐसे तो पूरे शरीर का चैकअप ज़रूरी है किसी भी उम्र में ---आजकल न उम्र का पता चलता है, न ही समय का |

बिटिया के साथ गई थी, जैसे ही डॉक्टर के चैंबर में प्रवेश किया | डॉक्टर साहब मुस्कुराए | स्वाभाविक रूप से मैं भी मुस्कुरा दी | वैसे भी न जाने मुझे लगता है कि मुस्कान हमारे व्यक्तित्व का वह खूबसूरत अंग है जो हमेशा प्रसन्नता देता ही है |

मुझे यह भी स्मरण है कि जब युवावस्था में मैं मुस्कुराती या खिलखिलाकर हँसती थी लोगों को बड़ी तकलीफ़ होती थी | यहाँ तक सुना देते थे लोग ;

"पता नहीं, क्यों दाँत फाड़ती रहवै ---" उत्तर प्रदेश की उस बैल्ट की हूँ मैं जहाँ खावे, जावै, रहवै --बड़ी रिद्म में प्रयुक्त किए जाते हैं, वह बात अलग है कि परिवार शिक्षित व स्वतंत्र होने व मेरी बचपन की शिक्षा दिल्ली में होने से मुझे कभी इन बातों से बाबस्ता नहीं होना पड़ा |

ख़ैर, उस दिन मेरे आँखों के डोक्टर ने जब कहा ;

"आपको देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है ---" पहले लगा, ऎसी कुछ जोकर हूँ क्या? फिर खुद ही अपने ऊपर खिसियाहट आई, ये नकारात्मकता क्यों ?

मुस्कान से अधिक तो और क्या मूल्यवान हो सकता है ? फिर भी हम इंसान ऎसी मिट्टी के बने हैं न कि सकारात्मक बाद में होते हैं, पहले तो एक प्रश्नचिन्ह के घेरे में खड़े हो जाते हैं यानि अपने ऊपर ही विश्वास की कमी ?

"सच, बहुत अच्छा लगता है आपको देखकर एक पॉज़िटिव एनर्जी जैसे अचानक ही मन में उतर आती है ---" डॉक्टर साहब ने कहा तब बेटी भी बिना कहे न रह सकी --

"आपने फ़ैन हैं डॉक्टर साहब ---"

"कमाल है, कुछ भी ---" मैंने कहा |

"कुछ भी नहीं, ठीक कह रही हैं आपकी बिटिया --और ये मेरी बात ही नहीं है, मेरी आपके जिस भी परिचित से बात होती है, यही कहते हैं ---यह तो बहुत अच्छी बात है | आपको खुश होना चाहिए --"

सच कहूँ तो मन में कहीं खुशी का जल-तरंग बजने लगा और लगा ये मुस्कान भी कितनी बहुमूल्य है जिससे किसी के दिल को ख़ुशी दी जा सकती है | इससे बहुमूल्य वस्तु और क्या हो सकती है और मैंने अपनी मुस्कान को बचाए रखने का फैसला कर लिया और आपने ?

साथियों, बचाए रखें अपनी मुस्कान को न जाने कब वह किसी को खुशी दे जाए !!

 

सस्नेह

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती