शुक्र गुजार था वह सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा का जिसने उसे ऐसी सूरत बख्सी थी।लम्बा कद,गोरा रंग, आकर्षक नैन नक्स और व्यक्तित्व।कुल मिलाकर ऐसी सीरत पायी थी कि उसके आगे हीरो भी फीके लगे।
उसकी इस कामदेव रूपी सुंदरता पर औरते जान छिड़कती थी।औरतो को उस पर इस कदर फिदा होते देखकर दोस्तो ने उसका नाम लेडी किलर रख दिया था।
यह नाम उसके लिए पूर्ण रूप से उपयुक्त था।जवान होने के बाद उसने जिस भी औरत को चाहा उसे पाकर ही रहा था।औरते उसकी तरफ ऐसे खिंची हुई चली आती मानो वह कोई चुम्बक हो।
जब वह कालेज में पढ़ता था तब लड़कियां उसे ऐसे घेरे रहती थी जैसे कृष्ण को गोपियां।सर्विस में आया तब उसके साथ काम करने वाली औरते उसके इर्द गिर्द मंडराने में गर्व महसूस करती।जिन लोगो को औरते घास नही डालती थी।वे लोग उससे जलते थे।ईर्ष्या करते थे।
अब तक न जाने कितनी औरते उसके सम्पर्क में आ चुकी थी।कुंवारी कन्यायें, विवाहिता,कई बच्चों की माये, काम करने वाली मजदूर औरते, विधवाएँ, और किस्मत की मारी परित्यक्तये।हर उम्र,जाति धर्म की औरतों को उसने पाया और भोगा था।आज तक उसने मात नही खायी थी।
औरत को गले मे घण्टी की तरह बंधने में उसका विश्वास नही था।औरत को पोशाक की तरह बदलना उसने अपना सिद्धान्त बना रखा था।वह उन लोगो मे से था जो औरत को सिर्फ एक नजर से देखते है।उनसे एक ही रिश्ता मानते है।वह औरत को उसके शरीर से आगे कुछ देखना नहीं चाहते।
मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी।बॉलीवुड का गढ़।इस महानगर में आते ही उसे जिसने सब से ज्यादा आकर्षित किया वह थी माधुरी।जितना प्यारा उसका नाम उतना ही प्यारा उसका रंगरूप।
लम्बा कद, साफ खिला रंग,आकर्षक नैन नक्श और सांचे में ढला शरीर।सब कुछ मिलाकर माधुरी मात्र सुंदर ही नही बेहद आकर्षक और लुभावनी थी।वह जब बोलती तो उसकी खनकती आवाज मन को मोह लेती।पहली मुलाकात में ही माधुरी उसके मन को भा गयी।रूप की देवी स्वर्ग से उतरी अप्सरा के देह को भोगने की लालसा उसने मन मे पाल ली।
माधुरी उसके बॉस रघुवर दयाल की इकलौती कन्या थी।पुणे से महानगर में तबादला होकर आने और अपने पद का भार ग्रहण करने के बाद वह अपने बॉस से बोला,"सर इस शहर में मैं नया हूँ।क्या आप मुझे कही किराए का मकान दिला सकते हैं?"
"डोंट वरी।चिंता मत करो।"
रघुवर दयाल का मकान काफी बड़ा था।उन्होंने उसे रहने के लिए अपने मकान में एक कमरा दे दिया।
और वह वहां रहने लगा।घर मे बॉस के अलावा उनकी पत्नी सविता और बेटी माधुरी थी।वह कुछ ही दिनों में उनसे घुल मिल गया।सविता उससे पुत्रवत स्नेह करने लगी।
माधुरी कालेज में पढ़ रही थी।वह मॉडर्न होने के साथ खुले विचारों की युवती थी।वह हर बात को विनोदपूर्ण और मजाकिया अंदाज में कहने की उसकी आदत थी।
माधुरी हंसती तो ऐसा लगता मानो सारी की सारी शराब उसकी सुराहीदार गर्दन से उड़ेल दी हो।उसे हंसते हुए देखकर वह सोचता वह इसी तरह हंसती रहे और वह उसे देखता रहे।
समय गुजरने के साथ वह माधुरी के साथ खुलता चला गया।दोनो ताश कैरम खेलते, हंसी मजाक करते,वाद विवाद चर्चा करते।ऐसा करते समय वह माधुरी को छू भी लेता था