Meri Dadi in Hindi Anything by Arjit Mishra books and stories PDF | मेरी दादी

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मेरी दादी

बहुत सौभाग्यशाली मानता हूँ खुद को कि मेरी परवरिश एक भरे पूरे परिवार में हुई जहाँ मुझे हर रिश्ते में बहुत प्यार और अपेक्षित सम्मान मिला| कहते हैं कि एक बच्चे के आरंभिक जीवन में दादा-दादी एवं नाना-नानी का बहुमूल्य योगदान होता है| बच्चे अपनी शुरुआती नैतिक शिक्षा घर के बुजुर्गों से सुनी कहानियो से ही प्राप्त करते हैं| मेरे जीवन में भी मेरे दादा-दादी एवं नाना-नानी का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही था|

यदि मैं अपनी दादी की बात करूँ, तो वो ज्यादा पढ़ी लिखी तो नहीं थीं किन्तु एक जमींदार परिवार की मुखिया होने के नाते अपने परिवार और गांव के अन्य परिवारों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से परिचित थीं| परिवार और समाज में सबको साथ लेकर चलने और सबका सम्मान प्राप्त करने की अनूठी कला भी उनमे थी|

एक दिन अचानक उनकी तबीयत ख़राब हुई और तमाम जांचों के बाद पता चला कि उन्हें कैंसर हो गया है और लास्ट स्टेज है| बचने की कोई उम्मीद न होते हुए भी हर संभव प्रयास किया गया कि उन्हें बेहतर इलाज मिल जाए, शायद कोई चमत्कार ही हो जाय| फिर एक दिन रही सही उम्मीद भी ख़त्म हो गयी जब डॉक्टर ने कहा कि अब इन्हें घर ले जाइए, और जब तक हैं सेवा करिए|

23 सितम्बर 1995, मेरा 13वां जन्मदिन, मैं सुबह स्कूल जाने से पहले दादी के पास गया| दादी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं थीं| मैंने उन्हें आवाज़ दी “अम्मा”| मैं अपनी दादी को “अम्मा” कहता था| दादी ने आँखें खोलीं, मुझे देखकर मुस्कुरायीं, फिर आहिस्ते से उठकर बैठ गयीं| मैंने दादी के पैर छुए और बोला “अम्मा, आज मेरा जन्मदिन है, आशीर्वाद दो”| दादी बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं “अब लागत है तुम्हार जनेऊ न कर पईबे”| दादी की चंद अपूर्ण इक्षाओं में से एक अपने सामने मेरा यज्ञोपवीत संस्कार करने की भी थी जो अपूर्ण ही रह गयी| खैर उस उम्र में उस समय मुझे कुछ समझ न आया कि मैं क्या कहूँ, मैंने दुबारा से दादी के पैर छुए और स्कूल के लिए निकल गया| वो मेरी दादी से आखिरी मुलाक़ात थी, आखिरी बात थी| स्कूल से वापस आया तो पता चला, तबीयत ज्यादा बिगड़ जाने की वजह से उन्हें फिर से अस्पताल में भर्ती करना पड़ा|

27 सितम्बर 1995, शाम के कुछ 7 बजे होंगे| उस समय पूरे शहर में बिजली नही आ रही थी| हम दोनों भाई घर पर थे शायद होमवर्क कर रहे थे| तभी पापा घर पहुंचे और गेट पर से ही रुंधे हुए स्वर में बोले, “बेटा, चलो जल्दी चलना होगा, दादी जा रही हैं”| घर से अस्पताल तक के रास्ते में कोई किसी से कुछ नही बोला| मेरी आँखें नम थीं, बस एक ही ख्याल चल रहा था, कि अब दादी नही होंगी, त्यौहार में छुट्टियों में गाँव जायेंगे, सब कुछ वैसा ही होगा बस दादी नहीं होंगी| अस्पताल पहुँच कर दादी के बेड के पास जाकर एक बार आवाज़ दी “अम्मा”, शायद कुछ हरकत हुई या शायद नहीं हुई| पर उसके बाद मैंने वो आवाज़ कभी नहीं दी, आज तक नहीं|

मेरे लिए अस्पताल का नज़ारा एक अलग किस्म का अनुभव था| एक तरफ दादी की साँसें उखड रही थीं और दूसरी तरफ अस्पताल में मेरे परिवार के लोगों का जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा था| बाबा दादी के पास राम नाम का जाप करने के बाद उठकर जाते समय रो पड़े| मैंने ऐसा दृश्य पहली बार देखा था| मेरे जन्म के बाद से परिवार में कई मृत्यु और हत्याएं हुई थीं पर शायद मुझपर किसी का कोई प्रभाव नही पड़ा था| यहाँ तक कि मेरे बाबा के भाई की हत्या और हत्यारों से बदला लेने की कहानी मैं अक्सर अपनी दादी से सुनता रहता था| पर कभी भी मैंने किसी अपने को इस तरह से छोड़कर जाते नहीं देखा था| अचानक दादी की सांस रुकी, फिर चली, फिर रुक गयी, हमेशा के लिए| मैंने और चाचा ने दादी के पैर पकड़ रखे थे| हम बहुत देर तक यूँ ही पैर पकड़े खड़े रहे| आँखों से अनवरत बहती हुई अश्रुधारा दादी के चरणों का आचमन करती रही| दादी अब देवलोक में अपना स्थान बना चुकी थीं|

अगले दिन सुबह तडके हम सब गाँव पहुँच चुके थे| पूरा गाँव और आसपास के क्षेत्रों से लोग दादी के अंतिम दर्शन के लिए पहुँच रहे थे| दादी के सम्मान में लोगों ने अपने घरों में चूल्हे ठंडे कर दिए थे| हर कोई उनके किसी विशेष गुण का बखान कर रहा था जो मुझे ये सोंचने पर विवश कर रहा था कि उन्होंने लोगों का इतना सम्मान और प्यार कैसे अर्जित किया|

सभी लोग बारी बारी से अंतिम प्रणाम कर रहे थे| मेरे पापा जैसे ही चरण स्पर्श के लिए झुके, दादी के चरणों पर सिर रखते ही फफक कर रोने लगे, फिर खुद को संभाला, उठे और बाहर निकल गए| मैंने पापा को पहली बार रोते हुए देखा था, और आखिरी बार भी| हम दोनों भाई भी पापा की अनुमति लेकर अंतिम संस्कार के लिए साथ चले गए| संस्कार की प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात हम वहां से निकल रहे थे तो मैंने पलट कर देखा कि पापा वहीँ खड़े हैं दादी के सिर की तरफ| मैं पास गया तो पापा ने इशारा करते हुए कहा “वो देखो, दादी के सिर के बाल दिखाई दे रहे| मुझसे कुछ बोला न गया|

दादी की पूण्यतिथि पर सादर नमन और भावपूर्ण श्रद्धांजलि||