अचानक एक सांप छाया के आगे से सरसराता हुआ निकला।सांप को देखकर छाया डर गयी।वह चीखते हुए भागी।भागने की बजह से उसका पैर साड़ी में उलझ गया और वह गिर गयी।
अनुपम ने चलते हुए पीछे मुड़कर देखा।छाया जमीन पर गिरी पड़ी थी।उसे जमीन पर गिरा हुआ देखकर भी वह उसे उठाने के लिए आगे नही बढ़ा।
"चला नही जाता तो क्यो आयी हो?जल्दी आओ वरना मैं जा रहा हूँ।"
अनुपम को अपनी तरफ आता न देखकर छाया ने उठने का प्रयास किया पर वह फिर लड़खड़ा कर गिर पड़ी।
"क्या आफत है?"अनुपम गुस्से में छाया की तरफ बढ़ा।उसने छाया का हाथ पकड़कर उठाया।छाया सीधी खड़ी हो गयी।पर अगले ही पल नीचे गिरते हुए चीखी,"हाय मर गयी'
"अब क्या हुआ?"
"मुझ से खड़ा नही हुआ जा रहा"छाया अपना पैर सहलाते हुए बोली।
"अजीब मुसीबत है।किसने कहा था।मेरे पीछे आने के लिये।,"अनुपम बड़बड़ाता हुआ छाया की तरफ बढ़ा।उसने उसे अपनी गोद मे उठा लिया।फिर उसे गोद मे लेकर अपने बंगले की तरफ चल पड़ा। छाया उसकी गोद मे कराह रही थी।बंगले पर आकर अनुपम ने छाया को पलँग पर लेटा दिया।
"कहां हो रहा है दर्द।"उसे कराहता देखकर अनुपम ने अपना हाथ उसके घुटने पर रखा।
"यहाँ नही और ऊपर।"और छाया और ऊपर करती रही।अनुपम का हाथ घुटने से ऊपर आ गया।
"यहाँ'
"बस यही।"
"डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा।"
"डॉक्टर क्या करेगा?" छाया ने तिरछी नजरो से अनुपम की तरफ देखा था।
"डॉक्टर चेक करके बतायेगा कही फ्रेक्चर तो नही हो गया"
"फ्रेक्चर नही हुआ है।बस तुम प्यार से कुछ देर ऐसे ही सहलाते रहो।मेरा दर्द सही हो जाएगा।"
अनुपम ने छाया के चेहरे की तरफ देखा।कुछ देर पहले वह दर्द से कराह रही थी।लेकिन अब छाया को देखकर ऐसा लग रहा था मानो उसका दर्द छूमंतर हो गया हो।चेहरे पर अवसाद की जगह खुशी साफ झलक रही थी।आंखों में चमक और होठो पर मुस्कराहट थी।उसके बदले रूप को देखकर अनुपम बोला,""तो तुम इतनी देर से बहाना कर रही थी।"
"तो तुम सोच रहे थे।मेरा पैर सचमुच में टूट गया?"
"नही टूटा तो बहाना करने की क्या जरूरत थी।'
"अगर बहाना न करती तो तुम्हारी गोद मे कैसे आती?'"
"मक्कार"अनुपम ने छाया की चोटी पकड़ ली,"अब फिर करोगी बहाना"
"उई मां,"छाया चिलाई,"छोड़ो मेरे बाल।दर्द हो रहा है।"
"पहले बताओ अब कभी बहाना करोगी।
"नही,"अनुपम ने छाया की चोटी छोड़ दी।
अनुपम सुबह घर से निकलता था।कभी वह खाना खाने के लिए घर आ जाता कभी ड्राइवर को भेजकर खाना जंगल मे ही मंगवा लेता।एक दिन न वह दोपहर में घर आया न ही उसने खाना मंगवाया था।
दोपहर में बूंदा बांदी होने लगी जो धीरे धीरे तेज बरसात में बदल गयी।बरसात हल्की हुई तब शाम को अनुपम भीगता हुआ घर लौटा था।वह घर मे कदम रखते ही छीकने लगा।
"कहा गये थे सुबह से।बुरी तरह भीग गये हो।मैं टोलिया लाती हूँ।
छाया अनुपम के कपड़े और तौलिया ले आयी।
"तुम कपड़े बदलो।मैं तुम्हारे लिए मसाले वाली चाय बनाती हूँ'
अनुपम कपड़े बदलकर बिस्तर में लेट गया।छाया चाय बनाकर ले आयी,"लो गर्म गर्म चाय पियो।"
अनुपम का खाना पहले रामदीन बनाता था।छाया जब यहां आयी तो उसने रसोई का काम अपने हाथ मे लेना चाहा पर जब अनुपम ने उसके हाथ का खाना खाने से इनकार कर दिया तब उसे इस काम से हाथ खीचना पड़ा।