एक महीने बाद
देहरादून उत्तराखंड
" गार्गी कहां है तू,,,, मैंने सारा लगेज पैक कर लिया है,,,, बाकी कुछ बचा हो तो भी देख ले,,,,, हमे एयरपोर्ट के लिये निकलना है,,,,," रूपिका नें अपने बालो का जुडा बांधते हुए कहा ।
मानावत को गये एक महिना हो चुका था, और उन दोनो बहनो नें इस एक महिने में खुद को कैसे सम्भाला था यह तो वह दोनो ही जानती थी और इब वो दोनो अपने डैड मनावत का सारा बिजनेस अमेरिका से ही सम्भालना चाहती हैं, क्योंकि वह दोनों ही देहरादून में बिल्कुल भी नहीं रहना चाहती थी । उनकी पढाई और बिजनेस अब अमेरिका में सेटल करना का सोचकर वो दोनो आज देहरादून छोडने वाली थी ।
" गार्गी,,,,,!!!!
" आ रही हूं रूपी,,,, कपडे भी नही पहनने देगी क्या,,,, ,"
" अच्छा तो क्या तू बाथरूम में है, तो जवाब तो दे दिया कर, मुझे क्या पता रहेगा तू क्या कर रही है "
" ठीक है,,,, अभी तो पता चल गया ना, अभी तू जाकर बाकि चीजे देख ले, कुछ रह ना गया हो ,,,,, तब तक मैं भी रेडी हो जाऊंगी "
" ठीक है,,,, मैं देख आती हूं, वैसे तो सब कुछ रख लिया था मैंने पर फिर भी " इतना कहकर रूपिका अपने रूम की तरफ चली जाती है ।
दूसरी तरफ
चन्दानी टेक्सटाइल प्रा. लिमि. कम्पनी
देहरादून, उत्तराखंड
" तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे हाथ लगाने की,,,, क्या तुम्हें पता नही है मुझे इस तरह का बिहेवियर बिल्कुल पसन्द नही है,,,,, !!!! एक तीस की उम्र की औरत नें अपनी भूरी आंखों से सामने खड़े करीब 45 की उम्र के आदमी को देखते हुए कहा ।
" तुम मेरी पत्नी हो मैं तुम्हें हाथ क्यो ना लगाऊ,,,, क्या अगर तुम्हें इतनी ही परेशानी है तो तलाक दे दो मुझे,,,,, क्यो इस जबरदस्ती के रिश्ते में बांधकर रखा है मुझे,,,???" उस आदमी नें औरत को कमर से पकडकर अपनी ओर खींचते हुए कहा ।
" मिस्टर रघुवीर चन्दानी,,,,, अपनी लिमिट में रहो,,,, और दूर हटो मुझसे,,,,, " उस औरत नें रघुवीर को धक्का मारते हुए कहा जिससे रघुवीर उस औरत से दूर हट गया साथ ही रघुवीर के हाथो में कांच की टेबल का तीखा कोना लग जाता है और अचानक से हाथो से खून बहने लगता है, औरत रघुवीर के हाथो की तरफ देखती है वो गुस्से से भरी नजरो से रघुवीर को देखती है ।
" आईंदा अदर मुझे छूने की कोशिश की तो,,,, तुम्हारे गले पर वार होगा,,,, यह याद रखना है "
रघुवीर अपनी चोट की तरफ देखता है और एक जैसी मुस्कान के साथ एक नजर उस औरत की तरफ देखता है औरत रघुवीर की मुस्कान का मतलब समझ पाती तभी ऑफिस रूम का दरवाजा खुलता है और वो लडका जो उस दिन दिवार को देखकर आंसू बहा रहा था, वही लडका ऑफिस रूम के अन्दर एन्टर करता है ।
" डैड,,,, " उस लडके का ध्यान शायद कहीं और था वह अचानक ही ऑफिस में आ गया था पर जैसे ही उसकी नजर सामने खड़ी औरत पर पड़ती है वह लड़का गुस्से से और हैरानी से उस औरत की तरफ देखने लगता है ।
"आप यहां क्या कर रही हैं" लड़के ने अंदर एंटर होते हुए कहा ।
"वदान्य,,, मैं तो बस,,,, " कहते हुए वो औरत रुक जाती हैं ।
"क्या कर रही हैं आप यहां, मिसेज निहारिका,,,,, मेरे डैड के ऑफिस में,,, आपको कितनी बार कहा है यहा मत आया कीजिए,,,," उस लड़के ने अपनी भौंहे सिकोडते हुए कहा ।
" वो मुझे तुम्हारे डैड नें ही बुलाया था,,,,, " औरत ने रघुवीर की तरफ देखते हुए कहा ।
" डैड आपनें क्यो बुलाया इन,,,,,,,, डैड यह खून कैसे आ रहा है आपके हाथ से,,,," अचानक वदान्य की नजर रघुवीर के हाथो पर जाती है ।
रघुवीर अपने हाथ को छिपाने का नाटक करते हुए-: कुछ नही वदान्य वो बस छोटी सी चोट,,,,, !!!
" नही डैड, देखिये तो कितना खून बह रहा है, यह छोटी चोट नही है, आपको,,,, आपको यह चोट कैसे लगी,,,,," वदान्य नें रघुवीर के हाथो से बहता खून देखा तो वो जैसे अपने आप को भूल गया था, उसके आंखो से अचानक ही आंसू आने लगे है वो एक झटके से रघुवीर के हाथो को पकड लेता है वदान्य उन्हें चेयर पर बैठाते हुए-: कैसे आई आपको यह चोट,,, , और आप इतने लापरवार कैसे हो गये है,,,, आप अपना ख्याल नहीं रखते हैं क्या,,,,, अगर अभी मैं नहीं आता तो आपके हाथों से कितना खून बह चुका होता,,,,, "
" अरे बेटा रिलैक्स, आई एम फाइन,,,, डॉन्ट बी पैनिक वदान्य,,,, "
" नो डैड,,, इतना खून निकल रहा है, मैं शांत कैसे हो जाऊं,,,??
" वदान्य,,,, यह तो छोटी सी चोट है,, मैं अभी बेन्डैज कर लूंगा सही हो जाएगा,,,,,"
" नहीं डैड, आप बैठे,,, रहिये,,,,,मैं ही कर लेता हू,,, पर यह बताइये यह चोट आपको कैसे लगी, क्या इनकी वजह से,,,,!!! वदान्य ने निहारिका को देखते हुए कहा ।
रघुवीर ने वदान्य के सवाल को कोई जवाब नही दिया वही निहारिका भी चुपचाप खडी थी ।
" मतलब इन्होने ही,,,, मिसेज निहारिका आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरे डैड को चोट पहुचाने की ,,,,, !!!!
" कहते हुए वदान्य निहारिका को घूरते हुए उसके सामने आ जाता है ।
" मैने कुछ नही किया, रघुवीर मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे थे,,, तो मैने बस उन्हें धक्का,,,,,!!!
" चुप हो जाइये,,, अब एक ओर शब्द नही,,,, !!!! मै जानता हूं डैड नें आपको यहां क्यो बुलाया है, और इब आप निकलिये यहां से,,,,!!! कहते हुए उसने निहारिका को ऑफिस से बाहर निकाल दिया ।
" वदान्य मेरी बात तो सुनो,,,, !!! निहारिका कुछ कहने को होती है पर वदान्य उसकी बात काटते हुए-: " और अब आप मेरे डैड के ऑफिस में कभी मत आइयेगा, चाहे कुछ भी हो जाये, मेरे डैड से दूर रहिये आप, और हां मैं आज ही डाइवोर्स पैपर भिजवा दूंगा, आप उस पर साइन कर दिजियेगा, और मेरे डैड को रिलिज कर दिजिये इस रिश्ते से,,,,,,,,!!!! वरना मुझे आपसे निपटने के बहुत से तरीके पता है,,,, इसलिये आपकी भलाई इसमें ही है कि आप, समझ रही है ना आप,,,,,!!!! कहते हुए वदान्य निहारिका के चेहरे पर दरवाजा बन्द कर देता है । वही निहारिका ऑफिस के बाहर खडी रहती है जहां ऑफिस का सारा स्टाफ उसे देख रहा था ।
निहारिका एक नजर सभी को देखती है फिर तेजी से वहां से निकल जाती है ।
दूसरा दृश्य
" रूपी मेरा मन तो नही है कि मैं यही से जाऊ, पता नही क्यों एक अलग ही लगा हुआ है यहां से पर जब भी डैड का सोचती हूं तो मन भी नही करता कि यहां रूकूं,,,,,,"
" हम्म,,, सही कह रही हो गार्गी पर मुझे लगता है कि अब हमारा यहां कुछ बचा भी नहीं है तो रहने का कुछ मतलब भी नहीं इसलिए हमारा यहां से जाना ही बेहतर है"
" शायद तुम ठीक कह रही हो,,,,,!!!! गार्गी नें खिडकी से बाहर की तरफ देखते हुए कहा ।
वही रूपिका जो कि कार ड्राइव कर रही थी, उसे आज कुछ सहू नही लग रहा था, उसे ऊपरी मन से तो हो रहा था कि वो आज देहरादून छोड दे, पर अन्दर का मन बार-बार कह रहा था कि उसे देहरादून में ही रहना चाहिये ।
" न जाने क्यो कुछ सही नही लग रहा है, आज जैसे हू घर से निकली तो यह तेज हवा शुरू हो गयी और अब यह बारिश,,,, अभी सडक पर भी ज्यादा व्हीकल नही दिख रहे है , सब इतना शांत शांत क्यो है आज , जबसे देहरादून आयी हूं तब से ही कुछ भी सही नही लग रहा है,,,,,कुछ तो गलत है यहां,,,,," रूपिका नें खुद से मन ही मन कहा ।
" रूपी, तुम्हें नही लगता, आज मौसम कुछ अजीब हो रहा है,,,,,"
" हां लग तो रहा है,,,, "
" मुझे कुछ सही नही लग रहा है रूपी,,,,,!!!!
" क्यो क्या हुआ,,,, ??? "
" एक अजीब डर लग रहा है,,,, मुझे लगता है हमें आज नही जाना चाहिये,,, हम कल चले जाएगे,,,, "
" नही यार, अब घर से आ गये अब कल,,,, तुम्हें क्यो डर लग रहा है,, रिलैक्स रहो,,,, और पानी पी लो,,,, "
" नही,,, रूपी,,, मुझे डर लग रहा है प्लीज,,, वापस चलो,,, "गार्गी अचानक ही डरते हुए कहती है ।
" क्या हुआ है गार्गी, क्यू डर रही हो, मैं हू तो सही तुम्हारे पास, पानी पी लो,,, और गहरी सांस लो "
" नही मुझे कुछ नही करना, रूपी, वापस चलो,,, बस वापस चलो,,,, " गार्गी कुछ अजीब आवाज में रूपी से कहती है ।
" गार्गी चुप करो,,,, आधा रास्ता पार कर चुके है अब वापस,,,,???? चुपचाप पानी पी लो और शांत रहो,,,, !!!! रूपिका गार्गी को डांटते हुए कहती है क्योकि इस वक्त मौसम सच में बेहद खराब हो गया था, काली बादलो की घटा पूरे आकाश को घेर बैठी थी । साथ ही बारिश और बिजलियो की गडगडाहट इतनी तेज हो गयी थी कि रूपिका को गार्गी की आवाज तक साफ सुनाई नही दे रही थी ।
गार्गी, रूपिका की डांट पर कुछ शांत होती है और चुपचाप बैठ जाती है कुछ ही देर में बाहर का वातावरण भी शांत हो जाता है बिजलियो की गडगडाहट भी शांत हो जाती है और बारिश की आवाज भी ।
" क्या तुम अब ठीक हो,,,, ???" रूपिका ने गार्गी से कहा।
" हम्म" गार्गी नें धीरे से कहा और चुपचाप उसी तरह बैठी रही ।
" पानी पी लो, अभी भी सांसे फूल रही है तुम्हारी,,,, "
गार्गी, रूपिका के कहने पर चुपचाप बोतल से पानी पीती है ।
तभी अचानक न जाने सामने उसे क्या दिखाई देता है वह जोर से चिखते हुए कहती है-: डैड,,,,,, !!!! उसकी आवाज पर रूपिका चौंक उठती है और सामनें सडक की तरफ देखती है जहां से रूपिका को दिखता है कि मानावत उसकी कार के सामने ही खड़े हैं और उनका पूरा शरीर आग की लपटो में चल रहा है वही आंखो से लाल खून की धार बह रही होती है ।
रूपिका यह सब देखकर चौंक जाती है और अचानक ब्रैंक लगाने की कोशिश करती है पर ब्रेक नही लग पाता और उसे ऐसा लगता है जैसे उसकी कार किसी आग के हवाले चढ गयी हो उसे अचानक ही तेज गर्मी महसूस होने लगती है और अचानक ही कार सामने से आते हुए ट्रक से टकरा जाती है ।
" आहहहहहहहहहहहहहहहहह" एक चीख के साथ वहां सन्नाटा छा जाता है ।
धारावाहिक जारी है............