चरित्रहीन.......(भाग--19)
यहाँ तक की अपनी कहानी वसुधा जी ने सुनायी.....मैं तन्वी एक पत्रकार हूँ, जो वसुधा पाठक की उपलब्धियों की वजह से आयी तो उनका इंटरव्यू लेने थी...वो तो मैंने ले लिया था, पर उनकी शख्सियत से मैं इतना प्रभावित हो गयी कि मैं उन पर एक किताब लिखने का ठान बैठी थी। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं उन पर एक किताब लिखना चाहती हूँ, तो आप शुरू से अपनी लाइफ के बारे में बताइए। उन्होंने जब पहली लाइन बोली तो मै् हैरान रह गयी उनकी बोल्डनेस से...! मैं नहीं जानती थी कि उनकी पूरी लाइफ किसी रोलर कोस्टर जैसी रही है...उनकी उपलब्धियों के बारे में बताने से पहले उनकी अगली सुबह कैसी रही? मैं इसके बारे में बताना चाहती हूँ.....अगली सुबह वसुधा जी उठी तो उन्हें सुबह कुछ नयी सी लगी बिल्कुल फ्रेश, दिल में न कोई गिल्ट ना ही कोई दुख या अफसोस था.....सब बिल्कुल नार्मल बिहेव कर रहे थे, पर वसुधा चाहती थी कि कोई कुछ तो बोले चाहे कोई सवाल या आरोप.....नीला जी शायद समझ रही थी वसुधा जी के मन की बात.....उन्होंने सब के लिए चाय बनाती वसुधा जी को पीछे से अपनी बाँहो को गले में डाल लिया और बोली,"दी मैंने या आपके भाई ने आपको कभी गलत नहीं समझा, बस वो फोटो देख कर बैचेन हो गए थे कि न जाने कितनों को विद्या दीदी ने ये फोटो भेज दिया होगा? कोई और आप दोनो के बारे में क्या सोचेगा ये सोच उन्हें गुस्सा भी दिला गयी.....आपसे वो अपने दिल की बात नहीं कह पा रहे शायद शरमा रहे हैं....प्लीज आप हम दोनो को माफ कर दीजिए"! उनकी बात सुन कर वसुधा जी के दिल को बहुत ठंड़क और सुकून मिला .......माफी मत माँगो नीला तुम दोनो मेरे अपने हो, बात को यहीं खत्म कर देते हैं, चलो आज हल्का फुल्का खाते हैं, फिर लंच करने बाहर चलते हैं। वसुधा जी इस बात को कहीं न कहीं जानती थीं कि जो एक बार घट जाता है वो कोई भूलता नहीं, बेशक उस टॉपिक पर फिर कोई बात न हो......पर उसने फिर कभी बच्चों से भी कोई बात नहीं की...कुछ साल वसुधा और रश्मि ने अपने काम को खूब समय दिया और बचे हुए टाइम में वो सोशल वर्क करने से भी पीछे नहीं हटती थीं......गरीब बच्चों की पढाई और हेल्थ के लिए समय समय पर मदद करती रही। आरव अपनी आगे की पढाई के लिए अपने चाचू के पास चला गया और अवनी M.D कर रही थी......वो अपना करियर ग्यानोक्लोजिस्ट में बनाना चाहती थी.....उसमें एक साल तो होस्टल में जरूर रहना पड़ता है.....तो वसुधा जी अकेली ही रहती थीं। विद्या ने भी अपनी सहेलियों का कहना माना और बच्चों को पढाने लग गयी। गरीब बच्चों से वो ट्यूशन फीस भी नहीं लेती थी.....बाकी टाइम वो वसुधा जी की तरह एक संस्था में औरतों और बच्चों के लिए काम करती थी। आरव ने ही एक दिन फोन करके विद्या को वसुधा जी के साथ रहने के लिए कहा तो वो खुशी खुशी तैयार हो गयी।
वसुधा के काम की सराहना बिजनेस वर्ल्ड में हो रही थी......तो सोशल वर्क में भी वो एक सशक्त शख्सियत के रूप में उभर कर सामने आयी.... वो अपनी कमाई का एक हिस्सा चैरिटी में देती थी और सही काम में पैसा इस्तेमाल हो रहा है या नहीं इसका ध्यान रखती थी। वसुधा जी के साथ इस नेक काम में बहुत लोग जुड़ते गए और उन्हें सोशल वर्क और बिजनेस दोनों क्षेत्र में सम्मानित किया गया.......ऐसा नहीं कि वसुधा जी को सम्मान मिला तो लोगो ने इसे पचा लिया। मायके और ससुराल वालों की तरफ के रिश्तेदारो ने विद्या जी का वसुधा जी के घर पर रहने पर काफी सवाल उठाए और जोक्स भी बनाते रहे हैं और बनाते रहेंगे........जिनकी परवाह उसके परिवार ने करनी छोड़ दी थी.........पर विद्या की सोच और आदतों का बदलना और उसे सही राह, सही समय पर दिखाने का श्रेय वो वसुधा जी को देती है। वसुधा जी की बात सुनों तो वो कहती है, "मुझे ऐसी चरित्रहीनता दिल से स्वीकार है"!!!
समाप्त