चरित्रहीन.......(भाग-18)
रश्मि की बात सुन कर अच्छा लगा कि उसने विद्या और मेरे बारे में सोचा, शायद
सच्चे दोस्त ऐसे ही होते हैं। कई दिनों से विद्या से बात नहीं की थी, वो भी शॉक में होगी यही सोच कर मैंने उसे ऑफिस में ही बुला लिया....वो मना कर रही थी पर रश्मि ने भी कहा तो वो 1 घंटे में हमारे पास पहुँच गयी थी, तब तक मैंने अपना कुछ काम निपटा लिया था.....हमारे काम में वैसे भी बहुत ज्यादा मारधाड़ नहीं होती तो सुकून सा रहता है काम में....वैसे भी काम एक बहाना था खुद को बिजी रखने के लिए......विद्या बार बार मुझे सॉरी बोल रही थी तो मैंने कहा, "जो हुआ उसे छोड़ दो....वो सब धीरे धीरे अपने आप ठीक होने देते हैं, पर आज तुझे मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ कि जो चीज हमारे पास नहीं है, उसके लिए परेशान होने से अच्छा है कि कुछ क्रिएटिव काम में ध्यान लगाना चाहिए। मैं और रश्मि ये काम कर रहे हैं तू चाहे तो हमारे साथ काम कर सकती है नहीं तो बच्चों को पढाना शुरू कर दे....या फिर कोई सोशल वर्क, इससे तुझे अच्छा लगेगा कि तु कुछ कर रही है, मैं भी तुझे जॉइन कर लूँगी, ध्यान से सोच ले कि क्या करने का मन है? तुझे इन सब विचारों से निकलना ही होगा.....मैं बिजी हूँ बच्चों और काम में....तू भी कुछ करती रहेगी तो बिजी रहेगी....पहले तो अँकल आँटी थे तो तू अकेली नहीं थी, पर अब अकेली है तो तेरी चिंता होती है"! विद्या चुपचाप सुनती रही मुझे और रश्मि भी उसे अपने तरीके से समझाती रही......"तुम दोनो ही ठीक कह रही हो, जो हुआ उसे बदल नहीं सकती पर आगे ऐसा न हो, इसके लिए मुझे सोचना होगा कि क्या किया जाए"!
हम तीनों ने एक साथ खाना खाया और फिर थोड़ा काम निपटा कर मैंने शाम को विद्या को उसे घर छोड़ा और फिर अपने घर आ गयी। विद्या को समझ नहीं आ रहा था कि "वो मेरे परिवार के सामने कैसे आएगी"! तो मैंने उसे समझाया, "थोडा वक्त लगेगा सब ठीक हो जाएगा"।
घर आयी तो आरव कॉलेज से आ कर टी.वी देख रहा था....मुझे देख कर बोला मॉम आपको पता है Homosexual's parade निकाल रहे हैं, वो चाहते हैं कि हमारे देश में इनके "रिलेशंस" को भी लीगल बनाया जाए....कल है परेड,विद्या मासी और आप भी जाओगे क्या? मैंने आरव के ताने को नजरअंदाज करके मुस्कुरा कर कहा, "नहीं बेटा हम दोनो ही नहीं जा रहे क्योंकि जो लेस्बियन या गे होगा वही तो जाँएगे"! मेरी बात सुन कर वो चुप हो गया। मैं भी बात को खींचने के मूड में नहीं थी तो हाथ मुँह धो कर अपने लिए चाय बनाने चली गयी। मैं आरव को भी डाँटना नहीं चाहा रही थी, बड़ा जरूर हो गया था, पर उस वक्त माहौल ऐसा था कि ऐसे रिश्तों को गलत ही समझा जाता था, फिर जब से वो फोटो वाली बात हुई है तब से ये बातों को जोड़ जोड़ कर देखने की कोशिश करने लगा है, मेरे कुछ कहने से वो मुझे और गलत न समझो यो डर भी तो था......! कुछ दिन उस परेड की और Homosexuals के रिलेशनशिप पर बहस और आर्टिकल आ रहे थे......आरव सब सुनता और पढता रहता था। उस दिन के बाद उसने मुझसे ऐसी कोई बात नहीं की जो मुझे बुरी लगे। अवनी, वरूण और नीला सब पहले जैसे ही बात कर रहे थे, पर जिस टोन में वरूण बोला था, उस दिन से लग रहा था कि शायद मन से विद्या ने जो उस फोटो को कारण बताया वो एक्सेप्ट नहीं कर पाए क्योंकि उसका उन कपड़़ो में होना किसी को भी शक करने पर मजबूर कर सकता था। अवनी सेमेस्टर खतम होने के बाद कुछ दिन की छुट्टियाँ थी तो वो घर आ गयी। मैंने नीला को भी फोन किया, "बच्चों की भी छुट्टियाँ है तो 2-4 दिन के लिए तुम सब लोग भी आ जाओ, बहुत दिनों से हम मिले नहीं".....! अवनी को मूड अच्छा था दोनो बहन भाई काफी देर तक अकेले बैठे बातें कर रहे थे, मैंने भी उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया। वरूण और बच्चे सब भी शुक्रवार शाम को आ गए थे। हम सब ने रात को खाना खाया और बातें करने लगे। वैभव और अनुभा कमरे में सोने चले गए। वरूण और नीला जाने लगे तो मैंने उन्हें रोक लिया कुछ देर और बैठने के लिए। वरूण, नीला, आरव, अवनी और मैं........"मैं तुम चारों से एक बात करना चाहती हूं, अगर मेरी बात गलत या बुरी लगे या फिर कोई और सवाल मन में आए तो मुझसे सामने से पूछ लेना पर मन में मत रखना"! "दीदी क्या बात है, आप क्यों परेशान हो, हम सब फैमिली हैं, आप बताओ क्या बात है"! वरूण ने मेरी बात सुन कर कुछ ऐसे रिएक्ट किया कि मन अंदर से भीग गया, कितना प्यार करता है वो आज भी मुझसे कि परेशान नहीं देख सकता। मैंने कहा, "पहले आराम से तुम सब मेरी बात सुनना फिर अपनी बात कहना"......उन्होनें "ठीक है" कह कर सपोर्ट किया। अवनी सबसे पहले तुम बताओ क्योंकि तुममेडिकल पढ़ रही हो तो तुम्हे पता होगा...."Homosexual" क्यों होते हैं लोग? अवनी हम सब की तरफ देखने लगी फिर बोली, "होमो सेक्सुअल लोग जो होते हैं, वो जन्म से ही होते हैं और इसे बीमारी नहीं कहा जा सकता, बस जैसे अपोजिट जैंडर वाले एक दूसरे से Attract होते हैं, वैसे ही वो अपने जैसे जेंडर को पार्टनर बनाना चाहते हैं"! वो अपनी बात कह कर चुप हो गयी, मैंने फिर वरूण से पूछा, वरूण तुम यहाँ इन तीनो में से सबसे पहले से मुझे जानते हो क्या मैं "होमो सेक्सुअल" थी? नहीं दी ऐसा बिल्कुल नहीं था। फिर वरूण ने सब को बताया कि, "कैसे मेरी शादी आकाश से हुई, उससे पहले मैं किसी और से शादी करना चाहती थी पर हो नहीं पायी और ये भी बताया कि मैं और आकाश एक दूसरे के साथ खुश थे"। "सो तुम दोनो बच्चों को मामा की बात पर तो यकीन हो गया होगा कि मैं शुरू से ही स्ट्रैट रही हूँ तो मेरा और विद्या का ऐसा कोई रिश्ता नहीं है जैसा तुम लोग समझ रहे हो। रही बात उसके पहने कपडो़ की तो ये बहुत पर्सनल बात होती है कि हम अपने बेडरूम में कैसे और क्या पहन कर सोते हैं, पर विद्या की ये गलती है कि वो मेरे साथ रूम में थी तो उसको ध्यान रखना चाहिए था, पर शायद हम दोनो काफी क्लोज दोस्त हैं तो उसे अटपटा नहीं लगा होगा और ऊपर से ये स्मार्ट फोन ले कर उसे बस अपनी फोटो खींचने की गंदी आदत ने हम दोनो को तुम्हारे सामने ऐसे ऑक्वर्ड सिचुएशन मैं ला कर खड़ा कर दिया........मैं बस अपनी बात कहना चाहती थी क्योंकि दुनिया मुझे क्या समझती है, मुझे उसकी चिंता नहीं पर हमारे दोनो परिवार ही मेरी दुनिया है तो तुम सब को परेशान नहीं देख सकती थी, इसलिए मैंने अपनी बात खुल कर कह दी है, मैं अपने आपको जस्टीफाई भी नहीं कर रही हूँ, पर बात को मैं अपनी तरफ से कह कर अपना मन हल्का करना चाहती थी"। मेरी बात सुन कर सब चुप करके अपने अपने कमरे में चले गए और मैं भी चली गयी ड्राइँग रूम से.....सब मेरे बारे में अब क्या सोचते होंगे मैंने ये ख्याल भी अपने दिमाग से उस रात सोने से पहले निकाल फेंका क्योंकि किसी की भी सोच पर मेरा वश नहीं चाहे वो भाई हो या मेरे बच्चे या फिर मेरे दोस्त....कल सुबह क्या लाती है अपने साथ इसका इंतजार तो था ही....
क्रमश: