जूही उस दिन अपनी शिफ्ट खत्म करके घर आई। वीर प्रताप अपने लिविंग रूम में सोफे पर बैठ उसी के बारे में सोच रहा था, जब उसने अचानक से दरवाजा खोला। एक पल के लिए वीर प्रताप डर गया। लेकिन उसने तुरंत अपनी हालत सुधारी। जुही उसके सामने आकर बैठ गई। वीर प्रताप ने उस पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा।
उसकी हिचकिचाहट भांप जूही ने बात शुरू की।
" हेल्लो कैसे हो तुम?" जूही ने पूछा।
" अभी भी उतना ही बुरा हू जितना तुम कह कर गई थी।" वीर प्रताप का रुखा जवाब तैयार था।
जूही को गुस्सा आ रहा था लेकिन उसने अपने आप को काबू में रखा। " हे मिस्टर ऐसा क्यों कह रहे हो ?" वह अपनी जगह से खड़ी हुई, उसने अपना सर झुकाया। " मैंने बहुत सोचा तुम्हारे बारे में और तब जाकर मुझे पता चला कि कितने महान हो तुम। तुम्हें उस जमाने में गवर्नमेंट जॉब मिली थी और आज तुमने अपने दम पर इतना बड़ा बिजनेस अंपायर तैयार किया। मतलब तुम जैसा महान शख्स मैंने आज तक नहीं देखा। तुमने मेरी जान बचाई शुक्रिया बहुत-बहुत शुक्रिया।" वह वीर प्रताप की कुर्सी के आसपास घूम रही थी।
उसकी बातों से वीर प्रताप समझ गया था कि उसे कुछ चाहिए, " ठीक है। 1 मिनट है तुम्हारे पास साफ-साफ बताओ क्या चाहिए वरना मैं यहां से जा रहा हूं।" वह अपनी जगह पर उठ खड़ा हुआ।
जूही ने उसका हाथ पकड़ा। " मुझे इस हफ्ते जीतने वाली लॉटरी का नंबर चाहिए।" उसने एक सांस में बोल दिया।
आहा।।।।।। यह लगा तीर निशाने पर। वीर प्रताप ने सोचा। " और वह भला तुम्हें क्यों चाहिए ? शर्म नहीं आती धोखाधड़ी करते हुए ?" वीर प्रताप ने जूही से पूछा।
" अपने लिए नहीं चाहिए। वह नानी मां की आत्मा है ना उन्होंने मदद मांगी है। उन्होंने कहा उनका बेटा बहुत परेशानी में है। अगर मैं उन्हें जीतने वाली लॉटरी का नंबर बता देती हूं तो उसकी मदद हो जाएगी।" जूही ने कहा।
" अच्छा अब एक भूत लॉटरी खरीद कर अपने बेटे को गिफ्ट करेगा ?"
" अरे नहीं। नानी ने कहा वह सपने में जाकर वह नंबर अपने बेटे को बता देंगी।" जूही ने कहा।
" यह गलत होगा। मैं नहीं बता सकता।" वीर प्रताप ने जूही के हाथ में से अपना हाथ खींचते हुए कहा।
जुही ने उदास होने का नाटक किया। " मैंने सोचा था अगर तूम मेरी मदद कर दो, तो मैं भी तुम्हारी तलवार निकालने के लिए थोड़ा सा वक्त निकाल सकती हू।" उसने वीर प्रताप की तरफ देखते हुए कहा।
यकीनन उसे दिया गया लालच काम आया। " 4, 13, 25, 34, 48, 67"
खुशी के मारे जुहीने उसे गले लगा लिया। " तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया।" कह वह फिर से दरवाजे की तरफ भागी।
बाहर खड़ी बूढ़ी नानी की आत्मा को उसने यह नंबर बताया, उसे शुक्रिया कर नानी गायब हो गई।
दुसरे दिन रात के वक्त जूही वापस बाहर जाने निकली तब वीर प्रताप ने उसे रोका।
" तुम्हारा काम तो खत्म हो गया ना अब इस वक्त कहां जा रही हो ?"
" वह मुझे लाइब्रेरी में कुछ काम है। हां वही पढ़ाई करने जा रही हूं। कुछ देर में वापस आऊंगी।" जुही ने हिचकिचाते हुए कहा।
वीर प्रताप ने उसे कोई जवाब नहीं दिया लेकिन उसे जाने से रोका भी नहीं।
जूही भागते हुए लॉटरी के दुकान पर गई उसने लॉटरी का टिकट खरीदा और काउंटर पर पैसे देने गई।
" देखो मैं अट्ठारह से कम उम्र के बच्चों को यह नहीं बेचता।" काउंटर वाले आदमी ने कहा।
जूही दुकान से बाहर आई उसने स्वेटर पहना और अपने पूरे चेहरे पर स्कार्फ लपेट लिया। वह वापस दुकान में गई और उसने वापस टिकट खरीदा।
" आपका आईडी दिखाइए?" काउंटर पर खड़े आदमी ने कहा।
उसकी टिकट खरीदने की कोशिश फिर से असफल रही।
कुछ ही देर में लॉटरी का रिजल्ट आने वाला था। उसके पास दुकानदार को सच बताने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था।
" देखो भाई यह नंबर इस बार लॉटरी जीतेंगे। मैं आपको सच बता रही हूं। प्लीज आप चाहिए तो इसमें से आधी रकम रख लेना लेकिन मुझे यह खरीदने दो प्लीज।" उसने अच्छे तरीके से उस दुकानदार से मदद मांगी बदले में दुकानदार ने उसे दुकान के बाहर निकाल दिया।
" भाई मेरी बात सुनो...." वह कांच पर सर पटक रही थी, तब वीर प्रताप उसके पीछे आकर खड़ा हुआ।
" तो यह है वो लाइब्रेरी जहां तुम्हें पढ़ना था।" उसने कहा।
जूही ने अपने पीछे मुड़कर देखा, " यह लाइब्रेरी के पास वाली दुकान है जहां मैं दूध खरीदने आई थी। हां हां वही।" उसने फिर से हक लाते हुए जवाब दिया।
" तुम्हें यकीन है तुम यहां कुछ और करने नहीं आई थी।" वीर प्रताप के सवाल पर जूही ने सिर्फ हां में सर हिलाया।
" फिर वह दुकानदार तुम्हें बाहर क्यों निकाल रहा था ?"
अब जुही के पास सच बताने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। " ठीक है ठीक है। मैं टिकट खरीद ने आई थी। लेकिन उसने मुझे नहीं दिया। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि मैं कभी लॉटरी नहीं खरीद सकुंगी। बस दो महीनों में मैं अट्ठारह की हो जाऊंगी और बैंग।" जुही ने अपने हाथों से वीर प्रताप की ओर इशारा करते हुए कहा।
" पब्लिक में ऐसी हरकतें करते हुए शर्म नहीं आती ?" वीर प्रताप उसे देख मुड़ गया लेकिन उसके चेहरे पर एक हंसी थी।
तभी टीवी पर इस हफ्ते की जीती हुई लॉटरी नंबर का अनाउंसमेंट हुआ। वही नंबर था जो वीर प्रताप ने जूही को बताया था। उसने उस दुकानदार के पास की लॉटरी पर उस नंबर को लिखा था। जिसे देख दुकानदार बेहोश हो गया।
" क्या वह ठीक है ?" जुही ने वीर प्रताप से पूछा। " खैर कम से कम नानी के बेटे ने तो लॉटरी जीत ली होगी।" जूही ने कहा।
" खाने के लिए वक्त नहीं है उसके पास वह सोएगा कब लॉटरी जीतने के लिए ?" वीर प्रताप ने कहा।
जूही चौक गई। " मतलब उसने भी लॉटरी नहीं खरीदी ?"
" इस हफ्ते की लॉटरी कोई नहीं जीता। नानी का बेटा और बहू काफी मेहनती कपल है। अपने खेत को बचाने के लिए दोनों दिन रात मेहनत कर रहे हैं। उसके पास अपना खाना खाने के लिए तक वक्त नहीं है सोने के बाद सपना देखना तो बहुत दूर की बात रही।"
" तो अब क्या होगा ? क्या वह कभी अपना खेत नहीं बचा पाएंगे ?" जूही ने चिंता ग्रस्त होते हुए पूछा।
" उनकी मेहनत रंग लाएगी नानी से कहना अगले हफ्ते वह एक अच्छा सपना देखेंगे जिसके बाद उनका खेत उनका होगा।" वीर प्रताप की बात सुन जुही खुश हो गई।
उसने तुरंत यह बात बुढ़ी नानी की आत्मा को बताई।
" सच कह रही हो बेटी ?" नानी ने मुस्कुराते हुए पूछा।
जूही ने सर हिलाते हुए हां में जवाब दिया। " उसने बताया।" उसने वीर प्रताप की ओर इशारा किया।
नानी झुक कर हाथ जोड़े, वीर प्रताप ने सिर्फ झुकाते हुए उनका प्रणाम स्वीकार किया। नानी उसका इशारा समझ गई। उसके परिवार पर खुद उनके राजा की नजर पड़ी थी। अब सब अच्छा होगा। उसने एक नजर जुही पर डालीं। उसने जुही का हाथ पकड़कर कहा, " वह बेहद अच्छे हैं। तुम्हें पसंद करते हैं। उन्हें हमेशा खुश रखना। वह हमसफ़र हैं तुम्हारे हमेशा साथ रहना अनोखी दुल्हन। मदद का बेहद शुक्रिया।"
जुही नानी के साथ खड़ी थी जब एक चमकिली रोशनी उनपर आई और वह सामने से गायब हो गई।