प्रकरण-54
अपनी-अपनी थालियां और यशोदा के लिए खिचड़ी लेकर केतकी और भावना यशोदा पास गईं। उधर, शांति बहन और जयश्री, रणछोड़ की तरफ गुस्से से देख रही थीं। “क्यों रे बेटा, अचानक उस अभागिन पर तेरा प्यार कैसे उमड़ पड़ा? ” शांति बहन ने उपहास किया। जयश्री ने भी मुंह बनाया, “मुझे उससे क्या-क्या सीखना है, अब उसकी एक सूची बना कर दे दें।”
रणछोड़ दास जोर-जोर से हंसने लगा।
“अरे, थोड़ा समझने की कोशिश करो। यदि उस लड़की से मीठा बोलूंगा तो वह सीधी तरह से रहेगी..और उस जीतू से शादी के लिए हां कर देगी...इसीलिए उसकी तारीफ की। बाकी, उसके स्वादिष्ट भोजन को तो छोड़ ही दो, अमृत भी परोसेगी तो मुझे जहर के समान लगेगा। ”
यशोदा खाने के लिए मना कर रही थी, यह देख कर खिचड़ी में थोड़ा घी परोसा जाए, इस उद्देश्य से केतकी घी का बर्तन लेने के लिए रसोई घर की ओर निकल रही थी। उसने दरवाजे पर ही रणछोड़ की बात सुन ली। लेकिन वह कुछ बोली नहीं। उसने घी का बर्तन उठाया और चुपचाप वहां से निकल गई। लेकिन उसे गुस्सा तो बहुत आया था।
रात को बिस्तर पर पड़ते ही बोली, “इस घर के दुःखों को झेलने से तो अच्छा है शादी करके यहां से बाहर निकल जाऊं।” केतकी ने यह बात भावना को बताई। “कह रहे हैं कोई लड़का मुझे देखने के लिए आने वाला है... उसे मैं पसंद कर लूं इस लिए मेरी इतनी तारीफ की जा रही है। उन तीनों को मुझसे छुटकारा चाहिए...अब तो मैं किसी यमदूत से भी शादी कर लूंगी...यहां से तो जान छूटेगी कम से कम... ” “दीदी, ऐसा मत कहो..”
आंखों में उमड़ पड़ा एक आंसू पोंछती हुई केतकी हंसते हुए बोली, “पांच-सात साल पहले की एक बात याद हो आई। मेरी एक सहेली के पिता ज्योतिषी थे। वह हाथ देख कर भविष्य बताते थे। मैंने एक बार उनसे बेशर्म बन कर पूछा था, मेरी शादी कब होगी? तब वह हंसे। और उसकी मां मेरी सहेली को डांटने लगी, यह लड़की कितनी बेशर्म है। ऐसा प्रश्न कोई पूछता है भला? वह भी इतनी कम उम्र में? लेकिन मेरे पास घर से छुटकारा पाने के दो ही रास्ते थे। एक तो शादी या फिर मौत।”
“तुम यदि ऐसा उल्टा-सीधा बोलोगी या ऐसा कोई विचार भी मन में लाओगी तो तुम्हारे साथ मेरी कट्टी...”
केतकी ने भावना को गले से लगा लिया। दोनों चुपचाप एकदूसरी को देखती रहें और धीरे-धीरे निद्रा देवी की गोद में चली गईं।
केतकी के पास घर के कष्ट और मन को मिल रही यातनाएं भूलने का एकमात्र रास्ता था-शाला और उसके विद्यार्थई। वह सभी विद्यार्थियों की चिंता करती थी। विद्यार्थियों का दुःख उसका अपना दुःख बन जाता था। किसी को यदि पढ़ाया गया समझ में न आये, किसी को घर-परिवार की कोई परेशानी हो तो अधिक कष्ट तो उसे ही होता था। एक बार किशोर वडगामा नाम के एक गरीब बच्चे को एक स्कूटर वाले ने ठोकर मार दी और भाग गया। किशोर के पैर में फ्रैक्चर हो गया। स्थिति गंभीर थी। उस बच्चे को अपने पैर के दर्द से ज्यादा शाला और पढ़ाई के नुकसान की अधिक चिंता सता रही थी। उसके मां-बाप ने शालामें आकर केतकी को यह बात बताई। “अब आप ही उसको समझाइए। उसका रोना रुक ही नहीं रहा है।” केतकी ने कुछ फल और फूल लिए। अपने साथ दो विद्यार्थियों को लिया और अस्पताल में पहुंच गई। अपनी प्रिय शिक्षिका को देखते साथ किशोर को बहुत खुशी हुई। केतकी ने उसे सेब काट कर दिया और कहा, “यदि तुमने यह खा लिया तो तुम्हारी पढ़ाई का नुकसान न होने पाए, इसकी चिंता मैं करूंगी। ठीक है?” किशोर की आंखें चमक उठीं। उसने बिना कुछ कहे सेब खत्म कर दिया। किशोर की मां आभारपूर्वक केतकी की ओर देखती ही रह गई।
किशोर ने कहा, “बस? अब बताइए, आप क्या करेंगी?” केतकी हंसी। “अरे, मुझे कुछ करने के लिए समय तो दो। मुझ पर तुम्हें विश्वास है न?” किशोर ने हामी भरी। “सबसे पहले तुम दो काम करो। पहला काम रोना बंद करो और दूसरा खाना-पीना शुरू करो। मैं कोई न कोई रास्ता निकालती हूं।” किशोर ने आभारी होकर केतकी का हाथ पकड़ लिया। केतकी ने उसके सिर से हाथ फेरते हुए कहा, “शाब्बाश...बहादुर लड़के हो तुम...हिम्मत और धीरज रखो...और दवाइयां ठीक से समय पर लेते रहो। ”
उस रविवार को घर में एक अलग ही वातावरण था। कोई तीज-त्यौहार न होने के बावजूद बड़ी तैयारियां चल रही थीं। साफ-सफाई चल रही थी। घर सजाया जा रहा था। केतकी को यह पहनना चाहिए, ऐसा व्यवहार करना चाहिए... न जाने कितनी ही निर्देश शांति बहन और जयश्री देती जा रही थीं। दोनों को ही रणछोड़ ने कह रहा था कि लड़के वाले यहां से खुश होकर और केतकी को पसंद करके जाएं, ऐसा कुछ करना है।
ग्यारह बजे भिखाभा, मीना बहन, जीतू और कल्पु आए। उनका स्वागत-सत्कार कुछ इस तरह से किया गया मानो बहुत बड़े घराने के लोग आए हों।
जीतू का हुलिया देखने लायक था। नीले रंग की बेलबॉटम पैंट, पीले रंग का शर्ट, आंखों पर चमचमाता गॉगल, पैरों में चप्पल और गुटका चबाता मुंह। शर्ट के ऊपर गुटका थूकने समय पड़े हुए दाग। उसको देखते साथ भावना मन ही मन चिढ़ गई, “ऐसा नमूना तो केतकी को बहन को पसंद ही नहीं आने वाला। ” यशोदा का जी भी कसमसाया। रणछोड़ दास, शांति बहन और जयश्री को भी ऐसा ही लगा कि केतकी की ओर से हां आना मुश्किल ही है। बाद में सभी लोग बातचीत करने लगे। शुरुआत शांति बहन ने की। उन्होंने केतकी की तारीफ करना शुरू कर दिया। “मेरी तीनों बेटियों में सबसे अधिक समझदार और होशियार यदि कोई है तो वह है केतकी। सारे काम आते हैं उसको। घर संभाल कर नौकरी कर रही है। फिर कितने ही काम क्यों न हों, मना करने के लिए मुंह से एक शब्द नहीं निकालती। उसको काम करना बहुत अच्छा लगता है। अरे, मेरे और जयश्री के हाथों से काम खींच कर खुद करती है। मैं तो कभी-कभी उस पर नाराज भी होती हूं कि बेटा कभी तो आराम कर लिया करो। तुमको काम करते हुए देख कर मेरा जी दुखता है, पर मान ले वो भला केतकी कैसी?”
रणछोड़ बोला, “मुझसे ज्यादा तो कहा जाता नहीं। लेकिन तीनों लड़कियों में केतकी अलग है। जहां जाएगी, वहां स्वर्ग बना देगी।”
भिखाभा ने खुश होकर मीना बहन की तरफ देखा, “सुन लिया न? आज तक भिखाभा ऐसे कामों के लिए किसी के घर गया नहीं। आप दोनों मेरे अपने हो, केवल इस लिए... लगा मैं भी कुछ पुण्य कमा लूं...”
मीना बहन ने हंस कर कहा, “सब लोग तारीफ ही करते रहेंगे या लड़की भी दिखाएंगे?”
रणछोड़ दास ने इशारा किया तब भावना अंदर गई। अंदर जाकर केतकी से बोली, “तैयार होने के लिए बेकार ही इतना समय गंवाया। तुम्हारी तरफ से मैं ही मना कर दूं क्या?” केतकी ने चाय का ट्रे उठाया, “तुम चुपचाप नाश्ते की प्लेट्स लेकर मेरे पीछे-पीछे आओ।” उसके बाद उसने मीना बहन को प्रणाम किया। जीतू देखते ही रह गया। ऊंची, दुबली-पतली, डिंपल कापड़िया की तरह सुंदर लंबे बाल। आज नहीं तो कल बाप की संपत्ति में हिस्सा भी मिल ही जाएगा। और अभी जो कमाई कर रही है सो अलग। ईश्वर उस पर मेहरबान हो गए हैं, ऐसा लगता है। उसने सुपारी के टुकड़े पर अपनी दाढ़ दबाई और उसके दो टुकड़े किये, आवाज सबने सुनी। उसकी इस हरकत पर मीना बहन और भिखाभा को गुस्सा आ गया। मीना बहन को लगा कि लड़की तो बहुत अच्छी है, लेकिन भिखाभा इसके शादी को जमाने में भला इतनी रुचि क्यों दिखा रहा है? जब तक यह बात साफ न हो जाए, हां कहने का कोई मतलब नहीं। चाय-नाश्ता होने के बाद मीना बहन ने पूछा, “बेटा, पूरा खाना बना लेती हो?”
“हां, लेकिन अब समय कम मिल पाता है इस लिए पूरा खाना बनाना संभव नहीं होगा।”
“यह बात सही है, लेकिन बनाना आता है यह अच्छी बात है।”
“नौकरी में कुछ परेशानियां आती हैं?”
“नहीं...और आएं भी तो मैं उनका सामना कर सकती हूं। मुझे परेशानियों से निपटने की आदत है।”
रणछोड़ दास को डर लगा कि बातें किसी और ही दिशा की ओर न बढ़ जाएं। वह बीच में ही बोल पडा, “जीतू भाई, आपको कुछ पूछना हो तो पूछ लें। चाहें तो बाजू के कमरे में बैठ कर आप दोनों बातें कर लें...मैं व्यवस्था कर देता हूं।”
मीना बहन ने उसकी बात को बीच में ही काट कर कहा. “हमारे परिवार में यदि बड़े हां कह दें, उसके बाद ही बच्चे बात करते हैं। अरे कल्पु, तुमको कुछ पूछना है क्या?”
कल्पु ने सीधा प्रश्न किया, “आप इतनी कम उम्र में वाइस प्रिंसिपल पद तक कैसे पहुंच गईं?”
“मेरी निष्ठा, लक्ष्य और मेहनत के बल पर मैं यहां तक पहुंची हूं। अध्यापन को मैं नौकरी नहीं समझती, अपना कर्तव्य समझती हूं और मैं उसे निभाती हूं। वैसे भी, यदि महिलाओं को तरक्की मिलने लगे तो लोगों को संदेह होने ही लगता है। पर मैं उसकी चिंता नहीं करती। ”
“घर संभालने के लिए नौकरी छोड़नी पड़ जाए तो?”
“मेरा विश्वास है कि मैं दोनों काम अच्छे तरीके से कर सकती हूं। स्त्री को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। नौकरी छोड़ने का प्रश्न तो उठता ही नहीं।”
मीना बहन को लगा कि लड़की तो अच्छी है, लेकिन स्वभाव से जरा कड़क और जिद्दी है। इसके अलावा, इतनी होशियार, पढ़ी-लिखी, नौकरी करने वाली लड़की का रिश्ता मेरे जीतू के लिए लाने के पीछे का कारण जानना ही होगा। उन्होंने समझदारी से उत्तर दिया, “आज हम दोनों परिवारों की अच्छी पहचान हो गई। लेकिन विवाह यानी जीवन भर का प्रश्न होता है। इसमें जल्दबाजी का कोई काम नहीं। दो दिन आप विचार करें, हम भी विचार करते हैं। इसके बाद यदि दोनों परिवारों की हां होगी तो आगे का विचार करेंगे। दोनों परिवार की रजामंदी के बाद लड़का-लड़की आपस में बातचीत करके निर्णय लेंगे। मेरा कहना सही है न?”
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
.............................