Agnija - 53 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 53

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अग्निजा - 53

प्रकरण-53

डॉक्टर ने दवा और इंजेक्शन देने के बाद यशोदा को कुछ ठीक लगने लगा था। दो-चार दिन पूरा आराम करने की सलाह दी गई थी, क्योंकि यशोदा को बहुत कमजोरी आ गई थी। केतकी ने भावना को आदेश दिया, “चार दिन मां के पास रहना है। जब तक पूरी तरह ठीक न हो जाए, उसे अकेला नहीं छोड़ना है, समझी?। ” भावना में हामी भरी। डाक्टर को घर पर बुलाना, भावना को छुट्टी लेकर घर पर रहना और यशोदा को पूरा आराम करने देना घर वालों को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था। शांति बहन तो बड़बड़ाने लगीं, “मैं तो चार बुखार में भी कुएं से पानी भर कर लाती थी, लेकिन आजकल की औरतें तो बड़ी नाजुक हैं...” रणछोड़ दास को भी यह सबकुछ नाटक ही लग रहा था। लेकिन इस वक्त उसने चुप रहना ही बेहतर समझा। रणछोड़ दास को लग रहा था कि फिलहाल उसका ग्रह-चक्कर ठीक नहीं चल रहा है। इतने सालों में पहली बार भिखाभा उस पर कितना नाराज हुए। वह भी केतकी के कारण। घर में भी अब उसका पहले जैसा दबदबा कहां रह गया था भला? केतकी के ही कारण। अब यदि इस केतकी को घर के बाहर न निकाला गया, तो उसे ही घर से बाहर जाने की नौबत आ जाएगी। उस पर से ये भिखाभा ने उस मीना बहन को बुला लिया है। उसकी जगह कहीं मीना बहन या उसके बेटे को तो काम पर रखने का इरादा नहीं है होगा भिखाभा का? कुछ कह नहीं सकते, उनके बेटे को भी रखना होगा मेरी जगह पर तो। वैसे भी उनके मीना बहन के साथ काफी पुराने संबंध हैं। अब तो उसे दिन में ही इस तरह के बुरे सपने दिखाई देने लगे थे।

......

“मेरे सपने में आए थे ...मनुभाई...बहुत नाराज हो रहे थे मुझ पर ...तुम मेरे लोगों को भूल गए?  देखो, यदि मेरी हाय लग गई न, तो सत्यानाश हो जाएगा तुम्हारा...चुनाव में हार हो गई इसका मतलब है मेरी हाय लगने की शुरुआत हो गई है...जल्दी ही संभल जाओ...” इतना कह कर भिखाभा ने अपनी आंखें पोंछने का नाटक किया। सामने सोफे पर बैठी मीना बहन उनकी तरफ देखती ही रह गईं। जीतू और कल्पू को लगा कि काका वास्तव में सच बोल रहे हैं। “आपको सच नहीं लगेगा भाभी....लेकिन मैं रात भर सो नहीं पाया। मैं खुद ही आपसे मिलने के लिए आने वाला था कि आपका ही फोन आ गया। ” भिखाभा ने दोनों हाथों से अपने कान पकड़े, “मुझसे गलती हो गई। एक नहीं, मैंने कई गलतियां की हैं। पाप किया है मैंने...पाप...लेकिन मुझे अपने जीतू की तरह मान कर मुझे माफ कर दें। मुझे अपनी गलतियों पर बहुत पश्चाताप हो रहा है ...मुझे आपकी सेवा करने का मौका दें...आप आदेश तो करें...” “भिखाभा मुझे अपने जीतू की चिंता सताती है...”

“आज से उसकी चिंता करना छोड़ दें... इसे मैं कहीं लगवाता हूं...बोल भाई , क्या काम कर सकेगा?”

“अपना धंधा करना है, कोई छोटा-मोटा।”

“अब छोटा तो सोचना ही नहीं, बड़ा विचार करना है। ”

“अब तो भाई की शादी की भी उम्र हो गई है, कहीं कुछ जमा की नहीं...”

“इसकी शादी के बारे में कौन सोचेगा...घर में आदमी न हो तो सब बेसहारा हो जाते हैं...फिर इसकी पढ़ाई भी कम है...”

“क्यों...ये कितना पढ़ा है?”

जीतू धीरे से बोला, “ग्रैजुएट, लेकिन उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी से।”

“ठीक है, इसमें शरमाने जैसी क्या बात है? हमारे कई प्रधान मंत्री उसी राज्य से बने हैं...”

“जवान है, सुंदर है, पढ़ा-लिखा है, घर-परिवार अच्छा है.. और क्या चाहिए?”

“रणछोड़ ...ए रणछोड़...” पुकार सुनते ही रणछोड़ भाग कर आया।

“ये मेरा खास आदमी है। दाहिना कहें या बायां, ये ही मेरा एक हाथ है। क्यों रे, तेरी बेटी कितनी बड़ी है?”

“चौबीसेक साल की होगी...” “और कितनी पढ़ाई की है उसने?”

“मुझे ज्यादा तो मालूम नहीं। लेकिन उसने पहले बीए किया फिर एमए...और हां, बीएड भी किया है...”

“और क्या अभी घर बैठी है?”

“नहीं साहब, वो तो शाला में शिक्षिका है...नौकरी कर रही है...वॉइस प्रिंसिपल या ऐसी ही कुछ है...”

“ठीक है, ठीक है...जाओ अभी तक खाना क्यों नहीं आया जाकर देखो... ”

रणछोड़ के वहां से निकल जाने के बाद भिखाभा ने मीना बहन की ओर देखा, “इनका अपना बड़ा मकान है, गाड़ी है। बेटा नहीं है। लड़की पढ़ी-लिखी है, साथ में कमाती भी है। आप हां कहें तो मैं बात चलाता हूं। जीतू, तुम्हें क्या लगता है?”

“चाचा, एक बार उसे देख लिया होता तो...”

भिखाभा हंसे, “मैं तो यह बात भूल ही गया...आज के जमाने में एक दूसरे को देखे बिना लड़के हां थोड़े कहते हैं। बाद में शादी भले टिके न टिके...ठीक है तो देखने-दिखाने का कार्यक्रम तय करें? आप लोग तैयार हों तो रणछोड़ को समझाने का जिम्मा मेरा।”

भोजन करते समय भिखाभा सभी का बड़े प्रेम से इसरार कर रहे थे। बातचीत में मस्का और जुबान पर शहद था उनकी। मीना बहन महसूस कर ही रही थीं कि यह आदमी इतना मीठा-मीठा बोल रहा है, इसका मतलब है निश्चित ही कुछ तो काला-पीला है। मालूमात हासिल करनी पड़ेगी। यह आदमी इतना सीधा तो नहीं है।

जीतू यानी गांव भर का तिरस्कृत लड़का। मुंह में गुटका भर कर वह विचार करने लगा कि इतनी पढ़ी-लिखी और कमाई करने वाली पत्नी मिल जाए तो मौज ही मौज।

शाम को फिर ही कहानी। यशोदा उठी नहीं और भावना उसकी सेवा टहल में लगी थी। शांत बहन और जयश्री ने रसोई घर की ओर देखा तक नहीं। रणछोड़ आया और सीधा शांति बहन के कमरे में गया। बोला, “लड़के वाले एक-दो दिन में आएंगे उस अभागन को देखने के लिए। ये काम हुआ तो समझो गंगा नहाए। हमेशा की मुक्ति।”

जयश्री के मन में खलबली मची, “कैसा है वह लड़का?”

रणछोड़ दास हंसते हुए बोला, “ठीक...तुम्हारे लिए होता तो मैंने मना ही कर दिया होता...”

जयश्री को संतोष हुआ, “उसके परिवार में कौन-कौनहै, और वह लड़का काम क्या करता है?”

“पिता नहीं हैं, मां और एक बहन है। मां टेढ़ी लगती है...भिखाभा का सिर फोड़ दे, ऐसी है...और लड़का क्या करता है ये उन लोगों ने साफ-साफ नहीं बताया...खुद का धंधा है कह रहे थे...छोटे-मोटे काम करता है...कह रहा था। ”

“और पढ़ाई?”

“यहां बारहवीं पढ़ा है और उसके बाद उत्तर प्रदेश से ग्रैजुएट किया है, ऐसा कुछ कह रहा था...”

जयश्री हंसी, “ग्रैजुएशन यूपी से यानी डिग्री नकली हो सकती है...”

शांति बहन नाराज हुईं, “तुम इतनी पूछपरख क्यों कर रही हो? कहती हो तो तुम्हारी शादी उससे तय कर देते हैं...”

“हटो...ऐसे नमूने के साथ तो दो पल भी नहीं रह पाऊंगी...” यह सुनकर शांति बहन सोच में पड़ गईं। “तुम बता रहे हो, यदि वैसा ही हुआ तो वह करमजली उसके लिए कैसे राजी होगी...वह तो बड़ी होशियार है।”

“मुझे भी उससे डर ही लगता है।” रणछोड़ ने कहा।

“ये काम हो जाए तो मैं देवी मां को 51 रुपयों का प्रसाद चढ़ाऊंगाऔर सात ब्राह्मणों को भोजन करवाऊंगा। ”

जयश्री निराश होकर बोली, “दादी, तुम्हारे पैसे बचने वाले हैं। वह इसके लिए हामी भरने ही नहीं वाली।”

केतकी आई, और आज भी खाना नहीं बना इसको लेकर जरा तनातनी हुई। मां के शरीर में अभी भी थोड़ा बुखार और कमजोरी देख कर उसने सबसे पहले सबके लिए चाय बनाई। पहले मां को चाय के साथ जबर्दस्ती कुछ खाने के लिए दिया। उसके बाद कुकर में खिचड़ी चढ़ाई और लौकी की सब्जी बनाई। रसोई घर में चल रही खटपट सुनकर शांति बहन और जयश्री खुश हो गईं। जयश्री ने दरवाजे से थोड़ा सा झांक कर देखा, “वो अभागन रसोई में कुछ खटपट कर तो रही है...” शांति बहन ने मुंह बिचकाया। “कुछ ऐसा बनाए कि मुंह में स्वाद आए तो अच्छा होगा...रणछोड़ बिचारा दिन भर का थका-मांदा आता है...” भावना ने अंदर आकर चिल्ला कर बताया, “खाना तैयार है...जिसको भूख लगी हो..वो आ जाए...”

रसोई घर में थालियां परोसते हुए जयश्री ने लौकी की सब्जी देखी और उसके चेहरे पर राक्षसी आनंद उतर आया। “पिताजी को तो ये सब्जी जरा भी पसंद नहीं। थाली फेंक देंगे वो तो...” भावना को भी यही डर सता रहा था। थाली परोसी गई। रणछोड़ देखता रहा। उसने बर्नी से अचार निकाला और चुपचाप अचार के साथ खाने लगा। शांति बहन, जयश्री, भावना और केतकी भी देखती ही रह गईं। खाना खत्म करने के बाद रणछोड़ बोला, “आज पहली बार मुझे लौकी की सब्जी पसंद आई... थक-हार कर घर लौटने के बाद जो घर में होगा, वही तो बनाएगी न बेचारी...जयश्री, तुम इससे कुछ सीखो जरा...?”

रणछोड़ की बातें सुन कर कमरे में शांति पसर गई। केतकी को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था, “यह आदमी मेरी तारीफ कर रहा है? यह आदमी? कानों पर भरोसा नहीं हो रहा।”

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह