Agnija - 49 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 49

Featured Books
Categories
Share

अग्निजा - 49

प्रकरण-49

भावना ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, “आई एम भावना...भावना जानी। ये आपकी वाइस प्रिंसिपल हैं न, वह मेरे कारण है, समझे?”

प्रसन्न ने हंसते हुए भावना से हाथ मिलाया. “थैंक यू...आपके कारण हमारी शाला को एक खूब अच्छी वाइस प्रिंसिपल मिली हैं।”

“लेकिन आप क्या करते हैं...? आपका क्या नाम है मिस्टर....?”

“अभी मैंने नाम कमाया तो नहीं है, लेकिन रखा गया नाम है...प्रसन्न। प्रसन्न शर्मा। दो काम करता हूं। एक संगीत सिखाना, दूसरा आइसक्रीम खाना।”

“वाह...तब तो हमारी खूब जमेगी प्रसन्न भाई....पूछिए क्यों...”

“बताइए...जल्दी बताइए। आप पहली लड़की हैं जिसे ऐसा लगता है कि मेरे साथ अच्छी जमेगी।”

“देखिए, एक तो मुझे आइसक्रीम बहुत पसंद है। पर संगीत के बारे में कोई समझ नहीं है. इसलिए संगीत पर आप जो कुछ कहेंगे उसे मैं मान लूंगी। यानी हमारे बीच मतभेद नहीं होंगे।”

“वाह, आपके विचार एकदम सही हैं....”

“तो फिर क्यों न अपनी नई दोस्ती को सेलिब्रेट करें?”

“निश्चित करेंगे...आप जब और जहां कहें ...”

“देखिए खुशी को कभी पेंडिंग नहीं रखा जाता। अभी ही सेलिब्रेशन करेंगे...एक और आइसक्रीम?”

“नॉट ए बैड आइडिया...वेटर, चार आइसक्रीम....” केतकी ने खड़े होते हुए कहा, “अरे, मुझे नहीं ...” भावना ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसे फिर से बिठा दिया, “चिंता मत करो। आप लोग सिर्फ खुश रहिए, आइसक्रीम मैं खाऊंगी, ओके?”

फिर से आइसक्रीम का दौर। सभी के अनुरोध पर केतकी को भी खानी पड़ी। वहां से निकलते समय प्रसन्न ने भावना के काम में धीरे से पूछा, “आपकी दीदी की पसंदीदा चीज कौन सी?” भावना ने थोड़ा विचार करके बताया, “इडली, दोसे, उत्तपम...दक्षिण भारतीय डिश उसे पसंद हैं।”

सबने एकदूसरे से विदा ली। केतकी को जरा अचरज हुआ कि अचानक प्रसन्न से मुलाकात कैसे हो गई। उसे अच्छा नहीं लगा था, ऐसी बात भी नहीं थी। केतकी ने गर्दन झटकी, क्या हो गया है मुझे? पहले तो ऐसे विचार मन में आते नहीं थे?

तारिका एकटक केतकी की ओर देख रही थी। भावना ने उसके सामने चुटकी बजाई, “ओ दीदी, हम गरीबों की ओर एक नजर डालो। ” दोनों हंसने लगीं।

इतने सालों की यातनाएं भोगने के बाद अब केतकी बहन के जीवन में धीमे कदमों से ही सही, सुख प्रवेश कर रहा था, यह देख कर भावना बहुत खुश थी।

लेकिन घर में उनके सामने क्या उपस्थित होने वाला था, उन्हें कहां पता था। घर पहुंचते ही उन्होंने देखा कि सारा घर अस्त-व्यस्त हो गया है। बरतन इधर-उधर बिखरे पड़े थे। कहीं कांच के टुकड़े बिखरे हुए थे और घर में श्मशान शांति पसरी हुई थी। शांति बहन के कमरे से आवाजें आ रही थीं। वह रणछोड़ दास को डांट रही थीं, “ऐसा तो होते ही रहता है। इसके कारण इतनी दारू पीने की क्या आवश्यकता? अपनी तबीयत का ख्याल करो जरा। ये उठापठक, गुस्सा...इसका कोई मतलब नहीं। जो होना था, हो गया। ”

केतकी को अचानक यशोदा की याद आई। उसने भावना का हाथ पकड़ा और यशोदा के कमरे की ओर दौड़ी। दरवाजा खोला तो देखा खून से सनी हुई यशोदा एक कोने में बैठी हुई थी। वह रो रही थी और उसका सारा शरीर कांप रहा था। उसके साथ क्या हुआ यह बताने की उसमें ताकत ही नहीं बची थी। लेकिन दोपहर दो बजे ही इस घटना की शुरुआत हुई थी।

दोपहर दो बजे से भिखाभा, रणछोड़ दास और उनके कुछ कार्यकर्ता टीवी के सामने आसन जमा कर बैठे हुए थे। कुछ कार्यकर्ता मत गिनती केंद्र में थे। ठीक दो बजे परिणाम सामने आया। नगर सेवक भिखाभा 3400 मतों से हार गए थे। विस्तृत आंकड़ों से पता चला कि दूसरे विभागों में तो अच्छे मत मिले थे लेकिन घर के आसपास की झोपड़पट्टी के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसी लिए वह जीतते-जीतते हार गए। भिखाभा ने बियर का गिलास फेंक दिया। इसके बाद रणछोड़ दास की ओर क्रोध से देखा और बोले, “मैं हारा...तुम्हारे कारण से...मैंने इतने सालों तक तुम्हें संभाला, लेकिन तुम मेरा एक काम नहीं कर पाए...”

“साहेब...इसमें मेरा क्या दोष? मैं तो रात-दिन आपके साथ प्रचार के काम में जुटा हुआ था।”

“अरे मूर्ख, इस इलाके में यदि तुम्हारी बेटी मेरे प्रचार के लिए घूमी ती तो मैं आज जीत गया होता। कुछ नहीं तो आधे वोट तो मुझे मिलते। पूरे शहर में मेरी धाक है लेकिन मेरे पाले हुए कुत्ते ही मुझे पूछते नहीं हैं...तुम्हारी वजह से मेरे लाखों रुपए पानी में गए। इस भिखाभा की बदनामी हुई सो अलग। आज तक मुझे किसी ने हराया नहीं था। पहली बार हारा हूं...तुम्हारे कारण। साला...नामर्द कहीं का...एक बेटा नहीं पैदा कर पाया तू? और कर भी कैसे पाता। एक लड़की तक तो तेरी बात नहीं मानती है। जा निकल जा यहां से...मेरी नजरों से दूर हो जा...तुझे देखता हूं तो मुझे गुस्सा आता है। ”

रणछोड़ दास गुस्से में वहां से निकल कर चंदा के घर पहुंचा। वहां बैठ कर खूब दारू पी। एक तो दिनदहाड़े वह उसके घर या, वह भी खराब मूड में और दारू पीते बैठ गया। इसके कारण चंदा को भी गुस्सा आ गया। “ये देख रणछोड़, ठीक से सुन ले...मैं कोई तेरे दुःख दूर करने का ठिकाना नहीं हूं। बता देती हूं। उधर तेरी लड़कियां ऊंची पढ़ाई कर रही हैं...बड़ी बन रही हैं...प्रिंसिपल बन रही हैं...और उससे मुझे क्या मिल रहा है? आज तुम मुजे साफ-साफ बता दो कि मुझसे शादी करने वाले हो या नहीं?”

“बीवी, बेटियां, शादी....साला हमेशा एक ही रट लगाई रहती हो...दूसरा कुछ है नहीं क्या कहने को? अरे मैं इस समय इतने बड़े संकट में हूं और तुमको शादी की पड़ी है?”

“आज तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, लेकिन जब ठीक होता है तब भी कहां तुम शादी के लिए हां कहते हो?  और बिना वजह मुझ पर चिढ़ने की जरूरत नहीं है। मैं अभी तुम्हारी बीवी नहीं बनी हूं.. न ही तुम्हारी बेटी हूं...उन पर अपनी दादागिरी दिखाना...उसके बाद मेरे पास आना...समझे?”

रणछोड़ गुस्से में ही उठा। लेकिन उसका संतुलन बिगड़ रह था। वह रिक्शे में बैठ कर तालाब के किनारे पहुंचा। लेकिन वहां भी उसका मन नहीं लग रहा था। वह फिर से देसी दारू के अड्डे पर जा पहुंचा। फिर से दारू पी और घर लौट आया। घर पहुंचते ही यशोदा पर टूट पड़ा। जो हाथ में आ जाए वही फेंक कर उसे मारने लगा। नशे में बड़बड़ा रहा था। आधा घंटा उसने हंगामा कर लिया तब शांति बहन उसे अपने कमरे में ले गईं। यशोदा अपने कमरे में जाकर बैठ गई। करीब-करीब एक घंटे वह खून से लथपथ, होश खोकर बैठी रही।

...........

यशोदा की हालत देख कर केतकी को गुस्सा आ गया। ये किसने किया, ये तो पूछने की ही जरूरत नहीं थी। और क्यों किया, यह जानने का कोई फायदा नहीं था। केतकी ने भावना से डॉक्टर को बुलाने के लिए कहा। “तुम डॉक्टर को लेकर आओ, मैं पुलिस को बुलाती हूं।”

यशोदा और भावना स्तब्ध रह गईं। केतकी फोन की ओर बढ़ी। यशोदा भी उसके पीछे लंगड़ाती हुई दौड़ी। “ये घर का मामला है, ऐसे पुलिस के पास नहीं जाया जाता।” “फिर पुलिस को कब बुलाएं, तुम्हारे मरने के बाद?”

“पुलिस को कभी भी नहीं बुलाया जाता...”

“नहीं, मैं तुम लोगों की एक नहीं सुनूंगी।” केतकी ने फोन उठा लिया। यशोदा ने गुस्से से कहा, “ठीक है, तुमको जैसा ठीक लगे करो। पर यदि घर में पुलिस आई तो और उसने तेरे बाप को हाथ भी लगाया तो तुम मेरा मरा मुंह देखोगी।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह