Agnija - 48 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 48

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अग्निजा - 48

प्रकरण-48

“रणछोड़, ऐसा मत करना....उसको घर से बाहर मत निकालना। घर में रहेगी तो कभी न कभी काम ही आएगी। घर से बाहर निकल जाएगी तो उस पर तेरा कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा।” भिखाभा कह रहे थे, वह सही ही था, लेकिन रणछोड़ को वह बात पच नहीं रही थी।

इधर, केतकी अपने सौतेले बाप की स्वार्थभरी मांग और भावनाओं को भुला कर अपनी नौकरी, शाला और अपने मासूम बच्चों में व्यस्त-मस्त थी। भावना के प्रति उसका स्नेह और मजबूत हो रहा था। तारिका चिनॉय एकदम पक्की सहेली बन गई थी। तारिका और भावना की भी दोस्ती हो गई थी। केतकी को तारिका के साथ समय गुजारना अच्छा लगता था। उसके नीरस और प्रेमहीन जीवन में दोस्ती, अपनापा और स्नेह की बारिश होने लगी थी। इसके कारण उसका मन को शीतलता का एहसास होने लगा था। कभी-कभी केतकी को आशंका होती कि क्या तारिका उससे वास्तव में प्रेम करती है, या और कुछ है? और फिर वह अपने मन को तुरंत चपत जमाती थी, तेरे जीवन में अच्छे इंसान बहुत कम आए इसलिए तेरा मन इतना शंकालु हो गया है। ये तो समय ही बताएगा कि सच क्या है, तू शांत बैठ।

समय कितना बलवान होता है और वह अच्छे-अच्छे लोगों को किस तरह मात देता है इसका अनुभव केतकी को शाला पहुंचते ही हुआ। वाइस प्रिंसिपल जोशी जी को रात में नींद में ही हार्ट अटैक आया और वह अपना घर, शाला और इस संसार को छोड़ कर अनंत यात्रा पर निकल गए थे। जोशी सर पुराने विचारों वाले लेकिन ईमानदार और अच्छे शिक्षक थे। उम्र और ओहदे का अंतर और उसके काम की व्यस्तता के कारण उनसे बहुत संपर्क नहीं हो पाता था। उनको जानने का अवसर केतकी को मिल नहीं पाया था। लेकिन एक-दो बार जोशी सर ने उसका पक्ष लिया था-यह बात उसे याद थी। केतकी ने बच्चों को जंगल में पिकनिक के लिए ले जाने का प्रस्ताव रखा था, तब जोशी सर ने उसका समर्थन किया था, “नए विचारों को अमल में लाने में हर्ज क्या है?” जोशी सर के कारण ही ही उसके प्रयोग को इजाजत मिल पायी थी। इतना सह्रदय इंसान अपने बीच से ऐसे हमेशा के लिए क्यों चला गया? उसी समय पता नहीं क्यों, केतकी को ऐसा महसूस हुआ कि उसे अपनी मां को अधिक से अधिक समय देना चाहिए।

प्राचार्य मेहता ने वाइस प्रिंसिपल पद के लिए चार शिक्षकों के नाम सुझाए थे। कीर्ति चंदाराणा ने शाम को सभी शिक्षकों की एक बैठक बुलाई। सभी जानते थे कि इस बैठक में। वाइस प्रिंसिपल का नाम की घोषणा की जाएगी। पांच-सात लोगों के मन में पदोन्नति की आशा भी बलवती हो रही थी। चंदाराणा सर ने जोशी सर को श्रद्धांजलि अर्पित की। सभी ने खड़े होकर दो मिनट का मौन रखा। इसके बाद सभी लोग जिसकी प्रतीक्षा कर रहे थे, उस मुद्दे पर चर्चा शुरू हुई। “मुझे और मेहता मैडम को शाला का कामकाज संभालने के लिए एक सह-प्रिंसिपल की आवश्यकता पड़ती है। हमारे पास अनेक अनुभवी शिक्षक तो हैं, लेकिन यह भी जरूरी है कि उनमें ये कामकाज संभालने की भी क्षमता होनी चाहिए। इससे भी ऊपर, महत्वपूर्ण यह है कि उस व्यक्ति के अंदर विद्यार्थी और शिक्षा के प्रति सद्भाव और ममता का भाव होना चाहिए। उनके पास पर्याप्त समय होना चाहिए, जिद होनी चाहिए, अलग-अलग योजनाएं बना कर उनको अमल में लाने की योग्यता होनी चाहिए, विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रख कर, जरूरत पड़ने पर मुझसे भी वादविवाद करके नौकरी छोड़ने की तैयारी भी होनी चाहिए। कल के उत्तम नागरिक बनाने के लिए ऐसे इंसान की आवश्यकता है। हमें नौकरी की प्रतियोगिता में भागने वाले रोबोट नहीं चाहिए। अपने दायरे से बाहर निकल कर शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए उत्सुक लोगों की आवश्यकता है। और इन सब बातों को ध्यान में रख कर मेरे सामने एक ही नाम आता है...और वो है... ” चंदाराणा सर कुछ देर के लिए ठहरे और कई लोगों की सांसें थम गईं। कमरे में सन्नाटा पसर गया... “वह नाम है केतकी जानी...”

कई लोगों को आश्चर्य हुआ। स्वाभाविक रूप से कई को निराशा भी हुई, लेकिन केतकी को तो झटका ही लगा। उसके मस्तिष्क ने कुछ देर काम करना बंद कर दिया। किसी ने उसे बधाई दी, किसी ने शुभकामनाएं दी पर वे सब उसके मस्तिष्क तक पहुंच ही नहीं पा रही थीं। चंदाराणा सर ने माइक से उसका नाम दो-तीन बार पुकारा, लेकिन उसे सुनाई ही नहीं पड़ा। बाजू में बैठी तारिका ने उसे हिलाया, “अरे, सर तुम्हें कब से पुकार रहे हैं...उठो...” केतकी यंत्रवत उठ कर माइक के पास पुहुंची। उसके हाथ में जब माइक दिया गया तो वह गदगद थी। लेकिन तुरंत सामान्य होते हुए बोली, “मेरा पक्का विश्वास है कि मुझे यह पद सौंपने के पीछे मेरी क्षमता या मेरी काबिलियत से अधिक संचालक मंडल का मेरे प्रति दृढ़ विश्वास है। यह मेरे करियर या प्रगति का प्रश्न न होकर विद्यार्थियों के भविष्य और एकात्मता का प्रश्न है। ये जिम्मेदारी मैं केवल एक शर्त पर स्वीकार करूंगी... ” सभी अवाक होकर उसकी तरफ देखने लगे। लक्ष्मी दरवाजे पर खड़ी है और ये शर्त लगाने बैठी है... “यदि आने वाले छह महीनों में मुझे लगा कि मैं इस पद के साथ न्याय नहीं कर पा रही हूं, और इस पद को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाने में सक्षम नहीं हूं, तो मैं यह पद छोड दूंगी...” इतना कह कर उसने चंदाराणा सर की तरफ देखा। सर ने हंस कर गर्दन हिला थी। “मंजूर...लेकिन मेरी भी एक शर्त है...छह महीने के भीतर ही यदि मुझे ऐसा लगा कि आप इस काम के लायक नहीं हैं, तो मैं ही आपको इस पद से हटाने का अपना अधिकार सुरक्षित रखता हूं। लेकिन इस पल में आपको बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।” सभी ने तालियां बजा कर नई वाइस प्रिंसिपल का स्वागत किया।

तारिका ऐसा दिखा रही थी उसे बहुत खुशी हुई है, लेकिन भीतर ही भीतर उसे कुछ खटक रहा होगा, ऐसा लग रहा था। प्रिंसिपल मेहता ने उसे बधाई देते हुए कहा संकेत भी दे दिया, “अब प्रयोग कम करें और परिपक्वता अधिक दिखाइए।”

केतकी ने हंस कर सिर्फ “थैंक्स” कहा। इन सभी व्यक्तियों के बीच केतकी के वाइस प्रिंसिपल बनने की यदि सच्ची खुशी किसी को थी तो वे सिर्फ दो लोग थे-एक चंदाराणा और दूसरा प्रसन्न शर्मा।

प्रसन्न शर्मा को अपने पसंदीदा व्यक्ति को इस पद पर पहुंचने की खुशी तो ही थी, पर एक लीक पर चल रही व्यवस्था से बाहर निकल कर पहली बार ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता और नए विचारों का सम्मान किया गया, इस बात का अधिक आनंद हो रहा था। उस पर से केतकी का चुनाव तो सोने में सुहागा वाली बात हुई।

घर पहुंचते ही केतकी ने मिठाई के साथ सभी को यह बात बताई और रात का भोजन सब लोग बाहर करेंगे-यह भी कहा। पार्टी का खर्च मैं उठाऊंगी। शांति बहन ने पेट दर्द तो जयश्री ने सिर दर्द का बहाना बनाया। अब ऐसी स्थिति में यशोदा कैसे जा सकती भला? केतकी और भावना ने उसे समझाया, “हम फटाफट खाना बना कर रख देंगे, फिर तुम्हें हमारे साथ चलने में क्या हर्ज है?” लेकिन यशोदा नहीं मानी। केतकी गुस्से में भावना को लेकर निकल गई। निकलने से पहले तारिका को फोन करके बताया कि गुजरात डायनिंग हॉल में मिलना।

भावना को पहले कभी नहीं हुई थी, इतनी खुशी मिली थी। उसका चेहरा खिला हुआ था। वह हंसती ही जा रही थी। केतकी ने उसे टोका “लोग तुमको पागल समझेंगे...पागल।” भावना ने अपने दोनों हाथ केतकी के गालों पर रखते हुए कहा, “अपनी दीदी की खुशी के लिए मैं कुछ भी करूंगी...कोई पागल कहे या समझदार...मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। ठीक है कि नहीं तारिका दीदी?”

“और नहीं तो क्या....” तीनों ने भरपेट भोजन किया। केतकी ने भी पेट भरके खाया तो लेकिन उसे लगातार ऐसा लग रहा था कि उसके साथ मां को भी आना था। मेरी खुशी के लिए क्या वह नहीं आ सकती थी? केतकी ने बिल लाने के लिए कहा। उसको आश्चर्य हुआ। उसने वेटर की तरफ देखा, तो उसने एक कोने की ओर इशारा किया। केतकी ने उस ओर देखा तो वहां प्रसन्न बैठा हुआ था। केतकी ने जैसे ही उसकी ओर देखा, वह उठ कर उनके पास आ गया। “मैं आज बहुत खुश हूं। अकेले ही खुशी मना रहा था, तभी आप लोग दिख गईं तो सबके लिए आइसक्रीम मंगवा ली। ये नियम का उल्लंघन तो नहीं होगा न वाइस प्रिंसिपल मैडम?”

उसके चेहरे के हावभाव देख कर भावना को जोर से हंसी आ गई। तारिका उन तीनों की तरफ देखती ही रह गई। उसे यह बात पसंद आई या नहीं, ये खुद उसे भी नहीं समझ में आया।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह