Agnija - 44 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 44

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अग्निजा - 44

प्रकरण ४४

शाला में ट्रस्टी के केबिन के बाहर केतकी बैठी हुई थी। वह जरा बेचैन थी। उसको डर तो नहीं लग रहा था, पर चूंकि पहला ही इंटरव्यू था इसलिए जरा बेचैनी अवश्य हो रही थी। उसके भीतर मिली–जुली भावनाएं घुमड़ रही थीं। आनंद, उत्साह, कौतूहल। अंदर से घंटी बजने की आवाज आई और दरबान आया। उसने बाहर आकर तुरंत केतकी को भीतर आने का इशारा किया। अंदर 45 साल के ट्रस्टी चंदाराणा बैठे हुए थे। उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली था। केबिन शानदार था लेकिन बिलकुल साधारण। साफ-सफाई थी। केतकी ने हाथ जोड़कर नमस्ते कहा।

“नमस्ते...बैठिए...केतकी जानी है न आपका नाम?”

“जी सर...मुझे इंटरव्यू के लिए अवसर देने के लिए मैं आपकी...”

“कृपया, पहले मैं क्या कह रहा हूं उसे सुन लें। उपाध्याय मैडम ने आपके नाम की सिफारिश की है, इस लिए आपको नौकरी मिल ही जाएगी, ऐसी बात नहीं है। अब बोलिए...आपको क्या कहना है।”

“मैं भी वही कहना चाहती थी। आप यदि समझते हैं कि मैं इस नौकरी के योग्य हूं, तो ही मुझे नौकरी पर रखिएगा। योग्यता न होने के बावजूद किसी की सिफारिश की बदौलत नौकरी पाना मुझे भी उचित नहीं लगता। इस वजह से किसी लायक व्यक्ति का अवसर उसके हाथ से चला जाता है, ऐसा मैं मानती हूं।”

चंदाराणा के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उन्होंने केतकी की फाइल पर नजर दौड़ाई। “देखिए, मेरी पढ़ाई-लिखाई विदेश में हुई है और मैं यह शाला चला रहा हूं खासतौर पर गरीब बच्चों के लिए। इसी लिए जगह भी उसी के हिसाब से चुनी है। मैंने शिक्षा को बाजार नहीं बनाया है, जो कि आज गुजरात में जोर-शोर से चल रहा है। अब बताइए, गरीबों की ऐसी शाला में आपको पढ़ाना अच्छा लगेगा?”

“मुझे भी ऐसा लगता है कि कोई भी बच्चा शिक्षा, दो वक्त के भोजन और भरपूर प्रेम-इन तीन बातों से वंचित न रहे। इसमें से शिक्षा देने का काम तो मैं कर ही सकती हूं, शायद प्रेम भी दे पाऊं। बस, इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं कहना है।”

“हम्म्म...हमें दो विषयों के लिए शिक्षकों की तत्काल आवश्यकता है। एक चित्रकला और दूसरा गुजराती भाषा। आप कर पाएंगी?”

केतकी बहुत खुश हुई। “यानी मेरी नौकरी पक्की सर..? क्या सच में..?”

“निश्चित ही...आपकी तरह विचार करने वाले शिक्षक मिलते कहां हैं? बताइए...क्या पढ़ाएंगी, गुजराती या चित्रकला?”

“सर, मैंने गुजराती साहित्य में एमए किया है, इस लिए...”

“ठीक...लेकिन आवश्यकतानुसार दूसरे विषयों को भी पढ़ाने की तैयारी रखनी होगी...”

उसी समय बाहर दरवाजे पर हल्की सी खटखटाहट हुई और दरवाजा से झांकने वाले युवक ने पूछा, “मे आई कम इन सर...?”

“कम...कम...प्रसन्न, आपसे मैंने कितनी बार कहा है कि आप मुझसे मिलने के लिए कभी-भी आ सकते है....”

केतकी को समझ में नहीं आ रहा था कि वह वहां बैठे या उठ जाए। उसी समय चंदाराणा ने उसे बैठे रहने का इशारा किया। प्रसन्न बाजू की कुर्सी पर बैठ गया, “सर, आप अपना काम पूरा कर लें, मैं तब तक बैठता हूं।”

“रुकने की आवश्यकता नहीं। अब ये मैडम भी हमारे साथ काम करने वाली हैं। ये हैं केतकी जानी...गुजराती भाषा की नई शिक्षिका...और ये हैं प्रसन्न शर्मा। इनकी भर्ती संगीत शिक्षक के रूप में की गई है, लेकिन गैरहाजिर रहने वाले किसी भी शिक्षक की जगह ये संभाल लेते हैं। ऑलराउंडर हैं...ऑलराउंडर...”

केतकी ने हंसते हुए प्रसन्न को नमस्ते किया, “आपसे मिल कर खुशी हुई...”

प्रसन्न ने गंभीरता के साथ कहा, “खुशी व्यक्त करने की जल्दबाजी मत कीजिए। मैं बहुत विचित्र आदमी हूं। कई लोग कभी न कभी पूछ ही लेते है कि शर्मा होकर गुजरात में?  उस पर मेरा उत्तर है कि जिस तरह क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा और भगवती शर्मा गुजरात में, उसी तरह प्रसन्न शर्मा भी।”

केतकी को हंसी आ गई। प्रसन्न ने चंदाराणा की ओर देखते हुए कहा, “इस रविवार को संगीत में विशेष रुचि रखने वाले दस-बारह विद्यार्थियों को लेकर एक जाने-माने शास्त्रीय गायक से मुलाकात करने जाएंगे। मैंने अपने दस-बारह मित्रों को भी आमंत्रित किया है। उनकी बाइक पर एक-एक विद्यार्थी बैठ जाएगा। बच्चों को पॉपकॉर्न खिलाने की जिम्मेदारी मेरी होगी। ”

खिड़की से अचानक ठंडी हवा का झोका आया। केतकी को एकदम ताजगी का एहसास हुआ। उसने चंदाराणा की ओर देखते हुए कहा, “सर एक बात पूछूं क्या?  आपकी आज्ञा हो, और प्रसन्न जी को एतराज न हो तो, रविवार के इस कार्यक्रम में मैं भी साथ जाऊं? मुझे भी इस अनुभव को प्राप्त करना अच्छा लगेगा।”

चंदाराणा खुश हो गए। उन्होंने हामी भर दी लेकिन प्रसन्न की तरफ उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। प्रसन्न तुरंत हंस पड़ा और बोला, “उन्हें भी साथ आने दीजिए। लेकिन उनको पॉपकॉर्न खिलाने की जिम्मेदारी मेरी नहीं होगी।”

केतकी खुश होकर बोली, “चलेगा, पर मैं बच्चों के लिए जो चिक्की लेकर आऊंगी, आपको उसे खाना पड़ेगा।”

चंदाराणा इस बात से बहुत खुश थे कि उनके शिक्षा कार्यक्रम में अधिक से अधिक युवा खुशी-खुशी शामिल हो रहे हैं। “प्रसन्न...अपने प्राचार्य से इनकी मुलाकात करवा देंगे क्या, प्लीज...?”

“प्रसन्न ने उठते हुए कहा, श्योर सर...”

केतकी ने उठते हुए चंदाराणा की तरफ हाथ जोड़ कर कहा, “सर, मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं आपकी अपेक्षाओं को पूरा कर सकूं और विद्यार्थियों को कुछ खुशी के पल दे सकूं।”

“ऑल द बेस्ट, मिस जानी....” चंदाराणा से विदा लेकर वे दोनों जब बाहर निकले तो चंदाराणा ने ड्रावर से एक फोटो निकाला और न जाने कितनी ही देर उसकी तरफ देखते रहे।

प्राचार्य मेहता से मुलाकात करके केतकी को न खुशी हुई, न दुःख। सभी शालाओं में जैसे प्रिंसिपल होते हैं, वह भी वैसे ही एक थे। वह ट्रस्टी अधिक, शिक्षक कम थे। इंदुमति मेहता को भी यह कभी समझ में ही नहीं आता था कि चंदाराणा सर किस आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति करते हैं। उन्होंने न जाने कितने ही अनुभवी लोगों को उनके पास भेजा है, लेकिन वह सबको मना कर दिया। और ऐसे बिना अनुभव वाली, नई लड़की को नौकरी पर रख लिया? ठीक है मुझे क्या करना है?

घर लौटते समय केतकी ने बहुत सारे बिस्कुट और मिठाई का एक डिब्बा खरीदा। रास्ते में दिखने वाले सभी कुत्तों को बिस्कुट खिलाए, उनके साथ खेली और उन्हें अपनी नौकरी की खबर सुनाई। शंकर भगवान के मंदिर के बरामदे में बैठी। नाना-नानी को याद किया। मेरे पिता जनार्दन कैसे दिखते होंगे, इस बात का मन ही मन विचार करने लगी। आज तक मां से कभी अपने पिता का फोटो भी नहीं मांगा उसने। शंकर भगवान की मूर्ति की ओर देख कर बोली, “तो अब मेरी तरफ देखने की फुरसत मिल गई तुम्हें...?” कुछ और पिल्लों को बिस्कुट खिला कर वह घर लौटी। घर पहुंचते ही उसने यशोदा के पैर छुए। उसका मुंह मीठा किया। तभी भावना भी भागते हुए आ गई, “मेरा पेड़ा? और ये पेड़े किस खुशी में हैं, ये भी बताओ?” केतकी ने उसके मुंह में पेड़ा ठूंसा। फिर दोनों को लेकर वह बाहर के कमरे में आई। सामने ही शांति बहन, रणछोड़ दास और जयश्री आपस में कुछ फुसफुसाते हुए बैठे थे। केतकी ने उनके सामने टेबल पर मिठाई का डिब्बा रख दिया। फिर यशोदा की ओर देखते हुए बोली, “मां, मुझे नौकरी मिल गई।” शांति बहन को तो झटका लगा, लेकिन उसने आश्चर्य को अपने चेहरे से छुपाते हुए पूछा, “कैसी नौकरी?”

“शाला में शिक्षिका की।”

जयश्री ने भावशून्य चेहरे से कटु शब्दों में पूछा, “बीएड किए बिना ही शिक्षिका की नौकरी?”

“मैंने ट्यूशन के साथ-साथ बीएड भी किया। और उसमें पास हो गई।”

रणछोड़ दास के आत्मसम्मान को ठेस पहुंची और शांति बहन भी इस बात पर गुस्सा हो रही थीं कि यह बात उनसे छुपाई गई। जयश्री तो जल-भुन कर खाक हो गई....मुझसे भी आगे निकल गई ये तो...

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह