Apang - 57 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 57

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अपंग - 57

57..

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" सच्ची भानुमति! कई बार तुम्हारा कैरेक्टर समझ नहीं पाता, तुम इतनी फाइट करने वाली स्त्री हो, तुम चेंज ला सकती थी, तुम सब कुछ कर सकती थीं। पर बस सफ़र करती रही क्यों आखिर? "

" पता नहीं मेरे अंदर इतना साहस ही नहीं हुआ। "

" तुम्हारे अंदर इतना साहस नहीं हुआ... लक्ष्मी बाई की देश की संतान हो तुम, तुम साहस नहीं कर सकी तो पता नहीं... "उसने एक लंबी सी साँस छोड़ी।

" तुम्हें बहुत दुख हुआ.. "

" दुख नहीं, अफ़सोस... कितने चैलेंज आते हैं.. लोगों में बदलाव आ रहा है,तुम अभी वहीं की वहीं खड़ी हो... "फिर बोला

" चैलेंज लेकर खाली सोचने से तो कुछ नहीं होता,बदलाव नहीं आते, करने से आते हैं.. टू फाइट, नॉट टू थिंक ओनली। "

"हम्म ---"

" मेरी माँ भी अपने पति से फाइट करके आगे बढ़ती तो मैं बहुत खुश होता शायद वह मेरी जिंदगी में होतीं इसके बजाय कि मेरे पिता ने मुझे पाला और मेरी माँ की कहानी मुझे सुनाई। क्या तुम पुनीत को अपनी बात मतलब अपने जीवन के बारे में सब कुछ बता सकती हो? "

" मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया रिचार्ड जो मुझे पुनीत को बताने में शर्म महसूस हो। "

" नहीं, मुझे गलत मत समझो। मेरा मतलब है कि चुनौती को मानकर फ़ाइट करके क्या तुम ऐसा कुछ कर सकीं कि पुनीत को बता सको, कैसे तुमने उस झूठी मर्यादा को तोड़ा था जो तुम से चिपकी हुई थी। "

" पता नहीं, मैं क्या कर रही हूंँ ?लेकिन मत भूलो रिचार्ड तुम्हारे अंदर आधा खून भारत का है तो आधा यहाँ का। तुम जिन बातों को जिस ढंग से समझ सकोगे उन्हें पुनीत इसी ढंग से समझ सकेगा यह कैसा विश्वास है? "

" विश्वास तो कुछ नहीं होता भानुमति, हम सब सभी विश्वास करते हैं क्योंकि मन कहता है, मन ही ना कहे तो विश्वास कुछ भी नहीं... "

" तुम्हें लगता है पुनीत मुझ पर विश्वास करेगा? "

" ना, ऐसा नहीं कहता मैं, मेरा मतलब नहीं समझ रही हो तुम,मैं कभी अपनी माँ को नहीं मिला परंतु डैडी के कहने से ही मैं उन पर बहुत श्रद्धा रखता हूँ। मुझे गर्व होता यदि मेरी माँ अपने पति से फ़ाइट कर सकती! "

" पता नहीं रिचार्ड, कई बार इंसान डिसीजन लेने में बहुत गलती कर बैठता है।कभी उसकी मज़बूरी भी होती है | हाँ,वह कभी जानकर, कभी अनजाने में, मैंने जो कुछ गलतियाँ कीं वे तो खुले रुप में चुनौती बनकर मेरे सामने आ खड़ी हो गईं और मैं संभवत: उस उनको स्वीकार नहीं कर सकने के कारण परेशानी में फँस गई। पता नहीं कहाँ गलत हूंँ, अपनी समझ से तो सब ठीक ही करते हैं पता तो बाद में चलता है 'दिस इज नॉट ओनली हीयर'! सब जगह होता है हर किसी के साथ होता है। मैं आज तक नहीं समझ सका मैं कहाँ खड़ा हूंँ.. "

"इनफ़... चलो कुछ खाते हैं" भानुमति ने कहा और रिचार्ड को साथ लेकर डाइनिंग की ओर बढ़ गई ।

जिंदगी के दिन इसी तरह कटते रहे।एक दिन ऑफि़स से घर आते समय राजेश से टकरा गई। दोनों एक दूसरे को देख कर चौंक उठे,

"हैलो," राजेश ने कहा।

वह थोड़ी चौंकी, फिर उसने भी उत्तर दिया :

" हैलो.. "

राजेश ने पूछा :

"घर जा रही हो?"

"हांँ..."

"हाउ इज़ द चाइल्ड?"

"फा़इन..." अच्छा ! बच्चा याद है? वह मन में हँसी।

वह बाहर कार पार्किंग की ओर बढ़ी। देखा, राजेश उसके पीछे उधर की ओर ही आ रहा था।

"कैसी हो?"

"अच्छी हूँ... और तुम और रुक?" उसने कोई उत्तर नहीं दिया, जैसे खिसिया गया था।

"क्या हम एक कप कॉफी़ पी सकते हैं?" उसने 'हाँ' में सिर हिलाया फिर न जाने क्यों पूछ बैठी,

" घर चलोगे? "

" ओ. के, ठीक है... "

पार्किंग से गाड़ी निकालकर भानुमति ने राजेश को बैठने का इशारा किया।

" तुम कैसे आए थे?"

"इधर कुछ काम था,एक दोस्त के साथ आया था।"

रास्ते भर दोनों चुप थे। भानुमति को लगा शायद वह उससे और बच्चे से मिलने आया हो.... कैसा मूर्ख होता है मन!

फिर लगा वैसे ही ऑफि़स में टकरा गया, मन में यह भी आया, शायद बच्चे की याद खींच लाई। बेकार ही दिमाग़ इन्हीं सोच- विचारों में भटकता रहा औरअपार्टमेंट तक जा पहुँची।

राजेश उसके साथ घर में दाखिल हुआ "वाह! क्या घर है!" उसने तारीफ़ की। "बहुत अच्छा... क्या कहने, ठाठ हैं!"उसने व्यंग्य किया। वह चुप रही। उसे उसके आने का प्रयोजन समझ नहीं आया था पर मन कहीं कह रहा था कितना अच्छा हो यदि राजेश उससे और पुनीत से मिलने आया हो।

"चाय पियोगे?"

"हम कॉफ़ी की बात करके आए थे। "

" ठीक है "भानुमति ने जैनी को बुलाकर कॉफ़ी का आर्डर दिया। पुनीत 'मम्मा--मम्मा' करता सिटिंग रूम में आ गया था।

"हू इज़ ही मम्मा?"

उसे कुछ जवाब देते ना बना। क्या बोले? क्या बताए? झूठ बोलना भी ठीक नहीं। उसने अपनी और राजेश की सारी तस्वीरें पुनीत के समझदार होने से पहले ही उठाकर बंद करके रख दीं थीं। अब वह चारेक वर्ष का होने लगा था.. स्कूल गोइंग! डर था कभी, राजेश के सामने पड़ने पर कोई और परेशानी ना पैदा करने लगे। उसके मन में सोचा,

'आखिर राजेश को अब पुनीत से मिलने का मतलब क्या था?'

"टेल मी मम्मा हु इज़ दिस मैन?" बड़े साफ़ भाषा में बोल रहा था वह। वह हिंदी अंग्रेजी दोनों अच्छी तरह से बोलता था।

"अंग्रेजी बोलते हो खाली,हिंदी..." राजेश ने व्यंग्य किया।

भानु को बच्चे से इस तरह बात करना अच्छा नहीं लगा। यह बात करने का क्या अर्थ है? लेकिन पुनीत ने तुरंत जवाब दिया,

" नहीं हिंदी भी बोलता हूँ ना..."

"अच्छा, बिल्कुल रिचार्ड वाला उच्चारण!" "रिचार्ज वाला नहीं, केवल अमेरिकन, सभी का है यहाँ ...नया क्या है ? "

" आप जानते हैं अंकल रिचार्ज को?"

"तुम अच्छी तरह जानते हो रिचार्ड को?" "हांँ, वह हमारे फ्रेंड हैं.. बहुत अच्छे फ्रेंड!" "तुम्हारी मम्मी के होंगे बेटा.. "

" हाँ, मम्मी के भी.. मेरे भी, पर आप क्यों पूछ रहे हैं?"

" मैं तुम्हारा बाप हूंँ इसलिए... "

" बाप..क्या बाप का मतलब नहीं पता?" वह हँसा जैसे किसी को चिढ़ा रहा हो।

"राजेश !बच्चे के सामने ऐसी भाषा का प्रयोग मत करो प्लीज़.. "

"मैं गलत लगता हूँ.. तुम्हें हमेशा से गलत लगता हूँ। ठीक है, मैं तेरा पिता हूँ। आई एम योर फादर... "

" इतने मानो उसकी हँसी उड़ाई.. "

" आई डोंट हैव फ़ादर --- " बच्चा गुस्से में लग रहा था |

" मैं खड़ा हूंँ और तू कह रहा है आई डोंट हैव फा़दर..."

दरवाजे पर नॉक हुई, जैनी ने लपककर दरवाजा खोल दिया। रिचार्ड के हाथों में खिलौने और किताबों के पैकेट थे। वह 'पुनीत' कहता हुआ सिटिंग रूम में प्रवेश कर गया।

पुनीत भागकर उससे लिपट गया।

"गुड ब्वॉय, माय स्वीट बेबी... "कहते हुए अचानक --

" हेलो भानुमति.. ओह हेलो.. "उसकी राजेश पर नज़र पड़ी।

कुछ अजीब सा लग रहा था सबको ही!

" कॉफ़ी --रेडी.." आया ने कहा तो भानुमति ने राजेश को टेबल पर आमंत्रित किया, नाश्ता भी लग गया था...

"थैंक यू...." इतने सारे खिलौने और किताबें देखकर पुनीत खिल उठा था।वह रिचार्ड की गर्दन में लटक गया |

" मैं फ्रेश होकर आता हूंँ... वन मिनिट बेबी --"रिचार्ड बच्चे को अपने से अलग करके अंदर चला गया |

ये रिचार्डअंदर क्यों चला गया?राजेश ने प्रश्नवाचक निगाहों से भानुमति की ओर देखा, उसने कोई ध्यान नहीं दिया बस चुपचाप डाइनिंग की ओर चल दी। राजेश पीछे पीछे आया।

अपार्टमेंट की भव्यता देखकर वह इधर-उधर ताकता चल रहा था। वह बहुत उद्विग्न हो चुका था। पुनीत ने उसके मुंँह पर ही जैसे तमाचा मार दिया था

"आई डोंट हैव फ़ादर...." वर्षों पहले जैसे उसके मस्तिष्क में यह पंक्ति किसी ने खोद दी थी जिस पर समय की परत चढ़ गई थी परंतु आज वही सब कह कर पुनीत ने समय की धूल को झाड़ दिया था। अभी तो वह कितना छोटा है उसके बाद फिर? ढेर से छोटे-छोटे प्रश्न चिन्ह उसकी आंखों में तैरने लगे थे।

मुँह धोकर नैपकिन से मुँह पोंछता हुआ रिचार्ड डायनिंग तक पहुंच गया।

"और राजेश कैसे..."

"अरे वाह! बोलने लगे हिंदी..."

" कंपनी का असर तो होता ही है।" वह मुस्कुराया |

"हाँ, सो तो देख ही रहा हूंँ। सारा असर ही असर है..." जलन जैसे उसके सीने को चीरकर बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी |

"अच्छा ! तो कैसे आना हुआ?"

"अरे! तुम मुझसे पूछ रहे हो मेरी पत्नी के घर में?"

"हाँ, तुम्हारी पत्नी के घर में..?अरे! मैं तो भूल ही गया था कि भानु तुम्हारी पत्नी है!"

" तो.. अपनी समझ रहे थे क्या? "

भानुमति का मुँह घोर अपमान से लाल हो गया...' राजेश' ... वह चिल्लाकर बोली।

" चिल्लाओ मत... मैं तुम्हारा पति हूँ..।"

"अच्छा, तुम्हें याद आ गया कि तुम उसके पति हो...?"

"मिस्टर रिचार्ड, आप हमारे घरेलू मामलों में टाँग न अड़ाना.."

" वह तो अड़ानी पड़ेगी।" आराम से वह कॉफ़ी मुँह की ओर ले जाते हुए बोला।

"मुझे गुस्सा मत दिलाओ.."

"मैंने कहा ना आई कांट हैल्प इट, जो मुझे करना है मैं करूंगा जो आपको करना है आप कर सकते हैं... "रिचार्ड भी आज जैसे कमर कसकर बैठा था |

" मैं तुम्हें जान से मार डालूंगा बदचलन औरत ! वह दहाड़ा और भानुमति की ओर बढ़ा।

"बैठना है तो शांति से बैठकर कॉफ़ी पी कर जाओ। बदतमीजी़ मत करो। बच्चा घर में है।"

पुनीत पहले ही आवाजें सुनकर हाथ में एक मोटर लिए डाइनिंग की तरफ आ गया था।

"देखो - - देखो, यह मेरा बच्चा है। मैं इसका पिता हूँ। तुम जानते हो.." बच्चे की ओर इशारा करके राजेश बोला।

" नो अंकल.. ही इज़ नॉट माय फादर, ही इज़ बैड पर्सन...। "

" तुमने मेरे बच्चे को भी मेरे अगेंस्ट कर दिया...!"

"कौन सा बच्चा? जब वह तुम्हें पहचानता ही नहीं, कहाँ से उसके पिता बनने का दावा कर रहे हो? "

भानुमति बहुत नर्वस फील कर रही थी।

अचानक उसे चक्कर आने लगा और वह डाइनिंग टेबल पर सिर टिकाकर बैठ गई।

" मैं तुझ से ही बात कर रहा हूं जलील औरत.... "वह बदतमीजी़ से चिल्लाया।"

"तुम मुझसे बात करो राजेश।"

"तुम मेरी बीवी नहीं हो...।"

रिचार्ड गुस्से और अपमान से तमतमा रहा था भानुमति की ओर देखकर बोला ..

" देखो भानुमति, तुम इसी पति को अब तक मन में लिए बैठी हो? क्या खूब डेफिनेशन है तुम्हारे मन में पति की। "

" तुम क्यों इसे भड़का रहे हो? " राजेश उस पर भड़का।

" हाँ, वैसे तो यह फीडर में दूध पीती है अभी..तभी तो.... "

"लगता तो ऐसे ही है वरना तुम जैसे जंगली को उठाकर बाहर फेंक देती।"

" मैंने कई बार सोचा है, तुम इसी दुनिया का हिस्सा हो ? क्यों कमजोर पड़ जाती हो?"

" मैं अपने संस्कारों से मुक्त नहीं हो पाती -- तुम मेरी सीमाओं को कहाँ समझ पाए--?"

" हाँ, भारतीय नारी का इतना ही काम होता है, खाना बनाएं,बच्चे पैदा करें और पति का मूड है तो मार भी खा ले | "

"कुछ भी कहो और तुम बहुत महान हो राजेश, आज 5 साल होने के बाद तुम जान सके कि तुम एक बच्चे के बाप हो --तुम उसके पिता हो और वह मानने के लिए तैयार ही नहीं है क्या बात है ?"

"इस सब के जिम्मेदार तुम हो रिचार्ड, तुमने ही मेरा परिवार बर्बाद कर दिया है| तुमने ही मेरे बच्चे को मुझसे छीन लिया है | "

"हाँ, वह बात तो ठीक है,तुम अपने बेटे के पैदा होने के इंतजार में रात दिन बेचैन थे | स्वागत करने के लिए एक टांग से खड़े थे| मैंने तुम्हें वहाँ से भगा दिया और खुद खड़ा हो गया | तुम अपनी पत्नी की देखभाल में बरसों से तपस्या कर रहे हो पति और पिता की सब ड्यूटी निभा रहे हो --मैंने तुम्हें उस रास्ते से गिरा दिया | तुम अपनी पत्नी को कितना प्यार करते हो -- यह तो तुम्हारे दिल को ही पता होगा-- केवल कभी स्वाद चखने के लिए रुक का दामन थाम लिया और अब रुक से झगड़ा होने के बाद शैली की बाहों में झूम रहे हो--" रिचार्ड हाँफ रहा था| उससे बोला नहीं जा रहा था और ना ही वह भानुमति का अपमान सह पा रहा था |