Chorono Khajano - 9 in Gujarati Fiction Stories by Kamejaliya Dipak books and stories PDF | ચોરોનો ખજાનો - 9

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ચોરોનો ખજાનો - 9


लड़ाई का अंत

दस्तूर के गुस्से को देखकर उस अंग्रेज सिपाही के पास दस्तूर पे गोली चलाने का अफसोस करने का वक्त भी नहीं बचा था। वो डर के मारे कहा जाए ये भी सोच नही पाया। लेकिन जब अपने सामने बहुत ही बड़ी सेना देखी तो एकदम से डर गया और वही मारा गया। सामने इतनी बडी सेना देखकर दस्तूर एकदम खुशी से उछल पड़ा।

लेकिन उसकी खुशी की उम्र शायद लंबी नही थी। जब उन फिरंगियों को पता लगा की उधर से बड़ी फौज आ रही है तो उन्हों ने एकसाथ जैसे गोलियों की बारिश करदी। उसमे से एक गोली दस्तूर के सिनेमे लगी। वो वही गिर पड़ा। उसे अपने दोनो हाथों में तलवारे लेकर लड़ने की आदत थी। वो ढाल या ऐसी कोई चीज इस्तेमाल नहीं करता था जिससे की वो दुश्मन का वार रोक सके। बंदूक की गोली सीधी आ कर उसका सीना चीरती हुई निकल गई। कुछ ही देरमे उसने अपना दम तोड दिया।

अब अंग्रेज सिपाहियो का पूरा ध्यान हमारी तरफ चला गया। इसी मौके का फायदा उठाकर संतोष, मणिशंकर और तन्मय को अपने साथ लिए रुद्राने जैसे मौत का कहर बरसाया। उसके इस हमले में कई अंग्रेज सिपाही मर रहे थे। जितने लोग दूसरी तरफ से आती हुई बड़ी सेना से नही मर रहे थे उससे ज्यादा अंग्रेज सिपाही इस रुस्तम दलने मारे थे।

हमारी सेना में सभी के पास तलवारे और ढाले थी लेकिन इस वक्त हम तीर का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे। क्यों की अंग्रेज सिपाहियो की भिडमे रुस्तम के साथ लड़ने आए हुए हमारे सैनिक भी मर सकते थे। इसलिए हमे बिलकुल नजदीक आ कर अंग्रेज सिपाहियो से लड़ना पड़ता था। उनके द्वारा चलाई गई गोलियों से बचने केलिए इस वक्त हमारे पास ढाले ही थी जो हमे उन गोलियों के खिलाफ टक्कर दे रही थी।

दरअसल, ये ढाले कई हल्की धातुओं के मिश्रण से बनी है जो वजन कम होने के साथ साथ काफी मजबूत भी थी। इनकी मजबूताई इतनी ज्यादा थी कि स्पीड से आती हुई बंदूक की गोली भी रोक सकती थी। रुस्तम के साथ गए सैनिक इन ढालो का इस्तेमाल नहीं कर पाए क्योंकि वो इन ढालोंको छिपा नहीं सकते थे। इन ढालों की वजह से अंग्रेजी गोलियां भी हमे ज्यादा कुछ नुकसान नहीं कर पाई थी।

लेकिन कुछ देर बाद अंग्रेज सिपाहियों को यह बात समझ में आ गई की सिर्फ इन बंदूकों से वो हमे ज्यादा नुकसान नहीं कर पाएंगे। तो उन्होंने आखिरी इक्का निकाला।

उन्होंने अब तक जो तोप छुपा कर रखी थी उसे बाहर निकाला। चार सिपाही मिलकर अभी गोला दागने ही वाले थे की तभी राठौर की नजर उन पर पड़ी। राठौर दौड़ कर उनके पास गया और अपनी तलवार से उन्हें मारने लगा। चार में से उसने दो को मार दिया लेकिन तभी बाकी के दो लोगों गोला दागना छोड़ अपनी बंदूक निकाली और निशाना लगाए बिना ही गोली छोड़ दी। उस बंदूक की गोलीने राठौर के गले में एक छेद कर दिया। राठौर वही थोड़ी देर तड़पा और फिर सांस लेने में दिक्कत होनेकी वजह से उसकी जान चली गई।

राठौर के मरने के बाद वो दोनो अंग्रेज सिपाही फिरसे अपने गोला दागने के काम में लग गए। जब उस तोप के मुंह से आग का वो गोला निकला तो उसने अपने सामने खड़ी हमारी बड़ी सी सेना में भाग दौड़ मचा दी। उस धमाके में हमारे कई सैनिक मारे गए। ज्यादातर नुकसान हमे उन ऊंटों की वजह से भुगतना पड़ा।

धमाके की वजह से ऊंट एकदम से डर गए। डर के मारे वो इधर उधर भागने लगे। इस भागदौड़ में हमारे कई सैनिक कुचल कर या गिर कर मर गए। किसी तरह से हमने उन ऊंटो को शांत किया। हम फिर से उठ खड़े हो ही रहे थे तभी एक और बारूद का गोला फटने की आवाज सुनाई दी। फिर से वैसा ही धमाका हुआ।

मैने अपने ऊंट को बहुत ही मुश्किल से शांत किया था। इससे पहले की वो फिर से भागने लगे, मैं नीचे उतर कर अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथमे ढाल लेकर उस तोप की ओर दौड़ पड़ा।

हमारे कई साथी इधर उधर फैले थे। उनमें कई लोग मर चुके थे तो कई लोग घायल थे। मैने उधर दूर देखा तो वो अंग्रेज सिपाही तोप में फिर से गोला दागने ही वाला था की तभी मेरी आंखों के सामने ही एक तलवार ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उसका सिर दूर जा कर गिरा और जब उसका धड़ धीरे धीरे नीचे गिरा तब उसे मारने वाले का चेहरा दिखाई दिया। वो तन्मय था। उसके चेहरे पर तोप को रोकने की खुशी दिख रही थी। थोड़ी देर केलिए तोप शांत हुई तो जैसे हमारे लोगो को सम्हलने का मोका मिल गया। सभी फिर से इकट्ठा होने लगे।

शाम होने में अब शायद ज्यादा समय नहीं था। फीरभी इस बार सबने मिलकर एकसाथ हमला करने का फैसला किया। और ये हमला हमे जीत दिलाने में कामियब रहा। सभी की तलवारे खून से तर थी। हर तरफ कही अंग्रेज सिपाही की तो कही हमारे लोगो को लाशे पड़ी थी। हर जगह सिर्फ खून ही खून दिखाई दे रहा था। इस लड़ाई के बाद भी मेरी आंखे रुद्रा को ढूंढ रही थी। लेकिन रुद्रा कही दिखाई नही दे रहा था। मैने तन्मय को पूंछा। मेरे पूछने पर उसने ऐसे चेहरा बनाया जैसे उसे कुछ पता ही न हो। मैं फिरभी रुद्रा को उन लाशों में हर जगह ढूंढता रहा।

अचानक ही मुझे खयाल आया की रुद्रा के साथ मणिशंकर और संतोष भी कही दिखाई नही दे रहे थे। मैं जल्दी से उन अंग्रेज सिपाहियो की छावनी की ओर भागा। मैने वहा देखा की भद्रा की तलवार इस वक्त उस बड़े अंग्रेज अफसर की छाती में गड़ी हुई थी। उसके छाती से खून बह रहा था। बिना जान के वो अफसर वही पड़ा था। और उसके पीछे था वो खजाना। मैने रुद्रा को बुलाने केलिए आवाज लगाई। जब रुद्रा मेरी तरफ मुड़ा, मेरी आवाज गले में ही अटक गई।

शाम, डूबते सूरज को दबाने की कोशिश कर रही थी। अंधेरा जैसे उजाले पे हावी हो रहा था। उस अंधेरे में भी मैने रुद्रा के सीने में लगी गोली के घाव से निकलते खून को देख लिया। मेरे मुंह से एक अलग ही तड़प के साथ चीख निकली। ' रुद्रा। '

मैं दौड़ कर रुद्रा के पास पहुंचा। रुद्रा जैसे मेरा ही इंतजार कर रहा था। वो नीचे गिरने ही वाला था की मैने उसे पकड़ लिया। मैं उसे वही पकड़ कर बैठ गया। मेरी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। रुद्रा मेरी आंखों में आंसू निकलते देख हस रहा था। वो शायद यही कहने की कोशिश कर रहा था की, "देखा बाबा, आपको नाज हो ऐसा ही काम किया है मैने।" हा मुझे नाज है उसपे। कुछ ही देर में उसने मेरी गोद में ही हस्ते हुए अपनी आखरी सांस ली।

मैं वही दो घंटो तक वैसे ही अपने बेटे के बेजान शरीर को लिए बैठा रहा। मैने जब ऊपर की ओर नजर की तब मैने देखा की हमारे सरदार के साथ कई लोग थे जो मुझे देख कर शायद दुखी हो रहे थे। वो समझ रहे थे मेरे दर्द को। हा उन्हे ये समझ मे आ रहा था की रुद्रा मेरा ही बेटा था। ये बात मैने क्यों छुपाई ये कोई समझ नहीं पाया लेकिन शायद उसकी अब कोई गुंजाइश भी नहीं थी।

अचानक ही जैसे भद्रा को कुछ याद आया हो वैसे उसने अपने एक आदमी के कान में कुछ कहा। वो आदमी वहा से चला गया। भद्रा ने मेरे कंधे पे हमेशा की तरह ही हाथ रखा और कहने लगा। " दोस्त, इसी का नाम जिंदगी है। रुद्रा भले ही हमे छोड़ के गया हो लेकिन उसका नाम हम इतिहास में अमर कर देंगे। उन अंग्रेजो को रुस्तम का नाम हमेशा याद रहना चाहिए। हम उन्हे रुस्तम के पीछे इतना भगाएंगे की वो पूरी जिंदगी चलना भूल जायेंगे। "

मेरी आंखों का गुस्सा अब भद्रा की आंखों में भी दिख रहा था।


ખજાનો લૂંટી ને તેઓ ક્યાં જશે?
શું તેમને નકશાના બધા ટુકડાઓ મળશે?
પેલા બીજ શેના હતા?
આવા પ્રશ્નો ના જવાબ માટે વાંચતા રહો..
'ચોરનો ખજાનો'

Dr Dipak Kamejaliya
'શિલ્પી'