Nark - 9 in Hindi Horror Stories by Priyansu Jain books and stories PDF | नर्क - 9

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नर्क - 9

3 हजार वर्ष पहले एक अज्ञात स्थान पर "तुम ये क्या प्रालाप (बकवास) कर रहे हो?? जानते हो, इसका परिणाम मृत्यु हो सकता है??" एक सुसज्जित योद्धा अपने समक्ष खड़े एक कालिमा लिए व्यक्ति से क्रोध में बात कर रहा था। उस व्यक्ति के शरीर से काली ऊर्जा सी प्रफुष्टित हो रही थी और उसने काला चोगा पहन रखा था जिसने उसका अधिकांश शरीर और चेहरा ढ़क रखा था।

काली ऊर्जा वाले शख्श ने कहा -" मिथ्या भाषण करना तुम देवदूतों का कार्य है। मैं शैतान का सेवक अवश्य हुँ परन्तु मिथ्या वार्ता मैं नहीं करता। मैं नर्क का राजा हूँ तुम्हारी तरह गुलाम नहीं जो मुझे किसी की चाटुकारिता हेतु मिथ्या वार्ता की आवश्यकता हो। रही बात मृत्यु की; तो प्रयास कर सकते हो तुम। वैसे भी हम अँधेरे के उपासकों को मृत्युभय नहीं है। हम एक मरते है तो दस उसका स्थान ले लेते है।"

योद्धा के चेहरे पर व्यंग्य की स्मिति (मुस्कान) उभर आयी। वो बोला -" तुम शैतान!! और सत्य!! हाहहह... वो जिनका अस्तित्व ही मिथ्या हो, उनसे सत्य की अपेक्षा कैसे हो सकती है?? अपनी ये धूर्तता कहीं और प्रदर्शित करना। रही मृत्युभय की बात तो जब मेरी खड़ग् चलती है तो मृत्यु को भी भय लगने लगता है और मत भूलो कि हम देवदूत अमर हैं क्योंकि हम परमात्मा की पहली संताने है।"

काली ऊर्जा वाला व्यक्ति -"आ..हा... हा.. हा.. हा...हा.... अमर... अमर नहीं हो तुम। प्रतीत होता है तुम्हारे पिता ने तुम्हे मिथ्या बताया है। तुम अमर नहीं, बल्कि चिरंजीवी हो। तुम्हें मारना मुश्किल है पर असंभव नहीं। तुम्हारे पिता ने तुम्हें ये भी नहीं बताया कि सर्वाधिक शक्तिशाली शस्त्र तुम्हरी खड़ग् नहीं बल्कि 'विद्यूदभि' परसु (फरसा) हैं। जो तुम देवदूतों की भी मृत्यु बन सकता है।

वो योद्धा क्रोध से चीखा-" ये तुम क्या अनर्गल वार्ता कर रहे हो??? हमें हमारे पिता ने जन्म दिया है, हम सर्वश्रेष्ठ हैं। हम देवदूत हैं। हमारे कारण ही तुम जैसे पाप कीट(कीड़े) कुक्कुरमुत्तों की तरह नहीं फैल रहे और हम ही ब्रह्माण्ड की आखिरी उम्मीद है। मुझे अपने जन्मदाता पर पूर्ण विश्वास है। तुम जैसे घृणित जीव की व्यर्थ बातों से मैं पथभ्रष्ट हो जाऊँ ऐसा संभव नहीं।"

"हा... हा... हा.. हा.., उचित है कि तुम अतिशक्तिशाली हो परन्तु प्रतीत होता है कि अत्यधिक मासूम भी हो।" काली ऊर्जा वाला शख्स जोर से अट्टहास करने लगा।

"तुम्हारे ही जुड़वाँ भ्राता को तुम्हारे पिता वो परशु प्रदान करने वाले है। वो परशु जिसने असंख्यों योद्धाओं को मृत्यु के घाट उतारा। वो परशु जो अपने स्वामी की आज्ञा से किसी भी शक्ति को कई भागों में बाँट सकता है। वो परशु तुम्हारे ही जुड़वाँ भ्राता को, जो तुमसे छोटा है, कम शक्तिशाली है, कम निपुण (कुशल) है, को प्रदान करेंगें। क्यों.....??? क्यूंँकि तुम्हारे जन्मदाता को तुम उस से कम योग्य प्रतीत होते हो।"

योद्धा -"व्यर्थ का प्रालाप बंद कर, वो मेरा अनुज है। अगर मेरे पिता ने उसे मुझसे योग्य समझा है तो ये मेरे लिए गर्व की बात है। तुम जैसे पामर (नीच) कीट की वजह से मैं अपने पिता और भ्राता से व्यर्थ शत्रुता नहीं कर सकता। मेरा अनुज मेरे लिए स्वंय के प्राण भी अर्पित कर सकता है। तुम यहाँ से तुरंत प्रस्थान (चले) कर जाओ वर्ना मेरी खड़ग् तुम्हें ब्रह्मलीन (मार) कर देगी।

शैतान का सेवक -" हाँ, मैं भी यहाँ क्यों रुकूंगा, पर सिर्फ एक प्रश्न; तुम्हारा अनुज तुम्हारे लिए प्राण त्याग सकता है पर क्या प्रेम त्याग सकता है??"

योद्धा ( आश्चर्य से)"- क्या कहना चाहते हो??"

शैतान का सेवक समझ गया कि उसने योद्धा के तार छेड़ दिए है अब वो उसके अनुसार बजने को तत्पर है। वो कुटिलता पूर्वक उसकी आँखों में देखकर मुस्कुराने लगा और बोला -" रक्षकुमारी निशिका!! जिस से तुम अटूट प्रेम करते हो!!! सुना है तुम्हारा प्रिय अनुज भी उससे प्रेम करता है।"

वो योद्धा हिल गया इस बात से, उसकी आँखें फैल गयी। वो कुछ देर तक उस अँधेरे के उपासक को देखता रहा फिर बोला -" नहीं... तुम्हारा मतिभ्रम (वहम) है ये या तुम मुझे पथभ्रष्ट करने का प्रयास कर रहे हो। 'आयु' मेरे साथ कदापि (कभी) ऐसा नहीं करेगा। तुम मिथ्या(झूठ) वाचन कर रहे हो।"

सामने वाला उसकी इस बात पर पहले मुस्कुराया फिर बोला-" क्यों न तुम स्वंयं के चक्षुओं (आंखों)से अवलोकन (निरीक्षण) कर लो। मैं तुम्हारा मतिभ्रम कर सकता हूँ पर दृश्टिभ्रम तो नहीं !!!! या तुम्हें सत्यानुभूति का भय है कुमार 'आयुध'?? अच्छा इसे इस तरह करते है कि अगर ये बात मिथ्या हुई तो मैं तुम्हें बिना प्रतिरोध स्वंयं को मृत्यु के घाट उतारने दूंगा और यदि सत्य हुई तो तुम्हें वचन देना होगा कि तुम मेरा सहयोग करोगे।"

योद्धा -" तो तुम मुझे दास बनाने की मंशा रखे हुए हो??"

सामने वाला -" नहीं दास नहीं 'मित्र".....

To be continued......