Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 14 in Hindi Fiction Stories by Poonam Sharma books and stories PDF | Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 14

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Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 14


"क्या हुआ था कल रात?" अनिका ज्यादा देर तक अपनी उत्सुकता को अपने तक नही रख पाई थी। वोह अभय सिंघम के द्वारा दिए गए धमकी का रिस्क भी लेने को तैयार थी।

"वोह सेनानी कुत्ते जिन्होंने हमारे गोदाम जला दिए थे, उन्हे आखिरकार मार ही दिया।"

"मुझे तो बहुत खुशी है की इस बार अभय ने उसे जान से ही मार दिया। उसने पिछले साल भी हमारे भरे हुए गोदाम आग में झोंक दिए थे, और फिर भाग निकला था।"

अनिका हल्का सा हिल गई यह सुनकर की यहां के लोग किसी इंसान को मरना काटने की बात यूहीं इतनी आसानी से कर रहें हैं। एक डॉक्टर होने के नाते किसी की जान लेना अनिका के उसूलों के बिलकुल खिलाफ है। उसे समझ ही नही आ रहा था की यहां के सभी लोग, बल्कि जवान लोग और छोटे छोटे बच्चे भी, उन्हे कोई फर्क नही पड़ता किसी को मरने से और इस बात को एक्सेप्ट करने से।

दुर्भाग्य से अनिका उस आदमी से जुड़ चुकी थी जो ज्यादा तर इस मार काट का मुख्य जिम्मेदार था।

उसी रात देर से, जब अभय घर वापिस आया, चौंकने वाली बात यह थी अनिका उसके होने से बिलकुल डर महसूस नही कर रही थी। वोह अभय को छुप छुप के नज़रों से देख रही थी जब अभय अपना बिस्तर ठीक कर रहा था।

"ओह माय गॉड, मैं कितनी बेवकूफ हूं!"

अनिका मन ही मन सोच रही थी, जब उसकी आंखें अभय के होठों पर गड़ी हुई थी और उसके शरीर पर जब उसने अपने फॉर्मल सूट का जैकेट उतारा था।

अनिका पलटी और दूसरी तरफ मुड़ कर सोने की कोशिश करने लगी। थोड़ी देर बाद अभय वाशरूम से सिर्फ पायजामा में बाहर निकला। उसने ऊपर कुछ नही पहना था। वोह टॉवल से अपने बाल सुखा रहा था और उसने अनिका का उसे निहारना मिस कर दिया।
या फिर ऐसा उसे लग रहा था की अभय ने कुछ नोटिस नही किया।

"अब क्या है?" अभय ने यूहीं अपने बाल पोछते हुए ही पूछा।

अनिका चौंक गई की अभय ने उसे पकड़ लिया। "क....कुछ नही। मैं बस आपको थैंक यू....कहना चाहती थी क्लिनिक के लिए।"

अभय ने कोई जवाब नही दिया। उसने वोह गीली टॉवल कुर्सी पर फेंक दी और लाइट्स बंद कर दी। उसके बाद जा कर अनिका के ही बगल में बैड पर लेट गया।

अनिका को दोनो के बीच कुछ थरथराहट महसूस हुई और फिर कन्फ्यूज्ड होने लगी। वोह अभी भी सोचती थी और जानती थी की अभय के जानवर है।

पर उस जानवर से अनिका ने शादी की थी—अब उसके अंदर एहसास बन कर पनप ने लगा है।

«»«»«»«»

"लक्ष्मी!" अनिका ने चिल्लाते हुए पुकारा। वोह अपने ब्लाउज के बैक ज़िप को बंद करने की कश्मकश में लगी हुई थी।

वोह कबर्ड के बीचों बीच खड़ी इंतजार कर रही थी, और उसने भारी भरकम नगों से जड़ा हुए लहंगा पहना हुआ था। लक्ष्मी कुछ देर पहले ही लहंगे से मैचिंग आई शैडो लेने बाहर गई थी।

आज वोह दिन था जब उसे और अभय को सिंघम टेंपल जाना था अपने घर के पुराने ट्रेडिशन को पूरा करने।

मुझे यह शादी किए हुए इक्कीस दिन हो चुके हैं...

इस विचार ने उसे अंदर तक डरा दिया और उसे घबराहट के मारे बेचैनी होने लगी। अगर इन तीन हफ्तों में उसने जो भी काम किया वो नही किया होता तोह वोह आज रो रो के अपना दम तोड़ चुकी होती। उसके विचार को वीरान तब लगा जब ब्लाउज की ज़िप ना लगी होने से उसका ब्लाउज उसके सीने से उतरने की धमकी देने लगा। वोह सोच रही थी की काश उसने कुछ और पहना होता। उसकी अपनी इच्छा नही थी की इस तरह से सज धज के मंदिर जाने के लिए निकलना, पर पूरा घर कुछ ज्यादा ही खुश था, खासकर की लक्ष्मी। अनिका उन्हे मना नहीं कर पाई।

"लक्ष्मीइइइ..." अनिका ने एक बार फिर पुकारा। अनिका एकदम जम गई जब उसने अभय सिंघम को कमरे में आते हुए देखा। उसे उम्मीद नही थी की अभय इतनी जल्दी वापिस आ जायेगा।

अभय उसे चुपचाप काफी देर तक देखता रहा जब तक की कमरे में छाई हुई चुप्पी को अनिका तोड़ ना दे।

"मु....मुझे उह्ह्ह्ह् मदद चाहिए..." उसकी आवाज़ इसलिए लड़खड़ा रही थी क्योंकि वोह अभय को डिटेल्स नही देना चाहती थी की उसे किस चीज में मदद चाहिए।

"कैसी मदद?" अभय बिलकुल तैयार लग रहा था। उसने ट्रेडिशनल मैरून पगड़ी बांधी हुई थी और उसके साथ आइवरी सिल्क का कुर्ता पहना हुआ था। उसके पहनावे से वोह और भी ज्यादा लंबा और किसी राजा की तरह दिख रहा था।

राजा? क्या हो गया है तुम्हे?

अनिका अपने ही खयालों में कन्फ्यूज्ड हो गई। वोह अपनी जगह पर ही खड़ी रही हालांकि अभय उसके नज़दीक बढ़ रहा था और कुछ इंच की दूरी पर रुक गया।

"कुछ नही। मैं....मुझे मदद की जरूरत नहीं है। मैं ठीक हूं अब, अनिका ने कुछ कदम पीछे की ओर बढ़ाए ताकी अपनी खुली पीठ को दीवार से छुपा सके।

अभय की आंखें अनिका के बदन को ऊपर से नीचे स्कैन कर रही थी, जब उसकी नज़रे अनिका के ज़िप ना बंद होने की वजह से ब्लाउज में से झांकते सीने पर आ कर रुकी तोह अनिका की तोह सांसे ही रुक गई। अनिका बिलकुल हिली नही लेकिन उसकी जान में जान तब आई जब उसने लक्ष्मी को अंदर आते हुए देखा।

"मुझे माफ करना! मैं आपके ब्लाउज के बारे में तोह भूल ही गई।" लक्ष्मी मुस्कुराते हुए कमरे में घुसी चली आई और अभय सिंघम को सामने देख कर एकदम जम गई।

अभय ने लक्ष्मी की तरफ पलट कर नही देखा। उसकी आंखे तोह अभी भी अनिका पर ही बनी हुई थी।

"बाहर जाते वक्त कमरे का दरवाज़ा बंद कर जाना," अभय ने नरमी से आदेश दिया।

"हां। हां। बिलकुल। माफ कीजिए," लक्ष्मी बड़बड़ाते हुए बाहर निकल गई।

"तुम्हे किस चीज़ में मदद चाहिए?" अभय ने अनिका से पूछा।

"मुझे मदद की जरूरत नहीं है, मैं ठीक हूं।"

अभय उसे लगातार घूरे जा रहा था जिससे अनिका असहज होती जा रही थी। अनिका ने अपनी चढ़ती उतरती सांसों को नियंत्रित किया और अपनी घबराहट को भी ना दिखाने की कोशिश करने लगी।

"क्या तुम तैयार हो जाने के लिए?" अभय ने पूछा।

"मुझे थोड़ा और भी काम है। बस मैं दस मिनट में तैयार हो जाऊंगी।" अनिका का ब्लाउज पीछे की तरफ से खुला हुआ था और उसने एक हाथ को क्रॉस करके अपने सीने पर रखा हुआ था ताकी उसका ब्लाउज उसके कंधे से उतर कर गिरे नही और सब कुछ दिख न जाए।

अभय की आंखों को कुछ खटका और वोह अनिका की तरफ आगे बढ़ने लगा।

अनिका का दिल जोरों से बेइंतिहा धड़कने लगा। अब यह डर की वजह से हुआ, या पूर्वानुमान से, या फिर दोनो से, वोह नही जानती थी। अभय अनिका से दो से भी कम कदमों की दूरी पर था, पर फिर भी वोह आगे बढ़ता रहा और उसके एक दम करीब आ गया।
"यह याद रखना की तुम्हे लोगों को यह यकीन दिलाना है की हमारी यह शादी सम्पन्न है और हम सही मायने में पति पत्नी बन चुके हैं। क्या तुम यह कर सकती हो?" अभय की आवाज़ में एक नशा झलक रहा था।

"हां।" अनिका ने धीरे से फुसफुस्ते हुए जवाब दिया।

अभय ने अपने दोनो हाथ अनिका दोनो तरफ दीवार पर टिका दिए और अनिका को अपनी बाजुओं में कैद कर लिया। अनिका ने अपना सिर उठा कर सीधे अभय की आंखों में देखा और साथ ही उसकी सांसे तेज़ चलने लगी।
अनिका के शरीर को आश्चर्य में झटका लगा जब उसने महसूस किया की अभय की उंगलियां उसके सीने पर फिसल रही हैं।

"जब भी मैं तुम्हे टच करता हूं तुम्हे इस तरह से कांपना बंद कर देना चाहिए।" अभय ने अपनी जलती हुई सांसों से उसे धमकाया जैसे उसकी स्किन को जला देगा, और अपनी उंगलियों की टिप उसके सीने पर फेर कर अनिका के रोंगटे खड़े कर दिए। अनिका को अपने निप्पल पर भी कुछ अजीब अनिच्छुक एहसास होने लगा।

"मैं ठीक हो हूं।" अनिका की आवाज़ में अभी भी हल्की कंपकपाहट महसूस हो रही थी।

"तुम अभी भी उछल रही हो। यह बात मुझे पसंद नही है।" अभय ने बहुत ही गहरी और मोहक आवाज़ में कहा।

अनिका कुछ कहना चाहती थी लेकिन उसकी आवाज़ गले में ही अटक गई जब अभय ने अनिका को पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और उसे पीछे पलट कर फिर से दीवार से लगा दिया। अब अनिका की पीठ अभय की तरफ थी। इससे पहले की अनिका कुछ कर पाती अभय ने उसके ब्लाउज की अटकी हुई ज़िप को पकड़ कर निकाल दिया और दोनो हिस्सों को अलग कर दिया। अब उसकी पीठ पूरी तरह से खुल गई।

अनिका ऐसे ही जमी रह गई और उसने कुछ रिएक्शन नहीं दिया। अब उसके ब्लाउज में कोई सपोर्ट नहीं रहा था। अब बस अगर अभय चाहे तो उसके ब्लाउज को उसके कंधे से उतार कर नीचे फेंक सकता था। वोह ऊपरी हिस्से में बिलकुल नेक्ड रह जाती।

अनिका अपनी सांसों को थामे हुई थी, जो किस वजह से कर रही थी पता नही।

"ज़िप अटकी हुई थी," अभय ने अनिका के कान में अपनी गर्म और तेज़ चलती सांसों के साथ फुसफुसाते हुए कहा।

अनिका ने अपने कान पर अभय की गर्म और गीली जीभ को हल्का सा फिसलते हुए महसूस किया। अभय की जीभ उसके कान पर चक्कर लगा रही थी जैसे उसे छेड़ रही हो, उसके बदन को छेड़ रही हो, जैसे उसे सता रहा हो।

अनिका ने अपना निचला होंठ कस कर दबा लिया जैसे अपने कराहने की आवाज़ को रोक रही हो जो उसे बाहर निकलने की धमकी दे रहे थे। अनिका की सांसे और तेज़ होने लगी, और भारी होने लगी, जैसे जैसे अभय की जीभ अनिका के कान से होते हुए उसकी गर्दन पर फिसलने लगी।

याद रखना की यह मॉन्स्टर है!

पर क्या तुम जानती हो की यह ऐसी हरकतें क्यों कर रहा है....

तुम पागल हो क्या? उसने तुम्हे शादी के लिए फोर्स किया था।

अनिका ने अपने जबड़े भींच दिए, वोह हार मानने को तैयार नही थी, वोह चाहती तोह यह थी की पलट का अभय के होंठों को अपने होठों में दबोच कर उसे बेइंतीह चूमने लगे। पर उसने अपनी पूरी ताकत और हिम्मत अपने आप को रोकने में लगा दी, ताकि उसे यह जाहिर न हो सके की वोह भी उसके लिए तड़पने लगी है। पर उसकी सांस एक बार में ही बाहर आ गई जब उसे अपनी पीठ पर गर्दन के नीचे अभय का झुकाव महसूस किया जी और झुकते ही जा रहा था।

"अभय..." अनिका के मुंह से पहली बार उसका नाम निकला था जो की उसने डायरेक्टली उसे पुकारा था। "हमे देर हो जायेगी मंदिर जाने में," अनिका ने अपनी लड़खड़ाती जबान को बड़ी मुश्किल से सय्यम रखते हुए कहा।

अभय के होंठ वहीं रुक गए और वोह सीधा हो गया। उसने उसके ब्लाउज के दोनो को एक साथ पकड़ा और धीरे से उसकी ज़िप लगा दी। अनिका को अभय की गरमाहट दूर जाति महसूस हुई। उसके घुटने अब उसका साथ नही दे रहे थे पर हिम्मत करके वोह पलटी और अभय को देखने लगी।
अभय की आंखें एकदम लाल नशीली लग रही थी और वोह उसे ही देख रहा था।
"पंद्रह मिनट," अभय ने सीधे दो टुक कहा और कमरे से बाहर निकल गया।

दस मिनट बाद, अनिका अभय के साथ उसकी एसयूवी में मंदिर जाने के लिए बैठ चुकी थी। उसे गाड़ी में उसके साथ कुछ अजीब सा एहसास महसूस हो रहा था। अनिका गाड़ी से बाहर खिड़की से देखने लगी, अभय की मजूदगी को नजरंदाज करने के लिए, उसे याद आ गया था जब वोह आखरी बार उसे साथ गाड़ी में बैठी थी। उस समय वोह उससे दूर भागने के लिए चलती गाड़ी से कूद जाना चाहती थी, वोह यहां रुकी थी तोह बस अपने परिवार की सुरक्षा के लिए।

हालांकि, इस समय, अभय की मौजूदगी अनिका को अपने अंदर कुछ अजीब एहसास दे रही थी, जिसके लिए वह तैयार नहीं थी। वोह कन्फ्यूज्ड हो चुकी थी। उसके दिमाग के एक हिस्सा हिंसा को सही मानने की कोशिश कर रहा था। सभी ने उससे कहा था की अगर अपने आप को सही से प्रोटेक्ट करना है तो वायलेंस को ही अपनाना पड़ता है। इस सभ्य देश में, वायलेंस को सही नही माना है अगर अपने आप को प्रोटेक्ट करने की बात आती है तो भी।

पर यह उस तरह का सभ्य देश नही है। यहां पर लोग अपने कानून खुद बनाते हैं और उन्ही को फॉलो भी करते हैं। तोह हो सकता है यहां यह उचित हो सके।

अनिका ने अपना सिर झटका ताकि यह सब विचार उसके दिमाग से निकले। अनिका कुछ नही कर सकती थी, उसने देखा था पूरा घर और उस घर के लोग, बल्कि पूरा एस्टेट, अभय सिंघम की रिस्पेक्ट करता था और उसकी इच्छा को भी उसकी आज्ञा मानते थे। वोह किसी शासक से न ज्यादा था और न कम।

पर ऐसा क्या हुआ की एक पढ़ा लिखा इंसान एक क्रूर शासक में बदल गया?

"क्लिनिक के सेटअप का काम कैसा चल रहा है?" अभय ने पूछा और अनिका अचानक आवाज़ से उछल गई।

अनिका अभय की तरफ पलटी, वोह यह उम्मीद कर रही थी अब अभय उससे चिढ़ेगा या चिल्लाएगा उसके इस तरह फिर से उछलने से। पर अभय ने ऐसा कुछ नही किया वोह बस एक जैसी नज़रों से उसे देखे जा रहा था।

अनिका ने अपना गला साफ किया जो की हमेशा ही अभय की मौजूदगी से फंस जाता था।

"मुझे और दवाइयों की जरूरत है। मुझे कंप्यूटर का भी एक्सेस चाहिए वीडियो सेटअप के साथ ताकी में लोगों के इलाज के लिया डॉक्टर्स को ऑनलाइन बुला सकूं। स्पेशलाइज डॉक्टर्स को।"

अभय अनिका को ऐसे ही ध्यान से देखता रहा मानो करीब से यह जानने की कोशिश कर रहा हो की क्या सच में वोह उसके लोगों की मदद करना चाहती है। वोह जनता था की उसके लोग प्रजापतियों से नफरत करते हैं और साथ उनके आस पास रहने वालों से भी।

"मैने क्लिक के लिए कंप्यूटर ऑर्डर कर दिया है," अभय ने जवाब दिया। फिर उसकी आंखें में एक चमक उठी। "क्या तुम अपने पर्सनल यूज के लिए भी एक कंप्यूटर चाहती हो? या फिर रोज़ मेरे कंप्यूटर को यूज करके खुश हो?" अभय ने पूछा।

अनिका तो दंग ही रह गई क्योंकि वोह हमेशा यह ध्यान रखती थी की वोह तभी कंप्यूटर छूती थी जब अभय घर पर नहीं होता था ताकी उसे देख न पाए।

"मैं... मैं बोर हो जाती थी तोह कुछ चाहिए था करने के लिए।" अनिका शर्मिंदा हो रही थी और अभय अभी भी उसे हल्के आनंद से लगातार देखे जा रहा था।

"तुम मेरा इस्तेमाल कर सकती हो। पर तुम्हारे लिए आसान होगा अगर तुम अपना कंप्यूटर इस्तेमाल करो।"

"थैंक यू।"

थोड़ी देर फिर शांति छा गई, जिससे अनिका अभय से अतिसवधान हो गई।

अनिका के गाल शर्म से लाल हो गए जब उसे एक घंटे पहले का अभय के होंठों का स्पर्श याद आया और उसकी तेज़ गर्म सांसे अपनी पीठ पर।

उसका एक मन बहुत कर रहा था की पलट जाऊं और यह देखने के लिए अभय के सॉफ्ट और मजबूत होंठ जब उसके सीने को छुएंगे तो कैसा लगेगा। और यह भी जानने के लिए की अगर वोह इससे आगे बढ़ेगा तोह कैसा महसूस होगा।

अनिका ने धीरे से अपने बांह को रगड़ना शुरू किया तकिए सब सोच कर जो रोंगटे उसके खड़े हो गए थे वोह अभय को दिख ना सके। उसे कोशिश करनी ही पड़ेगी गाड़ी में स्थिर बैठने की और इसकी भी वोह अभय की ओर आकर्षित ना हो।

उसने राहत की सांस ली जब उसे भीड़ से भरा एक मंदिर दिखाई पड़ने लगा।

अनिका ने अगले दो घंटे उस समारोह में कई सारे रस्में निभाईं। उसने महसूस किया था की काफी सारे लोगों की नज़रे उसी पर है।
सिंघम के लोग यह आंकलन लगाने की कोशिश कर रहे थे की यह सच में सिंघम की बहु बनने के लायक है या नही। हैरानी की बात यह थी की, इस बात से अपमानित महसूस होने की बजाय, अनिका उन सबकी मनोस्तीथी समझ रही थी।

अभय उसके साथ ही बैठा हुआ था, पर दोनो आपस ने बात नही कर रहें थे। वोह दोनो बस महा पुजारी जी आज्ञा का पालन करते जा रहें थे। पुजारी जी उनसे काफी रस्में करवा रहें थे। हर बार दोनो के हाथ एक दूसरे से टकरा जाते या फिर रस्मों में ही अभय उसके हाथ को हल्के से छूता, अनिका के अंदर एक सरसराहट पैदा हो जाती, उसे वोह पल याद आ जाता जो उन दोनो के बीच मंदिर आने से पहले हुआ था।

"अब खड़े हो जाइए और भगवान का आर्शीवाद लीजिए," पुजारी जी ने दोनो से कहा ताकी समारोह का समापन कर सके।

अनिका इतनी धार्मिक लड़की नही थी लेकिन उसकी मॉम थी। जब अनिका छोटी थी, तभी से उसकी मॉम उसे और मायरा को हर महीने मंदिर ले जाया करती थी। वोह वहां पर एक्चुअली में प्राथना करने बजाय वहां औरा और शांति एंजॉय करने जाति थी।
वोह अपनी मॉम और बहन को बहुत मिस कर रही थी। भले ही वोह अठारह वर्ष की उम्र से वोह अपने बचपन वाले घर में नही रह रही थी, पर वोह हमेशा ही उनके करीब रही थी और हमेशा हो वोह उनकी बातें किया करती थी।

मंदिर से अब लोग जाने लगे थे। अनिका चुपचाप अभय का इंतजार कर रही थी क्योंकि वोह किसी से बात कर रहा था। अनिका ने नोटिस किया था की वोह लोग अभय के निर्देशों का बिना कोई सवाल किए सुन रहे थे। वोह जानती थी की वोह सभी अभय पर भरोसा करते हैं। वोह भरोसा करते हैं सिर्फ अपनी जिंदगी के लिए ही नही, बल्कि अपने परिवार की जिंदगी के लिए भी। एक डॉक्टर होने के नाते, अनिका समझ रही थी की कितनी बड़ी जिम्मेदारियों का भर है अभय के कंधो पर।

अभय ने जब अपनी बात पूरी कर ली तोह वोह अनिका की तरफ वापिस आया। जब उसने देखा की अनिका मंदिर के मुख द्वार पर उसका इंतजार कर रही है तोह उसके चेहरे पर एक अजीब हैरानी वाले भाव आ गए।

"तैयार ही?" अभय ने पूछा।

"हां।" अनिका ने जवाब दिया।

अभय ने अनिका की कोहनी पकड़ी और उसे गाड़ी की तरफ ले जाने लगा। अनिका पीछे की सीट पर बैठ गई और खिड़की से बाहर देखने लगी।

"क्या हुआ?" अभय ने पूछा, उसने अनिका का मूड भांप लिया था जो कुछ उतरा हुआ था।

"कुछ नही," अनिका ने जवाब दिया। "बस मॉम, डैड और सिस्टर की बहुत याद आ रही थी।"

कुछ पल शांति छा गई।

"वोह तुमसे कभी भी मिलने आ सकते हैं। बस मुझे कुछ दिन पहले ही बता देना ताकि में समुचित सिक्योरिटी का इंतजाम कर सकूं।"

अनिका अभय के इस प्रस्ताव से हैरान रह गई। वोह अभय की तरफ देखने लगी। "थैंक यू," अनिका ने फुसफुसाते हुए कहा।

अभय ने सिर हिलाया और फिर अपने फोन में कुछ चेक करने लग गया।

कुछ देर बाद, वोह दोनो एक जगह पहुँचेे जो देखने में हॉस्पिटल लग रहा था। और बिल्डिंग के बाहर एक एंबुलेंस भी खड़ी थी।

उनकी गाड़ी मैने एंट्रेंस के बाहर कुछ कदमों की दूरी पर रुकी।

"आओ," अनिका ने अभय की सॉफ्ट आवाज़ सुनी जो की उसे ऑर्डर देकर गाड़ी से उतर रहा था। उत्सुकता के साथ अनिका भी गाड़ी से उतरी और अभय के पीछे चलने लगी।

वोह सिक्योरिटी से गुजरते हुए आगे बढ़े और फिर एक साफ पॉलिश्ड कॉरिडोर से। अभय इंटेंशियली बिल्डिंग की बैक साइड जा रहा था। वोह एक कमरे के बाहर आ कर रुका और फिर उसका लॉक खोला। वोह कमरा एक तरह का स्टोरेज रूम था जिसमे कई सारे बॉक्सेस रखे हुए थे।

"हॉस्पिटल में प्रॉपर फार्मेसी सेट अप के लिए मैं एक सूटेबल इंसान नही खोज पाया हूं," अभय ने अनिका की तरफ देखते हुए बिना किसी एक्सप्रेशन के कहा। "जो भी समान तुम्हे चाहिए उठा लो यहां से। अगर इसके अलावा भी कुछ है तोह उसकी एक लिस्ट बना कर मुझे दे देना, मैं किसी से कह कर बाहर से मंगवा दूंगा।"

अनिका ने हां में सिर हिला दिया। अगले कुछ मिनट्स तक अनिका ने वोह सारा सामान यहां से उठा कर एक बॉक्स में रख लिया जिसकी उसे लोगों की छोटी मोटी बीमारियों और चोटों को ठीक करने के लिए जरूरत पड़ती।

"हो गया," अनिका ने कहा। उसने एक बॉक्स में सभी जरूरत का सामान रख लिया था।
अभय उसका चुपचाप इंतजार कर रहा था, शायद गुस्से में लग रहा था या उदास था किस बात से पता नही। अनिका जानती थी की अभय के चेहरे के भाव ज्यादा तर ऐसे ही रहते हैं पर इस बार कुछ अलग था। जिस तरह से वोह बॉक्सेस को स्कैन कर रहा था, अनिका को लगने लगा था की वोह किसी बात से फ्रस्ट्रेट है।

"क्या यह हॉस्पिटल पहले चलता था?" अनिका ने पूछा।

अभय चुप रहा, और फिर अनिका के हाथ में उस बड़े से बॉक्स जिसमे दवाइयां, इंजेक्शंस और मेडिकल का कुछ सामान था, उसे देखने लगा।
"हां। बीस साल पहले तक यह यहां का बेस्ट हॉस्पिटल था।"

"फिर क्या हुआ?" अनिका ने प्यार से पूछा।

"उसके बाद दंगे शुरू हो गए।" अभय ने जवाब दिया। "कोई भी डॉक्टर, और नर्सेज अपनी और अपने परिवार की जान खतरे में नही डालना चाहते थे।

जिस तरह से अभय उसे बता रहा था, साफ लग रहा था की वोह बहुत हताश और बेबस है। यह अजीब बात थी, लेकिन इस वक्त अनिका को लग रहा था की वोह उसे कंफर्ट महसूस कराए।

वोही तोह वजह है जिसकी वजह से उसकी बुआ नीलांबरी उसकी जिंदगी को कंट्रोल कर रही थी। वोह उसका भी जिम्मेदार होगा अगर उसे सारी जिंदगी यहां बंधी बना कर रखा जाए, ऐसे भविष्य के लिए जिसका अनुमान भी नही लगाया जा सकता हो। पर इस वक्त, उसे अपने सामने खड़े उस इंसान से सहानभूति हो रही थी।

अभय यह लड़ाई झड़गा, यह हिंसा खतम करना चाहता था। वोह अपने लोगों की समृद्धि चाहता था। उसने अपने कई दिन और ज्यादातर रातें उस काम की हिफाज़त करने में काटी थी जो उसने अपने लोगों के लिए किया था क्योंकि दुश्मन उसे अब भी बर्बाद करना चाहते थे।

अनिका ने एक गहरी सांस ली, वोह उस आवाज़ को अपने अंदर दबाना चाहती थी जो उसके अंदर से निकलने को बेताब थी की— वोह अभय के बारे में और जानना चाहती है।
"अभी के लिए मुझे जो चाहिए मैने वोह सब ले लिया है।"

अभय ने रूखेपन से अपना सिर हिला दिया और अनिका के हाथ से वोह बॉक्स ले लिया। अपनी कार की तरफ वापिस जाते हुए अनिका ने नोटिस किया की अब भी यह हॉस्पिटल काफी साफ सुथरा और सजा हुआ है, और इसकी मेंटेनेंस पर भी लगातार ध्यान दिया जा रहा है। कहीं पर भी कोई मकड़ी के जाले और टूट फूट नही थी। शायद इस उम्मीद से की इसे फिर एक बार चालू किया जाए, यहां के लोग इसकी अच्छे से देखभाल कर रहें हैं।

अनिका एकदम चलते चलते रुक गई क्योंकि उसका ध्यान एक बड़ी सी पेंटिंग की ओर चला गया जो एग्जिट डोर की तरफ टंगी थी।

"क्या यह आपकी मां हैं?" अनिका ने पूछा। वोह तस्वीर एक सिंपल सी खूबसूरत औरत की थी जिसके चेहरे पर बहुत ही प्यारी और सज्जनतापूर्ण मुस्कुराहट थी।

अभय का शरीर मानो अकड़ गया यह सुन कर। "हां, यह मेरी मां थी," अभय ने जवाब दिया। वोह अनिका के आगे आ कर रुक गया था, उसकी पीठ अनिका की तरफ थी और नज़रे अपनी मां की तस्वीर की ओर।

उस तस्वीर को देख कर अनिका का मन कुछ उदास सा हो गया। वोह जानती थी की अरुंधती सिंघम बहुत पसंद की जाने वाली महिला थी और सिंघम एस्टेट के हर एक व्यक्ति उन्हे श्रद्धा की नज़रों से देखते थे। अनिका ने अरुंधती सिंघम के कई कहानी और किस्से सुने थे, मानो अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे वोह उसे जानती ही हो।

"यह बहुत खूबसूरत हैं........अंदर से भी और बाहर से भी।" अनिका ने प्यार से कहा। अनिका ने अभय को गहरी सांस लेते सुना। वोह श्योर नही थी की अब अभय उससे गुस्सा है या नही क्योंकि उसने उसे वार्न किया था की उसकी मां के बारे में कोई बात नही करनी या फिर उसने कुछ सुना है नही या अनसुना कर दिया।

"हां वोह बहुत ही खूबसूरत थी," अभय ने धीरे से कहा। उसकी टोन से उसके एहसासों का कुछ पता नही चल रहा था।

अनिका अब धीरे धीरे उस आदमी को समझने लगी थी जो उसका पति है। वोह यह जान गई थी की अभय भी कभी कभी दुखी होता है, उदास होता है अपनी मां को याद कर के, पर वोह अपने जज़्बात उससे जाहिर नही करता था जैसा की वोह उम्मीद करती थी।

"चलो अब चलते हैं, अंधेरा हो चला है।" अभय ने गाड़ी की तरफ अपना रुख करते हुए कहा।

अनिका अभय के साथ उसकी बगल वाली सीट पर बैठ गई, और उस की ओर देखने लगी। हमेशा की तरह अभय का चेहरे पर अस्पष्ट भाव थे। और अभय गाड़ी स्टार्ट होते ही बस सामने की ओर देखे जा रहा था।

अभय के प्रति अनिका के मन में मिक्स्ड फीलिंग थी जिस वजह से वह और कंफ्यूज हो गई। एक तरफ वह है जानती थी कि उसे किसी भी हाल में अपनी फैमिली को बचाना है और दूसरी तरफ वोह बिल्कुल भी खुश नहीं थी की उसे वापिस सैन फ्रांसिस्को जाना होगा।

इसके बदले वोह उस आदमी के बारे में और जानना चाहती थी जो उसका हसबैंड था। इन फैक्ट जिन परिस्थितियों में वोह दोनो इस रिश्ते में जुड़े थे वोह कोई अदर्शपूर्ण वजह नही थी। उसने महसूस किया की उसे अभय को और जानने की जरूरत है।

लेकिन क्यों? क्या यह उसकी लालसा है?







कहानी अभी जारी है...
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