Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 11 in Hindi Fiction Stories by Poonam Sharma books and stories PDF | Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 11

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Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 11

पीछे से टीवी चलने की आवाज़ आ रही थी।

एक मिनट, पर इस कमरे में तोह कोई टीवी नही है।

अभी एक हफ्ता ही बीता था अनिका को सिंघम एस्टेट में आए हुए, पर ऐसा लगता था जैसे सदियां बीत गईं हो। इस एक हफ्ते में अनिका इस कमरे की हर एक चीज से परिचित हो चुकी थी। जबकि ओरिजनल बिल्डिंग सौ साल से भी ज्यादा पुरानी थी पर अंदर का इंटीरियर सब मॉडर्न ज़माने का था। कम से कम उसका बेडरूम तोह ऐसा लगता था की अभी कुछ समय पहले ही रेनोवेट हुआ था। उसका कमरा बहुत बड़ा था। उसमे हर चीज़ के लिए जगह थी। और जब अभय अपनी मॉर्निंग रेगुलर एक्टिविटीज करता, तब भी काफी जगह बचती अनिका के लिए अभय से दूरी बनाने के लिए।
अनिका ने हल्की से अपनी आंखें खोली और देखा वोह आदमी सामने डेस्क पर बैठा था और कान में हेड फोन्स लगा रखे थे। वोह अपने टेलीफोन कन्वर्सेशन में बहुत ही ज्यादा बिज़ी हो रखा था। ना उसने ध्यान दिया और ना उसे पता चला की कब अनिका बैड से उठ कर उसके दाहिने ओर से निकल कर बाथरूम चली गई थी। अनिका को उसकी कॉल कोई ऑर्डनेरी कॉल नही लग रही थी। क्योंकि फॉर अ चेंज उसने आज उसकी लंबी बात चीत सुनी थी। उसने सुना था पहले अभय को रात को फोन पर बात करते हुए, लेकिन सिर्फ एक या दो शब्दों में उसकी बात पूरी हो जाती थी जैसे वोह किसी को या ऑर्डर दे रहा हो या धमका रहा हो।
वोह उसेकी गहरी आवाज़ बाथरूम के अंदर से भी सुन सकती थी जो की ब्रिटिश एक्सेंट में बात कर रहा था। उसकी भाषा बिलकुल प्रवाहशील थी।
क्या इन्होंने खुद ही यह भाषा सीखी है विडियोज देख कर या किताबे पढ़ कर जो इनके कमरे में मैने देखी थी? या फिर शायद किसी ब्रिटिश ट्यूटर से सीखा हो।
बाथरूम के दरवाज़े के नज़दीक आ कर अनिका बाहर हो रही बातें सुन ने लगी। यह किसी बिजनेस की बातें हो रही थी, और ऑब्वियसली अभय का लहज़ा अधिकारात्मक था। वोह और नज़दीक हो कर सुनने लगी क्योंकि अब उसे उत्सुकता होने लगी थी उनकी बातों से। ऐसा लग रहा था की अभय किसी एग्रीकल्चरल प्रोसेस की बात कर रहा था। अनिका के कान खड़े हो गए जब उसने कुछ जानी पहचाने शब्द सुने। वोह प्राकृतिक उत्पाद की बात कर रहा था जो उसने प्लांट किए थे। कुछ पल बाद अनिका को गिल्ट महसूस होने लगा उसकी जासूसी करने के लिए। पर अगले ही पल उसने यह ख्याल अपने दिमाग से झटक दिया। क्योंकि सवाल उसके और उसके परिवार के जिंदा रहने का था। शायद कोई बात उसके काम की हो। उसे तोह यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह एक हफ्ते से इस कमरे में कैद है। हर दिन जब भी अभय उसे कमरे में अकेला छोड़कर जाता था तो अनिका मजबूरन बहुत कोशिश करती थी कि वह कमरे से बाहर ना जाए।

एक जोर दार बाथरूम के दरवाज़े के बाहर से झटके से अनिका अपने खयालों से बाहर आ गई। वोह बाथरूम के फर्श पर लगभग गिर ही गई थी जब अचानक से दरवाज़ा खुला। उसे थक्का तो लगा लेकिन काउंटर टॉप के किनारे को उसने समय पर पकड़ लिया था। वोह अभय को देखते ही सिकुड़ सी गई।

"तुम क्या कर रहे हो?" अभय ने आंखें छोटी छोटी करते हुए पूछा।

अनिका का दिमाग सुन्न पड़ गया। उसे समझ नही आ रहा था की वोह क्या जवाब दे। "वोह..... मैं.... मैं....."

अभय अधीरता से उसके जवाब का इंतजार करने लगा। और अभय के मुंह सिकुड़े हुए चेहरे को देख कर अनिका और ज्यादा घबराने लगी।

"क्या हुआ है तुमको?" अभय ने फिर घिन्नता से पूछा। "तुम सारा दिन कमरे में ही क्यों छुपी रहती हो? सब जगह अफ़वाह फैली हुई है और प्रजापतियों में भी की मैने शायद तुम्हारा शादी की रात ही मर्डर कर दिया है।"

अनिका ने जैसे ही मर्डर शब्द सुना उसके पैर कांपने लगे। "प....पर आपने ही तोह कहा था की कमरे में ही रहना।"

अभय की गहरी आंखे और गहरी हो गई। "कब?"

"शादी की रात।"

अभय कुछ पल ऐसे ही खड़ा रहा और फिर अपना सिर झटक दिया। "मेरे पास इस सबके लिए फालतू समय नहीं है। कमरे से बाहर निकलो और जो करना है वोह करो, लेकिन बिना वजह नही।"

अनिका की दिल जोरों से धड़क उठा, और उसने अपना सिर हिला दिया। वोह सीधी खड़ी हुई और देखने लगी की बीना अभय को टच किए वोह बाथरूम से कैसे बाहर निकले। कुछ पल अभय ने अनिका को घूर कर देखा, फिर उसको ऊपर से नीचे तक देखने लगा, जैसे वोह कुछ सोच रहा हो अपने अगले मूव को लेकर। अनिका ने अपनी सांसे थामी और इंतजार करने लगी की शायद अभय उसके साथ अभी कुछ करेगा जैसे उसपर झपटा मारेगा या पकड़ लेगा। पर अभय ने इन दोनो में से कुछ नही किया। घृणा से उसकी ओर देखते हुए अभय पलटा और एक्सरसाइज एरिया की तरफ चला गया।
अगले ही पल अनिका को पंचिंग बैग पर ज़ोर से ज़ोर पंच मारने की आवाज़ आने लगी।

«»«»«»«»

जल्दी से शावर ले कर अनिका ने आज सेमी—ट्रेडिशनल ड्रेस पहन ली, ट्यूनिक और लेगिंग। वोह आज अपनी फर्स्ट आउटिंग के लिए तैयार थी। उसके दिमाग में हजारों सवाल थे।

और कौन कौन रहता है इस घर में?

इनके रिलेटिव के नाम पर शायद बस इनका भाई ही है?

पर शादी की रात जब वोह सिंघम हाउस आई थी तोह बहुत सारे लोग दरवाज़े पर स्वागत के लिए खड़े थे, वोह सब कौन थे?

क्या कोई एक इंसान होगा इस घर में जो उसकी मदद करे यहां से भागने में?

अनिका ने याद कीया की एक रात को अभय अपने भाई से फोन पर बात कर रहा था। वोह उससे वापिस शहर जाने को कह रहा था। यह क्लियर नही था की उसका भाई क्यों यहां रुकना चाहता था और वापिस नही जाना चाहता था लेकिन अभय उसे यहां से तुरंत भेजना जरूर चाहता था।

अपने अंदर हिम्मत बटोर कर और गहरी सांस ले कर अनिक ने अपने बेडरूम का दरवाज़ा खोल दिया और कदम आगे बढ़ा दिए। बस एक ही बार वोह सिंघम हाउस में घूमी थी वो शादी की रात थी, जब उसने अभय और देव की बातें सुनी थी। और अब उसे समझ नही आ रहा था की कहां जाए।
जैसे ही वोह वापिस मुड़ कर दरवाज़ा बंद करने के लिए हाथ बढ़ाया तभी उसने देखा की उसके कमरे में ही छोटे से डाइनिंग टेबल पर उसके लिए ब्रेकफास्ट रखा हुआ है। वोह वापिस अंदर आई और ब्रेकफास्ट को ट्रे में रखा और उसे लेकर बाहर आ गई। एक गहरी सांस भी इस वक्त कुछ नही कर पा रही थी, लेकिन उसको आजादी के लिए एक कदम तोह बढ़ाना ही था। वोह घर के सबसे ऊपर के हिस्से में थी। एक गोल गेरेधार कॉरिडोर था जिससे नीचे सीढियां जाती थी। वोह रेलिंग के सहारे, रोशनी की दिशा में, सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी। रोशनदान पर बहुत बड़ी और सुंदर ऑयल पेंटिंग बनी हुई थी। वोही ही काफी था घर का इंटीरियर और सुंदर बनाने के लिए। उसने नीचे की ओर देखा तोह आखरी सीढ़ी के पास दो आदमी खड़े थे आमने सामने। क्या वोह उसे गार्ड कर रहे थे की वोह कहीं भाग ना पाए? अगर वोह जानते हो की उसके पास भागने अलावा कोई और ऑप्शन नहीं है। लेकिन उसकी बुआ उसकी फैमिली को छोड़ेगी नही अगर उसे पता चल गया की वोह भाग गई है। कुछ और भी लोग थे सेकंड फ्लोर पर जो मार्बल के फर्श को साफ करने और चमकाने का काम कर रहे थे। कुछ इधर उधर जा रहे थे अपने हाथ में कुछ लिए। अनिका सबकी और एक नजर देख कर नीचे जाने लगी। उसने सब की तरफ स्माइल पास की जिसने उसकी तरफ देखा। सभी उसकी तरफ देख तो रहे थे लेकिन किसी ने उसे वापिस स्माइल नही पास की। अनिका यह देख कर आगे बढ़ गई और नीचे उतर गई।

सबने जब उसकी ओर देखा उसे नीचे आते हुए तो उसे अजीब नज़रों से देखने लगे।

"किचन किस तरफ है?" अनिका ने एक आदमी से पूछा, उसकी आवाज़ बहुत धीरे ही निकल रही थी।

एक आदमी आगे आ कर उस से ट्रे लेने लगा लेकिन उसने सिर हिला कर मना कर दिया। "मैं ले जाऊंगी। किचन?"

"दाहिने ओर से सातवा दरवाज़ा रसोई का है।" उस आदमी ने उस तरफ इशारा करते हुए कहा।

अनिका कॉरिडोर से होते हुए उस तरफ बढ़ने लगी। जो भी लोग इसके आस पास से गुजर रहे थे वोह अजीब अजीब चेहरे बना कर जाने लगे।

क्या होगा अगर किसी ने भी मुझे पसंद नही किया और मेरी मदद नहीं की?

फिर से घबराहट उस पर हावी हो गई और उसके हाथ पैर फूलने लगे। हथेलियों में पसीना बन गया की किचन में पहुंचने से पहले ही कहीं वोह ट्रे गिरा ही न दे।

वोह एक बड़े से कमरे में पहुंची जहां बारह तेरह औरते काम कर रही थी। कोई कुछ काट रहा था, कोई खाने की तैयारी कर रहा था, बल्कि बहुत सारे स्टोव थे जिस पर लगभग सभी बरनर पर बर्तन चढ़ा हुआ था। उनमें से अनिका ने उसे पहचान लिया जो रोज़ उसके कमरे में खाना देने आती थी। जब उन सभी औरतों की नजर अनिका पर गई, तोह सभी चुप हो गईं, कोई एक शब्द नही बोला। हवा में एक दम से गंभीर माहौल हो गया। अपने लिए घृणा जैसे भाव सबके चेहरे पर देख कर उसका मन तोह कर रहा था की यहां से भाग जाए। पर उसने अपने मन लड़ते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेरी और आगे बढ़ी। उसके कदमों की आवाज़ उस बड़े से किचन में गूंजने लगी। धीरे से उसने ट्रे को ग्रेनाइट के काउंटर पर रख दिया और फिर पलट कर उस औरत की तरफ देखा जो रोज़ खाना ले कर उसके कमरे में आती थी।
अनिका जबरदस्ती मुस्कुराई। "थैंक यू, मेरे कमरे में रोज खाना लाने के लिए। अब आपको कमरे में खाना देने की जरूरत नहीं है। मैं खुद बाहर आ कर सबको ज्वाइन कर लूंगी।"

तभी जो तनावपूर्ण माहौल था वोह और गहरा गया। अनिका को समझ ही नही आ रहा था की सभी उसको ऐसे ठंडे और विरोधी भाव से क्यों देख रहे थे।

ऐसा उसने क्या किया था की सब उस से गुस्सा हो गए थे।?

फाइनली, एक औरत बोली। वोह नजदीक आई और व्यापक उपहसपूर्ण नज़रों से देखते हुए बोली, "देखो तो, आखिर कार अपने कमरे से निकलने का फैसला कर लिया!"

अनिका असहजता से मुस्कुराई, उसे समझ नही आया की क्या कहे। वोह कैसे बताए उन्हे की वोह अपनी मर्जी से कमरे में नही बैठी थी। अगर वोह कुछ कहेगी तोह सब झूठ ही समझेंगे। उसने याद किया की शादी की अगली सुबह जो उसके पति ने उस से कहा था वोह उसने लगता है गलत समझ लिया था।

अनिका ने अपना गला साफ करते हुए कहा, "मैं बस यहां यह देखने आई थी की मेरी अगर कोई जरूरत हो तोह मैं मदद कर सकती हूं।"

"तुम्हे क्या लगता है की तुम इस घर पर कब्जा कर लोगी, और हम पर राज़ करोगी, बस इसलिए क्योंकि तुमने अभय से शादी कर ली है?" उस औरत ने गुस्से से कहा।

अनिक थोड़ा से घबरा गई इस तरह के बिन बताए अटैक के। "मैं बस यहां बर्तन रखने आई थी और यहां के लोगों से मिलना चाहती थी।" अनिका ने आराम से धीरे से कहा।

"ज्यादा बनो मत। तुम अभी भी एक प्रजापति हो। अभय ने तुमसे सिर्फ अपने लोगों के लिए शादी की है!"

अनिका भौंहे सिकोड़ कर उस औरत के कहे हुए शब्दो को समझने की कोशिश करने लगी।

"इस तरह का ढोंग मत करो की जैसे तुम्हे कुछ पता ही नही! तुम हमे बेवकूफ नही बना सकती। हम जानते हैं की प्रजापति कैसे हैं, और तुम भी उनमें से ही एक हो।" उस औरत ने गुस्से से कहा।

अनिका उस औरत के ऊपर वापिस चिल्लाना चाहती थी की उसे नही पता की सिंघम और प्रजापति के बीच में क्या परेशानी है। पर उसने अपने आप पर काबू पा लिया क्योंकि वोह यहां किसी से दुश्मनी करने नही आई थी बल्कि वोह तोह दोस्ती करना चाहती थी।

हालांकि, वहां खड़ी सभी औरतें यह चाह रही थी की अनिक या तो कष्ट सहती रहे यह यूहीं मर जाए।

"मैं तोह बस घर के सभी लोगों से मिलना चाहती थी।" अनिका ने उन औरतों के नफरत भरे चेहरों को देखते हुए दुबारा कहा।

"अपनी यह चिकनी चुपड़ी बातों से हम बेवकूफ मत बनाओ। हम जानते हैं की प्रजापति क्या हैं और क्या कर सकते हैं!" उस औरत के अंदर बहुत ही ज्यादा गुस्सा भरा हुआ था और ऐसा लग रहा थे की वोह बहुत आहात हुई हो।

अनिका जानती थी की एक रात में वोह लोगों का अपने प्रति नजरिया नही बदल सकती थी। इसलिए वोह अपना समय और एनर्जी नही बर्बाद करना चाहती, सबको यह समझाने में की वोह यहां किसी को किसी भी तरह का नुकसान नही पहुंचाएगी।
उसके कंधे हार की संभावना से झुक गए और वोह तेज़ कदमों से चलती हुई किचन से बाहर चली गई। अनिका मुख्य द्वार की ओर बढ़ गई, यह सोच के की शायद कोई उसे बाहर मिल जाए, जो उससे नफरत से नही बल्कि प्यार से बात करे।
जो औरत उस पर किचन में चिल्ला रही थी, वोही औरत अब अनिका के पीछे पीछे बाहर लिविंग एरिया तक आ गई थी।

"तुम कहां जाने का सोच रही हो? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई घर में इधर उधर ऐसे ही घूमने की जैसे यह तुम्हार अपना घर हो?"

"मैं बस बाहर देखना चाहती थी।"

"यह सिंघम मेंशन तुम्हारा घर नहीं है। यह प्रजापति यों का नहीं है!"

"यह उन्ही का घर है। अब वोह सिंघम है।" एक गहरी कड़कड़ाती आवाज़ ने उन दोनो को बीच में रोक दिया, और अनिका को फ्रिज कर दिया। यह आवाज़ काफी हद तक अभय सिंघम से मिलती थी, पर उसको पलट कर देखने की जरूरत नहीं थी की वोह अभय सिंघम नही है। क्योंकि उसने पिछले एक हफ्ते में अभय को करीब से देखा था, उस लग्ज़री कैद में, सोने की एक्टिंग करते हुए वोह उसकी आवाज़ सुनती थी।

"देव..... मैं तोह बस......उसकी फैमिली की वजह से......" उस औरत की आवाज़ लड़खड़ाने लगी।

"तुम्हे थोड़ा सा भी अंदाजा है की अगर अभय क्या करेगा अगर उसको पता चला की तुम फैमिली और लड़ाई झगडे की बात कर रही हो?"

अनिका ने धीरे से पलट कर देखा। जो आदमी बोल रहा था वोह देव सिंघम था। उसने तोह उसे सिर्फ शादी के दिन ही देखा था और तब जब वोह शादी की रात को अपने कमरे से बाहर निकली और अभय और देव की बातें सुनी थी।

वोह औरत अभी भी बहस करने में लगी हुई थी, हार मानने को तैयार ही नहीं थी। "तुम जानते हो ना की अभय ने इससे शादी क्यूं की, देव! पर यह तोह ऐसे एक्टिंग कर रही है जैसे की बेचारी नई नवेली हमारी प्यारी दुल्हन हो ना की हमारी दुश्मन। यह इस घर पर, हम सब पर अपना अधिकार जाताने की कोशिश कर रही है। यह शायद प्रजापतियों की खुफिया जासूस हो जो यहां की सारी जानकारी वहां तक पहुँचा रही हो। और फिर वोह लोग हम पर अटैक कर हमे हमारे घर में ही मार....."

"मालिनी, एक और शब्द, वोह अभय नही होगा जो तुम्हे जान से मार देगा, बल्कि मैं ही तुम्हे जान से मार दूंगा।" देव की गुस्से भरी कड़कड़ाती आवाज़ में धमकी का लहज़ा था। जैसा की अनिका अभय से डरती थी, उसकी आवाज़ से डरती थी, देव से और उसकी दमदार आवाज़ से अनिका डरी नही बल्कि उसे तोह प्रोत्साहन मिलने लगा की क्या वोह उसकी मदद कर सकता है। क्या देव मेरा दोस्त बन सकता है?

मालिनी देव को दुखी पर डरी हुई नजरों से देख रही थी। उसने एक नज़र फिर से अनिका की तरफ नफ़रत भरी नजरों से देखा और फिर किचन की ओर चली गई।

"थैंक यू, देव।" अनिका को हल्का मुस्कुराते हुए कहा। वोह नही जानती थी की अब देव उससे क्या कहेगा, वोह उससे क्या उम्मीद करे।

तुरंत ही देव के चेहरे के भाव बदल गए। गुस्से और ठंडे भाव अब फ्रेंडली स्माइल में बदल गई। "मालिनी ने क्या कहा उस पर ज्यादा ध्यान मत दो। थोड़ा वक्त लगेगा हमारे लोगों को तुमसे मेल जोल बढ़ाने में।"

दे आर नॉट माय पीपल।

"इट्स ओके। आई अंडरस्टैंड।" अनिका ने कहा। हालांकि उसे पता ही नही था की सिंघम के लोग उस से इतनी नफरत क्यूं करते हैं।

"तुम धीरे धीरे सब समझ जाओगी, अनिका, पर यह जरूर ध्यान रखना की किसी की भी बत्तमीज़ी बर्दाश्त मत करना। अगर दुबारा इस तरह किसी ने भी तुमसे बात की तोह मुझे या अभय को जरूर बताना।"

अनिका का दिल जोरों से धड़क उठा, देव की बातें सुन कर। देव उसे लॉजिकल पर्सन लग रहा था जो की लोगों को समझता है और उनकी रिस्पेक्ट करता है। शायद यह उसकी मदद कर सकता है यहां से आजाद होने में।

"तुम कहीं बाहर जा रहे हो?" अनिका ने पूछा। उसने देखा की देव ने बिजनेस सूट पहना हुआ है। देव के कपड़े सिंघम घर के एंटीक इंटीरियर और वॉल डिज़ाइन से बिलकुल मैच नही कर रहे थे। नो नो....घर नही....मैंशन।

देव मुस्कुराया। "हां, मैं शहर वापिस वापिस जा रहा हूं। बॉस का ऑर्डर है।"

"बॉस?"

देव हँसने लगा। "कम से कम वोह तोह ज्यादा तर समय यही बरताव करता है की वोह मेरा बॉस है। मुझे पक्का यकीन है की अब तक आप भी समझ गए होंगे की वोह बॉसी टाइप ही है।

अनिका वापिस मुस्कुराई नही। वोह तोह सोच भी नही सकती थी अभय के सामने कुछ, वोह हमेशा ही उसे फोर्स करता था। उसकी अपनी सिचुएशन पर ना ही हँसी आ रही थी, ना ही मज़ेदार लग रहा था। उसे तोह नीलंबरी द्वारा गन प्वाइंट पर रख कर धमकाया गया था। हर दिन वोह अपनी परिवार के लिए चिंता करती थी और डरती थी की कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए। और हर रात वोह अपनी सलामती के लिए डरती थी। वोह डरती थी की कहीं उसका हसबैंड उसका रेप ना कर दे जो हमेशा ही उसे ऑर्डर देता रहता था, या घृणा की नज़रों से देखता था।

देव ने अनिका के एक्सप्रेशन देखे और अपना हाथ अपने बालों में फेरने लगा।
"मेरा भाई इतना भी बुरा नही है, अनिका। तुम उसके साथ जल्द ही यूज्ड टू हो जाओगी।" देव ने प्यार से कहा।

अनिका ने अपना सिर हिला दिया। "देव....इससे पहले की तुम जाओ। क्या तुम बता सकते हो की लाइब्रेरी कहां है?

देव फिर मुस्कुरा गया। "वाउ! एक और किताबी कीड़ा! अब तक मेरा भाई ही इकलौता था इस घर में।" देव खुशी से हंस पड़ा। "तुम्हे लाइब्रेरी वहीं मिलेगी जहां तुम्हारा सुइट है, उसी फ्लोर पर। मैं किसी को भेजता हूं जो तुम्हे रास्ता दिखा देगा।"

"थैंक यू।"

"प्लैजर इस ऑल माइन, अनिका।" देव ने कहा। "एंड वेलकम टू द सिंघम फैमिली। शायद अब मैं तुमसे कुछ हफ्तों बाद मिलूं। सो टेक केयर। और अगर किसी भी चीज़ की जरूरत लगे तो मुझे बेझिझक कॉल करना।"

देव के ऑफर को सुन कर अनिका के चेहरे पर सच्ची मुस्कान आ गई। हाथ हिला कर बाय कहते हुए देव मैंशन से बाहर चला गया।
कुछ पल बाद एक यूनिफॉर्म पहना इंसान अनिका के पास आया और उसे लाइब्रेरी की तरफ का रास्ता दिखाने लगा। अनिका ने धीरे से लाइब्रेरी में कदम रखा, और उसने देखा की लाइन से एक रो में बुक्स रखी हुई हैं लगभग फॉर्टी फीट ऊंची दीवार पर।

ओह शिट! मैं यहां बाकी की जर्नल कैसे खोजूँगी?

उसने लाइब्रेरी में तीन घंटा बीत दिए कैटलॉग को चेक करने में जिसमे यहां रखी हुई सभी बुक्स की लिस्ट थी। उस को हर हाल में वोह बाकी की जर्नल ढूंढने ही थे जो वोह एक हफ्ते से पढ़ रही थी। वोह जर्नल के बहुत ही सुंदर से औरत ने लिखा था जिसका नाम देवसेना था, जिसने सिंघम से शादी की थी।

देवसेना एक पढ़ी लिखी औरत थी, और उनकी जिंदगी बड़ी ही आकर्षक और प्रभावित थी। उनकी लिखी हुई पहली जर्नल में एक तिहाई हिस्सा, उनकी जिंदगी में घटी कहानियों पर ही था, जिसमे उनके बचपन के किस्से थे डिटेल में थे। देवसेना एक ऐसी लड़की थी जिसने पुरुष प्रधान अपने घर में एक स्थान हासिल किया था। उनके सेकंड जर्नल के आखरी हिस्से में उनकी शादी की तैयारियों के बारे में जिक्र था, उस इंसान से जिसे उन्होंने कभी देखा भी नहीं था।
अनिका समझ नही पा रही थी की देवसेना एक ऐसे इंसान के साथ शादी करने को क्यूं तैयार हो गई जिससे ना कभी मिली ना कभी देखा, बस परिवार के लिए। देवसेना ने अपने जर्नल में यह भी लिखा था की उसका होने वाला पति की समाज में यही छवि थी की वोह कितना क्रूर तरीके से न्याय करता था। अभिमन्यु सिंघम के बारे में पढ़ कर अनिका को और डर लगने लगा था। पर शायद किसी कारण से देवसेना ने अपनी पति की क्रूर हरकतों को इस तरह से लिखा था जैसे की वोह कोई गर्व करने जैसी बात हो। वोह जर्नल देवसेना और अभिमन्यु सिंघम की शादी से एक रात पहले ही खतम हो गई थी।
अभी अनिका बेसब्र हो रही थी आगे जानने के लिए। उसे अपनी सिचुएशन देवसेना की तरह ही लग रही थी। जैसे की दोनो ने हो किसी अजनबी से शादी की जो दूसरों की जिंदगी बड़ी ही बेदर्दी से छीन लेता था। पर दोनो की अपने अपने पति के प्रति फीलिंग्स अलग अलग थी।

कल मेरी शादी अभिमन्यु सिंघम से होगी। मैं आने वाली पीढ़ियों के लिए भूमि की समृद्धि को सुरक्षित रखने के लिए दिए गए अवसर से धन्य महसूस करती हूं। मैं उस आदमी के साथ में खड़ी होऊंगी जो सौ साल पुरानी परंपरा के माध्यम से मेरे भाग्य में आया है। हम सब मिलकर अपने लोगों की सेवा करेंगे और उनकी रक्षा करेंगे। मैं कल देवसेना सिंघम बन जाऊंगी।"

अनिका ने भी उत्साह और उत्सुकता महसूस की जो देवसेना ने अपनी शादी के वक्त महसूस किया था।

क्या देवसेना एक खुशहाल जिंदगी जी थी? या फिर उसे शादी के बाद ही अपने पति द्वारा मार दिया गया था?

अनिका बेसब्र हुई जा रही थी यह जानने के लिए की देवसेना ठीक तोह थी।













कहानी अभी जारी है...