आखिरकार, वो दिन भी आ गया, जिसका हम सब बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। रुस्तमने जंग की तैयारियों में रात दिन एक कर दिए थे। जंग की सारी भागदौड़ की डोर उसीके हाथमे थी। सभी लोग उसकी बात भी अच्छे से सुन रहे थे। उसका कहा हर लफ्ज़ सबलोग मानने को तैयार खड़े थे। उसके साथ मिलकर लड़ने के सपने देखते थे।
उस जंग केलिए रुस्तमके साथ भले ही छोटी फौज जा रही थी लेकिन वो तैयार थे। हर तरह से वो काबिल थे। तीन हजार से भी कम सैनिक चर्चासभा केलिए सुबह के साढे चार बजे जैसलमेर की तरफ चल पड़े थे।
उन लोगो को वो चर्चासभा शहर की नजदीक ही करनी थी। जैसलमेर के बाहरी हिस्से में अंग्रेजो की एक बड़ी फौज तैनात थी। वो लोग सारा खजाना ले जाने केलिए जो बन पड़े वो सारी तैयारियां कर रहे थे, जब की हमने खजाने को ले जाने के साथ साथ लड़ने की ओर युद्ध जितने की सारी तैयारियां कर रखी थी।
शहर में एक बड़े से चौक मे रुस्तम की बनाई चर्चासभा चल रही थी। सभी लोग एकदम ध्यानसे उसका प्रवचन सुनने का नाटक कर रहे थे। उनके हाथोमे खुदके बनाए हुए झंडे थे। कभी कभी उसी रास्ते से कोई कोई राजा के सैनिक बड़े से काफिले के साथ खजाना लेकर गुजरते। वो सारे सैनिक उनकी तरफ कभी कबार देखते और फिर आगे बढ़ जाते। सबकुछ एकदम ठीक से चल रहा था।
उधर जहा अंग्रेजो ने खजाना इकट्ठा करने केलिए जो जगह चुनी थी वो शहर से काफी दूर थी। वो शायद कोई बड़ा सा मैदान जैसा लग रहा था। राजाओं की मर्जी से जो खजाना उन्हें मिल रहा था, उसे कोई लूंटने की कोशिश क्यों करेगा। इसी खयालने उन्हें निश्चिंत कर दिया था। वो बेखौफ होकर जो खजाना मिल रहा था उसे एक जगह इकट्ठा कर रहे थे।
उसी जगह से थोड़ी दूर, शहर की ओर एक छोटे से पहाड़ के पीछे कुछ लोग इकट्ठा हुए थे। उनमें तन्मय, मणिशंकर और संतोष के साथ कुछ दलपती छुपछुपकर दूर खड़े अंग्रेज सैनिकों को और उनसे मिलने आते हुए राजाओं के सैनिकों को आते जाते देख रहे थे। वो लोग जहा छुप कर ये सब देख रहे थे वहा छोटे छोटे जंगली पेड़ उगे हुए थे जिस की वजह से वहा की गिचता बढ़ी हुई थी। इसीलिए अंग्रेज सैनिक या कोई और राजा के सैनिक उन्हें देख नही पाते थे।
तन्मय, जो एक तेईस साल का नौजवान था वो उधर झांक रहा था और वहा आने वाले सैनिकों को देखते हुए राजाओं और उनकी रियासतों की गिनती कर रहा था।
हमारे सारे जलंधर जहाज राजस्थानके रेगिस्तान में जैसलमेर की ओर आए हुए किनारे पर तैनात थे। यहां से हमारी सारी सेना कूच कर चुकी थी। हमे यह अंदाजा था की शायद शाम होने से पूर्व ही खजाने की लेनदेन खत्म हो जाएंगी। इसलिए हमने दोपहर को ही जहाज से कूच शुरू कर दी थी।
हमारे बहोत से दलपतियो के पास ऊंट थे। वो लोग ऊंट का सहारा लेकर आगे बढ़ रहे थे। पूछने पर वो कहते की जब हम युद्ध के मैदान पर पहुंचे तब हमारे पास लड़ने केलिए पूरी ताकत तो बचनी चाहिएना। शायद वो सही थे। मुझे और भद्रा को भी एक एक ऊंट दिए थे। हम कुछ जल्दी ही आगे बढ़ रहे थे।
जितना हो सके हम फिरंगियों के ठिकाने से दूर रहना चाहते थे और साथ साथ ही उतने नजदीक की जब रुस्तम और उसके साथी हमे आग जलाकर धुएं से इशारा करे तो हमे वो दिखाई दे। और उस इशारे के कुछ समय बाद ही हम वहा पहुंच सके।
उस वक्त शायद उन्नीस रियासते थी जिन्होंने मिलकर उन फिरंगियों को खजाना देने का फैसला लिया था ।
लावा(जयपुर) ।
मेवाड़(उदयपुर) ।
मेरवाड़ा(अजमेर) ।
जोधपुर ।
शाहपुरा ।
करौली ।
कोटा ।
सिरोही ।
टोंक ।
निमराना (अलवर) ।
डूंगरपुर ।
जैसलमेर ।
भरतपुर ।
धौलपुर ।
बीकानेर ।
कुशलगढ़(बांसवाड़ा) ।
किशनगढ़ ।
बूंदी ।
आबू ।
उन सभी रियासतों के सैनिक बारी बारी खजाने के बड़े बड़े हिस्से लेकर आ रहे थे और अंग्रेजो को खुशी खुशी देकर जा रहे थे।
जब आखरी कुछ बूंदी के रियासती सैनिक उन अंग्रेजो के साथ कुछ लेनदेन की बाते कर रहे थे तभी।
तन्मय, मणिशंकर और संतोषने दोडकर अपने साथियों को इत्तिला दी की अभी सही वक्त है हमला करने केलिए।
उसी वक्त रुस्तम के इशारे पर सभी साथियोने अपनी अपनी तलवार और धनुष के ऊपर लगाया हुआ कपड़ा हटाया और एक जगह इकट्ठा किया। तुरंत ही मणिशंकर ने उस पर तेल छिड़क कर आग लगा दी। कुछ देर में ही आग भभक उठी। कुछ लोगों ने अपने कपड़ों पर लपेटे हुए चर्चासभा के कपड़े भी हटा दिए और जलती हुई उस आग में फेंक दिए। थोड़ी ही देर में आग की ज्वालाएं ऊपर उठने लगी। उस आग का निकलता धुआं बहोत ही ऊपर जा रहा था।
दूर मैदान में खड़े कुछ अंग्रेज सिपाही अचानक ही चौंक गए। उन्हें समझ नही आ रहा था की आखिर इतना बड़ा धुआं कहां से और क्यों निकल रहा है? वो अपने ऊपरी अधिकारियों को ये बात बताने दौड़ पड़े। जब उनके बड़े अफसर इस धुएं के बारे में कुछ जान पाते इससे पहले ही उन्हें दूर शहर की ओर से अपने हथियारों के साथ आते हुए कुछ स्वातंत्र्य सेनानी दिखाई दिए।
अब वो लोग एकदम लड़खड़ा गए। कुछ देर तो उन्हे ये समझ नहीं आया कि क्या किया जाए? जब तक वो सम्हले तब तक रुस्तम अपने साथ तीन हजार सैनिकों को लेकर उनके बहोत करीब आ चुका था।
उस अंग्रेज अफसरने तुरंत ही अपने सिपाहियों को शूट एट साइट का ऑर्डर दे दिया। और वो खुद अपने साथ चारसो पांचसो सैनिक लिए उसे मिले हुए खजाने को बचाने में लग गया।
उधर अंग्रेज सिपाहियो को उनके सामने खड़े सैनिकों को मारने में ज्यादा वक्त नहीं लग रहा था। कुछ ही देर में वहा एकसाथ हजारों गोलियां चलने की आवाजे गूंजने लगी। उन बंदूकों की आवाज के साथ साथ उनके सामने खड़े उन सैनिकों की चीखे भी सुनाई दे रही थी।
उन्हें इस बात का फायदा मिल रहा था की वो दूर से ही गोली मारकर सामने वाले की हत्या कर सकते थे। लेकिन उनकी ये खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिक पाई।
रुस्तम की योजना के मुताबिक जो सैनिक धनुष बाण चलाने वाले थे वो कुछ पेड़ो के पीछे से या तो फिर वहा पड़े बड़े बड़े पत्थरों के पीछे से उन पर हमला करने लगे।
उन तीरों से कुछ अंग्रेज सिपाही मर रहे थे तो कुछ घायल हो रहे थे। उनकी तादात इस वक्त रुस्तम के सैनिकों से ज्यादा थी इसलिए उधर कही भी तीर चले कहीना कही तो कोई न कोई अंग्रेज सिपाही को जरूर लग जाता था। जबकी अंग्रेज सिपाहियों को निशाना लगा कर गोली चलानी पड़ती थी।
रुस्तम अपने साथ खड़े साथियों को लेकर एक बड़े से पत्थर के पीछे होता हुआ सीधा उन अंग्रेज सिपाहियो के बिलकुल सामने खड़ा हो गया। इससे पहले की सामने खड़ा वो अंग्रेज सिपाही गोली चला पाता, रुस्तम ने अपनी तलवार से बंदूक वाला एक हाथ कोहनी के ऊपर से काट दिया। उसके बाद बिलकुल भी देर ना करते हुए उस सिपाही का गला काट दिया। उसके पीछे पीछे बाकी के साथीयोने भी बारी बारी उन फिरंगी सैनिकों को मारना शुरू कर दिया। फिरभी वो इस बात का पूरा ध्यान रख रहे थे की उनके सामने खड़े सैनिक उन्हें गोली न मार पाए।
दस्तूर और राठौर इस वक्त उन अंग्रेज सिपाहियो पर मौत बनकर तुट पड़े थे। दस्तूर के दोनो हाथो में तलवारे थी। वो दोनो हाथोसे उन अंग्रेजो को बेदर्दी से मार रहा था। अचानक ही दूर खड़े एक अंग्रेज सिपाही ने दस्तूर की ओर निशाना लगाकर गोली चलाई। वो गोली कई अंग्रेज सिपाहियो के बीचमे से गुजरती हुई दस्तुरके दाएं कंधे पर जा कर लगी।
दस्तूर अचानक हुए इस हमले से गिरते गिरते बचा। फिर भी उसने अपने शरीर का सारा जोर इकट्ठा किया। खड़े खड़े उसने अपने बाएं हाथकी तलवार एकदम जोरसे फेंकी। वो तलवार इतनी जोर से फेंकी गई थी की अगर गोली मारने वाले उस अंग्रेज सिपाही के सामने अगर कोई और सिपाही न आता तो उसका सिर बिचमे से कट जाता। लेकिन उसके आगे खड़े एक दूसरे अंग्रेज सिपाही का आधा सिर कट गया।
लेकिन दस्तूर उसे कहा छोड़ने वाला था। वो दौड़ते हुए उसके पीछे भागने लगा। उसका गुस्सा देखकर वो अंग्रेज सिपाही उस हद तक डर गया की अपने हाथमें बंदूक होने के बावजूद, वो शहर की उल्टी दिशामे भागने लगा। उसे लगा की शायद उसे यहां से भागकर ही खुदको बचाया जा सकता है लेकिन जब वो आगे बढ़ा तो उसकी डर के मारे आंखे खुली की खुली ही रह गई।
उसकी आंखों के सामने एक विशाल सेना दौड़ते चली आ रही थी। उसी सेना में से उड़ता हुआ एक तीर उसकी आंख के आरपार चला गया। वो वही ढल पड़ा। एक ही पलमे उसने दम तोड दिया।
કહાનીમાં આગળ કેવા કેવા વળાંક આવશે?
ચોર કંઈ દુનિયામાં જઈ પહોંચશે?
પેલા બીજ શેના હતા?
નકશાના બધા ટુકડાઓ મળશે કે નહિ?
આવા સવાલોના જવાબ માટે વાંચતા રહો..
'ચોરનો ખજાનો'
Dr Dipak Kamejaliya
'શિલ્પી'