Sir--Mere Tauji (Part 2) in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | साहब--मेरे ताऊजी(पार्ट 2)

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साहब--मेरे ताऊजी(पार्ट 2)

ताऊजी को के एल शर्मा के नाम से पूरा बांदीकुई जानता था।उन दिनों ड्राइवर को अलग अलग स्टीम इंजन मिलते थे।इंजिन को सजाने के लिए हर ड्राइवर पीतल के कुछ उपकरण खरीदते और जब ड्यूटी पर जाते तब अपने इंजिन को इन से सजवाते थे।
पहले शादी की तैयारी कई दिनों पहले शुरू हो जाती थी।दिन में रात में औरतें गीत गाती थी।गली भी गायी जाती थी।ताऊजी को यह बिल्कुल पसंद नही थी।जब भी खानदान में शादी होती।औरते चुप चाप जब ताऊजी घर से बाहर होते तब गाली गाती थी।अगर इस दौरान ताऊजी आ जाते तो वह बुरी तरह गुस्सा हो जाते।
वह अंग्रेजी शासन के बहुत किस्से सुनाते थे।न जाने कहाँ कहाँ के।वह एक अंग्रेज लोको फोरमेन का किस्सा सुनाते हुए कहते ।वह अपने चेम्बर में एज ही कुर्सी रखता था।अफसर आता तो वह बैठा रहता।
शाम को घर पर ही दारू पीते।अकेले नही।कोई दोस्त जरूर साथ होता।दारू के बाद किस्से सुनाते।
ताईजी जैसी पतिव्रता औरत मैने नही देखी।जैसा पहले भी मैने लिखा है।हमेशा बंगले पर गाय रहती थी।ताईजी खुद दूध निकालती और दही बिलोती थी।गाड़ी छाछ बनाती।गर्मियों में उसमे पोदीना पीस कर डाल देती।ताऊजी गाड़ी लेकर आते तो सबसे पहले तीन चार गिलास छाछ के पीते।ताऊजी उन दिनो में चाय नही पिते थे।सर्दियों में पिते तो एक कप में दो चमच्च मखन डालकर।
मेरी ताईजी धर्म परायण पतिव्रता. नारी थी।ताऊजी की कुछ गाडियां जैसे 5अप 1अप आधी रात को बांदीकुई आती थी।ताईजी ट्रेन आने से पहले अंगीठी जला देती।उन दिनों गांव में रोटी बनानेके लिए चूल्हा और शहरों में अंगीठी या स्टोव का प्रयोग होता था।
ताऊजी की ट्रेन आने से पहले ताईजी अंगीठी जला देती।मौसम कोई भी हो ताऊजी घर आकर ही खाना खाते थे।सब्जी बनाकर ताईजी तैयार रखती।और ताऊजी आते तब गर्म रोटी बनाती थी।
कपड़े प्रेस को और धुलने के लिए धोबी के पास जाते।हर पूर्णमासी को पंडि तजी सत्यनारायनकी कथा करने के लिए आते थे।
कपड़े सिलाने हो तो कमीज पेंट के पूरे थान कपड़े के लेकर आते और दर्जी को घर पर ही बुलाया जाता।वह सब का नाप लेकर घर पर ही कपड़े सीता था।
मेरी शादी सन उनीस सौ तेहतर में हुई थी।और उसी साल ताईजी की मत्यु हो गयी।ताऊजी का हर समय ध्यान रखने वाली इस दुनिया से चली गयी।
पत्नी की मत्यु के बाद उन पर दोहरी जिम्मेदारी आ गयी।दो बेटे कुंवारे रह गए थे।उनकी शादी ताऊजी को करनी पड़ी।और फिर वह बहु बेटो के सहारे हो गए।आदमी पत्नी के जाने के बाद परवश हो जाता है।पत्नी पति की हर जरूरत का ख्याल रखती है।पर बहु से यह उम्मीद बेमानी है।यह एक सांसारिक नियम है।
दो बेटा बहु उन्हें ज्यादा पूछते नही थे।वह बड़ा बेटा बहु के पास ही रहते थे।गांव पास में ही था लेकिन उन्हें हर महीने जाना पड़ता था।उन दिनों बांदीकुई में तहसील नही थी।तहसील बसवा में थी।वही ट्रेजरी थी।सेवानिवृत लोगो को तब पेंशन वही मिलती थी।बाद में बैंक से मिलने लगी थी।
ताऊजी मस्त मोला स्वभाव के थे।हरेक से बात कर लेते।बाद में उनको लकवा हो गया था।सांस की बीमारी तो पहले से ही उन्हें थी।
एक अच्छा जीवन उन्होंने जिया पर अंत मे दो साल दुख भी पाया