Kamwali Baai - 21 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | कामवाली बाई - भाग(२१)

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कामवाली बाई - भाग(२१)

सारंगी के सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था और सच तो ये था कि मैं वहाँ सेठ जी के सामने उससे कहता भी क्या?इसलिए तब मैनें उससे कुछ नहीं कहा और इसका ये नतीजा हुआ कि वो मुँह फुलाकर वहाँ से चली आई,मैं उससे बात नहीं कर पाया इस बात का मुझे भी बहुत अफसोस था,लेकिन मेरी भी मजबूरी थी जिसे वो बिना समझे ही चली गई,मैं जब शाम को अपने कमरें पहुँचा तो मैनें ये बात छलिया से बताई तो वो बोला....
यार!ये तो बड़ी गड़बड़ हो गई,लेकिन इसका मतलब है कि उसके दिल में तेरे लिए कुछ तो है तभी तो तू रात उसके पास नहीं पहुँचा तो वो ही तुझसे मिलने चली आई....
यार!ये बात तो हैं,मैनें कहा।।
तो आज रात चले उन लोगों से मिलने,छलिया बोला।।
चल फिर जल्दी से खाना बनाकर खा लेते हैं,मैनें कहा...
तू तो पहले से ही तैयार बैठा है,छलिया बोला।।
तो क्या करूँ?बेचारी वो मुझसे मिलने आई और मैं उससे कुछ कह भी नहीं पाया,मैनें कहा....
चल...फिर जल्दी से बता कि सब्जी क्या बनाऊँ?छलिया बोला।।
यार!जो भी सब्जी रखी हो तो जल्दी से बना लें,मैं रोटियाँ सेंक लूँगा,मैनें कहा।।
ठीक है और फिर इतना कहकर छलिया ने आलू बैंगन की सब्जी बनाई और मैनें रोटियाँ सेंक दीं,फिर खाना परोसकर हम दोनों खाने बैठें,खाना खतम करके दोनों फुरसत हुए फिर घड़ी देखी तो अभी साढ़े आठ ही बजा रही थी, तब छलिया बोला...
यार!वहाँ ग्यारह बजे से पहले तो जा नहीं पाऐगें,चल एक झपकी ही ले लेते हैं...
नहीं!यार!मैं नहीं सोऊँगा,अगर गहरी नींद लग गई तो,मैनें कहा...
अरे!मुझ पर भरोसा कर,अगर तेरी नींद गहरी लग लग गई तो मैं तुझे जगा दूँगा,छलिया बोला।।
और फिर छलिया की बात का भरोसा करके हम दोनों चादर तानकर सो गए,जब मेरी आँख खुली तो घड़ी रात के बारह बजा रही थी,मैने जल्दी से छलिया को जगाया और हम दोनों जल्दी से मुँह धोकर रमाबाई के कोठे की ओर चल पड़े,रास्ते भर मैंने छलिया को गालियाँ दी और बहुत कोसा की तेरी वज़ह से देर हो गई,तू तो कह रहा था कि मुझ पर भरोसा रख ,मैं तुझे जगा दूँगा और ऐसे ही हम दोनों बहस करते हुए रमाबाई के कोठे पर पहुँच गए लेकिन हम दोनों जैसे ही भीतर घुसे तो वहाँ चिल्लमचिल्ली मची हुई थी,हम दोनों को माजरा कुछ समझ नहीं आया,लेकिन रमाबाई कोने में खड़ी जोर जोर से चिल्ला रही थी.....
मैं देखती हूँ,हराम की जनी को,ग्राहकों को मार मारकर भगाती है,इसकी सारी जवानी ना उतार दी तो देख लेना,बड़ी मस्ती सवार है कहती है कि धन्धा नहीं करूँगी,कैसे नहीं करेगी धन्धा,मैं क्या इसे मुफ्त में बैठाकर खिलाऊँगी,जैसा खाने को माँगती है तो खिलाती हूँ,जैसा पहनने को माँगती है तो पहनाती हूँ,उस पर भी इत्ते नखरें,मेरा नुकसान करके तू चैन से नहीं रह सकती.....
हाँ....हाँ....जा...जा..किसको सुना रही है,तू मुझे मुफ्त में नहीं खिलाती,हर रात मुट्ठी भर भरके रूपये देती हूँ मैं तब जाकर दो बखत की रोटी मिलती है,तू मुझे क्या सुना रही है,ऐश तो तू कर रही है हम सबकी कमाई पर,सारंगी अपने कमरें के बाहर आकर बोली....
बहुत जुबान चल रही है तेरी,अभी देखती हूँ,रमाबाई बोली।।
क्या देखेगी तू?दिखाऊँगी तो मैं तुझे अब तेरी औकात,बस बहुत हो चुका,जब मेरा मन नहीं था तो तू क्यों ग्राहक को मेरे कमरें में भेज रही थी,सारंगी बोली।।
ये तेरा काम है,रमाबाई बोली।।
जब मैं प्यार से बोली थी कि मेरा मन नहीं है तो तू क्यों नहीं मानी?सारंगी बोली।।
इन सब लड़कियों का मन भी नहीं होता,तब भी ये करतीं हैं ना अपना काम,तू कोई अनोखी तो नहीं आई है,रमाबाई बोली....
मुझे कोई बहस नहीं करनी तुझसे,सारंगी बोली.....
और इसी बीच मैं और छलिया सारंगी के सामने आ गए तो सारंगी फिर कुछ ना बोली और चुपचाप अपने कमरें में चली गई,हम दोनों रमाबाई के पास पहुँचे और उसे रूपये दे दिए फिर छलिया बोला......
तो मौसी!हम लड़कियों के कमरें में जा सकते हैं....
किसके पास जाने का है?रमाबाई ने पूछा....
तब छलिया बोला....
कल की तरह मैं मीना के पास और ये सारंगी के पास.....
तू चला जा मीना के पास लेकिन तू कैसें जाएगा सारंगी के पास ,तूने अभी उसका मिज़ाज नहीं देखा,मारकर भगा देगी तुझे,रमाबाई बोली।।
क्या होगा ज्यादा से ज्यादा भगा ही देगी ना!जान से थोड़े ही मार देगी,छलिया बोला।।
पहले तू अपने दोस्त से तो पूछ कि वो जाना भी चाहता है या नहीं,रमाबाई बोली।।
ये जाएगा मौसी!बहुत जिगरेवाला है,छलिया बोला।।
मार...काट दे तो फिर मत कहना,रमाबाई बोली।।
नहीं कहेगा मौसी!जाने दो,छलिया बोला।।
इन सभी बातों के बाद रमाबाई ने हमें अपने अपने कमरों में जाने की इजाज़त दे दी,मैं कमरें के किवाड़ खोलकर भीतर पहुँचा ही था कि सारंगी बोली....
दोपहर में बात क्यों नहीं की मुझसे?
अब सेठ वहीं खोपड़ी पर बैठा था तो कैसें बात करता,थोड़ा लिहाज़ तो करना पड़ता है ना,मैनें कहा।।
कल रात क्यों नहीं आया तू?सारंगी बोली।।
बहुत थक गया था तो आँख लग गई,इसलिए नहीं आ पाया,मैनें कहा।।
और जो दिल लग गया था मुझसे,वो सब झूठ था,सारंगी बोली।।
नहीं!वो सब भी सच है,मैं तो तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,मैनें कहा।।
कितना प्यार करता है,लड़ पाएगा सबसे मेरे लिए,सारंगी ने पूछा।।
सब कुछ कर सकता हूँ तुम्हारे लिए,बस एक बार तुम कह दो कि तुम भी मुझे चाहती हो,मैनें कहा।।
लेकिन कहने से क्या होगा?हम मिल नहीं पाऐगें कभी,मुझे ये पता है इसलिए तुझसे कुछ नहीं कहती,सारंगी बोली।।
कहकर तो देखों,सबसे लड़ जाऊँगा,मैनें कहा......
बस,मेरे इतना कहने पर वो मेरे सीने से चिपट गई और फूट फूटकर रो पड़ी फिर बोली....
राधे!मुझे निकाल ले चल इस नरक से,मैं भी चाहती हूँ कि मेरा एक घर हो ,पति हो ,गृहस्थी हो,मैं अब और अपना जिस्म नहीं नुचवा सकती ,थक गई हूँ मैं ये सब करते करते,मेरी आत्मा छलनी हो चुकी है,मुझे अपने सीने में छुपा लो,मैं यहीं महफ़ूज़ रहना चाहती हूँ,
वो उस रात मेरे सीने से लिपटकर ऐसी रोई जैसे कि कोई छोटा बच्चा रो रहा हो,रमाबाई पर उसका सारा गुस्सा केवल इसलिए था कि मैं उसके पास नहीं पहुँचा था,मेरे सीने से लिपटते ही उसका सारा गुस्सा भी पिघल गया,वो मेरी बाँहों में खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी,क्योंकि मैनें उसका जिस्म नहीं चाहा था केवल उसे चाहा था इसलिए वो मुझसे खुलकर बातें कर रही थीं....
वो कभी जोर जोर से खिलाखिला पड़ती तो कभी दूसरे पल उसकी आँखों के आँसू मेरी शर्ट भिगों देते,उसने उस रात अपने बारें में सब बता दिया कि उसे यहाँ कौन लाया था,वो स्कूल में पढ़ती थी तब उसे चंद रूपयों के लिए अगवा कर लिया गया,उसका बाप करोड़पति सेठ था,लेकिन बाप समय पर फिरौती की रकम अदा नहीं कर पाया तो उन लोगों ने दस साल की उम्र में इसे लाकर कोठे पर बेच दिया,दो साल तक तो रमाबाई कुछ ना बोली उसे बड़े दुलार के साथ रखा लेकिन जब वो बारह की हो गई तो एक रात उसकी एक सेठ से नथ उतरवा दी,वो उस रात बहुत रोई ,चीखी चिल्लाई लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी,उसकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि अस्पताल में भरती करवाना पड़ा,लेकिन कुछ दिनों बाद जब वो बिल्कुल ठीक हो गई तो फिर से वही ढ़र्रा चालू हो गया,उसने दो बार कोठे से भागने की भी कोशिश की लेकिन पकड़ी गई,अब तो उसे इन सबकी आदत सी हो गई थी जीने की उमंग ही खतम हो चुकी थी फिर वो बोली...
लेकिन जब तूने कहा कि तू मुझसे प्यार करता है तो ऐसा लगा कि इस मरे शरीर में फिर से प्रान आ गए हो,बहुत भूखी हूँ मैं प्यार की,मुझे केवल यही चाहिए,तू कभी मेरा साथ नहीं छोड़ेगा ना!
मैनें उसकी आँखों में आँखों डालते हुए कहा,
नहीं....कभी नहीं....मैं तेरी हर इच्छा पूरी करूँगा।।
और फिर वो धीरे से उठी और अपनी अलमारी में से एक सिन्दूर की डिब्बी लाकर बोली...
तो भर दे मेरी माँग!बना ले अपनी दुल्हन।।
मैनें कहा,अभी इस वक्त।।
तो वो बोली,बस डर गया,हो गया तेरा प्यार छू।।
मैं ने कहा,नहीं!डरा नहीं हूँ,तू अगर यही चाहती है तो यही सही।।
और फिर उस रात मैनें उसकी माँग भर दी और उसके माथे को चूमकर उसे सीने से लगा लिया...
हमने इतनी बातें की कि पता ही नहीं चला कि कब रात बीत गई,तब दरवाजे पर छलिया ने दस्तक देते हुए कहा....
भाई! अब चल !सुबह होने को है।।
और फिर मैनें एक बार सारंगी को फिर से गले लगाया और बाहर आ गया,रास्ते में छलिया ने पूछा...
तो कैसीं रही आज की मुलाकात?उसने तुझे मारा पीटा तो नहीं।।
मैनें कहा,नहीं! हमने रात को शादी कर ली।।
क्या....क्या....बोला,शादी कर ली.....कहाँ...कैसें....कब?छलिया बोला।।
उसके कमरेँ में ही शादी कर ली,मैनें उसकी माँग में सिन्दूर भर दिया,मैनें कहा।।
तो सुहागरात भी.....छलिया बोला।।
ना...ये सब नहीं....जब दिल मिल गए तो शरीरों का मिलन कोई महत्व नहीं रखता,मैनें कहा।।
तो फिर किया क्या रात भर?छलिया ने पूछा।।
केवल...बातें....मैनें कहा....
भाई!तू मेरी समझ से बाहर है....तू इस दुनिया का है भी या नहीं,छलिया बोला।।
तू क्या जाने सच्चा प्यार?तू तो लफंगा है....लफंगा,मैनें कहा....
नहीं!मुझे भी मीना से प्यार हो गया,मैनें उसे हाथ तक नहीं लगाया,वो भी मुझे चाहने लगी है,छलिया बोला।।
तब तो बहुत अच्छी बात है,मैने कहा...
और फिर हम इसी तरह बातें करते हुए कमरें पहुँच गए,अभी सुबह होने में देर थी इसलिए कुछ देर के लिए हम सो गए और फिर मैं इसी तरह एक दो दिन में मैं सारंगी से मिलने चला जाता और फिर एक रात सारंगी मुझसे बोली...
मैं अब सदा के लिए तुम्हारी होना चाहती हूँ और फिर उस रात सारंगी मेरे करीब....बहुत करीब आई....हम दोनों एक दूसरे के अंकपाश में जकड़ गए,एक दूसरे की गर्म साँसों ने हमारे तनों को पिघला दिया और हम उस रात एकदूसरे के हो गए,लेकिन यहीं पर सबसे बड़ा अपराध हो गया हम दोनों से,उस दिन के बाद सारंगी ने धन्धा करने से बिल्कुल मना कर दिया और जब रमाबाई ने उससे पूछा तो वो बोली....
मैं अब किसी की ब्याहता हूँ और अब मेरे शरीर पर केवल मेरे पति का हक़ है।।
सारंगी की बात सुनकर रमाबाई तिलमिला उठी और उसने उस दिन सारंगी को बहुत पीटा और फिर एक रात मैं और छलिया ने मौका देखकर सारंगी और मीना को रमाबाई के कोठे से भगा लाएं,जितनी भी जमापूँजी थीं हम अपने साथ उसे लेकर दूसरे शहर आ गए,छलिया ने मीना की भी माँग भर दी और हम चारों खुशी खुशी एक कमरें में रहने लगें ऐसे ही दो महीने बीतें ही थे कि एक रोज़ पता चला कि सारंगी माँ बनने वाली है,वो बच्चा मेरा ही था क्योंकि सारंगी ने उस रात क बाद खुद को किसी भी गैर मर्द को हाथ नहीं लगाने दिया था..
हम चारों बहुत खुश हुए लेकिन हमारी खुशियों पर ग्रहण लगते देर ना लगी,हम चारों को आखिर एक दिन रमाबाई के गुण्डों ने ढ़ूढ़ ही लिया,मैं उस रात कमरें में नहीं था,मेरी उस रात नाइट ड्यूटी थी,क्योंकि मैं किसी बिल्डिंग में वाँचमैन था,वें गुण्डें उन तीनों को एक सुनसान जगह बाँधकर ले गए और वहाँ ले जाकर उन्हें इतना पीटा की कि तीनों की जान चली गई,जब सुबह मैं कमरें पहुँचा तो वहाँ कोई भी मौजूद नहीं था और वहाँ की अस्त ब्यस्त हालत देखकर मैं पुलिसथाने पहुँचा और वहाँ रिपोर्ट लिखवाई,तब जाकर पुलिस ने छानबीन करके उन सभी की लाशों को खोजा,अब मेरे सिर पर खून सवार था और मैं वापस उस शहर रमाबाई से बदला लेने के लिए पहुँचा लेकिन रास्ते में मुझे जग्गू दादा मिला जिसकी हालत बहुत खराब थी,वो बीमार था और उसने बहुत पी रखी थी,मैं उसे उसके कमरें ले गया,तब पड़ोसियों से पता चला कि उसकी पत्नी उसकी सब जमापूँजी लेकर किसी और के साथ भाग गई है इसलिए उसके ग़म में इसकी ऐसी हालत हो गई है....
जब जग्गू दादा होश में आया तो उसने मुझसे माँफी माँगी और बोला कि तू अब मेरे साथ रह ले,मुझसे उसकी हालत देखी ना गई और मुझे उस पर तरस आ गया फिर मैनें रमाबाई से बदला लेने का इरादा भी छोड़ दिया,मेरी सेवा के बाद भी जग्गू दादा की हालत में कोई सुधार ना हुआ और उसे खून की उल्टियाँ होने लगी,डाक्टरों ने भी जवाब दे दिया और दो महीनों के बाद जग्गू दादा भी मुझे छोड़कर चला गया और फिर एक बार मैं फिर से अकेला हो गया,मेरा वहाँ उस शहर में मन नहीं लग रहा था........

क्रमशः....
सरोज वर्मा....