Mere Ghar aana Jindagi - 20 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 20

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 20


(20)

उस दिन नंदिता ने मकरंद से कहा था कि हिसाब लिखना गलत नहीं है लेकिन अपनी गर्भवती पत्नी पर किए गए खर्च का हिसाब लिखना कोई अच्छी बात नहीं है। उस दिन के बाद से ही मकरंद इस विषय में सोच रहा था।
हर खर्च का हिसाब लिखना उसकी आदत बन गई थी। यह आदत उसे मौसी की वजह से लगी थी। जबसे उनके मन में डर बैठा था कि कहीं मौसा जी उसे अपने बेटे की तरह ना अपना लें वह उसे हर बात के लिए टोंकने लगी थीं। उसके पास नया पेन भी देखती थीं तो कहाँ से आया पूछती थीं। एक दिन उसके एक दोस्त ने उसे एक ऑरेंज बार खिलाई थी। जिसका रंग उसकी ज़बान पर चढ़ गया था। उसे देखकर मौसी ने कहा था कि पॉकेट मनी फिज़ूल खर्ची के लिए नहीं मिलती है। यह बात उसे बहुत खली थी। उसने तय कर लिया था कि आगे से अपनी पॉकेट मनी का पूरा हिसाब दिया करेगा।
उसके बाद हर महीने वह पॉकेट मनी से जो खर्च करता था उसका हिसाब लिखकर मौसी को दिखाता था। मौसी पूरा हिसाब ध्यान से देखती थीं और कुछ ना कुछ नसीहत देती थीं। यहीं से उसकी आदत हिसाब लिखने की पड़ गई थी। नंदिता की प्रेग्नेंसी पर किए गए खर्च का हिसाब वह इसी आदत के चलते कर रहा था। उसकी कोई गलत मंशा नहीं थी। इसलिए उसने इस बात पर ध्यान भी नहीं दिया था। बस हर बार दवाओं पर जो खर्च होता था वह लिख लेता था।
नंदिता के टोंकने के बाद उसे लग रहा था कि उसने गलत किया। पर अभी भी नंदिता के पापा का प्रस्ताव मानने को वह तैयार नहीं था।
कुछ देर पहले ही वह ऑफिस से लौटा था। फ्रेश होकर वह लिविंग रूम में आया। नंदिता अपने लैपटॉप पर कुछ कर रही थी। उस दिन के बाद से दोनों के बीच बातचीत बंद थी। मकरंद बात करना चाहता था। वह किचन में गया। दो कप चाय बनाई। ट्रे लेकर बाहर आया। उसने कहा,
"चाय बनाई है। अच्छा होता कि हम बालकनी में बैठकर चाय पीते।"
नंदिता ने अपना लैपटॉप बंद कर दिया। वह उसके साथ बालकनी में चली गई। दोनों बैठकर चाय पीने लगे। चाय पीते हुए मकरंद ने कहा,
"आई एम सॉरी....."
नंदिता ने पूछा,
"क्यों ?"
"मैंने तुम्हारी प्रेगनेंसी के खर्च का हिसाब लिखा उसके लिए। लेकिन मेरा कोई गलत इरादा नहीं था। बस अपनी पुरानी आदत के चलते ऐसा किया। लेकिन अब मुझे एहसास हो गया है कि चाहे जो हो। इस खर्च का हिसाब लिखना गलत था।"
नंदिता ने चाय का घूंट भरकर कहा,
"मुझे तुम्हारा हिसाब लिखना बुरा लगा था। पर मैं तुम्हें जानती हूँ। इसलिए कह सकती हूँ कि तुम्हारा कोई और इरादा नहीं था।"
मकरंद को अच्छा लगा। उसने कहा,
"थैंक्यू कि तुम मुझे इतना समझती हो।"
बात शुरू हुई थी तो नंदिता चाहती थी कि मकरंद उसके पापा के प्रस्ताव के बारे में बात करे। उसने कहा,
"मैंने तुमसे कहा था कि पापा के प्रस्ताव के बारे में एकबार फिर सोचो। क्या फैसला किया तुमने ?"
मकरंद इस विषय में बात नहीं करना चाहता था। उसने कहा,
"मैं क्या सोचूँ इसमें। यह बात मुझे ठीक नहीं लग रही है। मुझे प्रस्ताव मंजूर नहीं है।"
नंदिता कुछ रुकी। उसके बाद बोली,
"मैंने तुमसे कहा था कि अपने अहम को परे रखकर सोचना। पर तुम उसे ही आगे ला रहे हो।"
यह बात मकरंद को अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,
"इसमें अहम वाली तो कोई बात नहीं है।"
"अहम वाली बात है। तुम यह सोच रहे हो कि पापा तुम्हें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकी उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं है।"
मकरंद कुछ नहीं बोला। नंदिता के पापा ने उस दिन जिस तरह बात शुरू की थी वह मकरंद को अच्छा नहीं लगा था। उसे एहसास हुआ था कि वह कहना चाहते हैं कि हमारे पास आ जाओ। नंदिता भी खुश रह पाएगी। तुम भी खुश रहोगे। लेकिन यह उसका स्वाभिमान था ना कि अहम जो उसे रोक रहा था। मकरंद को चुप देखकर नंदिता ने कहा,
"मान लो कि जो प्रस्ताव मेरे पापा ने दिया है वही तुम्हारे पापा ने दिया होता तो। अगर वह चाहते कि तुम और मैं उनके साथ रहें। तो भी क्या तुम ऐसे ही सोचते। तुम सिर्फ इसलिए नहीं मान रहे हो क्योंकी तुम सोचते हो कि प्रस्ताव तुम्हारी ससुराल का है। इसलिए तुम उसे स्वीकार करने में अपनी हेठी समझ रहे हो।"
"नंदिता अब तुम गलत बात कर रही हो। मैं तुम्हारे मम्मी पापा की कद्र करता हूँ। मैंने ही तुम्हें उनसे बात करने के लिए प्रेरित किया था। नहीं तो तुम उन्हें बच्चे की खबर भी नहीं देना चाहती थी। अब ऐसी बात कर रही हो।"
नंदिता को भी लगा कि वह कुछ अधिक ही रुखाई से बात कर गई। उसने कहा,
"मैं इसके लिए हमेशा तुम्हारी आभारी रहूँगी। तुमने मुझे मेरे मम्मी पापा से मिलाया है। दरअसल जबसे मैंने योगेश अंकल की परेशानी के बारे में जाना था तबसे अपने मम्मी पापा को लेकर फिक्रमंद हो गई थी। मैं उनके बारे में सोचती थी। तुमने हिम्मत दी तो मैं उनसे बात कर पाई। अब जब पापा ने हमें यह प्रस्ताव दिया है तो मैं सोचती हूंँ कि पापा मम्मी योगेश अंकल और उर्मिला आंटी की तरह अकेले क्यों रहें। इसलिए चाहती हूँ कि उनके पास जाकर रहूँ।"
नंदिता ने अपने मन की बात कह दी थी। मकरंद को वह बात समझ भी आई थी। लेकिन उसके ना राज़ी हो पाने के पीछे एक दूसरा कारण यह भी था कि ज़िंदगी के कई साल उसने दूसरे के घर रहकर गुज़ारे थे। नंदिता के साथ शादी के बाद जब वह इस फ्लैट में आया तो उसे अपना घर जैसा लगा था। उसकी इच्छा तो अपने फ्लैट में जाकर घर बसाने की थी। पर अचानक यह प्रस्ताव मिला। वह भी जिस तरह से उसे अच्छा नहीं लगा था।
उसके मन में एक बात और चल रही थी। बात सिर्फ उसकी नहीं थी। नंदिता ने भी उसके साथ गृहस्ती बसाई थी। इसकी वह अकेली मालकिन थी। उसके मन में आ रहा था कि क्या शादी के बाद नंदिता के लिए भी अपने मम्मी पापा के घर रहना इतना आसान होगा। उसने अपने मन की बात कही,
"नंदिता तुम मेरी बात छोड़ो। पर क्या तुमको अपने मम्मी पापा के घर एडजस्ट होने में कोई दिक्कत नहीं होगी।"
नंदिता ने उसे आश्चर्य से देखा। वह बोली,
"क्यों नहीं हो पाऊँगी ? हमारी शादी को अभी डेढ़ साल हुए हैं। उससे पहले मैं वहीं रहती थी।"
"सही कह रही हो। पर तब में और आज में फर्क है।"
"क्या फर्क है ?"
नंदिता ने जिस तरह से सवाल किया था उससे स्पष्ट था कि वह मकरंद की बात से सहमत नहीं थी। मकरंद कुछ ठहर कर बोला,
"फर्क है नंदिता। तब तुम उनके साथ उनके हिसाब से रह रही थी। अधिकतर फैसले तुम्हारे मम्मी पापा करते होंगे। तुम उन्हें मान लेती होगी।"
"तो ?"
"यही तो बात है। पिछले डेढ़ साल से तुम अपनी गृहस्ती में हो। यहाँ फैसला मेरा और तुम्हारा होता है। वहाँ जाकर तुम मम्मी पापा के फैसलों को स्वीकार कर पाओगी।"
नंदिता ने कुछ देर सोचने के बाद जवाब दिया,
"तुम्हारी बात को मैं मान लेती हूँ कि शायद एडजस्ट करने में थोड़ी दिक्कत हो। पर मैं फिर वही कहूँगी। अगर यह प्रस्ताव तुम्हारे घर से होता तब भी क्या तुम एडजस्टमेंट वाली बात करते। तब शायद तुम यह कहते कि बेटा और बहू होने के नाते हमारा फर्ज़ है कि हम वहाँ जाकर रहें। उनकी देखभाल करें।"
मकरंद एकबार फिर चुप हो गया। नंदिता ने कहा,
"मकरंद तुम इस मामले में अनिर्णय की स्थिति में सिर्फ इसलिए हो क्योंकी यह प्रस्ताव मेरे पापा ने दिया है। तुम्हें लगता है कि ससुराल जाकर रहना अच्छी बात नहीं होगी। बात यही है। नहीं तो सीधी सी बात में इतना सोच विचार क्यों है।"
उसने ट्रे उंचाई। भीतर जाते हुए बोली,
"मैंने ठीक से सोचने को कहा था। पर शायद तुम करना नहीं चाहते हो। जैसी तुम्हारी इच्छा। कल रात मम्मी का फोन आया था। पूछ रही थीं कि क्या सोचा। तब तो कहा था कि अभी सोच रहे हैं। अब कह दूँगी कि संभव नहीं है।"
नंदिता अंदर चली गई। मकरंद कुछ देर वहीं बैठा रहा। नंदिता ने सारा दोष उसकी सोच पर डाल दिया था। उसके मन में भी आने लगा था कि क्या सचमुच वह गलत है।

योगेश अभी तक पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाए थे। कीमियोथैरेपी और उसके बाद ऑपरेशन का असर उनके शरीर पर पड़ा था। इसलिए जल्दी थक जाते थे। पहले की तरह उर्मिला की देखभाल नहीं कर पा रहे थे। हेल्पर अपना काम ठीक से कर रहा था। फिर भी स्वास्थ ठीक ना होने के कारण वह परेशान रहते थे। विशाल के जाने का उन्हें दुख तो था। लेकिन इतने दिनों में उनके मन में कभी भी यह नहीं आया था कि अगर आज वह होता तो हमें सहारा होता। वह सोचते थे कि सबकुछ अकेले संभाल सकते हैं। लेकिन आजकल यह खयाल अक्सर उनके मन में आता था कि अगर विशाल होता तो उन्हें बड़ा सहारा होता। अब रात को उठकर कई बार वह रोते भी थे। भगवान से शिकायत करते थे कि उनके साथ ऐसा क्यों किया।
आज शाम से ही उन्हें विशाल की कमी बहुत महसूस हो रही थी। उर्मिला को हेल्पर के पास छोड़कर वह कुछ देर के लिए नीचे टहलने आए थे। उनकी मुलाकात मकरंद से हो गई। उससे उनकी बहुत कम बातचीत होती थी। पर आज वह ना जाने क्यों उसके साथ खुल गए। अपने मन की बात उससे करने लगे।
वह विशाल की कमी जिस तरह महसूस कर रहे थे वह मकरंद के दिल को छू गई। उसे नंदिता के पापा का चेहरा याद आ गया।