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दोनों ही तो सोचते थे एक-दूसरे के बारे में, दोनों की धड़कनें बढ़ जातीं लेकिन दोनों ही चुप रहते थे | ऑफ़िस में बस काम से काम ! कई बार रिचार्ड सोचता कि उसने राजेश को क्यों पाल रखा है, उसके साथ ही उस औरत को भी ? वैसे तो यहाँ किसी के पास भी कोई इतना समय नहीं होता था कि किसीके बारे में गॉसिप्स जी जाएँ | लेकिन आम हिंदुस्तानी जब तक अपने हिन्दुस्तानी भाई के भीतर झाँककर न देख ले तब तक उसे चैन कहाँ पड़ता है ? यहाँ काम का अच्छा पैसा मिलता था इसलिए बेचारे लोगों को अपना दिलोदिमाग दबोचकर गंभीरता से काम में लग जाना पड़ता था, वर्ना वे यहाँ भी धड़ल्ले से वही करते जो अपने देश में करते.... टाइम-पास.!
रिचार्ड क्या, यहाँ पर फ़र्म, कंपनी और कहीं भी काम मिल तो जाता लेकिन थोड़ा सा भी गड़बड़ होने पर फ़ायर होने में भी देर न लगती | यहाँ का रवैया ही ऐसा था कि काम के समय पर काम ही किया जाता और बाद में तुम्हें जिसके साथ भटकना हो, वह तुम्हारी मर्ज़ी --तुम्हारी ज़िंदगी, इसको कैसे जीना चाहते हो ! लेकिन जिस फ़र्म या स्थान पर अपने स्थान के लोग हों, उन्हें दूसरों के बीच में कूदने की आदत तो होती ही है | सो, भानुमति और रिचार्ड के बारे में भी ताकाझाँकी तो होती ही थी लेकिन रिचार्ड जैसे गंभीर फ़र्म-ओनर के लिए लोगों का साहस ही नहीं था कुछ बात आगे बढ़ाने का ! वैसे भी किसको परवाह होती किसी के संबंधों की किसी से !
कहते हैं न, जहाँ गड्ढा होता है, वहाँ पानी भरता ही है | इसके चलते तो भानु के ही दिल में धुकर-पुकर होती | उसे रिचार्ड अब कहीं से भी अमरीकी लगता ही नहीं था केवल उसके रंग-रूप के और उच्चारण के | वह भानु के साथ रहकर इतनी अच्छी हिंदी सीख गया था कि कभी जब वह अपनी ही धुन में होता, उसके अलावा यदि कोई उसे पर्दे के पीछे से बोलते हुए सुनते तो समझ भी नहीं सकते थे कि कोई अमरीकी बंदा बोल रहा है |
वह बार-बार सोचता कि न जाने वह क्यों भानु की इतनी परवाह करता है ? और उसका दिल धड़कते हुए उससे जैसे कहता ;"खुद से पूछो न !"
जब उसने यही बात भानु के सामने रखी थी तब भानु ने आँखें नीची करके कहा था कि वह जानती है कि रिचार्ड के दिल में उसके लिए क्या है ?
रिचार्ड से रहा नहीं गया था और उसने पूछा था ;"और --तुम ?"
इस बात का उसने कोई उत्तर दिया ही नहीं था हुए वह कहीं और ही गुम हो गई थी |
"रिचार्ड ! मैं जानती हूँ, तुम शरीर से बहुत लड़कियों को पा चुके हो | मेरे लिए भी तुम्हारे मन में कुछ इसी प्रकार की भावनाएँ थीं और राजेश की तो क्या कहूँ, उसकी इच्छा तो थी ही कि मैं तुम्हारे साथ संबंध बनाऊँ, उसे ज़रा भी यह सोचकर शर्म नहीं आई कि मैं उसकी पत्नी थी --वो भी माँ-बाबा को नाराज़ करके मैंने उससे शादी की थी लेकिन ---" भानु का स्वर फिर से बैठ गया, वह रुआँसी हो उठी |
रिचार्ड उसको लगातार बोलते हुए देखता रहा | कितनी तकलीफ़ में थी भानु, वह समझ रहा था |
'कैसा बदलाव होता जा रहा था उसमें ?' वह सोचता | वह कभी सोच भी नहीं सकता था कि वह किसी के साथ संवेदना के स्तर पर इतना जुड़ सकता था ? कितनी लड़कियाँ आईं उसकी ज़िंदगी में, उसने कभी उनके बारे में शायद ही सोचा हो | उसकी शारीरिक ज़रुरत पूरी हो गई और सब अपने-अपने रास्ते चले गए | एक बात जो उसकी सबसे बड़ी विशेषता थी, वह यह थी वह बहुत दयालु था, वह सोचता था कि कोई भी आदमी पेट की ज़रूरतों के लिए ही अपने परिवार, अपने लोग व अपने शहर को छोड़कर आता है | इसलिए वह सबके प्रति दयालु भी था और किसी न किसी बहाने सबका अपने आप मनोरंजन भी करवाता था | इसी प्रकार उसकी मुलाक़ात भानु से हुई थी, उसे लगता था कि एक-दो बार मिलने पर ही भानु ने उसके दिल में अपना घर बना लिया था लेकिन यह भी तो सच ही था कि उसके कई लड़कियों से शारीरिक संबंध हो चुके थे | जब से वह भानु को मिला था, उसे लगा था कि उसका मक़सद केवल उसका शरीर पाना ही नहीं था| वह अपने ही ख्यालों में खोया था |
"डोंट टेक इट अदरवाइज़, ऐसा इसलिए था क्योंकि तुम भारतीय सभ्यता, संस्कृति से आकर्षित थे --" भानु फिर बोली |
"मैं बताऊँ --और क्या बात थी ---?"रिचार्ड न जाने किसी और दुनिया से बोल रहा था |
भानु ने रिचार्ड को जिस दृष्टि से देखा, वह थर्रा उठा | उसके दिल की धड़कनें रोके न रुक रही थीं | उसका मन कह रहा था कि वह सब कुछ भूलकर भानु को अपने आलिंगन में समा ले लेकिन न जाने वह कभी क्यों यह सब नहीं कर पाया ? कितने अवसर उसके सामने आए लेकिन उसने कभी अपना विवेक नहीं खोने दिया | यही कारण था कि भानु भी अब अपने मन में उसे वह स्थान दे बैठी थी जो उसने कभी राजेश को दिया था | उसका मन इतनी चोट खाकर जैसे चिन्दी-चिन्दी बिखर रहा था | वह कभी कुछ सोचती, कभी कुछ !
"मैं कह रहा था कि बताऊँ आख़िर बात क्या है --?" भानु उसके शब्दों को सुनकर जैसे किसी गुफ़ा से निकलकर आई और उसके चेहरे को लगातार ताकने लगी |