चरित्रहीन......(भाग-8)
अगली सुबह हमारे लिए किसी भूचाल आने से कम नहीं था। रात को ठीक से नींद नहीं आयी तो सिरदर्द हो रहा था। किसी काम को करने का मन ही नहीं कर रहा था....पर बच्चों को देखना था तो धीरे धीरे मैं अपना काम निपटा रही थी। 10 ही बजे थे कि मम्मी का फोन आया। उन्होंने बताया," कनिका अपने मायके चली गयी है, हमेशा के लिए"। "क्यों मम्मी? वरूण से कोई बात हुई है क्या? ऐसा क्या हो गया "? मैंने सवालों की झड़ी लगा दी। वरूण तो कह रहा है कि "उससे तो कोई बात या बहस कुछ भी नहीं हुई। रात को ही कह रही थी कि मेरे साथ वो नहीं रह सकती, अपने घर वापिस जाएगी।मैंने पूछा भी क्या हुआ? किसी ने कुछ कहा क्या? वो बोली किसी ने कुछ नहीं कहा, बस मैं नहीं रहना चाहती, फिर मैंने भी कह दिया,ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी"! मम्मी से बात करके फोन रख दिया। ये भूचाल हमारे पूरे घर का सुख चैन उड़ा कर ले गया। मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या करूँ। आकाश और पापा जी फैक्टरी जा चुके थे। आरव भी प्ले स्कूल जा चुका था। मम्मी जी अपनी किटी पार्टी के लिए तैयार हो रहीं थी। अवनी को नहला धुला कर सुला दिया पर दिमाग में वरूण और कनिका के रिश्ते में आए तूफान के बारे मैं सोच रही थी। वरूण से पूछा था कि उसकी अपनी कोई पसंद हो तो बता दे, उसी से तेरी शादी करेंगे तो उसने साफ साफ बोल दिया था कि," वो अरैंज मैरिज में विश्वास रखता है, इसलिए उसने कभी गर्लफ्रैंड बनायी भी नहीं"। तभी मम्मी पापा की पसंद से ही कनिका से शादी हुई थी। पता नहीं क्या हुआ होगा सोच सोच कर दिमाग खराब हो रहा था तो मैंने सीधा कनिका को ही फोन मिला दिया। उसने फोन तो उठाते ही बाद में बात करती हूँ दीदी, कह कर फोन रख दिया, शायद किसी से बात कर रही होगी सोच कर खुद को दिलासा दी। वरूण को फोन किया और उससे पूरी बात का पता किया। ऐसा हो नहीं सकता था कि बिना किसी वजह के कनिका ये फैसला लिया हो! वरूण ऑफिस में अकेला था तो मैंने सीधा मुद्दे की बात की.....उसने जो बताया उससे मेरी हैरानी की सीमा नही रही। कनिका किसी और से शादी करना चाहती थी जो दूसरी जात बिरादरी का था, उसके पापा ने मना कर दिया और इमोशनल करके उसकी शादी वरूण से करवा दी। उनको लगा कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा, पर कनिका और उस लड़के का प्लान था कि शादी के कुछ दिनो के बाद वो हमारा घर छोड़ कर उसके साथ चली जाएगी। अब वो डायरेक्ट घर भी नहीं गयी है, अपनी कार ले कर हमें घर का बोल कर अपने बॉयफ्रैंड के पास चली गयी है शायद। अपने गहने वगैरह सब ले गयी है। पापा और अंकल जिन्होंने रिश्ता बताया था, कनिका के घर गए थे तो वहीं पता चला कि वो घर नहीं गयी है.....! मैंने आकाश को फोन पर पूरी बताया कि कनिका चली गयी है, घर में सब परेशान है तो उसने कहा कि मैं बच्चों के साथ मम्मी के पास चली जाऊँ और वो शाम को सीधा वहीं आ जाएँगे। मैं मम्मी जी को बता कर बच्चों को ले कर घर पहुँच गयी। मम्मी बहुत परेशान थी कि ये सब कैसे और क्यों हो गया? मैं मम्मी को समझा रही थी, पर अंदर से मैं भी डरी हुई थी। कुछ देर बाद पापा और वरूण दोनो घर आ गए। पापा ने बताया कि," उन्होंने अपने वकील से सलाह ली कि क्या करना चाहिए तो उसने बताया कि पुलिस स्टेशन जा कर कंप्लेन करनी चाहिए।इससे पहले कि कनिका का परिवार हमारे खिलाफ दहेज या डिमांड की रिपोर्ट लिखवाएँ या कनिका के गायब होने के पीछे हमें दोषी बनाएँ"! उस समय के हिसाब से ठीक भी था। आए दिन दहेज के पीछे बहुओं का जलाए जाने या जान से मारने की खबरों की बाढ आयी हुई थी।काफी केसेस सुनायी देते थे। शाम को आकाश भी आ गए उन्हें पूरी बात पता चली तो शॉक्ड हो गए। हमें वरूण की चिंता हो रही थी। आगे क्या होगा? पापा को समाज की उतनी चिंता नही थी जितनी वरूण की थी, हालांकि तब समाज की दुहाई अक्सर दी जाती थी। वो टाइम भी कुछ ऐसा ही तो था जब लोग क्या कहेंगे कि चिंता ज्यादा की जाती थी। कुछ दिन हमें बहुत परेशानी हुई क्योंकि आए दिन पुलिस स्टेशन जाना पड़ रहा था। कनिका की फैमिली को मानना पड़ा कि उनकी बेटी का अफेयर किसी से चल रहा था, पुलिस ने इंक्वायरी की तो पता चला कि वो लड़का भी उसी दिन से गायब है और कहाँ गया है किसी को पता नहीं। तकरीबन 15 दिन बाद कनिका ने फोन किया दोनो परिवारों को और बताया कि उसने उसी लड़के से शादी कर ली है और वरूण से माफी भी माँग ली। पापा ने उसे पुलिस स्टेशन में आने के लिए बुलाया और अपना बयान देने को कहा जिससे आगे हमें कोई दिक्कत न हो। वरूण ने वकील से डिवोर्स के पेपर भी बनवा लिए उससे साइन करने के लिए......जिसे उसे साइन करने ही पड़े नहीं तो उस पर हम चाहते तो Legally एक्शन ले सकते थे। कनिका का चेप्टर बंद हो गया। 15-20 दिन की शादी को तोड़ने में 3 महीने से ज्यादा लग गए। कनिका के पैरेंटस बहुत शर्मिंदा थे अपनी बेटी के कारनामें से पर पापा ने बस यही कहा कि जो हुआ सो हुआ, पर अपनी बेटी की पसंद को एक्सेप्ट कर लीजिए अच्छा रहेगा। पूरे एक साल बाद वरूण की शादी आकाश ने अपनी बुआ की बेटी नीला के साथ कराव दी वो भी बिल्कुल सिंपल मंदिर में। नीला बहुत ही समझदार लड़की निकली। आकाश ने वरूण की पहली शादी का पूरा सच बता कर ही ये शादी करवायी थी। साधारण परिवार की नीला ने बहुत जल्दी घर संभाल लिया था। वरूण ने खुले मन से नीला को अपना लिया तो हम सब भी खुश थे.....। जैसे जैसे अवनी बड़ी होती जा रही थी, मैंने धीरे धीरे घर से ही वरूण के लिए काम करना शुरू कर दिया।वक्त के साथ काम करने का तरीका भी बदल रहा था। कंप्यूटर का इस्तेमाल और नए नए सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल होने लगा था और आर्कीटेक्टस की डिमांड भी बढ़ ही रही थी और आने वाले समय में और भी बढेगी, यही सोच कर नए तरीके से काम करने के लिए क्रेश कोर्स भी जॉइन कर लिया था क्योंकि मुझे अपने आप को अपडेट जो करना था....समय अपनी गति से ही चलता है...बच्चे बड़े हो रहे थे। नीला ने शादी के साल बाद एक बेटे को जन्म दिया....और मैं बुआ बन गयी। मम्मी पापा बहुत खुश थे। आरव और अवनी को भी जैसे एक छोटा खिलौना मिल गया था.....! प्रॉपर्टी के रेटस कम हो गए क्योंकि स्लो डाउन से पूरा देश ही प्रभावित था तो पापा का बिजनेस भी थोड़ा कम हुआ। कुछ प्रोजेक्ट तैयार थे, पप खरीदार या तो थे नहीं या फिर बहुत सस्ता खरीदना चाहते थे तो हमने कुछ टाइम के लिए प्रॉपर्टी को बेचना ठीक नहीं समझा पर बजट तो डगमगा था ही।
फायनेंशियल क्राइसिस परिवार के लिए तो नहीं थे, पर काम के लिए तो थे.....। काफी सोच विचार कर कुछ ऑफिस हमने किराए पर दे दिए और कुछ बिना मुनाफे के भी बेचने पडे.....इसी बीच वरूण ने एक नया सेटअप स्टार्ट किया जिसमें किसी की प्रॉपर्टी को दुबारा बनाना और उसमें से एक फ्लोर बनाने वाले का और तीन फ्लोर मालिक के रहेंगेे। या फिर चारो फ्लोर मालिक के होंगे तो कंस्ट्रक्शन की कॉस्ट वो बिल्डर को देंगे। इसमें अच्छी बात ये भी थी कि दिल्ली में पार्किंग की समस्या देखते हुए पार्किंग भी बनायी जाने लगी और लिफ्ट का यूज भी होने लगा। आइडिया हिट हुआ और 2 साल बाद प्रॉपर्टी में वापिस बूम आया तो सब ठीक हो गया। पापा खुश थे कि वरूण उनका बिजनेस अच्छे से संभाल लेगा। पापा ने वरूण के बेटे का नाम "वैभव" रखा.....वरूण जब 3 साल का हुआ तो उसका मुंडन करवाने के लिए मम्मी पापा ने हरिद्वार का प्रोग्राम बनाया और हमें भी शामिल होना था पूरे परिवार के साथ तो तय ये हुआ कि तीन कार जाएँगी...एक में नीला के मायके वाले जाँएगे, दूसरी में आकाश के मम्मी पापा और मेरे मम्मी पापा तीसरी में वरूण, नीला और तीनों बच्चे। वरूण का मन था कि वो भी आकाश के साथ ही बैठे पर वैभव को पापा भी चाहिए थे और आरव अवनी भी तो उसको आना ही पड़ा, हमारी कार में। दोपहर बाद हम पहुँच गए, उस दिन हमने आराम किया और अगले दिन मुंडन करवाया गया और वैभव ने रो रो कर बुरा हाल कर लिया। फिर उसको बहलाने के लिए आकाश उसे खिलौने दिलवा लाया। हमारा प्रोग्राम था कि हम मुंडन के बाद वहाँ से चल देंगे, पर वरूण ने कहा एक दिन रूकते हैं कल सुबह सुबह चल देंगे। किसी की भी नौकरी तो थी नहीं, सो सब रूक गए। देखते ही देखते वहाँ पर मौसम बिगड़ गया और खूब बारिश हुई तो हमने सोचा कि अच्छा है, हम रूक गए नहीं तो बुरी तरह फंस सकते थे......पर हमें कहाँ पता था कि हमारी किस्मत ने हमारे लिए कुछ और ही लिख रखा था....। सुबह सुबह बच्चों के लिए दूध और बिस्किट का इंतजाम करके और खुद चाय पी कर वहाँ से जल्दी निकल पड़े ये सोच कर की दिन में सड़को पर ट्रैफिक ज्यादा होता है...!
हम वहाँ से जल्दी निकल आए। हम हरिद्वार से निकले ही थे...खाली सड़के थी तो हमारी गाड़ियाँ स्पीड से एक के पीछे एक चल रही थी...सबसे आगे आकाश की गाड़ी थी, जिसमें हमारे घर के बड़े बैठे हुए थे।कुछ सैंकड़ो में ही न जाने कहाँ से पीछे से ट्र्क जल्दी से आगे निकल गए.....एक ट्रक आकाश की कार के आगे था और दूसरा ट्रक पीछे था तो हमारी और नीला की फैमिली की कार पीछे हो गयी। अचानक जोर से पहले एक आवाज आयी और फिर दूसरी..!
वरूण ने झट से कार को ब्रेक लगाया तो पीछे वाली कार को भी अचानक ब्रेक लगाना पड़ा। किसी की परवाह किए बिना वरूण आवाज की तरफ दौड़ा। मैं भी नीला का बच्चों कक ध्यान रखने को बोल वरूण के पीछे गयी.....वहाँ का मंजर देख कर मुझे समझ ही नहीं आया। दो ट्रको के बीच हमारी कार का सैंडविच बन गया था.....वरूण और नीला के पापा जल्दी जल्दी कार के पास पहुँचे....हर तरफ कांच ही कांच के टुकडे थे। हमारे होश उड गए थे...लोगो की मदद से बहुत मुश्किल से उन्हें बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे। दोनो ट्रक ड्राइवर तब तक भाग चुके थे, पर एक के हेल्पर को पकड़ लिया था भीड़ ने......पुलिस भी आ गयी और पाँचो को बाहर निकाला गया। पर किसी को भी नहीं बचाया जा सका। इतनी दर्दनाक मौत का कोई सोच भी नहीं सकता था। वरूण का बुरा हाल था पर वो मुझे संभालने की कोशिश कर रहा था। आकाश कैसे मुझे और बच्चों को छोड़ कर जा सकता है? इस बात पर यकीन करना बहुत मुश्किल था मेरे लिए।नीला को उसकी फैमिली के साथ घर भेज दिया, वहाँ का इंतजाम करने के लिए। वरूण ने मुझे भी जाने को कहा था बच्चों को ले कर, पर मैं कैसे जाती? वहाँ सब फार्मेलिटिज पूरी करते करते काफी टाइम लग गया। वरूण ने विकास को फोन करके जल्दी से जल्दी आने को कहा, पर उसे 2-3 दिन तो लगने ही वीले थे। आकाश, पापा जी और मम्मी जी को घर लाना था, पर विकास ने कहा था कि मेरा इंतजार करना तो उन तीनों को हमने मोर्ग में रखवाने की बात कर ली थी।वहीं मोर्ग में रखने का डिसीजन वरूण का था। बहुत सारी औपचारिकताएँ करनी पड़ती हैं ऐसे वक्त में भी.........मम्मी पापा को ले कर हम देर रात को पहुँचे। हम कार में उनके पीछे पीछे थे। आरव और अवनी छोटे थे, उन्हें खेलना और खाना सब वक्त पर चाहिए था। वो कहाँ समझ सकते थे कि हमारे साथ क्या हुआ है? बस उस वक्त हम दोनो भाई बहन वही करते गए जो हमारे रिश्तेदार कहते चले गए........
क्रमश: