Charitrahin - 7 in Hindi Women Focused by सीमा बी. books and stories PDF | चरित्रहीन - (भाग-7)

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चरित्रहीन - (भाग-7)

चरित्रहीन.......(भाग-7)

हमारी शादी के लिए दोनो ही परिवार बहुत खुश थे। दोनो तरफ से ही शादी की जल्दी तो थी, पर फिर भी सगाई और शादी के बीच में 6 महीने का अंतर रखा गया था.... जिसमें आकाश और मैं कई बार मिले भी...एक दूसरे को जानने का मौका हमारे परिवारों ने दिया। आकाश काफी डिसेंट लगा मुझे.....हर बात को बिल्कुल साफ साफ कहने की आदत अच्छी लगी मुझे....उसने अपने बारे में अपनी फैमिली के बारे में पसंद और नापसंद के बारे में बताया और मुझसे मेरी पसंद के बारे में भी पूछा। उसने मेरी हर बात को बहुत ध्यान से सुना....कुल मिला कर सब ठीक लग रहा था। पापा का डिसीजन ही शायद मेरे लिए परफेक्ट है। जब आकाश ने बताया कि वो कॉलेज टाइम में एक लड़की के साथ रिलेशनशिप में था.....पर वो लड़की कुछ टाइम बाद मुझे छोड़ कर मेरे दोस्त को डेट करने लगी क्योंकि वो मुझसे ज्यादा
हैंडसम और स्मार्ट था। उसकी पास्ट सुन कर मुझे लगा कि मैं भी उसे सब बता दूँ! " आप को अब भी उनकी याद तो आती होगी"? अपने और नीरज के बारे में कुछ बताने से पहले मैंने सवाल ही पूछ लिया।
"हाँ, कभी कभार याद तो आ जाती है, पर मुझे अपनी पसंद पर अफसोस होता है कि जिसे मैंने पसंद किया,उसके लिए शक्ल की अहमियत थी"! मुझे अच्छा लगा कि उसने बनावटी जवाब न दे कर बिल्कुल सरल शब्दों को इस्तेमाल किया।
"आकाश मैं भी एक लड़के को कॉलेज टाइम में पसंद करती थी, पर उसके पैरेंटस को मैं पसंद नही थी, तो हम ने भी अपने रिश्ते को वहीं खत्म कर दिया"...!
आकाश ने मेरी बात को ध्यान से सुना, वो कुछ देर चुप रहा तो मैंने कहा...." मैंने तुम्हें सब सच बता दिया है, अगर अब तुम चाहो तो इस शादी के लिए मना कर सकते हो"! "वसुधा मैं बस इतना चाहता हूँ कि हम दोनो का ही एक पास्ट रहा है और अब जब हम दोनो ही नए रिश्ते की शुरूआत करने जा रहे हैं तो क्यों न हमअपने पास्ट को आज दफन कर दें....और खुले दिल से अपने रिश्ते को एक्सेप्ट करके ईमानदारी से निभाएँ....मैं तो तैयार हूँ और खुश भी हूँ कि मेरी शादी तुम जैसी एक समझदार लड़की से हो रही है"! मैं वाकई अंदर से बहुत खुशी महसूस कर रही थी आकाश की बात सुन कर, मुझे तो लगा कि वो गुस्सा होगा या कुछ सुनाएगा....क्योंकि मम्मी हमेशा कहती हैं कि आदमी अपनी सौ गलतियाँ करने के बाद भी उम्मीद करता है कि उसे माफ कर दिया जाए....पर औरत को हर छोटी बड़ी गलती की सिर्फ सजा मिलती है माफी नहीं....आकाश को अपना सच बता कर बहुत हल्का महसूस कर रही थी। मैंने उसे यकीन दिलाया कि मैं हमारा रिश्ता पूरी ईमानदारी से निभाऊँगी.....।
हमारी शादी बहुत धूमधाम से हुई....शादी के बाद कुछ टाइम घूमने में ही निकल गया और कुछ दोनो तरफ के रिश्तेदारों के घर दावत खाने में.....इस दौरान मैं और आकाश एक दूसरे को समझने लगे थे.....शादी के बाद पति पत्नि एक दूसरे को प्यार करने ही लग जाते हैं, ये जरूरी नहीं होता, पर हम दोनो एक दूसरे से धीरे धीरे प्यार करने लगे थे। हम पहले अच्छे दोस्त बने, एक दूसरे को मन से अपनाने के लिए पूरा टाइम दिया.....हनीमून पर गए जरूर पर हमारे में दोस्ती ही हो पायी थी, बाकी दूरियाँ खत्म होने में 6 महीने लग गए, पर इस बीच के टाइम में जो रिश्ता बना, वो मेरे लिए अनमोल था। शादी के 6 महीने बाद मैंने आकाश और अपने सास ससुर से पूछ कर पापा को ऑफिस जॉइन कर लिया। अब तो वरूण भी साथ था तो सब कुछ जल्दी ही मैनेज हो गया....... वरूण ज्यादातर पापा के साथ रहता था। शादी के 2 साल बाद मैंने आरव ने जन्म ले कर हमें मम्मी पापा बना दिया....दोनो परिवारों में खुशी का माहौल बनना ही था। डिलिवरी से एक महीना पहले ही मैंने ऑफिस जााना छोड़ दिया था। मैं कुछ भी पहनूँ कोई रोक टोक नहीं थी। अपने घर से ज्यादा आजादी मुझे ससुराल में मिली थी। आकाश का छोटा भाई का बिजनेस में ज्यादा इंट्रेस्ट नहीं था। उसने ग्रेजुएशन के बाद लॉ में एडमिशन ले लिया था। आरव के आ जाने से मैं बहुत बिजी हो गयी थी। मेरे ससुराल में को सर्वैंटस तो थे ही कुक भी था, तो आरव की देखभाल अच्छे से कर पा रही थी। आकाश भी चाहता था कि आरव के सारे काम हम खुद करें और मैं खुद भी यही चाहती थी। कुछ दिन दादा दादी के पास तो कुछ दिन नाना नानी के पास हम दोनो माँ बेटा रह आते थे......इस बीच वरूण की शादी भी तय हो गयी। वरूण की शादी भी खूब धूमधाम से हुई....आकाश ने बहुत अच्छे ढँग से दामाद का फर्ज निभाया था और पापा ने भी कोई काम आकाश की सलाह के बिना नहीं किया था और मम्मी के साथ मैंने बाकी काम देख लिए थे। आरव दादा दादी के पास आराम से रह जाता था तो कई दिन शॉपिंग करने मे ंही बीत गए। आराव जब तीन साल का हुआ तो मैं उसे कुछ देर के लिए किंडर गार्डन में भैजने लगी, जिससे 2-3 घंटे वो बच्चों के साथ खेल भी आता और थोड़ा बहुत खेल खेल में सीख आता..... तभी मुझे पता चला कि मैं फिर प्रेगनेंट हूँ, और इस बार मैंने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम आकाश ने अवनी रखा.....!! आकाश अवनी को पा कर बहुत खुश था। हमने सोच लिया था कि अब हमारा परिवार पूरा हो गया है....अब हमें बच्चे नहीं चाहिएँ तो साथ ही मैंने ऑपरेशन करवा लिया। सब कुछ परफेक्ट था मेरी लाइफ में। विकास भैया (देवर) भी L.L.B.कर चुके थे और L.L.M करने U.K जाना चाहते थे। पापा जी चाहते थे कि वो शादी करके अपनी बीवी को भी साथ ले जाएँ, पर उन्होंने कहा कि जब तक खुद कमाने नहीं लगूँगा तब तक शादी नहीं करूँगा......पापा जी नाराज हुए बहुत पर आकाश ने बड़ी मुश्किल से मम्मी जी और पापा जी को मनाया और उन्हें बाहर पढने भेजा गया। अवनी बहुत शांत थी बिल्कुल अपने पापा की तरह पप आरव मेरी तरह था, बहुत परेशान करता था अवनी को और फिर पापा से डाँच खाता तो मुझे वरूण और अपना बचपन याद आ जाता। वरूण और उसकी वाइफ कनिका हनीमून के लिए सिंगापुर गए थे, वापिस आए तो खुश तो बिल्कुल नहीं दिखे। हम लोग मिलने गए थे तो वरूण आरव और अवनी के लिए बहुत सारी चीजें ले कर आया था, पर वो खुश नहीं दिखा और न ही कनिका की आँखों में कोई उत्साह या नयी नयी शादी का खुमार दिखा। आकाश ने भी नोटिस किया था वरूण का ठंडापन....मम्मी से मैंने पूछा भी पर उन को भी कुछ पता नहीं था.....कनिका हम से मिली और कुछ देर बाद अपने कमरे में चली गयी,ये बोल कर की अभी आ रही है।हम लोग
जब वापिस जाने के लिए उठे तो मैं ही कनिका को बॉय बोलने उसकेे कमरे में चली गयी, वो मुझे देख कर बैठसे उठ कर खड़ी हो गयी, "दीदी मैं आ ही रही थी कि मम्मी का फोन आ गया था"! उसने कहा...."कोई बात नहीं कनिका हम लोग
जा रहे हैं तो सोचा बॉय बोल दूँ, क्या बात है कनिका तुम दोनो ही इतने उदास क्यों हो? कोई बात तुम्हें वरूण की बुरी लगी है तो मुझे बताओ...मैं उससे बात करती हूँ"? "नहीं दीदी ऐसी कोई बात नहीं है, बस घर की याद आ रही है, तो मन उदास हो गया"! उसका ये जवाब मुझे सही तो नहीं लगा क्योंकि उसका चेहरा उसके झूठ बोलने की चुगली कर रहा था, पर मैंने बस इतना ही कहा," ऐसी बात है तो मिल आओ तुम वरूण के साथ कल ही"!
"जी दीदी", उसका जवाब सुन कर मैं बाहर आ गयी और वो भी मेरे पीछे पीछे आ गयी और हम सबको बॉय बोल कर घर आ गए....पर उस रात मुझे ठीक से नींद नहीं आयी। सारी रात आँखो के सामने दोनों का उदास चेहरा ही घूमता रहा।
क्रमश: