Mamta ki Pariksha - 77 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 77

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ममता की परीक्षा - 77



अदालत परिसर में रोज की तरह ही काफी गहमागहमी थी। वकील बंसीलाल कोर्ट में वकीलों के लिए बने कक्ष की बजाय एक स्थानीय वकील की केबिन में बैठकर थाने से प्राप्त दस्तावेजों का अध्ययन कर रहे थे। प्रथम सूचना रिपोर्ट के साथ मेडिकल रिपोर्ट की एक प्रति भी उनके हाथ में थी।

मेडिकल रिपोर्ट पर नजर डालते हुए उनके चेहरे की चमक बढ़ गई। मनमाफिक रिपोर्ट देखकर मुस्कान खिल उठी थी उनके चेहरे पर। मन ही मन पहुँच और रुतबे का धन्यवाद करते हुए वह प्रथम सूचना रिपोर्ट को बारीकी से पढ़ने लगे।
दोपहर के भोजन के बाद की सुनवाई के लिए अदालत बैठ चुकी थी। अदालत परिसर में विचाराधीन कैदियों को लेकर पुलिस की गाड़ी भी पहुँच चुकी थी। सुशीलादेवी बहुत पहले ही आ गई थीं और सामने वाले रेस्टोरेंट में बैठी समय बिता रही थीं। चाय और स्नैक्स खा खा कर ऊब गई थीं।

बंसीलाल ने उन्हें आश्वस्त किया था कि कोर्ट की कार्यवाही शुरू होते ही वह उन्हें फोन करके बता देगा। बेटे की चिंता की वजह से उनकी झुँझलाहट बढ़ती जा रही थी। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे समय आगे बढ़ ही नहीं रहा है, घड़ी की सुइयाँ कहीं चिपक तो नहीं गईं ? बार बार उनकी नजर रेस्टोरेंट में लगी दीवार घड़ी पर चली जाती और फिर वहाँ से होती हुई उनकी निगाहें अपनी कलाई पर बँधी घड़ी पर आकर टिक जातीं।

समय अपनी गति से चल रहा था और इंतजार का एक एक पल सुशीलादेवी की व्यग्रता में इजाफा कर रहा था। तभी उनके मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर बंसीलाल का नंबर देखकर उनके दिल की धड़कन बढ़ गई। यह इशारा था बंसीलाल का उनके लिए कि अब वो जल्द से जल्द कोर्टरूम में पहुँचे। किसी भी वक्त रॉकी सहित उसके दोनों दोस्तों को जज के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है।

एक हाथ में मोबाइल और दूसरे हाथ से कंधे पर लटके किमती हैंडबैग को संभाले सुशीलादेवी तेजी से अपनी सीट पर से उठीं और रेस्टोरेंट से बाहर निकल कर कोर्ट रूम की तरफ बढ़ने लगीं।

कोर्टरूम के बाहर पुलिस की गाड़ी के पास अन्य आरोपियों के साथ ही खड़े हुए रॉकी और उसके दोनों दोस्तों को देखकर उनकी आँखें भर आईं। तीनों असहाय से सिपाहियों के घेरे में खड़े उनकी ही तरफ देख रहे थे। सुशीलादेवी ने इशारे से उन्हें आश्वस्त किया कि 'चिंता न करो , सब इंतजाम किया जा चुका है।'

सुशीलादेवी कोर्टरूम में जाकर दर्शकों के लिए रखी कोने की एक बेंच पर बैठ गईं। कुछ अन्य लोग भी पहले से बैठे हुए थे। बिरजू व उसके कुछ दोस्त भी पुलिसिया कार्रवाई के बाद अब अदालती कार्रवाई देखने के लिए पहले ही आकर बैठ गए थे। सुशीलादेवी व बिरजू और उसके दोस्त एक दूसरे से अपरिचित ही थे।
अदालत कक्ष में दबे स्वर में बिरजू और उसके दोस्तों की आपस में खुसरफुसर हो रही थी। कुछ शोर अन्य लोगों का भी था। दर्शकों की बेंचों के बाद सबसे अगली कतार पर वकील आकर बैठ चुके थे। जज साहब के अपनी कुर्सी पर आकर बैठते ही अदालत की कार्यवाही शुरू हो गई।

नजदीक ही बैठे एक कर्मचारी ने मुकदमों की लिस्ट वाला कागज जज साहब के सामने रख दिया। एक सरसरी नजर कागज पर डालकर जज साहब ने मुस्कुराते हुए धीरे से कहा ,"पहले सरकारी काम निबटा लें !" उनका इशारा समझते ही नजदीक खड़ा अर्दली कमरे के दरवाजे पर खड़े होकर जोर से पुकार उठा, "पुलिस चौकी ..सुजानपुर !"

दरोगा विजय जैसे इस पुकार का ही इंतजार कर रहा था। कक्ष में प्रवेश करके उसने जज को सलूट किया और अपने हाथों में थमा कागज उस कर्मचारी को थमा दिया जिसने वह कागज सीधे जज को सौंप दिया।

जज ने वह कागज देखने के बाद विजय की तरफ सवालिया निगाहों से देखा, लेकिन विजय भी कोर्ट की कार्रवाई से अनजान नहीं था। उसके इशारे पर सिपाहियों ने सभी आरोपियों को कक्ष में हाजिर कर दिया।

सभी आरोपी एक कतार में थे। राजू , रॉकी और सुक्खी एक साथ सबसे आगे थे। आगे की बेंच पर बैठे वकीलों में से एक लल्लन सिंह जो कि सरकारी वकील थे उठे और जज के सामने झुकते हुए बोले, "योर ओनर ! ये जो तीन मुजरिम आपके सामने खड़े हैं, इनके रिमांड की मियाद आज खत्म हो रही है। लेकिन चूँकि अभी हमारी जाँच पूरी नहीं हुई है, इसलिए अदालत से दरख्वास्त है कि इनके रिमांड की मियाद और बढ़ाई जाए।"

लल्लन सिंह के खामोश होते ही उनके ही बीच बैठा बंसीलाल उठ खड़ा हुआ और हाथ में थमा एक कागज अदालत के कर्मचारी की तरफ बढ़ाते हुए झुक कर उसने जज का अभिवादन किया और कहा ,"मीलॉर्ड ! ये मेरा वकालतनामा है और मैं इन आरोपियों की तरफ से अधिकृत वकील हूँ।"

इसके साथ ही सरकारी वकील चीख पड़े, "योर ओनर ! अभी जाँच पूरी भी नहीं हुई है। सारे गवाहों, तथ्यों और सबूतों पर विचार किया जाना है। सारे तथ्यों पर विचार करके आरोप तय किये जाएंगे और तब मुक़दमे की सुनवाई शुरू होगी। बचाव पक्ष के वकील की जरूरत तब पड़ेगी। अभी तो सिर्फ मुजरिमों के रिमांड पर ही विचार किया जाना है।"

इससे पहले कि बंसीलाल कुछ बोलते जज साहब बोले, "ऐसा नहीं है। मुजरिम को बचाव का हर समय हर संभव मौका मिलना चाहिए। लेकिन आपको इनकी रिमांड क्यों चाहिए ? ऐसा क्या है जो आप दो दिनों में नहीं कर सके ? इस आरोप में दो दिनों की रिमांड काफी होती है उस स्थिति में जबकि सभी आरोपी पकड़े गए हों।"

सरकारी वकील कुछ कहते उससे पहले ही बंसीलाल खड़े होते हुए बोले, "मीलॉर्ड ! अगर आप इजाजत दें तो मैं अदालत को कुछ बताना चाहता हूँ। उसके बाद मेरे दोस्त ये सरकारी वकील साहब खुद ही बोलेंगे कि वाकई अब आगे इन लड़कों को रिमांड पर दिए जाने की कोई जरूरत नहीं है।"

" इजाजत है !" कहकर जज ने उन्हें आगे बोलने की इजाजत दे दी।

अपने हाथ में थमी प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति जज साहब की तरफ बढ़ाते हुए बंसीलाल ने कहना शुरू किया ,"मीलॉर्ड ! इस प्राथमिकी में दर्ज सूचना रपट के अनुसार इन तीनों लड़कों ने एक नाबालिग लड़की बसंती वल्द रामलाल निवासी सुजानपुर का 25 जनवरी की रात बलात्कार किया। इस रपट के आधार पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने देर रात इन्हें गेस्टहाउस से गिरफ्तार कर लिया जो कि इस घटना की वारदात वाली जगह से ज्यादा दूर नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि यदि इस रपट पर यकीन किया जाय तो क्या यह मुमकिन है कि इतने जघन्य कृत्य को अंजाम देने के बाद भी ये शहरी छोरे जो कि पढ़े लिखे और होशियार भी हैं ऐसी बेवकूफी करेंगे वारदात की जगह के आसपास ही रहने की ?"

तभी लल्लन सिंह बीच में बोल पड़े ,"मेरे फाजिल दोस्त ! यदि आप यह कहना चाहते हैं कि बलात्कार इन तीनों ने नहीं किया है तो शायद आप भूल रहे हैं कि लड़की आरोपियों में से एक की शिनाख्त कर चुकी है।"
होठों पर गहरी मुस्कान बिखेरते हुए बंसीलाल बोले, "सही समझे हो मित्र ! लेकिन ये सब बाद की बातें हैं जो मैं इस केस की सुनवाई के दौरान साबित कर दूँगा। अभी तो मैं माननीय अदालत के सामने यही कहना चाहता हूँ कि आरोपियों को रिमांड पर लेकर जो कार्रवाई की जाती है वह सब पूरी हो जानी चाहिए पहले ही मिले रिमांड की अवधि में, इसलिए इन्हें फिर से पुलिस रिमांड में देने की कोई जरूरत नहीं है। ये तीनों लड़के भले घरों के सभ्य, शिक्षित व सुसंस्कृत बच्चे हैं जिनका इस अपराध में कोई हाथ नहीं है।"

जज ने बीच में ही टोकते हुए कहा ,"यदि आपके पास इनकी बेगुनाही का कोई सबूत है तो कृपया पेश करें। कानून कभी नहीं चाहता कि किसी बेकसूर को एक पल के लिए भी सलाखों के पीछे रखा जाए, लेकिन किसी गुनहगार को रियायत दी जाय यह भी नहीं हो सकता।"

क्रमशः