दीदार,...
उफ़्फ़, तेरे दीदार का यूँ असर हुआ है
कोन सा नशा है ये कि बीनपीए सभीका ये हाल हुआ है
तारो को आसमान मे खलल हो रहा है
चाँद तेरे हूश्नसे पागल हुआ है
आफताब को अपनी आग महेसूस नहीं होती
इस कदर तेरी जलन में वो जला हुआ है
पलक उठने पर, शहंशाहो के सर झुके है
तेरे सवार होनेसे, मुसाफिर रुके हुए है
तेरी मुस्कुराहट पे ही तो ये फूल खिले है
तेरे हुस्न के वैभव से लोग हिले हुए है
फ़रिश्तोने तेरा जिक्र खुले आम किया है
जन्नतमे महफ़िल का इंतजाम किया है
हवा हो, घटा हो, मौसम हो कोई,
तुम्हारी ज़ुल्फोने सब को गुलाम किया है
रूह तक को गिरवी रख्खा हुआ है
तुम्हे देखकर ही ये मसला हुआ है
तेरे दीदार से ही ये असर हुआ है
तेरे नशेसे ये सारा संसार बेहाल हुआ है
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खून जलता है,...
ग़ज़ल जब सुनाते हो हमें, तो खून जलता है
जब सूर अपना बदलते हो, तब खून जलता है
फ़िक्र होती है आपकी तो भी, खून जलता है
ख्वाब मचलते है और हमारा, खून जलता है
पलको में आपका अश्क़ नहीं, अब वहाँ ख़ून जलता है
जब घर में दिया जलता है, तब हमारा खून जलता है
सीने पे जब खंजर चलाते हो, हमारा खून जलता है
फरेब से बहाना बनाते हो, तब खून जलता है,...
तुमसा कोई साया दिख जाए, तो खून जलता है
दिलमें तूफ़ान मचलता है और, हमारा खून जलता है,...
जिक्र करता है कोई आपका, तो खून जलता है,...
यादे मिटाने लगे ज़हन से आपकी, तो खून जलता है..
ताल्लुक जब तोड़ दिया सलीक़ेसे आपने,
मिटा दिया है नाम-ओ-निशाँ इस दिल से आपने,
इल्म तक नहीं किस बात का गिला है
अबतो आपकी हर बातसे हमारा खून जलता है,...
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कसूरवार ...
मिली जो निगाह तो ये दिल फिसल आया
तेरी निगाहमे गिरफ़्तार हुआ मुझे बीमार पाया
कई सदियों तक चुनते रहे हम तिनके तेरे लिए
नसीब कहाँ की हमने तेरे साथ आशियाना पाया
उठाई जहेमत सदमे से उभरनेकी हमने
गिरे जो अश्क़ मेरे उसेभी तुमने गुनहगार पाया
तुम ग़ैरोंसे डर डर के लिपट जाते थे बार बार
तुर्बत (grave) में बेवफा का इल्जाम हमने पाया
तेरी महफ़िलमे मुजरिम तुमने सिर्फ हमको पाया
हर शख्स को बेगुनाह और हम-ही को कसूरवार पाया
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ये क्या है,..
हर शख्स जिसे हैरत से निहार रहा है
ये ख्बाब है मेरे हमदम, या फिर तेरी हया है
कैद कर के हर दिलको जिसने रख्खा हुआ है
सज़ा दे रही हो ? - या फिर ये तेरी अदा है
कदम पर जिसके ये फ़ज़ा रूख तक बदल दे
सूकून दे रही हो हमें या कोई तूफ़ान उठा है
निगाहें नसीयत से भरी है जिसकी
जैसे सोच समझकर कोई बोल रहा है
कातिलाना हूनर का हर अंदाज तो देखो उनका
जैसे इत्र में शराब कोई घोल रहा है
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बर्फीली ये सर्द रात,..
तेरे होठों का जब कर आयी यु तवाक (परिक्रम्मा) तब लगा -
पहले तो कभी भी ऐसी नहीं थी, बर्फीली ये सर्द रात,..
आज नयी सी लग रही है, बर्फीली ये सर्द रात,..
बेहोश कर रही है तेरी बाहोंमे हमे, बर्फीली ये सर्द रात,..
गुरूर की लाश को ढो रही है, बर्फीली ये सर्द रात,..
हर इल्जाम लेने को तैयार है, बर्फीली ये सर्द रात,..
हर सितम सहेने का बल दे रही है तेरे साथ, बर्फीली ये सर्द रात,.. ,
आँखों में दरिया बहा रही है जब होती है, बर्फीली ये सर्द रात,..
ख़ून जम जाता है तेरी बाहों से जब निकलना पड़ता है
हमेशा रहने लगी है नजरो के सामने, बर्फीली ये सर्द रात,..
मेरे दिलका पहुंचा दू कैसे शुक्रिया तुमको
की हो जाएगी बेजान तेरे बाद, बर्फीली ये सर्द रात,..
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