Mere Ghar aana Jindagi - 19 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 19

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 19


(19)

कुछ देर पहले ही समीर की ऑनलाइन ट्यूशन क्लास खत्म हुई थी। इस ट्यूशन से उसे फायदा हुआ था। आज क्लास में वह मैथ्स के सवाल हल कर पा रहा था। इससे उसका आत्मविश्वास भी बढ़ा था। वह दूसरे सब्जेक्ट्स में भी मेहनत करने लगा था। लेकिन इतना होने के बावजूद भी वह जानता था कि पढ़ाई में जो नुकसान उसका हुआ था उसकी भरपाई जल्दी नहीं हो पाएगी। उसने अमृता से कह दिया था कि हो सकता है कि इस बार वह अच्छे नंबर ना ला पाए।
पढ़ाई खत्म करके वह आँखें बंद करके लेट गया। वह अपनी आगामी ज़िंदगी के बारे में सोच रहा था। पढ़ाई पूरी करके फैशन डिज़ाइनर बनने का सफर कैसे करना है यह तो उसे स्पष्ट रूप से पता था। वह उस रास्ते पर चल भी पड़ा था जो उसे उसकी मंज़िल की तरफ ले जाने वाली थी। पर उसे अपने जीवन के दूसरे पक्ष की फिक्र थी। अपनी उस पहचान को पाने की जिसकी राह में बहुत सी मुश्किलें थीं। उस पहचान को पाने के लिए उसे समाज में स्थापित मान्यताओं को चुनौती देनी थी। लोगों के विरोध और उपहास का सामना करना था।
बाहर के लोगों से पहले उसे अपनी मम्मी को इस सबके लिए तैयार करना था। वह जानता था कि उसकी मम्मी उसे बहुत प्यार करती हैं। उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हैं। पर जो वह करना चाहता है उसे स्वीकार करना उसके लिए भी आसान नहीं होगा। वैसे उसने अत्महत्या की कोशिश के बाद उन्हें दबी ज़बान अपनी यह इच्छा बताई थी। लेकिन अब वह खुलकर उनसे इस विषय में बात करना चाहता था। वह जो करने की सोच रहा था उसका असर उसकी मम्मी पर भी होना था। उसके साथ साथ उन्हें भी लोगों की नाराज़गी का सामना करना पड़ सकता था। इसलिए वह चाहता था कि उसकी मम्मी सोच समझकर उसे अपना रुख बता दें।

इधर मकरंद और नंदिता के बीच बहुत कम बातचीत होती थी। नंदिता चाहती थी कि उनके बीच उस प्रस्ताव पर चर्चा हो जो उसके मम्मी पापा ने उनके सामने रखा था। मकरंद उस विषय को बिल्कुल भी छेड़ना नहीं चाहता था। उसे ऐसा लगता था कि नंदिता के पापा के मन में अभी भी उसको लेकर शंका है। यह बात उसे परेशान कर रही थी। इसलिए वह चाहता था कि नंदिता अपनी तरफ से उन्हें मना कर दे।
नंदिता टीवी देख रही थी। मकरंद वहीं पर बैठा अखबार पढ़ रहा था‌। छुट्टी का दिन था। नंदिता चाहती थी कि आज बात आगे बढ़ाए। उसने टीवी बंद कर दिया। कुछ देर रुककर बोली,
"मकरंद फ्लैट का काम आगे बढ़ा कि नहीं।"
मकरंद ने अखबार रखते हुए कहा,
"जितने भी लोग प्रभावित हैं उन लोगों ने मिलकर एक ग्रुप बनाया है। अभी कुछ देर पहले ग्रुप में मैसेज आया था कि आज चार बजे एक मीटिंग है। उसमें तय होगा कि बिल्डर पर दबाव कैसे बनाया जाए। मैं भी जाऊँगा उसमें।"
नंदिता ने यह सवाल इसलिए पूछा था ताकी बात को मोड़कर उसके पापा के प्रस्ताव पर लाया जाए। उसने बात आगे बढ़ाई,
"पता नहीं इस ग्रुप का कोई फायदा होगा या नहीं। शुरू में तो लोग बहुत उत्साह दिखाते हैं फिर पीछे हट जाते हैं।"
"यहाँ ऐसा नहीं होगा। सभी को परेशानी हो रही है। किसी एक की बात तो है नहीं।"
नंदिता ने सोचा कि सीधे मुद्दे पर आती है। उसने कहा,
"अच्छा है कि बात आगे बढ़े। पर उसमें वक्त लगेगा। तब तक लोन की किश्त और किराया दोनों देने पड़ेंगे।"
इस बात से मकरंद समझ गया कि नंदिता बात को कहाँ ले जाना चाहती है। उसने कहा,
"वह तो बहुत समय से देना पड़ रहा है। तुम्हें अचानक उसकी चिंता क्यों हो रही है।"
नंदिता भी उसका तंज़ समझ गई। उसने कहा,
"चिंता है मुझे। तभी मुझे लगता है कि पापा ने जो प्रस्ताव दिया है उस पर गौर किया जाए। हम दोनों मम्मी पापा के पास जाकर रहेंगे तो यहाँ का किराया बचेगा। तुम हमेशा खर्च के बारे में सोचते हो इसलिए कह रही थी।"
मकरंद ने उसे घूरकर देखा। उसके बाद गुस्से से बोला,
"तुमने भी वही कह दिया जो तुम्हारे पापा सोचते हैं। यही कि मैं अपनी जिम्मेदारियां नहीं उठा सकता हूँ। इसलिए तुम उनके पास जाकर रहना चाहती हो। जिससे तुम आराम से रह सको।"
नंदिता कुछ देर तक उसे देखती रही। जो कुछ मकरंद ने कहा था उसे बुरा लगा था। उसने कहा,
"तुम बेवजह बात को घुमा रहे हो। मैंने एक सीधी सी बात कही थी। लेकिन अब बात चली है तो मुझे बताओ मैंने गलत क्या कहा है। तुम हमेशा खर्च को लेकर फिक्रमंद रहते हो। मैंने देखी है तुम्हारी डायरी। तुम मेरी प्रेगनेंसी के दौरान हो रहे खर्च का भी हिसाब लिख रहे हो। बताओगे मुझे कि उसकी ज़रूरत क्या है।"
इस सवाल पर मकरंद खिसिया गया। उसने कहा,
"खर्च का हिसाब लिखने में क्या गलत है। मैं तो बहुत पहले से ऐसा कर रहा हूँ।"
"हिसाब लिखना गलत नहीं है। लेकिन गर्भवती पत्नी पर किए गए खर्च का हिसाब लिखना कोई अच्छी बात नहीं है।"
मकरंद इस बात का कोई जवाब नहीं दे पाया। नंदिता ने आगे कहा,
"मकरंद ना तो मेरा इरादा तुम्हें नीचा दिखाने का है और ना ही तुम्हारा दिल दुखाने का। मैं बस इतना चाहती हूँ कि अपने अहम को ताक में रखकर ठंडे दिमाग से सोचो। मैं मम्मी पापा के पास जाकर इसलिए नहीं रहना चाहती हूँ कि इससे मैं आराम से रह पाऊँगी। मैंने तुमसे प्यार किया है। तुम्हारे साथ मैं हर हाल में खुश रह सकती हूँ। मैं मम्मी पापा के पास इसलिए जाना चाहती हूँ कि उन्हें इस उम्र में अकेला ना रहना पड़े। हमें भी बड़ों की छत्रछाया मिल जाएगी।"
अपनी बात कहकर उसने फिर से टीवी ऑन कर लिया। मकरंद उठकर बेडरूम में चला गया।

शनिवार को क्लास में हिस्ट्री का टेस्ट हुआ था। आज उस टेस्ट के मार्क्स बताए जाने थे। समीर ने अपने हिसाब से तो अच्छी तैयारी की थी। फिर भी मन में एक डर था कि अगर पास भी नहीं हो सका तो सब लोग उसका मज़ाक उड़ाएंगे। इस समय इंग्लिश का पीरियड चल रहा था। उसके बाद ही हिस्ट्री का पीरियड था। समीर सोच रहा था कि आज हिस्ट्री के मार्क्स ना दिखाए जाएं। हिस्ट्री की टीचर मिसेज़ सेन कहें कि उनसे आंसर शीट्स खो गई हैं। या फिर नंबर बताए बिना सबको ऐसे ही उसकी आंसर शीट पकड़ा दी जाए।
इंग्लिश का पीरियड खत्म हो गया। सब बच्चे मिसेज़ सेन के आने का इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन उन्हें आने में देर लग रही थी। समीर मना रहा था कि कोई आकर कह दे कि मिसेज़ सेन की तबीयत खराब है। वह क्लास में नहीं आएंगी। श्रेयस अपने ग्रुप से कह रहा था कि उसका टेस्ट तो बहुत अच्छा गया था। उसे पूरी उम्मीद है कि क्लास में सबसे अधिक नंबर उसके ही होंगे। बात करते हुए उसने समीर की तरफ देखा। उसके बाद हंसकर अपने साथियों से बोला कि कुछ लोग तो घबरा रहे होंगे। उन्हें तो पास होने की भी उम्मीद नहीं होगी। उसकी बात पर सब हंस दिए।
मिसेज़ सेन पाँच मिनट की देरी से क्लास में आईं। उन्होंने कहा कि कुछ आंसर शीट्स रह गई थीं। अपने फ्री पीरियड में उन्हें ही चेक कर रही थीं इसलिए देर हो गई। उन्होंने पूरे क्लास पर नज़र डालते हुए कहा,
"तीन लोगों को छोड़कर बाकी सबने बहुत अच्छा किया है। उम्मीद है फाइनल एग्ज़ाम में भी ऐसा ही करेंगे।"
यह कहकर मिसेज़ सेन आंसर शीट्स देखने लगीं। समीर को पूरा यकीन हो गया था कि जिन तीन ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है उनमें उसका नाम ज़रूर होगा। वह अपनी नज़रें झुकाए बैठा था। मिसेज़ सेन ने कहा,
"टेस्ट में सबसे ज्यादा मार्क्स श्रेयस के आए हैं।"
सबने तालियां बजाईं। श्रेयस उठकर मिसेज़ सेन के पास गया। उन्होंने आंसर शीट देते हुए कहा,
"कीप इट अप....सारे टीचर्स तुम्हारी तारीफ करते हैं।"
उसके बाद मिसेज़ सेन ने बेस्ट फाइव के मार्क्स बताए। क्लास के मॉनीटर से कहा कि बाकी सबको उनकी आंसर शीट्स दे दे। सबके पास उनकी आंसर शीट्स पहुँच गई थीं। सब अपने अपने मार्क्स देख रहे थे। समीर की आंसर शीट उसके सामने थी। पर वह उसकी तरफ नहीं देख रहा था। उसे पूरा यकीन था कि वह फेल हो गया है। मिसेज़ सेन ने एकबार फिर कहा,
"सबने अपने मार्क्स देख लिए। पर अभी जितने हैं उनसे और अधिक लाने की कोशिश करो। अब मैं बात करूँगी उस स्टूडेंट की जो बहुत अच्छे नंबर तो नहीं लाया है पर कई दिनों से स्कूल नहीं आ रहा था। उसका कोर्स बहुत छूट गया था। फिर भी उसने मेहनत की और अपने हिसाब से अच्छा किया।"
मिसेज़ सेन की बात सुनकर समीर ने अपनी आंसर शीट की तरफ देखा। तीस मार्क्स के टेस्ट में उसे सोलह नंबर मिले थे। वह पास हो गया था। मिसेज़ सेन उसका नाम ले रही थीं। क्लास में सन्नाटा था। समीर ने मिसेज़ सेन की तरफ देखा। उन्होंने ताली बजाई। उसके बाद पूरे क्लास में तालियों की आवाज़ गूंज गई।
समीर ने खुश होकर पूरे क्लास पर नज़र डाली। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। बीते कुछ दिनों से उसका आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ गया था। आज मिसेज़ सेन के प्रोत्साहन ने उसे मजबूती प्रदान की थी। उसे लग रहा था कि अब वह बिना डर के अपने फाइनल एग्ज़ाम्स दे सकेगा।
उसने मिसेज़ सेन को हाथ जोड़कर अपनी कृतज्ञता प्रकट की।