Mamta ki Pariksha - 76 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 76

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ममता की परीक्षा - 76



रॉकी की हालत देखकर सुशीलादेवी की आँखें भर आईं, लेकिन झिंझोड़ते हुए राजू को एक जोर का धक्का देते हुए रॉकी ने उसपर गंदी गालियों की झड़ी लगा दी।
बेशर्मी से हँसते हुए राजू उससे कहता रहा, "अरे एक बार उठकर तो देख ! आँटी आई हैं।"

करवट बदलकर आँखें मलते हुए रॉकी बोला, " आँटी ! कौन आँटी ?" और फिर सामने सुशीलादेवी को खड़ी देखकर उठ खड़ा हुआ और सींखचों के पास आते हुए शिकायती लहजे में बोला, "क्या मम्मा ! तुम को पता है तुम्हारा बेटा हवालात में है और तुम यहॉं खड़ी होकर पता नहीं क्या कर रही हो ? जाओ न किसी नेता के पास ! नहीं तो कम से कम कमिश्नर अंकल को तो फोन करो। देखो कितनी गंदगी है यहाँ। सारी रात मच्छरों ने सोने नहीं दिया।" कहते हुए वह रोने लगा था।

" मैं वही कर रही हूँ मेरे बेटे ! अभी दरोगा जी से बात की है लेकिन इसे ईमानदारी के कीड़े ने काट खाया है। तुम फिकर न करो। मैं कुछ न कुछ इंतजाम कर लूँगी। अपनी मम्मा पर भरोसा रखो।" सुशीला देवी ने अपनी आँखें पोंछते उसे धीरज दिलाया कि तभी बंसीलाल बोल पड़ा, "चिंता न करो बेटा ! अदालत से मैं तुम्हें साफ साफ बचा लूँगा। बस एक बार इन्हें अदालत में आने दो।" उसने भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी रॉकी को दिलासा देने की।

कुछ देर तक दोनों एक दूसरे को देखकर रोते रहे और फिर सिपाही के टोकने पर सुशीलादेवी बंसीलाल के साथ थाने से बाहर आ गईं।

बाहर प्रांगण में खड़ी अपनी कार की तरफ बढ़ते हुए उन्होंने बंसीलाल से पूछा ,"अब आगे क्या किया जा सकता है बंसीलाल जी ? ये दरोगा तो बड़ा बेकार और नासमझ निकला। ऐसे नासमझ लोग ही मौके का फायदा उठाने से चूक जाते हैं और फिर जिंदगीभर कीड़े मकोड़ों की तरह रहते हुए किस्मत को कोसते रहते हैं। आज अगर ये मुँह खोलता तो मैं इसे पचीसों लाख दे देती जिसे ईमानदारी से कमाने में इसकी पूरी जिंदगी लग जायेगी। कहता तो और भी दे देती बस वह रॉकी को छोड़ देता तो।"

मन की भड़ास निकालते हुए सुशीलादेवी कार में बैठ चुकी थीं। बंसीलाल के बैठने के साथ ही गाड़ी पीछे की तरफ बढ़ी और फिर एक झटके से मुड़कर जिस दिशा से आई थी उसी तरफ तेजी से आगे बढ़ गई।

कुछ देर की खामोशी के बाद बंसीलाल ने शांति भंग करते हुए कहा ,"मैडम ! अब हमारे सामने सिवा इसके कोई चारा नहीं कि किसी भी तरह से इस दरोगा पर दबाव बनाया जाय। किसी भी केस में प्रथम सूचना रिपोर्ट का सबसे बड़ा रोल होता है। सरकारी वकील उसी के आधार पर केस लड़ता है। प्रथम सूचना रिपोर्ट और फिर बाद में शामिल की गई विवेचना रिपोर्ट ही केस की मजबूती तय करते हैं। प्रथम सूचना रिपोर्ट तो इसने बना ही लिया होगा। अब एक ही रास्ता है कि उसको मजबूत विवेचना रिपोर्ट तैयार करने से रोका जाए।"

असहज महसूस कर रही सुशीलादेवी ने बंसीलाल को बीच में ही टोकते हुए कहा ,"बंसीलाल जी, हम यहाँ आपसे केस की विवेचना समझने के लिए नहीं बैठे हैं। उसमें अभी बहुत समय है। मैं यह जानना चाहती हूँ कि अभी तत्काल कैसे इन तीनों को छुड़ाया जा सकता है ?"

" मैडम, लड़की ने तीनों में से एक अभियुक्त की पहचान कर ली है मतलब उसका आरोप विचारणीय है। माननीय जज इस बात के मद्देनजर आज उनकी जमानत किसी भी सूरत में मंजूर नहीं करेंगे। आज पुलिस को उनकी रिमांड मिलेगी ही, इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। हमारा काम शुरू होगा तब, जब पुलिस रिमांड की मियाद खत्म होने पर तीनों को फिर से अदालत में पेश करेगी। उस समय से पहले यदि हम दरोगा पर थोड़ा भी दबाव बनाने में कामयाब हो गए तो निश्चित ही मैं इन सभी को जमानत पर रिहा भी करवा दूँगा और आगे केस भी खारिज करवा दूँगा।" बंसीलाल ने सुशीलादेवी को समझाया।

बंसीलाल की बात सुनकर दर्द से तड़प उठीं सुशीलादेवी ! अनायास ही उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े थे।
"इसका मतलब आज मेरे बेटे का पुलिस थाने से छूटना मुश्किल ही नही नामुमकिन है।" सुशीलादेवी अचानक हताश, निराश व परेशान नजर आने लगी थीं।

बंसीलाल ने तत्परता से कहा, "ऐसा नहीं है मैडम। हम एक प्रयास कर सकते हैं। आप एक काम कीजिये मैडम ! सुना है यहाँ के कमिश्नर श्रीवास्तव जी से आपके निजी रिश्ते हैं।"
सुशीलादेवी के चेहरे पर पहले तो नागवारी के भाव उभरे लेकिन फिर तत्क्षण ही रहस्यमयी मुस्कान फैल गई,"हाँ, श्रीवास्तव जी तो हमारे बहुत खास लोगों में से हैं। वैसे मंत्री रामप्रसाद जी भी हमारे कद्रदानों में हैं। क्या इन लोगों से कोई मदद मिल सकती है ?"

"अरे वाह, हमें तो पता ही नहीं था कि आपकी इन लोगों तक सीधे पहुँच है। बस कमिश्नर साहब ने एक फोन कर दिया तो समझो, हमारा काम हो गया और फिर भी कोई बाधा आई तब मंत्री जी तो हैं ही। मंत्रीजी हमारे साथ हैं तो फिर तो चिंता की कोई बात ही नहीं है।" बंसीलाल ने चहकते हुए कहा।

"अब थोथी बातें ही मत करो, कुछ काम की बात भी बताओ कि अब मुझे क्या करना चाहिए जिससे रॉकी को आज ही थाने से छुड़वा सकें।" सुशीलादेवी ने व्यग्रता से पूछा।

"आज तो आपको संतोष करना होगा मैडम ! आज अगर किसी भी तरह इनको छुड़वा लिया गया दबाव डाल के तो इन गाँववालों का असंतोष भड़क उठेगा। पुलिस थानों के खिलाफ धरना प्रदर्शन शुरू हो जाएगा। आज अदालत में पेश करके पुलिस इनकी रिमांड लेगी और थाने में रखेगी जिससे ग्रामीणों का गुस्सा थोड़ा शांत हो जाएगा। अभी बस आप कमिश्नर साहब से कह दीजिये कि सुजानपुर थाने के दरोगा को बता दें कि वह हमें सहयोग करे। बस उनका एक फोन ही काफी है, और अगर वो इंकार करें तो फिर मंत्री जी को फोन कीजिये।" बंसीलाल ने विस्तार से उन्हें समझाया।

सुुशीलादेवी ने तुरंत ही कमिश्नर श्रीवास्तव जी से फोन पर बात की और उन्हें सब समझाया।

बंसीलाल के कहे मुताबिक ही हुआ। कमिश्नर श्रीवास्तव जी ने उन्हें आश्वासन दिया और बताया कि आप दरोगा की तरफ से निश्चिंत रहो। थाने में तुम्हारे बेटे को कोई तकलीफ नहीं होगी। मेडिकल रिपोर्ट ठीक से बनवा लो।

बंसीलाल के कहने पर सुशीलादेवी ने तुरंत ही मंत्रीजी को फोन किया और पूरी घटना बताते हुए उनसे मदद माँगी। मंत्रीजी ने तुरंत ही जिला अस्पताल में फोन किया जहाँ बसंती का मेडिकल चेकअप अभी चल ही रहा था। मंत्री रामप्रसाद जी के फोन के बाद बसंती का चेकअप करके उसकी रिपोर्ट लिखने वाला डॉक्टर उनकी पसंद के मुताबिक रिपोर्ट बनाने के लिए बाध्य था। क्या करता बेचारा ?

बंसीलाल ने सुशीलादेवी की पहुँच का इस्तेमाल करके रॉकी को बचाने की सारी तैयारी पूरी कर ली। उस दिन मेडिकल जाँच की रिपोर्ट थाने में सौंप कर बसंती और बिरजू अपने घर चले गए थे।

दरोगा विजय ने रॉकी और उसके साथियों को अदालत में पेश करके उनकी दो दिन की रिमांड ले ली, लेकिन इसी बीच कमिश्नर श्रीवास्तव का फोन आने के बाद वह चाहकर भी उन अपराधियों के साथ अपराधियों जैसा सलूक नहीं कर पाया।

दो दिन की रिमांड पूरी होने के बाद नियमानुसार आज फिर आरोपियों को अदालत में पेश किया जाना था।

क्रमशः