Ishq a Bismil - 25 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 25

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इश्क़ ए बिस्मिल - 25

वह सिढ़ियां चढ़ती, सोनिया के कमरे में पहूंची थी, उसका कमरा काफ़ी बड़ा और साथ ही साथ बोहत ख़ूबसूरत भी था। वह आते ही काम में लग गयी थी। उसका रूम काफी ज़्यादा बिखरा और गंदा था, उसका रूम देख कर मालूम हो रहा था कि बहुत दिनों से वहाँ की सफाई नही की गयी हो। इतने ज़्यादा गंदे कमरे की सफाई में देर तो होनी ही थी, मगर एक एक चीज को संभल संभल कर साफ करने में और भी ज़्यादा वक़्त लग गया था। तीन घंटे की मेहनत के बाद उसका कमरा बिल्कुल साफ हो गया था। वह कमरे से निकालने ही वाली थी के अचानक से नसीमा बुआ आ गयी।
“मैं देखने आई हूँ, सफाई हुई की नहीं? वैसे आप बोहत सुस्त है, एक कमरे में इतनी देर लगा दी, तो फ़िर बाकी जगहों की सफाई कब होगी?” वह कहते कहते कमरे का जाइज़ा भी ले रही थी, और मन ही मन अरीज के काम से काफ़ी खुश भी हुई थी मगर उसने इज़हार नहीं किया था।
“कुछ टूटा तो नहीं?” वह चीज़ो को निहारते निहारते रुकी थी और अरीज से थोड़ा रश टोन में सवाल किया था। अरीज ने अपना सर हिला कर नही में जवाब दिया था।
नसीमा बुआ पूरे रूम की सफाई से तसल्ली करने के बाद अब बाथरूम चेक करने के लिए बाथरूम का दरवाज़ा खोली थी और खोलते ही उसे बंद भी कर दिया था।
“यह क्या? तुमने तो बाथरूम की सफाई ही नहीं करी।“ नसीमा बुआ ने अरीज को ऐसे झड़क कर कहा था जैसे अरीज ने कोई बड़ी गलती या फिर कोई गुनाह कर दिया था।
“मैं कर दूंगी...अभी और भी जगहों की सफाई बाकी है ना तो अगर पहले बाथरूम साफ़ कर दूँगी तो मुझे नहाना पड़ जायेगा।“ अरीज को बिल्कुल भी उम्मीद नही थी के उससे बाथरूम की सफाई भी करवाई जाएगी इसलिए उसने नहीं किया था मगर नसीमा बुआ की तोप की तरह सवाल ने उसे ये जवाब देने पर मजबूर कर दिया था।
दो बज चूके थे और अभी काम बोहत सारा बाकी था, एक दिन में पूरे घर की सफाई नामुमकिन बात थी क्योंकि वह घर काफी बड़ा था। उसने अज़ीन को कमरे में छोड़ कर तअकीद की थी के वह कमरे से बाहर ना निकले। वह सुबह से भूकी थी, ज़ख़्मी थी और बदन से खून बह जाने पर कमज़ोर भी हो गई थी। अरीज का ध्यान अब कामों में बिल्कुल भी नही लग रहा था, वह बार बार अज़ीन को ही सोचे जा रही थी। बिना कुछ खाए पिये वह सफाई जैसी मुश्किल काम में लगी हुई थी इसलिए कमज़ोरी तो उसे भी लग रही थी मगर यहाँ उसका कोई अपना नहीं था जो उस पर तरस खाता।
इसी कमज़ोरी और बेख्याली में हॉल की सफाई करते करते उसके हाथ से क्रिस्टल का vase टूट गया। वास टूटने की आवाज़ से बाकी नौकर भी जाने कहाँ कहाँ से निकल कर वहाँ पे जमा हो गए थे। अरीज को काटो तो बदन में खून नही जैसा हाल हो गया था। वह इतना ज़्यादा डर गयी थी के वहीं पे फुट फुट कर रोने लगी तभी अचानक से उसे उमैर आते हुए दिखा। वह जाने किस बिल में घुसा था के अभी अभी ही निकला था।
उसे देखते ही अरीज के आँसूओं में तेज़ी आ गयी थी। उमैर उसके पास आकर खड़ा हो गया था। उसे देखकर अरीज ने नहीं नहीं में गर्दन हिलानी शुरू कर दी थी। उसका चेहरा अलग उसके आँसुओं से धुला जा रहा था।
“मैंने जान बूझ कर नहीं तोड़ा।“ वह बा मुश्किल इतना कह पाई थी और अब भी नहीं नहीं में गर्दन हिला रही थी।
“तुम पागल हो क्या? कोई जान बुझ कर क्यों तोड़ फोड़ करेगा... तुम इतनी भी जंगली नहीं लगती के ऐसी हरकत करोगी। एक्चुअली बात ये है की रोना धोना तुम्हारी हॉबी है... इसलिए बात बे बात पर बस आँसुए बहाती रहती हो।“ अरीज को लगा था की उमैर भी बिल्कुल अपनी माँ की तरह ही उसे डांटेगा क्योंकि वह दोनों ही अरीज को ना पसंद करते हैं। अरीज को उसने डांटा था मगर vase टूटने पर नहीं बल्कि रोने पर लेकिन अरीज को उमैर की यह डाँट इतनी बुरी नहीं लगी थी बल्कि वह तो अब रोना भूल कर हैरानी से उमैर को देख रही थी।
“वैसे तुम आखिर साबित क्या करना चाहती हो, यही ना की तुम बोहत अच्छी हो, एक बहु की तरह घर की ज़िम्मेदारियों को समझती हो, अपने हाथों से घर के काम कर रही हो मगर सच्चाई यह है की इन सब का कोई फ़ायदा नहीं है.... मैं और मॉम तुमसे कभी इंप्रेस नहीं होंगे... सो प्लिज़ यह सब ड्रामा बंद करो और यहाँ जो करने आई हो सिर्फ़ वो करो... अपने कमरे में जाओ आराम फरमाओ, ऐश करो और मस्त रहो।“ दरासल ज़मान खान को business के सिलसिले में अचानक से सुबह ही सुबह शहर से बाहर जाना पड़ा था, तो उन्होंने उमैर से request की थी के वो उनकी ग़ैर मौजुदगी में अरीज का ना सही अज़ीन का ख़्याल रखे क्योंकि उसे चोट लगी हुई थी इसलिए उमैर ना चाहते हुए भी उसकी खबर लेने पहुंच गया था।
यूँ तो उमैर ने उसे ताने दिये थे की वह अपने कमरे मे जाएं और आराम करे मगर दरासल उसे ये ताने, ताने जैसे नहीं लगे थे बल्कि ऐसा लगा था की उसे किसी क़ैद से आज़ादी की खुशखबरी सुनाई गयी हो जब ही उसकी रोती हुई आँखें यकायक मुस्कुराने लगी थी। अरीज इतना ज़्यादा खुश हुई थी की उसने मुस्कुराते हुए बिना कुछ सोचे समझे उमैर को शुक्रिया अदा किया था और फिर वहाँ से दौड़ते हुए सीढ़ियां चढ़ती चली गई थी और उमैर हैरानी से उसे नीचे खड़ा देखता रह गया था। उनके साथ खड़ी नसीमा बुआ सोच में पड़ गई थी कि आसिफ़ा बेगम को अब वह क्या जवाब देगी।
आसिफ़ा बेगम किसी पार्टी में शिरक़त करने गई हुई थी और अपने पीछे नसीमा बुआ को ये काम दिया था की वह अरीज से बोहत ज़्यादा काम करवाये और तो और दोपहर का खाना भी ना दे। मगर यहाँ तो पासां ही पलट गया था, सिर्फ़ चार घंटे की सफाई के बाद ही अरीज को छुट्टी मिल गई थी।
अपनी हैरानी को समेटते हुए उमैर अरीज के पीछे अपने कमरे में गया था, जहाँ उसने देखा अज़ीन रो रही थी और अरीज उसे मनाते हुए चुप कराते हुए उसके मूंह में निवाले डाल रही थी।
उमैर उनके पास खड़ा हो गया था और बध्यानी में कहते कहते रुक गया था “हमें हॉस्पिटल जाना होगा stiches की ड्रेसिंग..... “ उमैर की नज़र अज़ीन की प्लेट पर पड़ी थी। एक प्लेट में चंद रोटी के टुकड़े थे, रोटी के साइड पर थोड़े से अचार थे और प्लेट के उपर ही पानी का ग्लास जो के पानी से आधा भरा हुआ था। अरीज रोटी के टुकड़े में अचार लगा कर पानी में डूबा डूबा कर अज़ीन के मूंह में वह निवाला डाल रही थी।
बहन की तकलीफ से वह इतना परेशान थी की उसने उमैर के आने का नोटिस ही नही लिया था। उमैर की बातों पर उसने सर उठाकर उसे देखा था। वह काफी गुस्से में उसे ही देख रहा था।
क्या होगा आगे?...
क्या उमैर जान पायेगा अरीज की मजबूरियों को?
क्या उसका दिल ये मंज़र देख कर पिघल पायेगा?