Ishq a Bismil - 21 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 21

Featured Books
  • ભીતરમન - 59

    મુક્તારના જીવનમાં મારે લીધે આવેલ બદલાવ વિશે જાણીને હું ખુબ ખ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 121

    ભાગવત રહસ્ય-૧૨૧   ધર્મ -પ્રકરણ પછી હવે -અર્થ -પ્રકરણ ચાલુ થા...

  • કૃતજ્ઞતા

      આ એ દિવસોની વાત છે જ્યારે માનવતા હજી જીવતી હતી. એક ગામમાં...

  • નિતુ - પ્રકરણ 53

    નિતુ : ૫૩ (ધ ગેમ ઇજ ઓન)નિતુને કૃતિ સાથે વાત કરવાની જરૂર લાગી...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 13

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

Categories
Share

इश्क़ ए बिस्मिल - 21

इस चाक दिल की मरम्मत कर दो
हौसला टूटने से पहले
थोड़ी अज़मत कर दो।
“तुम यहां क्या कर रहे हो?” ज़मान ख़ान उमैर को ढूंढते हुए अपने पुराने बंगले में आ गए थे, जो अरीज को देन मेहर में दिए गए बंगले के बिल्कुल बगल में ही था। इस बंगले को उन्होंने किराए पर दिया हुआ था लेकिन चार महीने पहले ही बंगला खाली हो गया था जिस वजह से वहां काफ़ी धूल और गर्द था। उमैर बंगले की सफ़ाई के लिए घर से ही दो नौकर ले आया था। बंगले में हो रही हलचल महसूस कर के ज़मान ख़ान वहां आ गए थे।
“तो क्या मैं यहां नहीं आ सकता? ओह हां! यह बंगला तो आपका है, आपके नाम है, मेरा इस पर क्या हक़?” उमैर काफ़ी जज़्बाती हो रहा था। ज़मान ख़ान को उसकी हालत पर अफ़सोस हो रहा था।
“उमैर घर चलो, अरीज क्या सोचती होगी हमारे बारे में?” उन्होंने उसे मनाते हुए कहा।
“मैं उसके बारे में क्या सोचता हूं, उसे फ़िक्र है इस बात की?” वह अपनी ज़िद पर अड़ चुका था।
“क्या सोचते हो उसके बारे में? मुझे भी बताओ।“ वह मुस्कराते हुए उसके कंधों पर हाथ रखकर उसे सोफे पर बैठाएं थे और खुद भी उसके बगल मे बैठ गए थे। उमैर को उनका रिलैक्स होना ज़हर लग रहा था। वह इतना परेशान था और उसके बाबा को कोई फ़िक्र ही नहीं थी, उन्होंने उसके साथ कितनी बड़ी ज़्यादती की थी मगर उन्हें कोई पछतावा नहीं था। उमैर उन्हें गुस्सा में बस घूर कर रह गया।
“वह बहुत अच्छी लड़की है उमैर, देखना तुम, एक दिन वह बहुत अच्छी बीवी साबित होगी, और उस दिन तुम अल्लाह का और फ़िर मेरा शुक्र करोगे।“ उमैर के होंठों पर एक तंज़िया (व्यांग) मुस्कुराहट मचल गई। उसे अपने बाबा की ख़ुश फ़हमी पर हंसी आ रही थी।
“एक लड़की जो निकाह के रूप में अपना सौदा कर दे सिर्फ़ इसलिए के मेहर में जायदाद दौलत हासिल कर सकें वह क्या अच्छी बीवी साबित होगी बाबा?” उमैर अपने अल्फ़ाज़ से कड़वाहट उगल रहा था, ज़मान ख़ान को उसकी बातें तकलीफ़ दे रही थी मगर वह बर्दाश्त कर रहे थे। वह उसे कुछ देर यूंही ख़ामोश देखते रहे फ़िर उसके बगल से उठ कर चलते हुए खिड़की के सामने खड़े हो गए। उमैर समझ गया था कि उसकी बातों से वह हर्ट हुए हैं मगर उसे पछतावे की जगह गुस्से ने आन घेरा था, उसे अरीज पर और भी ज़्यादा गुस्सा आ रहा था, चंद घंटों की मुलाकात में उसने उसके बाबा को अपनी मुठ्ठी में कर लिया था।
“मैंने सुना था कि दौलत इंसान को इज़्ज़त दिलाती है, अगर आप के पास दौलत है तो लोग आपके सामने झुकेंगे, आपके साथ रिश्ता जोड़ना पसंद करेंगे भले आप जैसे भी हो, वह क्राइटेरिया बाद में आता है, इम्पोर्टेंस सिर्फ़ और सिर्फ़ दौलत है। है ना?” वह खिड़की से बाहर देखते हुए कह रहे थे फिर अचानक से मुड़ कर उमैर से अपनी कही हुई बातों की सच्चे होने की गवाही मांगी। उमैर इस पोजीशन में नहीं था कि कोई बहस करता उसका सर दिल दिमाग सब जैसे फटा जा रहा था, कभी गुस्से से तो कभी ग़म से।
“अगर मैं तुम से यह कहता कि अरीज मेरे किसी राइस दोस्त की बेटी है, उसके मां बाप अब दुनिया में नहीं रहे, मैं तुम्हारा निकाह उससे करवाना चाहता हूं और उसकी सिक्यौर फ़्युचर के लिए सिक्योरिटी के तौर पर यह बंगला उसके नाम करना चाहता हूं तब उमैर साहब आप कभी उस अमीर बाप की बेटी के लिए सौदा जैसा लफ़्ज़ इस्तेमाल नहीं करते।“ ज़मान ख़ान यह कहते कहते जज़्बाती हो गये थे जिसकी वजह से उनकी आंखें नम हो गई थी। उमैर को यह देखकर शर्मिंदगी महसूस हुई।
“मैं तुम्हें वापस घर ले जाने आया था। तुम से यहां बात करने आया था, कुछ misunderstanding क्लैर करने आया था, तुम्हें बताना चाहता था अरीज के बारे में, के वह कौन है, मैंने यह घर उसके नाम क्यों करवाया? मगर अब नहीं तुम उसे तलाक देना चाहते हो तो दे दो, और इस ज़बरदस्ती के रिश्ते से आज़ादी हासिल कर लो, मैं उसकी शादी कहीं और करवा दुंगा। घर चुंकि मेहर में दिया गया है तो तुम उसे वापस नहीं ले सकते मगर हां मैं तुम्हें उसकी कीमत ज़रूर अदा कर दुंगा। तुम बस ख़ुश रहो, मेरे लिए सब से ज़्यादा रही ज़रूरी है।“ अपने आंसुओ को ज़ब्त करने की कोशिश में ज़मान ख़ान का चहरा लाल हो गया था। उमैर से उनकी यह हालत देखी नहीं जा रही थी इसलिए उसने नज़रें नीची कर ली थी। ज़मान ख़ान उसका कंधा थपथपाकर वहां से चल दिए थे और उमैर अपने बाबा को हर्ट कर के अब पछता रहा था।
ज़मान ख़ान उमैर से मिल कर औफ़िस जा चुके थे। शाम के छह बज रहे थें, अरीज और अज़ीन अभी तक उमैर के कमरे में ही पड़े थे, नसीमा बुआ ने दोनों का दोपहर का खाना और शाम की चाय उनके रूम में ही पहूंचा दी थी, मगर अज़ीन एक कमरे में पड़े पड़े काफ़ी बोर हो गयी थी। वह बार बार खिड़की से लाॅन में लगे झूले को ललचाई हुई नजरों से देखती और अरीज से नीचे लाॅन में जाने की इजाज़त मांगती। अरीज उसे हर बार मना कर देती और वह मायूस हो कर रह जाती।
अरीज को मग़रिब की नमाज़ अदा करते देख कर अज़ीन को मौका मिल गया था वहां से फ़रार का। अरीज ने जैसे ही नमाज़ की नीयत बांधी अज़ीन वैसे ही वहां से नौ दो ग्यारह हो गई।
अज़ीन ने सीढ़ियों पर खड़े होकर नीचे हाॅल में पहले झांक कर देखा, जहां दो नौकर खड़े बातें कर रहे थे, वह उन्हें देख कर डर गई के कहीं कल वाली आंटी की तरह वह भी उसे ना डांटना शुरू कर दे। उसने दिल ही दिल में अल्लाह से दुआ मांगी के उन दोनों को वहां से हटा दे और कमाल की बात तब हो गई कि जैसे उसने फ़रयाद की वैसे ही मुराद पूरी कर दी गई। वह दोनों नौकर वहां से चले गए। अज़ीन अल्लाह का शुक्र अदा करती किसी चंचल गिलहरी की तरह सीढियां उतरती चली गई, उसकी चाल में ग़ज़ब की तेज़ी आ गई थी, ख़ुशी एक तरफ़, सब की नज़रों से बच कर निकल जाना दूसरा मक़सद था। पिंक कलर की फ़्राॅक में वह गुलाबी गुड़िया अपनी मंजिल की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रही थी, हाॅल, काॅरीडोर, राहदारी, सब को फ़लांगती वह लान में पहुंच गई थी। चमकती आंखों में झूले का अक्स झिलमिला रहा था। वह झूला जितना दूर से ख़ुबसूरत दिख रहा था करीब से उसकी ख़ुबसूरती दोबाला हो गई थी। घना, सायादार, सफ़ेद बौहिनिया के दरख़्त की मज़बूत बाहों में डोलता वह झूला अज़ीन के दिल को छू गया था। सफ़ेद और गुलाबी रंग की फूलों वाली बेल से झूले की रस्सियां ढंकी हुई थी, अज़ीन ने हाथ लगाकर फूलों को छुआ और शादमान (ख़ुश) हो गई।
वह झूले पर बैठ कर जैसे हवाओं से गले मिल रही थी। कभी बुलंदियों को छूती तो कभी पस्तियों से जा टकराती बिल्कुल किसी ज़िंदगी की तरह।
उसे झूला झूलते हुए लगभग ५ मिनट हुए होंगे कि एक १२ साल का ख़ुबसूरत लड़का जो अपनी चाल ढाल और पहनावे से काफ़ी अमीर दिख रहा था उसे झूले से उतरने का हुक्म देने लगा। अज़ीन काफ़ी डर गई थी, इतना ज़्यादा की उसका दिमाग़ काम नहीं कर रहा था। वह उसकी बात मानने के बजाय डरी घबराई सी उसे देखती रह गई। उसकी बात ना मानने पर उस लड़के को गुस्सा आ गया, उसने झूले की रफ़्तार कम करने के लिए झूले की रस्सी पर हाथ रखा मगर झूला थमने की बजाय उसकी उंगलियां ऐंठ गई और साथ ही झूले की रस्सियों पर पीरोई हुई बेलों की टहनियों से नाज़ुक उंगलिया भी छीला गई जिससे उस लड़के को काफ़ी गुस्सा आ गया और उसने ना आव देखा ना ताव अज़ीन को झूले पर से धक्का दे दिया वह मूंह के बल ज़मीन पर गिर पड़ी।