Khauf ki rate - 6 in Hindi Horror Stories by Rahul Haldhar books and stories PDF | खौफ की रातें - 6

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खौफ की रातें - 6

6) खौफ की रात


उस दिन सुबह से ही मूसलाधार बारिश हो रहा था ।
रास्ता - घाट सब पानी से डूब गया था । लोग व वाहन चलाचल भी बंद हो गया था । मैं ऑफिस से छुट्टी लेकर बैठा हुआ था ।
अचानक शाम को सत्यम हाजिर हुआ । उसके बाल
रूखे - सूखे , दोनों आंख लाल , बहुत दिन दाढ़ी नही
कटाई ।
मैं बोला – " क्या हुआ ? "
सत्यम एक भी शब्द न बोल घर के अंदर आकर सोफे
पर चुपचाप बैठ गया ।
सत्यम मेरा दोस्त वह एक प्रेस फोटोग्राफर है । विभिन्न
अखबारों में उसके खींचे फोटो आते हैं । बहुत स्मार्ट व
सुदर्शन युवक , कानपुर में गंगा के पास उसके स्वयं का
घर है वहीं पर रहता है और प्रतिदिन लखनऊ आता है ।
सत्यम के उतरे चेहरे को देखकर मैं बोला – " तुमको
क्या हुआ सत्यम ? यह क्या शक्ल बनाये हो ? "
सत्यम अपने दोनों करुण आंख उठाकर बोला – " मैं
शायद और ज्यादा दिन नही बचूंगा भाई अमित । "
मैं आश्चर्य होकर बोला – " क्यों ? मतलब अचानक
ऐसा क्यों सोच रहे हो ? "
" तुम भूत पर विश्वास करते हो । "
" नही फिर भी भूत के नाम से डर तो लगता है लेकिन
साक्षात नही देखा इसीलिए विश्वास नही करता । "
सत्यम परेशान चेहरे को गाढ़ा बनाते हुए बोला – " असल
में मैं घर पर और रह नही पा रहा । आज कुछ दिन
हुआ मेरे घर में सब अद्भुत कांड हो रहा है । अच्छा मैं
पागल तो नही हो जा रहा ? "
" लगता है वही हुआ है , छोड़ो तुम्हारा भाई क्या कर
रहा है ? "
" वह तो दो महीने पहले नौकरी पाकर दिल्ली चला
गया है । "
" अच्छा ! मतलब तुम घर में अकेले हो । "
" हाँ , लेकिन विश्वास करो उस घर में मैं बिल्कुल भी
नही रह पा रहा । मुझे बहुत डर लग रहा है ।
वहां मैं प्रतिदिन रात को और किसी के अस्तित्व को
अनुभव कर रहा हूँ । "
" वह कौन है ? "
" ये नही जानता पर वह एक प्रेत या राक्षस है वह
मैं समझ सकता हूँ । "

मैं तब खुद ही दूध गर्म कर गैस पर चाय बैठाया । फिर
हम दोनों बंधु चाय पीकर ठीक से बैठा ।

सत्यम बोला – " सोच रहा हूँ कुछ दिन तुम्हारे यहीं
पर रहूंगा । तुमको कोई असुविधा तो नही होगा ? "
" नही , नही असुविधा क्यों होगा , पर मुझे लगता है
मेरे यहाँ रहने से अच्छा , मुझे तुम्हारे वहां रहना ठीक है । "
सत्यम घबड़ाकर बोला – " अरे नही , वहाँ कोई मनुष्य
नही रह सकता , तुम भी नही रह पाओगे । मुझ जैसा
तुम भी पागल हो जाओगे । मैं सोच रहा हूँ उस घर
को बेंचकर कहीं और चला जाऊं । "
" तुम्हारा भाई आपत्ति नही करेगा ? "
" शायद नही उसको सभी बात चिट्टी लिखकर
बताया हूँ । अगले महीने वह सीधा तुम्हारे यहीं पर
आएगा । फिर यहीं पर आलोचना के बाद सब ठीक
कर लूंगा । "
" अच्छा उस घर में तुम सब कितने दिन से हो ? "
" वो तो हमारा पैतृक घर है , मेरा व भाई का जन्म
ही उसी घर में हुआ है । "
" इससे पहले वैसा अनुभव कभी किया है ? "
" नही कभी नही , बल्कि पंद्रह दिन पहले भी नही । "

मैं कुछ समय चुप होकर बैठा रहा फिर बोला – " ठीक
क्या - क्या होता है ? बताओ तो । "

सत्यम एक बार हाथ के घड़ी को देखा फिर बोला –
" तुम जब खुद ही जाना चाहते हो तो मेरे बात को
न सुन सबकुछ खुद के आंख से देखना व अनुभव करना
ही अच्छा । क्योंकि मेरे बात को विश्वास करोगे या नही
यह नही जानता । पर तुम अगर गए तो मैं खुश होऊंगा ।
मैं भी देखना चाहता हूँ मेरे घर में और एक लोगों के
उपस्थित के बाद भी वह सब घटता है या नही । अगर
चाहते हो तो अभी चलो । ट्रेन मिल जाएगा । "
मैं बोला – " " नही , आज इस विकट रात में तो नही
कल जाऊंगा । फिर दो दिन रुक तुमको साथ लेकर ही
चला आऊंगा ।जब तक तुम्हारा भाई नही आता मेरे ही
पास रहना । इस अवस्था में तुमको अकेला रहने देना ठीक नही है ।"

इसके बाद हम दोनों ने बात कर बहुत रात कटाया फिर
सब्जी व गर्म पूड़ी खाकर , लेट गया दोनों ही । लेटते
ही नींद ।

नींद जब खुली तब सुबह हो गया है । नींद से जाग सत्यम
बोला – " कितना दिन हुआ ऐसे आराम से नही सोया ।
मेरा तो मन ही नही कर रहा उस अभिशापित घर में
लौटने का । "

दोपहर को खा पीकर हम दोनों लखनऊ स्टेशन पर आए
फिर लखनऊ - कानपुर पैसेंजर से 4 बजे के भीतर ही
कानपुर । वहां से टेम्पो से गंगा किनारे उसके घर ।
बहुत दिन का पुराना घर , छोटा दो तल्ला ।
सत्यम के साथ जाते हुए देख आसपास के दुकानदार व
लोग , अपने में ही फिसफिसकर कुछ बात करने लगे ।
मैंने ध्यान न देते हुए यह सब देखा फिर सत्यम के घर
जाकर दूसरे तल्ले पर गया । एक तरफ खुला छत उसके
घर के अंदर से गंगा दिखाई देता है और छत से श्मशान ।

सत्यम के घर जाकर मुँह - हाथ धो चाय खत्म किया
फिर बोला – " सत्यम , मैं कुछ देर के लिए बाहर जा
रहा हूँ । तुम अकेला रह तो लोगे न ? "
" हाँ , यहां दिन में कोई भय नही है जो भी है सब
रात में । पर तुम ज्यादा देरी मत करना । "
" अरे नही भाई । "

मेरे सत्यम के घर से निकलते ही , पास के घर के एक
वृद्ध महिला ने मुझे बुलाया ।
" बेटा सुनो । "
पास जाने महिला बोली – " तुम सत्यम के क्या लगते
हो ? "
" मैं उसका दोस्त हूँ । पर क्यों ? "
" तुम आये अच्छा हुआ , अचानक क्या हुआ उस लड़के
को , रात व आधीरात होने पर ही चिल्लाता है । और
पूरे घर में दौड़ेगा । मुझे लगता है किसी ने कुछ खिलाकर
उसका दिमाग ही खराब कर दिया है । उसके भाई को
खबर दो और किसी मानसिक डॉक्टर को दिखाओ । "
" मैं इसी लिए आया हूँ चाची । "

महिला के पास से विदाई लेकर मैं उन दुकानदारों के
पास आया । जहां कुछ देर पहले ही सत्यम को देख
सभी फिसफिसकर बात कर रहे थे ।
उनके पास जाकर बोला – " अच्छा आपलोग तो सत्यम
को पहचानते हैं । वो मेरा दोस्त है । कुछ देर पहले
उसे देख आपलोग कुछ बोल रहे थे । क्या बात है
बताइये तो , आपलोगों को क्या उसके अंदर कोई अगल
भाव दिखा है । मैं तो उसे पूरी तरह से अप्राकृतिक
मान रहा हूँ ? "
दुकान के लोग बोले – " हाँ , हमलोग भी कुछ दिन
से ऐसा देख रहा हूँ , और सबसे आश्चर्य की बात है कि
वह प्रायः रात में चिल्लाकर बेहोश हो जाता है । "
उसी समय उनमें से एक युवक निकलकर बोला – "
मैं एक रात के घटना के बारे में बताऊं सुन कर चौंक
जाएंगे आप सोचेंगे झूठ बोल रहा हूँ । मेरे बात को ये सब
विश्वास नही करते सोचते हैं मैं बनाकर बोल रहा हूँ । "
" अच्छा बताओ क्या बात है ? "
युवक बोला – " तब सुनिए उस दिन सत्यम भैया
जब चिल्लाकर बेहोश हो गए तो मैं और पास के घर
के विशाल भैया हम दोनों उन्हें देखने गए लेकिन जाकर
जो देखा उससे चौंक गए । "
" मतलब ? "
" सत्यम भैया नीचे के दरवाजे पर कुंडी देतें हैं और ऊपर
का दरवाजा भी बंद कर सोतें हैं । जाकर नीचे के दरवाजे
को धक्का व खटखटा रहा हूँ । कुछ देर धक्का देने के
बाद देखा दरवाजा के कुंडी को किसी ने खोल दिया । हम जल्दी सीढ़ी से ऊपर जाकर ऊपर के दरवाजे पर ध्क्का
दिया । सत्यम भैया का कोई आवाज नही है फिर अचानक मानो जादू मंत्र से ऊपर का दरवाजा भी खुल गया । हम भीतर जाकर देखे सत्यम भैया बेहोश होकर गिरे हुए हैं ।
अब मेरा प्रश्न है यही कि जिस घर में सत्यम भैया अकेले रहते हैं उस घर की कुंडी हमारे खटखटाने पर खोला किसने ?"
अवाक होकर बोला – " स्ट्रेंजर "
युवक बोला – " देखिए मेरा या विशाल भैया के बात को
कोई भी विश्वास नही कर रहा । "
" देखिए आपके बात को कोई विश्वास करे या न करे मैं
कर रहा हूँ इसीलिए बोल रहा हूँ आपलोगों में कोई भी एक
आज रात हम लोगों के पास रुकते तो खूब अच्छा होता ।
आज मैं खुद के आंखों से देखना चाहता हूं कि यहां क्या
होता है और नही । "

लेकिन नही मेरे बात पर कोई तैयार नही हुआ ।
सबने कहा –
" नही नही क्या बोल रहे हो उस घर में रात को रहना नही
हो सकता बोला नही जा सकता अगर सच कोई डरावनी
बात हो तो । फिर भी हाँ कोई भी भयावह कुछ दिखे तब
चिल्लाकर बुलाइयेगा । आप अगर बुलाएंगे तो हम एक
नही सभी दौड़ जाएंगे ।
बस आप नीचे के दरवाजे के कुंडी को खुला रखना । "

मैं अच्छा ठीक है बोलकर चला आया ।

जब मैं लौट कर आया तो देखा सत्यम छत पर रेलिंग
के पास चुपचाप खड़ा है ।

मैं हँसकर बोला – " क्या भाई अकेले डर तो नही लगा । "
सत्यम बोला – " नही , पर मन में बहुत साहस भी नही
मिल रहा था । इसीलिए घर में न रह छत पर बैठा हूँ । "
" अच्छा किया अब चल जरा गंगा किनारे से घूम आऊं ।"
" नही , कही नही । आसमान को देख रहे हो , अभी शुरू
होगा । "
" फिर चलो घर में रात के भोजन की तैरती की जाए । "
" क्या खाओगे ? "
" जो भी अच्छा बन जाए । "

हम दोनों घर में जाकर स्टोव पर चावल बैठाया । शाम
ढलकर रात हुई । चावल उतार रहा हूँ उसी समय शुरू
हुआ जबरदस्त बारिश । वह क्या भयानक वर्षा मानो
पहले के रिकॉर्ड को हरा देगा ।
इसी में मैंने पूछा – " दूसरे दिन क्या इस समय वह सब
आरम्भ होता है ? "
सत्यम धीमे से बोला – " कोई ठीक नही है , कभी शाम
के बाद से ही होता है तो कभी आधीरात । वैसे तुम्हारे
रहने के कारण नही भी हो सकता है । "

मैं खुद के मन में ही अनेक प्रकार के कल्पना करने लगा ।
यहां क्या घटता है ? क्या नही ? इसी को लेकर ।
पर सत्यम ने मुझे इस बारे में अभीतक कुछ नही बताया ।
उस समय रात 10 जब रहा है । इस समय तक तो सब
कुछ बिना उपद्रव के कटा ।
मैं और सत्यम एक ही तख्ते पर आसपास लेटे । लेटकर
हम दोनों बात कर रहें हैं ठीक उसी समय अचानक लोड
शेडिंग हो गया ।
और तुरंत ही सत्यम मेरे पास सटकर बोला – " अब वो
आएगा । निश्चित ही आएगा । "
" कौन ? कौन आएगा ? "
" आएगा , वो है , वो देखो , देखो वहां खड़ी है , देखो अमित "
सत्यम चिल्ला उठा । मैं लेटे ही खिड़की की तरफ देखा ,
देखा कि खिड़की के कांच के पास 14 - 15 साल की एक
लड़की , बिखरे बालों से सटकर खड़ी है ।
मैं कड़े गले से बोला – " कौन हो तुम ? कौन ? "
लड़की निरुत्तर , ठीक उसी समय ' ठक ' से माचिस जलाने
की आवाज आई । उसके बाद ही दिखाई दिया टेबिल का
बत्ती जल रहा है । इस घर में मैं और सत्यम को छोड़कर
और कोई तो नही है ।फिर किसने जलाया यह बत्ती ?
कौन है वह पिशाच ? तबतक छायामूर्ति गायब हो गई
है । हम दोनों ही डर से जम गए हैं । चारों तरफ निस्तब्ध ,
सुनसान , सत्यम मानो काटो तो खून नही । मेरा पूरा
शरीर पसीने से भर गया । ठीक उसी समय देखा एक हाथ
ने उस जलती बत्ती को उठा लिया , लेकर दरवाजे के पास
तक गया ।
फिर कोमल गले की एक पुकार आई – " आओ "

मैं सत्यम को बोला – " चल तो , कहा ले जा रही है देखते
हैं । "
" नही , नही , नही पागल मत बनो , वह प्रतिदिन मुझे इसी
तरह बुलाती है । मैं जाता नही हूँ । "
" अरे आओ , आओ कह रहा हूँ । "
" मुझे बहुत डर लग रहा है , मुझे छोड़ दो , डर लग रहा
है ।"
" डर किस बात का आज तो तुम अकेले नही हो । मैं
तो हूँ साथ में , चलो । "

मैं प्रायः जोर से उसके हाथ को पकड़कर उठाया फिर
टॉर्च लेकर दरवाजे की तरफ बढ़ा । दरवाजे की कुंडी
अपने आप खुलकर दो भाग हो गया । प्रकाश हमें पथ दिखाते हुए चला ।
सीढ़ी से नीचे उतरा वह प्रकाश फिर नीचे के कमरे के दरवाजा के गया जिस कमरे में सत्यम की फोटो लेबोरेट्री , उसी कमरे के पास रुका वह बत्ती ।
कमरे में टाला दिया हुआ था , ताला भी अपने आप खुल
गया । हम दोनों ही उस कमरे के अंदर गए । बत्ती को टेबल
के ऊपर रख वह हाथ अदृश्य हो गया । और किसी का
अस्तित्व वहां नही रहा ।
मैं बोला – " क्या हुआ बात करो , कुछ बोल क्यों नही रहे ?
बोलो तुम कौन हो ? "

सत्यम एकदम पत्थर , मेरे भी हाथ - पैर सुन्न हो रहा है ।
उसी समय सुनने में आया उसी लड़की के कंठ का स्वर –
" मुझे क्यों यहां पर लेकर आए हो , मुझे मुक्ति दो , मुझे
बंदी बनाकर मत रखो । तुम दोनों के पैर पड़ता हूँ । "
मैं डरते हुए बोला – " कौन हो तुम ? "
फिर एक आवाज आई – " मैं कोमल "
" तुम कहाँ हो ? कौन तुम्हें बंदी बनाकर रखा है ?"
" मुझे देख नही पा रहे , यहीं तो मैं हूँ । मैं यहां हूँ । "

कंठ के स्वर को सुनकर कमरे के कोने के तरफ देखा कि
उसी लड़की की प्रकाश की तरह हल्का शरीर , अंधकार
में उग आया । क्या करुण चेहरा है , वह अपने छाया के
शरीर को लेकर सत्यम के टेबल की तरफ आगे बढ़ी ।
फिर ड्रॉयर खींचकर एक लिफाफे को टेबल पर रखी ।
रखते ही फिर अंधकार में मिल गई ।
मैं टेबल के पास जाकर लिफाफे को खोलते ही उसके
अंदर इस लड़की की एक फुल साइज के फोटो को देखा ।
फोटो की तरफ देखकर मैंने अचानक देखा फोटो के आकृति
की चेहरा विकृत सा हो गया । होठ दोनों कांप रहे हैं , दोनों
आंख बाहर की तरह निकल रहे हैं । उफ्फ ! क्या विभत्स
वह दृश्य है । और देखा फोटो के गले के ऊपर मोटा रस्सी
के दाग क्रमशः उभर रहें हैं ।
एक समय फोटो के भीतर से वह लड़की चिल्लाकर बोली
– " अभी तक खड़े होकर क्या देख रहे हो ? मुझे कष्ट
हो रहा है मैं और सह नही पा रही हूं । तुमलोग तुरंत ही इसे
नष्ट कर दो । फाड़कर आग से जला दो । "
मैं कांपते हुए बोला –" तभी तुम्हारी मुक्ति होगी । "
" हाँ चिरकाल के लिए मुक्ति पाऊंगी । मैं अपने अस्तित्व
को पृथ्वी पर एक बूंद भी नही रखना चाहती । "
" लेकिन क्यों नही चाहती । "
" वह आप सब को जानने की जरूरत नही है , केवल
यह जानो जिसके ऊपर अभिमान करके मैं आत्महत्या
करने को बाध्य हुआ उन्ही के दीवाल पर चित्र होकर
मैं कभी भी नही रह सकती । कभी नही । "

मैं जल्दी से उस फोटो के टुकड़े - टुकड़े कर , माचिस से
जला डाला ।
" आआआआआआआआआ "
एक आवाज फिर शून्य ।

मैं सत्यम से बोला – " यह फोटो तुमने खींचा है ? "
सत्यम बोला – " हां एक साल पहले , कानपुर के ही
हरिराम तिवारी की लड़की है वह , उसके जन्मदिन पर
खींचा था । कुछ दिन पहले ही हरिराम जी रोते हुए
आकर लड़की की फोटो को मांगा । उन्होंने बताया बीते महीने एक भूल समझ के कारण , लड़की को वह और उनकी स्त्री ने खूब डाँट लगाई । उसके बाद ही घटना ।
उस लड़की ने अचानक गले में फांसी लगाकर
आत्महत्या कर लिया । "

" लेकिन साल पहले जो फोटो खींचा गया था उसे अब
क्यों लेने आए हरिराम जी ? "
" एक साल पहले फोटो को खींचा पर खींचने के बाद
हरिराम जी पैसा नही देने के कारण मुझसे और कभी
नही मिले । मैंने भी फोटो नेगेटिव वाश करके रख
दिया था । अब लड़की के अस्तित्व की रक्षा के लिए हरिराम जी डबल चार्ज देकर फोटो को लेने आए हैं ।
पूरे पैसे भी देकर गए हैं किन्तु मुश्किल यह है कि
हरिराम जी से पैसा लेकर भी नेगेटिव को कहीं खोज
नही पा रहा था । बहुत खोजने के बाद अंत में पाया । लेकिन यह फोटो तैयार करते समय ही जितनी सब
विपत्ति , बार - बार नेगेटिव के भीतर से वह लड़की
मुझे परेशान करती , डर दिखाती । इसीलिए
नीचे के कमरे में जाना ही आजकल बंद कर दिया था । "
" वह नेगेटिव फोटो अभी भी है ? "
" हां है । "
" दिखाओ । "

सत्यम नेगेटिव फोटो को मेरे हाथ में रखते ही मैंने उसे
भी जला डाला । फिर धीरे - धीरे टॉर्च जलाकर कमरे
से निकल दरवाजा बंद कर ऊपर आया । पूरी रात नींद
नही आई । लेटे हुए बहुत बात किया हम दोनों ने । एक समय बारिश की वेग भी कम हुई । भोर में चाय बनाकर स्वाद लिया भोर से पहले बिजली भी आ गई ।

इसके बाद भी सत्यम के घर पर मैं दस दिन रुका था लेकिन उस रात के बाद से और कोई भी भयानक
उपद्रव उस घर में फिर कभी नही हुआ ।

।। समाप्त ।।