Mere Ghar aana Jindagi - 17 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 17

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 17


(17)

कुछ ही दिनों में इम्तिहान शुरू होने वाले थे। समीर का बहुत सा कोर्स छूट गया था। जिसका पूरा हो पाना मुश्किल लग रहा था। क्लास में टीचर्स बचा हुआ कोर्स पूरा कराने में लगे हुए थे। इसलिए पीछे हो चुके कोर्स पर ध्यान नहीं दे रहे थे। समीर ने समस्या अमृता को बताई तो उसने कहा कि वह प्रिंसिपल से जाकर बात करेगी। ऑफिस जाते हुए वह प्रिंसिपल से मिलने समीर के स्कूल गई थी। उसने समस्या प्रिंसिपल के सामने रखते हुए कहा,
"सर समीर बड़े मुश्किल दौर से गुज़रा है। उसका पढ़ाई में भी बहुत नुकसान हो गया है। अब इम्तिहान आने वाले हैं। उसका पिछला बहुत सा कोर्स छूटा हुआ है। आपसे रिक्वेस्ट है कि कुछ मदद कीजिए।"
उसकी रिक्वेस्ट सुनने के बाद कुछ देर तक प्रिंसिपल शांत रहे। उसके बाद बोले,
"मिसेज़ पुरी अब मैं या बाकी के टीचर्स इसमें क्या कर सकते हैं। टीचर्स पर पहले ही बहुत प्रेशर है। एक बच्चे को दोबारा सब पढ़ाएं इतना वक्त उनके पास नहीं है। आप चाहें तो समीर के लिए कोई ट्यूशन लगवा दीजिए।"
प्रिंसिपल की बात से स्पष्ट था कि वह कोई मदद करने को तैयार नहीं हैं। उसने कहा,
"कम से कम उसे नोट्स दिलवा दीजिए।"
"मिसेज़ पुरी समीर कोई बच्चा तो है नहीं। खुद अपने क्लासमेट्स से मांग ले। कॉपी करके या फोटो कॉपी करवा कर वापस कर दे। इसमें टीचर्स की मदद की क्या ज़रूरत है।"
अमृता कुछ नहीं बोली। वह चलने के लिए उठ रही थी कि प्रिंसिपल ने कहा,
"बेहतर होगा कि समीर यह क्लास रिपीट करे।"
अमृता वापस बैठते हुए बोली,
"सर समीर को थोड़ी मदद मिल जाए तो वह कवर कर लेगा। एक साल बर्बाद करना तो ठीक नहीं है।"
प्रिंसिपल ने रुखाई से कहा,
"बर्बाद तो उसने खुद ही किया है।"
यह बात अमृता को चुभ गई। उसने कहा,
"आप ऐसा कैसे कह सकते हैं सर ? आपको मालूम है उसके साथ क्या हुआ था।"
"उसका खामियाज़ा स्कूल ने भी भुगता है। हमारे बच्चे स्पोर्ट्स, ड्रैमेटिक्स, डिबेट और अच्छा रिज़ल्ट लाकर मीडिया में हमारे स्कूल का नाम रौशन करते हैं। आपके बेटे की वजह से हमें कितनी बदनामी झेलनी पड़ी है।"
प्रिंसिपल ने अमृता की तरफ देखकर कहा,
"मेरा एक प्रपोज़ल है। हम समीर को पास का रिज़ल्ट और टीसी दे देंगे। आप उसका एडमीशन आने वाले सेशन में कहीं और करवा लीजिए। मैं जो कह रहा हूँ उस पर ठंडे दिमाग से सोचिएगा। इसमें आपका भी फायदा है।"
अमृता को बहुत गुस्सा आ रहा था। वह बड़ी मुश्किल से खुद को काबू में रखे हुए थी। बात बढ़ ना जाए इसलिए वह चुपचाप उठकर चली गई।

समीर मैथ्स की क्लास में था। मैंश्युरेशन के अंदर एरिया पढ़ाया जा रहा था। टीचर टेक्स्ट बुक से एक सवाल हल करवा रहे थे। वह समझा रहे थे और बच्चे उसके अनुसार नोटबुक में सॉल्व कर रहे थे। समीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था। एरिया का टॉपिक उसके स्कूल आने से पहले शुरू हो चुका था। इसलिए वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था। प्रश्न के एक हिस्से का हल बताने के बाद टीचर ने सबसे सॉल्व करके जवाब बताने को कहा। सब बच्चे अपनी अपनी नोटबुक में सॉल्व करने लगे। समीर असहाय सा इधर उधर देख रहा था। उसने उठकर धीरे से कहा,
"सर मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है।"
टीचर ने उसे घूरकर देखा। फिर बोले,
"क्यों समझ नहीं आ रहा है। सब लोग तो आराम से कर रहे हैं।"
"सर जब चैप्टर शुरू हुआ था तब मैं स्कूल नहीं आ रहा था।"
"तो यह गलती किसकी है ? स्कूल आना तो तुम्हारा काम है। स्कूल नहीं आए तो तुम्हारी गलती है। तुम्हें कोई स्पेशल ट्रीटमेंट तो दिया नहीं जाएगा।"
यह सुनकर बाकी के बच्चे हंसने लगे। समीर को बहुत बुरा लगा। वह चुपचाप बैठ गया।

अमृता का मन ऑफिस में नहीं लग रहा था। सुबह प्रिंसिपल ने जो कुछ कहा उसके बाद से ही वह बहुत परेशान थी। प्रिंसिपल की कही बातों को याद करके उसका सर भन्ना रहा था। वह बहुत कोशिश कर रही थी कि काम में मन लगाए। लेकिन उसका मन रम नहीं रहा था। हार कर उसने सोचा कि लंच के बाद छुट्टी ले ले और घर चली जाए। लंच से कुछ पहले वह अपने बॉस के केबिन में गई। उसने कहा,
"सर आज तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है। मैं घर जाना चाहती हूँ। मुझे आधे दिन की छुट्टी चाहिए।"
बॉस ने उसकी तरफ देखे बिना पूछा,
"आपको जो फाइल भिजवाई थी वह पूरी हो गई।"
"सर वही कर रही थी पर तबीयत ठीक नहीं लग रही है। इसलिए घर जाना चाहती हूँ।"
उसके बॉस ने उसकी तरफ शिकायत भरी नजरों से देखा। उसने कहा,
"आप पहले ही बहुत दिनों की छुट्टी ले चुकी हैं। इधर आपके काम में गलतियां भी बहुत हो रही हैं।"
"सर इधर कुछ परेशानियां रही थीं। पर अब आगे से मैं ध्यान रखूँगी।"
उसके बॉस ने चेतावनी भरे स्वर में कहा,
"देखिए समस्याएं तो सबके साथ हैं। मेरी भी अपनी व्यक्तिगत समस्याएं हैं। बाकी स्टाफ को भी हैं। ऐसे में अगर आप बार बार अपनी पर्सनल प्रॉब्लम्स का हवाला देंगी तो कैसे काम चलेगा। वैसे भी स्टाफ में कुछ लोगों को लगता है कि आपके साथ अधिक नर्मी बरत रहा हूंँ। मैं नहीं चाहता हूँ कि स्टाफ को कोई गलत संदेश जाए।"
अमृता नज़रें झुकाए खड़ी थी। उसके बॉस ने कहा,
"लंच के बाद वह फाइल पूरी करके मेरे पास लेकर आइए।"
अमृता ने धीरे से हाँ कहा और केबिन के बाहर चली गई। वह अपनी सीट पर जाकर बैठ गई। लंच करने की उसकी इच्छा नहीं थी। वह फाइल खोलकर अपना काम करने लगी। बॉस से मिली चेतावनी इशारा थी कि उसकी नौकरी पर खतरा हो सकता है। उसे नौकरी की सख्त ज़रूरत थी। समीर की परवरिश, फ्लैट के लोन की किश्तें, बाकी के खर्च और भविष्य के लिए बचत सबकुछ उसकी सैलरी पर ही निर्भर था।
अमृता कई सालों से अकेले ही ज़िंदगी की जद्दोजहद को झेल रही थी। पति ने कभी साथ दिया ही नहीं था। कुछ समय अपने मायके में रही थी। तब माँ का थोड़ा बहुत सहयोग मिल जाता था। पर अब वह इस दुनिया में थी नहीं। भाई भाभी ने तो बहुत पहले ही पल्ला झाड़ लिया था। उसकी बड़ी बहन कभी कभी हालचाल पूछ लेती थीं। पर समीर के साथ जो हुआ उसके बाद से उन्होंने भी किनारा कर लिया था। उनका कहना था कि समीर के कारण लोग चार बातें सुनाते हैं। इसलिए उन्होंने उसके बाद से अमृता से कोई संपर्क नहीं रखा था।
ऑफिस में भी वह अलग थलग पड़ गई थी। उसके साथ काम करने वाले कुलीग्स अब उससे खिंचे हुए रहते थे। उसे मालूम था कि ऑफिस में उसे लेकर बहुत तरीके की बातें हो रही हैं। पर वह इन सब पर ध्यान नहीं देती थी। उसे सबकुछ सहते हुए भी यहाँ काम करना था।
अमृता ने अपना काम पूरा किया और फाइल लेकर बॉस के केबिन में गई। बॉस ने फाइल चेक की। उसे कोई गलती नज़र नहीं आई। उसने कहा,
"ठीक है....अब आप चाहें तो घर जा सकती हैं। पर आगे से ध्यान रखिएगा।"
अमृता अब घर नहीं जाना चाहती थी। उसने कहा,
"नहीं सर ऑफिस पूरा होने के बाद ही मैं घर जाऊँगी।"
अमृता वापस अपनी सीट पर जाकर बैठ गई।

समीर और अमृता डाइनिंग टेबल पर बैठे खाना खा रहे थे। दोनों ही चुप थे। उनके मन में दिन भर की घटनाएं चल रही थीं। समीर सोच रहा था कि क्लास में मैथ्स टीचर ने सारी गलती उस पर डालकर उसकी कोई मदद नहीं की थी। सिर्फ मैथ्स टीचर ही नहीं। हर टीचर का यही हाल था।‌ उनका कहना था कि नोट्स ले लो और खुद पढ़ो। क्लास में कोई भी लड़का उससे बात नहीं करता था। वह नोट्स किससे मांगता। समीर ने सोचा था कि ऑनलाइन ट्यूशन जो उसने छोड़ दी थी उसे दोबारा शुरू करे। उसने खाते हुए अमृता से कहा,
"आप प्रिंसिपल सर से मिली थीं...."
अमृता ने उसकी तरफ देखे बिना कहा,
"मुझे नहीं लगता है कि टीचर्स कुछ खास मदद कर पाएंगे। हर सब्जेक्ट में बहुत से चैप्टर्स छूटे हैं। उनके लिए तुम्हें अकेले पढ़ा पाना मुश्किल होगा। तुमको ही मेहनत करनी होगी। मैं सोच रही थी कि तुम्हारे लिए ट्यूशन लगवा दूँ। पर हर सब्जेक्ट के लिए अलग अलग ट्यूशन लगवाना मंहगा पड़ेगा। कोचिंग सेंटर में बहुत से बच्चे होंगे तो स्कूल जैसी ही बात होगी।"
समीर भी समझ रहा था कि उसकी मम्मी के लिए ट्यूशन का खर्च मुश्किल होगा। उसने कहा,
"मम्मी बाकी सब्जेक्ट्स तो मैं बुक्स से नोट्स बनाकर तैयार कर लूँगा। पर मैथ्स और साइंस में बहुत दिक्कत हो रही है। मैं सोच रहा था कि जो ऑनलाइन ट्यूशन कुछ दिनों के लिए लगाई थी उसे ही दोबारा शुरू कर दूँ।"
"ऑनलाइन ट्यूशन में दिक्कत तो नहीं होगी ?"
"उस समय तो नहीं हुई थी मम्मी। मुझे लगता है कि ऑनलाइन ट्यूशन में कोर्स कवर हो जाएगा।"
अमृता ने उसे इजाज़त दे दी। डिनर के बाद समीर ने ट्यूटर से संपर्क कर अपनी समस्या बताई। ट्यूटर ने उसे मदद का आश्वासन दिया।
अपने कमरे में लेटी हुई अमृता सोच रही थी कि अभी तो और बहुत सी समस्याएं आने वाली हैं। समीर जो चाहता है उसे सामाजिक स्वीकृति मिलना मुश्किल है। लोगों से बहुत विरोध और अपमान सहना पड़ेगा। अभी तक वह उस सबके लिए अपना मन नहीं बना पाई थी। पर वह एक बात जानती थी कि वह समीर से बहुत प्यार करती है।