हुस्ना एक तवायफ़ थी तो उसके जानने वाले बहुत थे,हुस्ना की जान पहचान युद्ववीर की विरोधी पार्टी वाले सदस्य से हो गई,हुस्ना ने पूरी तरह से उसे अपनी बातों से दीवाना बना दिया,उससे बातों बातों में पता चला कि वो युद्ववीर से कितनी नफरत करता है,हुस्ना को जब लगा कि वो पूरी तरह से उसका विश्वासपात्र हो गया है तो हुस्ना ने उसके साथ मिलकर एक योजना बनाई,हुस्ना नहीं चाहती थी कि मासूम मुरारी इस झमेलें में फँसे इसलिए उसने उसे अपनी योजना का हिस्सा नहीं बनाया क्योंकि हुस्ना के पास तो बहुत पैसा था वो अपना बचाव कर सकती थी लेकिन मुरारी तो बेचारा गरीब था ऊपर से अपने घर का अकेला बेटा,उसे कुछ हो जाने पर ना जाने उसकी माँ का क्या हाल होगा? इसलिए यही सोचकर हुस्ना का मन बोला कि इससे अच्छा है कि मैं उसे इस मामले में घसीटू ही नहीं उसे दूर ही रखूँ तो ही अच्छा.....
दिन गुजर रहे थे और युद्ववीर की रैलियांँ जोरो पर थी,उसके साथ सुनीता भी हर जगह लोगों का अभिवादन करने जाती,सुनीता को तो बस सत्ता का लालच था इसलिए वो युद्ववीर के संग संग ही लगी रहती,अब युद्ववीर सुनीता को ज्यादा भाव नहीं देता था इसलिए वो सोच रही थी कि युद्ववीर कब उसके रास्ते से हट जाएं और युद्ववीर की सारी जायदाद की वो ही अकेली वारिस हो जाएं.....
और इधर हुस्ना बहुत बड़ी योजना को अन्जाम देने वाली थी,जिसमें काफ़ी खतरा था और अब उसकी इस योजना को पूरी तरह सफल बनाने का समय आ गया था,इस बीच वो महीनों से मुरारी से नहीं मिली थी,वो उससे ना मिलने का कोई ना कोई बहाना बनाकर नौकरानी से कहलवा देती और बेचारा मुरारी उदास होकर कोठे से लौट जाता लेकिन एक दिन मुरारी नहीं माना और बिना किसी की परवाह किए दरवाज़े धकेलकर भीतर ही घुसता चला गया,उसने सीधा हुस्ना के कमरें में पहुँचकर ही दम लिया,वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि हुस्ना अपने बिस्तर पर बैठी है,हुस्ना ने जब अचानक ही मुरारी को अपने कमरें में देखा तो कहा...
ऐसे कैसें घुसते चले आ रहे हो?
अब तुम्हारे कमरें में आने के लिए मुझे इजाजत लेनी पड़ेगी,मैं क्या इतना पराया हो गया,मुरारी बोला।।
कहों!क्या बात है? हुस्ना ने पूछा।।
वही तो मैं भी पूछना चाहता हूंँ कि क्या बात है?मुरारी बोली।।
तुम मेरे कमरें में जबरदस्ती घुसे हो,तुम बोलो कि क्या बात है?हुस्ना बोली।।
क्या मैं जान सकता हूँ कि तुम मुझसे दूरियाँ क्यों बना रही हो?मुरारी ने पूछा।।
हुस्ना ने मुरारी के सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझा और पानदान से पान निकालकर खाने लगी और फिर अपने बाल खोलकर आइने के सामने खड़ी होकर कंघी उठाकर सँवारने लगी,हुस्ना की ये हरकत देखकर मुरारी का खून खौल उठा और उसने दोबारा पूछा....
तुम मुझसे दूरियाँ क्यों बना रही हो?जवाब दोगी इस बात का?
मेरा मन,मैं चाहे जो करूँ,तुम कौन होते हो मुझसे ये सवाल पूछने वालें,हुस्ना बोली।।
अच्छा!अब मैं कौन होता हूँ?तुम मुझे जानती ही नहीं,मुरारी बोला।।
हाँ!मेरे यहाँ रोज़ नए ग्राहक आते हैं,भला किस किस को याद करती फिरूँगी?हुस्ना अपना लिबास़ ठीक करते हुए बोली।।
अच्छा!तो मैं अब तुम्हारा ग्राहक हो गया,मुरारी बोला।।
और क्या?तवायफ़ो के यहाँ उनके ग्राहक ही तो आते हैं,हुस्ना बोली।।
लेकिन तुम तो मेरी दोस्त हुआ करती थी और तुम मेरी मदद करना चाहती थी,तुमने मुझसे वादा भी किया था,मुरारी बोली।।
मैं एक तवायफ़ हूँ और तवायफ़े अक्सर अपने ग्राहकों से वादे किया करती हैं,वे सारे वादे अगर तवायफ़े निभाने लगे तो उनका धन्धा चौपट जाएगा,मैनें भी तुमसे कोई वादा कर लिया तो कौन सा जुर्म कर लिया,हुस्ना बोली।।
तुम सच में तवायफ़ ही निकली,तुम मेरी दोस्ती के काबिल ही नहीं थी,मुरारी बोला।।
तवायफ़े कभी किसी रिश्ते के काबिल नहीं होतीं,मुरारी बाबू!वो तो ना किसी की बीवी बन सकतीं हैं ,ना किसी की बहन बन सकतीं हैं और ना ही किसी की वफादार दोस्त,हुस्ना बोली।।
इसका मतलब है तुम्हें अपना वादा भी याद नहीं,कहीं तुम्हें ये तो नहीं लगने लगा कि युद्ववीर तुम्हारा बाप है तो उसके प्रति तुम्हारे मन में दया पनप गई हो या फिर तुम्हें रूपयों का लालच आ गया,तुम कहीं उससे मिन्नतें तो नहीं कर आईं कि तुम उसकी बेटी हो और वो तुम्हें अपने घर में पनाह देदे,मुरारी गुस्से से बोला।।
तुम्हें यही लगता है तो यही सही,वो मेरा बाप है और यही सच्चाई है,मुझे भी दौलत चाहिए और एक इज्जत भरी जिन्दगी चाहिए और ऐसी जिन्दगी मुझे मेरा बाप ही दे सकता है तो क्यों ना मैं उसके पास ही लौट जाऊँ,तुम क्या दे सकते हो मुझे?कुछ भी नहीं,तो मैं तुमसे किए हुए वादे क्यों याद रखूँ?आखिर तुम्हारा मेरा रिश्ता ही क्या है? हमारे बीच केवल तवायफ़ और ग्राहक का रिश्ता है,हुस्ना बोली।।
हुस्ना!ईश्वर साक्षी है कि मैनें तुम्हें कभी भी हाथ लगया हो,मैं नशे में भी रहता था तब भी तुम्हें मैने छूने की कोशिश नहीं की,मैं तो तुम्हारे पास केवल अपना दर्द हल्का करने आता था,अपने ग़म बाँटने आता था,तुम मुझे समझती थी इसलिए,मेरी बातें सुनती थी तो मुझे लगता था कि मुझे एक दोस्त मिल गई लेकिन तुम जो दिखती थी तुम बिल्कुल भी वैसी नहीं हो आखिर तुमने ये दिखा ही दिया कि तुम एक धन्धेवाली हो ,जिसका कोई भी ईमान-धरम नहीं है,जो पैसे के लिए कितना भी गिर सकती है.....थू....है तुझ पर और तेरी दोस्ती पर,मैं आज के बाद कभी भी यहाँ कदम नहीं रखूँगा,आज से तुम मेरे लिए मर गई और इतना कहकर मुरारी वहाँ से चला गया......
मुरारी के जाने के बाद हुस्ना खुद को रोक नहीं पाई और फूट फूटकर रो पड़ी,हुस्ना को ऐसे देखकर उसकी नौकरानी ने पूछा.....
दीदी!अभी तो आप उसे इतना बुरा बुरा कह रही थीं और अब उसके जाने पर इतना रो रहीं हैं,
तब हुस्ना बोली....
एक सच्चा दोस्त खोने का ग़म क्या होता है? तू नहीं समझेगी,
मैं क्यों नहीं समझूँगी भला,नौकरानी बोली।।
बस,ऐसे ही और फिर हुस्ना ने नौकरानी से कहा....
मैं आज दिनभर अपने कमरें में रहूँगीं,कोई भी आएं तो कह देना कि मेरी तबियत ठीक नहीं....
जी!दीदी!और फिर नौकरानी इतना कहकर हुस्ना के कमरें से चली गई....
नौकरानी के जाते ही हुस्ना बिस्तर पर लेट गई ,उसका मन अच्छा नहीं था ,उसने आज मुरारी को बहुत उल्टा सीधा कहकर उसका दिल दुखाया था लेकिन उसकी मजबूरी है उसे अपनी योजना से मुरारी को किसी भी हालत में दूर ही रखना होगा,वो मुरारी को अपनी योजना में कतई शामिल ना करेगी,उसकी अभी उम्र ही क्या है,उसकी सारी जिन्दगी उसके सामने पड़ी है,मेरा क्या है मैं तो अनाथ बेसहारा थी और आगें भी रहूँगी और हम जैसी तवायफ़ो की जिन्दगी भी भला कोई जिन्दगी है,अगर एक अच्छा काम करके मौत भी आ जाती है तो समझो मेरा जीवन सफल हो गया....
और हुस्ना ऐसे ही अपने ख्यालों में खोई रही......
इधर मुरारी जब उदास सा गलियों में घूमता रहा,उसका मन बहुत ही अशांत था,उसे ऐसे में अपनी माँ कावेरी की याद आ गई और वो अपने घर की ओर चल पड़ा,वो जब घर पहुँचा तो कावेरी को देखकर बोला....
माँ! तू मेरे साथ बात करेगी...
हाँ...हाँ...मेरे बच्चे!बोल क्या बात है?कावेरी ने पूछा....
माँ!मैं हुस्ना को अपना दोस्त समझता था लेकिन उसने मुझे दोस्ती के नाम पर छला है,मुरारी बोला।।
क्या हुआ बेटा?तू इतना उदास क्यों है आज?कावेरी ने पूछा...
माँ!उसने आज मेरी बहुत बेइज्जती की,मुरारी बोली।।
बेटा!तवायफ़े किसी की नहीं होतीं,कोई बात नहीं ,अब तो तुझे अकल आ गई है ना!कावेरी बोली।।
लेकिन मैं अब गौरी की मौत का बदला नहीं ले पाऊँगा?मुरारी बोला।।
कोई बात नहीं बेटा!ऊपरवाला सबको उसके किए की सज़ा देता है,ऐसे ही गौरी के हत्यारों को भी सज़ा जरूर मिलेगी,कावेरी बोली।।
तो क्या मैं ऊपरवाले की मदद के आसरे यूँ ही हाथ पे हाथ धरे बैठा,मुरारी बोला।।
हमारे पास इसके सिवाय और कोई रास्ता भी तो नहीं है,वें बहुत ही ताकतवर लोंग हैं,हम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते,कावेरी बोली।।
इसलिए ....इसलिए...मैं घर नहीं लौट रहा था,मुझे मालूम था कि तुम ऐसा ही कहोगी,मुरारी बोला।।
बेटा!मैं तुझे खोना नहीं चाहती इसलिए कहती हूँ कि तू उन लोगों से दूर रह,कावेरी बोली।।
तुम कुछ भी कहो माँ !लेकिन मैं यूँ ही चुप होकर कैसे बैठ सकता हूँ,मुरारी बोला।।
बेटा!कुछ दिन रूक जा,सबर रख ,उन पापियों को जरूर सज़ा मिलेगी,कावेरी बोली।।
लेकिन माँ!गौरी को इन्साफ कब मिलेगा?मुरारी बोला।।
मिलेगा बेटा...मिलेगा...तू थोड़ा धीरज धर,कावेरी बोली।।
मेरी आत्मा झटपटा रही है कि कब उन पापियों का सर्वनाश होगा?मुरारी बोला।।
बेटा!उसके घर देर है लेकिन अन्धेर नहीं,बस तू हिम्मत मत हारना,जब इतने दिन शांत रहा तो कुछ दिन और सही,कावेरी बोली।।
तुम कहती हो तो ठीक है,मुरारी बोला।।
और हाँ!तू फालतू घर में पड़ा रहता है इसलिए मैनें सेवक लाल से बात कर ली है,तू कल से उसके गैराज पर जाकर काम करेगा,जिससे तेरा ध्यान इधर उधर नहीं भटकेगा,चार पैसें भी कमा लेगा,कावेरी बोली।।
तुम कहती हो तो मैं काम पर चला जाऊँग,मुरारी बोला।।
और फिर मुरारी ने गैराज का काम पकड़ लिया,वो दिन भर वहाँ ब्यस्त रहता तो इतना थक जाता कि रात को घर आकर चुपचाप खाना खाकर सो जाता,उसे ऐसे शांत देखकर अब कावेरी के कलेजे को ठंडक मिल गई थी और वो अब उसकी शादी के लिए ढंग की लड़की तलाशने लगी....
और उधर हुस्ना की योजना को अन्जाम देने का वक्त आ गया था,उसने पूरी योजना को ठीक से क्रमबद्ध किया और ये भी सोच लिया कि वो अगर पकड़ी गई तो उसका क्या हश्र होने वाला था,लेकिन उसे अब अपनी फिक्र नहीं थी उसने अब सोच लिया था आर या पार,वो अब मरेगी या मारेगी......
युद्ववीर की विरोधी पार्टी का नेता बल्लू भइया जो कि पहले एक माफिया हुआ करता था और युद्ववीर के साथ ही मिलकर काम किया करता था,लेकिन एक बार उसकी किसी बात को लेकर युद्ववीर से खुन्नस हो गई,युद्ववीर ने उसकी सभी के सामने बेइज्जती की और उसे थप्पड़ भी मारा था,अपनी इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए उसने राजनीति में कदम रखा और रूपयों के बल पर अपनी एक अलग निर्दलीय पार्टी बनाईं और अब वो युद्ववीर का विरोधी था,
बल्लू भइया के सीने में अभी भी बदले की आग जल रही थी और वो युद्ववीर से बदला लेने के लिए ही तो राजनीति में उतरा था और उसी राजनीति के बल पर वो युद्ववीर से बदला लेना चाहता था,वो हुस्ना का भी कद्रदान था,इसलिए जब हुस्ना को पता चला कि वो भी युद्ववीर से बदला लेना चाहता है तो वो बल्लू भइया की और भी करीबी हो गई...
दोनों की योजना थी कि आज की रैली में हुस्ना बूढ़ी औरत का वेष धरकर जाएगी और युद्ववीर को तब माला पहनाएगी जब वो अपना भाषण खतम करके अपने हैलीकॉप्टर में बैठकर जाने वाला होगा और उस माला में बाँम्ब होगा,उस बाँम्ब का रिमोट हुस्ना के हाथ में होगा ,जब युद्ववीर अपने हैलीकॉप्टर में बैठ जाएगा और हैलीकॉप्टर जैसे ही उड़ान भरेगा तब हुस्ना रिमोट दबा देगी....
और आज दोपहर दो बजे तक युद्ववीर रैली में लोगों को सम्बोधित करने वाला था,इधर हुस्ना अपनी तैयारियों में लगी हुई थी,बल्लू के कुछ ख़ास आदमी सभी चींजों का ख्याल रख रहे थें,हुस्ना पर भी ख़ास निगरानी रखी जा रही थी कि कहीं वो अपनी योजना से मुकर ना जाएं....
लेकिन हुस्ना को भी आज अपना इन्तकाम लेने का बेसब्री से इन्तजार था,वो अपना वेष बदल कर बिल्कुल तैयार थी,युद्ववीर का हैलीकॉप्टर आया ,युद्ववीर सुनीता के संग हैलीकॉप्टर से उतरा,लोगों ने तालियों से उसका स्वागत किया,उसने अपना भाषण दिया और भाषण देने के बाद वो और सुनीता जैसे ही जाने को हुए तो हुस्ना बुढ़िया के वेष में उसे माला पहनाने आईं,युद्ववीर ने खुशी खुशी वो माला अपने गले में डलवा ली,क्योंकि इतनी सारी जनता के सामने मना नहीं कर सकता था लोंग कहते कि कैसा नेता है,एक गरीब बुढ़िया की माला नहीं पहनी....
फिर फौरन ही युद्ववीर ने माला उतारकर अपने हाथ में ले ली ,युद्ववीर के हाथों से उसके एक अर्दली ने वो माला अपने हाथ में ले ली और युद्ववीर बढ़ चला अपने हैलीकॉप्टर की ओर,हुस्ना ये सब देख रही थी,उसकी नज़र तो केवल माला पर थी,उसने देखा कि युद्ववीर बस हैलीकॉप्टर में चढ़ने ही वाला था तभी युद्ववीर के अर्दली ने उस माला को हैलीकॉप्टर के बाहर ही किसी को सौंप दिया,अब वो माला हैलीकॉप्टर के भीतर नहीं जा पाएगी यही सोचकर हुस्ना हताश हो गई लेकिन ये मौका हुस्ना अपने हाथ से गँवाना नहीं चाहती थी और उसने तभी अपने हाथ में लिया हुआ रिमोट दबा दिया.....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा...