Kamwali Baai - 8 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | कामवाली बाई--भाग(८)

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कामवाली बाई--भाग(८)

मुरारी से मिलने से पहले तो हुस्ना ने सोचा था कि पहले वो युद्ववीर के बेटे को खतम करेगी,,जिससे कि युद्ववीर जिन्दगी से थोड़ा हताश हो जाएं,क्योंकि अब उसके पास केवल उसका छोटा बेटा ही बचा है सहारे के लिए और अगर उसने विलास सिंह को खतम कर दिया तो युद्ववीर सिंह को भी भीतरी चोट लगेगी जिससे कि वो टूट जाएगा और हुस्ना इसी ताक में ना जाने कब से थी,
होली का त्यौहार आया और युद्ववीर की पार्टी के सदस्यों ने उनसे होली पार्टी की फरमाइश रखी ,बोलें इस होली पर पर तो ऐसा जलसा होना चाहिए कि बस सबकी तबियत हरी हो जाएं,शराब,कबाब और शबाब का बस ऐसा इन्तजाम हो कि अगली होली तक नशा चढ़ा रहें....
अब युद्ववीर कैसें अपनी पार्टी के के सदस्यों को मना करते,वें खुद भी ऐसी पार्टियों के शौकीन थे,बुढ़ौती आ गई थी लेकिन मिजाज अभी भी उनके रसिया किस्म के थे,आएं दिन अपनी अय्याशियों के लिए फाइवस्टार होटल बुक करवाते,नई नई कमसिन छोकरियों को बुलवाते,छोकरियांँ अपनी मर्जी से आती तो ठीक ,नहीं तो रूपयों के जोर पर तो आजकल बहुत सी चीजें खरीदीं जा सकतीं हैं,जवानी का मोल भी लग ही जाता है और फिर धन्नासेठों के लिए तो किसी कमसिन छोकरी की इज्ज़त का मोल कुछ भी नहीं,बस पैसा फेकों तमाशा देखों,
क्योंकि साहब!आजकल जिन्दगी और जवानी बहुत सस्ती हो गई वो इसलिए कि कुछ लोगों की जेबों में पैसा ज्यादा बढ़ गया है तो उनकी आँखों का पानी मर चुका है,उन्हें अपने सिवाय किसी और का ख्याल ही नहीं,गरीब को पेट की आग बुझाने के लिए रोटी चाहिए और अमीर को अपनी हवस की आग बुझाने को जवानी,दोनों का तालमेल ऐसा है जैसें कि दाल और रोटी का,इसलिए युद्ववीर अपनी दौलत के जोर पर उछलता फिरता था,
और अब सुनीता की जवानी में इतना ज़ोर नहीं रह गया है कि वो अब युद्ववीर सिंह को रिझा सकें,अब तो उसका देवर विलास सिंह भी उसकी ओर ध्यान ना देता था,जिससे कि सुनीता तिलमिलाई रहती थी,अब युद्ववीर उसे पहले की तरह रूपयों पैसों का मालिकाना हक़ भी नहीं देता था,जिससे सुनीता के दीमाग़ का पारा आसमान छू रहा था,
फिर होली की पार्टी के दो दिन पहले सुनीता विलास सिंह के पास गई और उसे रिझाते हुए बोलीं...
क्या देवर जी! कभी हमारा भी ख्याल कर लिया कीजिए,हमें अब भी आपका इन्तज़ार रहता है,लेकिन आप रातों को ना जाने कहाँ गायब रहते हैं,हमारी रात तो यूँ ही बीत जाती है बस आपका इन्तजार करते करते....
सुनीता की बात सुनकर पहले तो विलास हँसा और फिर सुनीता से बोला.....
भाभी जी!अब आपकी बूढ़ी हड्डियों में दम नहीं रह गया है कि हमें खुश कर सकें,अब आप केवल माँस की दुकान हो गई हो,अब आपकी पतली कमर कमरा हो गई है,नमक कम हो गया है आपमें और मुझे नमकीन चीजें ज्यादा पसंद हैं,अब आप में पहले वाला दम नहीं रह गया है,मैं ठहरा जवान आदमी कहीं मेरे छूने से आपकी एकाध हड्डी चरमरा गई तो इस बुढ़ापे में जुड़ भी ना पाएंगी,कहीं आपको लेने के देने ना पड़ जाएं,इसलिए मुझ पर ना सही अपने बुढ़ापे पर ही थोड़ा तरस खाइए.....
विलास की ऐसी बातें सुनकर सुनीता चिढ़ गई और उससे बोली.....
देवर जी!बाल तो आपके भी सफेद हो गए हैं,ख़िजाब लगाने से आपकी उम्र नहीं छुप जाएंगी,जवानी तो आपकी भी ढ़ल चुकी है,आप भी अब भजन गाना शुरू कर दीजिए,
तब विलास सिंह बोला....
भाभी जी!मैं मर्द हूँ और मर्द कभी बूढ़ा नहीं होता,खैर तो आप अपनी मनाइएं,ये मत सोचिएगा की बाबू जी को बहलाकर और उनको अपनी मुट्ठी में लेकर उनकी गद्दी और इस जायदाद की उत्तराधिकारी बन जाएंगीं,उनका उत्तराधिकारी तो मैं ही बनूँगा क्योंकि मैं उनका बेटा हूँ और आप उनके मरें हुए बड़े बेटे की दूसरी पत्नी,जिसकी कोई अहमियत नहीं है अब,
तब सुनीता तिलमिलाकर बोली....
देवर जी !आपको नहीं लग रहा कि आप कुछ ज्यादा ही हवा में उड़ रहे हैं,ऐसा ना हो कि आपके पंख कोई कुतर दें और आप मुँह के बल आकर सीधे जमीन की धूल चाटते नज़र आएं,
जरा!जवान सम्भाल कर बात कर दो कौड़ी की औरत,तेरी औकात तो मैं तुझे दिखाऊँगा,विलास सिंह गुस्से से बोला....
ए....ज्यादा मत बोल,नहीं तो तेरी सारी करतूतें दुनिया को बता दूँगीं,सुनीता बोली।।
ए....ए....मेरे मुँह मत लग,दूध की धुली तो तू भी नहीं है,पराएं मर्दों के बिस्तरों में घुसने वाली औरत,तुझसे अच्छी तो धन्धेवाली होतीं हैं,कम से कम अलग अलग घरों के मर्दों को तो चुनतीं हैं तू तो एक घर के मर्दों का शिकार करती आई है......बेहया कहीं की.....,विलास सिंह बोला।।
जब तक जवान थी तो मेरी जवानी के मज़े लूटता रहा ,अब मैं तुझे बेहया लगने लगीं,कमीने....हराम के जने.....मैं तेरा खून पी जाऊँगी और इतना कहकर सुनीता विलास की ओर झपटी....
सुनीता विलास पर झपट पाती कि इससे पहले ही विलास ने सुनीता के बाल पकड़े और उसे बिस्तर पर पटककर बोला....
साली....मुझे हराम का जना कहती है,अपनी उम्र का लिहाज़ कर जरा, तू मुझसे उम्र में कितनी बड़ी है और मैं नहीं घुसता था तेरे बिस्तर में ,तू घुसती थी मेरे बिस्तर में,मैं तो ये सब कुछ जानता भी नहीं था,तूने ही मुझे सब सिखाया....निकल मेरे कमरें से.....घटिया औरत....
देख लूँगी तुझे...आया बड़ा.....बाप के दम पर शेर बनता है....सुनीता बोली।।
हाँ....हाँ....तुझे जो करना है तो कर लेना,तुझ में हिम्मत है तो ,अभी यहाँ से अपनी मनहूस सूरत लेकर जा,पूरा दिन खराब कर दिया.....विलास बोला।।
फिर क्या था सुनीता अपना सा मुँह लेकर विलास के कमरें से चली आई,लेकिन उसने विलास से बदला लेने की ठान ली थी और इसी बीच जब होली की पार्टी का ऐलान हुआ तो सुनीता ने इस बात का फायदा उठाया.....
और फिर जलसे की सारी तैयारियों का इन्तजाम करने के लिए युद्ववीर ने सुनीता से कहा,सुनीता तो यही चाहती थी,वो तो बस विलास से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहती थी,इसलिए वो चाहती थी कि महफ़िल में कोई ऐसी आएं जो विलास का खेल खतम करने में उसकी मदद कर दें,होली के जलसे में तो बहुत कुछ होता है अगर विलास मर गया तो यही हल्ला होगा कि ज्यादा पी ली होगी इसलिए ये हादसा हो गया.....
सुनीता ने अपनी तिकड़म चलाई लेकिन सुनीता को ये नहीं पता था कि हुस्ना भी कम शातिर नहीं थी,उसने अपनी मुखबिर को युद्ववीर के यहाँ लगा रखा था जो उसके यहाँ खाना बनाती थी और उस घर में हो रही सारी बातों की जानकारी वो हुस्ना बेग़म को देती थी......
और होली के जलसे वाली बात भी उसने हुस्ना से कही,हुस्ना की तो जैसे बाँछें ही खिल गई,वो तो ना जाने कब से इस पल का इन्तज़ार कर रही थी,उसे अब युद्ववीर के घर में घुसने का बहाना मिल गया था,हुस्ना ने भी अपनी तिकड़म लगाकर युद्ववीर के घर में अपना मुजरा रखवा लिया और मुजरे की बात करने उसके पास सुनीता आई थी,लेकिन हुस्ना ने ये शर्त रखी कि वो केवल रात में ही किसी के घर नाचने जाती है,सुनीता ने उसकी इस शर्त को तो मान लिया क्योंकि वो भी तो यही चाहती थी और सुनीता हुस्ना से बोली....
तुम्हें मैं मुँहमाँगा ईनाम दूँगीं...
इतना अच्छा नाचूँगी ना!कि आपको मुझे मुँहमाँगा ईनाम देना ही होग और अगली बार भी आप मुझे ही बुलाएंगीं,,हुस्ना बोली।।
नाचने के अलावा भी तुम्हें एक काम और करना है,सुनीता बोली।।
क्या मतलब मोहतरमा? मैं कुछ समझी नहीं,हुस्ना बोली।।
मतलब तुम्हें किसी को रास्ते से हटाना है,सुनीता बोली।।
मगर किसे?हुस्ना ने पूछा....
युद्ववीर सिंह के बेटे विलास सिंह को,सुनीता बोली।।
ये कैसीं बातें कर रहीं हैं? कहीं दिमाग़ तो खराब नहीं हो गया है आपका?मोहतरमा! मेरा पेशा मुज़रा करना है ,किसी का ख़ून करना नहीं,समझीं आप!हुस्ना ने नाटक करते हुए कहा....
तुम्हें इसके लिए बहुत रूपया मिलेगा,सुनीता बोली...
लेकिन अगर पकड़ी गई ना तो सिवाय जेल के कुछ ना मिलेगा,तब आप नहीं आएंगी मेरी मदद करने,हुस्ना बोली।।
मैनें पूरा प्लान बना लिया है,तुम पर आँच भी नहीं आएगी और विलास की मौत केवल हादसा ही लगेगी,सुनीता बोली।।
तब ठीक है!मैं तैयार हूँ,लेकिन पेशगी तो मुझे अभी चाहिए,हुस्ना बोली।।
तुम उसकी चिन्ता मत करो,ये लो तुम्हारा रूपया,सुनीता बोली।।
फिर दो चार बातें करने के बाद सुनीता वहाँ से चली गई,सारी योजना तो हुस्ना के ही हिसाब से थी,बस हुस्ना को उसे अन्जाम तक ले जाना था और हुस्ना ने अब कमर कस ली थी युद्ववीर के खिलाफ मोर्चा लेने की....
फिर होली वाली रात युद्ववीर के घर पर जलसा हुआ,महफ़िल सँजी,हुस्ना ने अनारकली लिबास़ में अपने हुस्न का जादू बिखेरा,हुस्ना को देखकर सबकी आँखें खुली की खुली रह गईं,हुस्ना ने जब नाचना शुरू किया तो माहौल में एक बिजली सी कौंध गई,हुस्ना के हुस्न से सबकी आँखें चौंधिया गई,युद्ववीर की पार्टी के जितने भी बूढ़े सदस्य थे वें सभी हुस्ना के कदमों पर लोट-लोट जा रहे थें....
उस दिन हुस्ना ने ना जाने कितना रूपया बटोरा,लोंग उस पर नोटों की बौछारें कर रहे थे और इन सब से अलग विलास सिंह हुस्ना को केवल अपनी आँखों से टटोल रहा था,अब समय था सुनीता की योजना अनुसार खेल को आगें बढ़ाने का......
हुस्ना नाचते नाचते थक चुकी थी और उसने अपने लिए एक अलग कमरें में जाने की गुजारिश की,क्योंकि महफ़िल सारी रात चलने वाली थी और हुस्ना को अब थोड़ी देर का आराम चाहिए था,युद्ववीर ने फौरन ही सुनीता को बुलवाया और उससे बोला....
हुस्ना बेग़म को थोड़ी देर के लिए मेहमानों वालें कमरें में ले जाओं...
सुनीता युद्ववीर के कहें अनुसार हुस्ना को लिवा ले गई,अब दोनों मिलकर कमरें में विलास का इन्तज़ार करने लगीं उन्हें पक्का यकीन था कि विलास हुस्ना के पीछे जरूर आएगा और वही हुआ,सुनीता कमरें में बेड के नीचें छुपी हुई थी,विलास नशे में धुत्त कमरें में पहुँचा और हुस्ना की तारीफ़ करने लगा,हुस्ना ने विलास से कमरें में पड़े सोफे पर बैठने को कहा....
और जैसे ही विलास सोफे पर बैठा तो सुनीता ने उसे पीछे से रूमाल में लगी हुई बेहोशी की दवा सुँघा दी,फिर क्या था अब विलास बिल्कुल अचेत था,हुस्ना दोबारा महफ़िल में पहुँची और फिर से बहुत देर तक नाचती रही और इधर महफ़िल खतम होने के बाद पता चला कि विलास नशे में धुत्त छत पर चला गया था और खुद को नहीं सम्भाल पाया फिर छत से गिर पड़ा,महफ़िल के शोर से किसी को बहुत देर तक कुछ पता नहीं चला,फिर किसी नौकर की नज़र पड़ी उस पर,तब उसने सबको बताया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी....
सबने ये समझ लिया कि विलास की मौत ज्यादा नशा करने से हुई है,नशे के कारण वो शायद खुद को सम्भाल नहीं पाया और छत से गिर पड़ा,इस काम में सुनीता की मदद उसकी नौकरानी ने की थी जो उसके घर में खाना बनाती थी,क्योंकि नौकरानी को भी विलास से अपना पुराना हिसाब किताब चुकता करना था,वो दोनों ही विलास को घसीटकर छत तक ले गए थी,नौकरानी ने भी अब अपना हिसाब पूरा कर लिया था,नौकरानी की ये कहानी हुस्ना भी जानती थी,इसलिए तो हुस्ना ने उसे युद्ववीर के घर में भेजा था,
सुनीता का बदला तो पूरा हो चुका था लेकिन अभी हुस्ना के कलेजे में आग धधक रही थी,क्योंकि उसका मुक़ाम तो युद्ववीर था,जिसका अंत अभी बाक़ी था,अब युद्ववीर के बाद उसकी गद्दी की उत्तराधिकारी सुनीता थी,लेकिन सुनीता भी ये कहाँ जानती थी कि उसके साथ भविष्य में क्या होने वाला है?
क्योंकि सुनीता ने भी तो कई पाप किए थे और ईश्वर को अभी उसका हिसाब देना बाकी था,यदि इन्सान का वर्तमान अच्छा हो तो इन्सान कभी कभी अपने वर्तमान में इतना लीन हो जाता है कि वो ये भूल जाता है कि उसने जो बीज बोएं थे उसकी फसल भविष्य में तैयार होगी,अगर बीज सही बोएं होगें तो फसल अच्छी होगी वरना खराब बीजों पर तो फसल कभी अच्छी उग ही नहीं सकती....
जब हुस्ना से मुरारी मिला तो हुस्ना के इन्तकाम का वक्त तो मुकर्रर नहीं था लेकिन फैसला जरूर हो चुका था कि अब उसके इन्तकाम को मंजिल नसीब हो जाएगीं.....
अपने बेटे विलास सिंह की मौत से युद्ववीर सिंह टूट चुका था,लेकिन सत्ता का नशा वो नशा होता है कि यदि इन्सान के पैर कब्र म़े भी लटके हो तो वो राजनीति नहीं छोड़ना चाहता,यही युद्ववीर सिंह के साथ भी हो रहा था,सुनीता ने तो कई बार युद्ववीर सिंह से कहा भी कि वो अब अपनी सत्ता की बागडोर किसी और के हाथों सौंप दें लेकिन युद्ववीर सिंह नहीं माना,
इस बीच फिर से चुनाव आएं और चुनावी रैलियाँ चलने लगी,युद्ववीर सिंह भी बढ़ चढ़ कर चुनावी रैलियों में भाग लेने लगा,उसने अपने स्वास्थ्य का ख्याल ना रखते हुए रैलियों में सम्मिलित होना ज्यादा जरुरी समझा और इधर मुरारी और हुस्ना के इरादे कुछ और ही थे..

क्रमशः....
सरोज वर्मा....