गीता ने रोमा मेमसाब के घर का काम छोड़कर एक नये घर का काम पकड़ लिया और वो थीं डाक्टर सुभद्रा कुलकर्णी और उनके पति भी डाँक्टर थे जिनका नाम वासुदेव कुलकर्णी था,उन दोनों की अपनी खुद की क्लीनिक थी जिसे वें दोनों मिलकर सम्भालते थे,काम में इतने ब्यस्त रहते थे कि उन्हें अपने बेटे हर्षित के लिए फुरसत ही नहीं मिलती थी,इसलिए उनका बेटा बोर्डिंग में पढ़ा था,लेकिन अब उसकी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और उसने अपने ब्यस्त माँ बाप को देखकर पहले ही अपने माता पिता की तरह मेडिकल की पढ़ाई करने से इनकार कर दिया था,वो एक माँडल बनना चाहता था,इसलिए उसने जिम वगैरह ज्वाइन करके अच्छी बाँडी बना ली थी,
उसने माँडलिंग के लिए कई जगह अप्लाई भी कर रखा था,लेकिन अब तक उसके हाथ केवल रेजेक्शन ही लगा था इसलिए वो थोड़ा मायूस था और फिर मायूसी का दूसरा कारण ये था कि उसके माँ बाप कभी नहीं चाहते थे कि वो माँडलिंग करें,इसलिए उसका आत्मविश्वास थोड़ा गिरा हुआ सा था,
माँडलिंग के चक्कर में उसके कई सारे माँडल दोस्त भी बन गए थे जिनमें लड़कियांँ भी शामिल थी और ये बात मिस्टर कुलकर्णी को नागवार थी,वें नहीं चाहते थे कि उनके बेटे की दोस्त लड़कियांँ हो,लेकिन उनका बेटा हर्षित इस बात से सहमत नहीं था और पिता के लाख समझाने पर भी उसने लड़कियों का साथ नहीं छोड़ा,पहले तो वो बाहर रहता था लेकिन इन दिनों वो अपने माँ बाप साथ ही रह रहा था और इसी बीच गीता को उनके घर का मिल गया.....
जब गीता उनके घर काम के लिए जाती तो तब मिस्टर एण्ड मिसेज कुलकर्णी ज्यादातर बाहर ही होते थें,घर में केवल उका बेटा हर्षित ही रहता था,गीता को हर्षित के रहते घर में काम करते हुए बहुत अज़ीब लगता था क्योंकि उसे हर्षित के हाव-भाव अच्छे नहीं लगते थे,वो जब तक वहाँ काम करती थी हर्षित उसे ही देखता रहता जो कि गीता को बिल्कुल भी पसंद नहीं था,
लेकिन उस घर में उसे पैसे भी औरों के घरों की अपेक्षा अच्छे मिल रहे थे,ऊपर से घर की मालकिन की चिकचिक भी नहीं थी,इसलिए गीता वो काम छोड़ने को तैयार ना थी,वो वहाँ खाना भी बनाती थी,इसलिए उसे हर्षित से पूछना पड़ता था कि आज मेमसाब क्या क्या बनाने को कह गईं हैं और हर्षित उसे अपनी माँ का संदेशा उस तक पहुँचा देता,
गीता ने कई बार देखा कि हर्षित से मिलने उसके बहुत से दोस्त आतें हैं जिनमें लड़कियांँ भी थी लेकिन हर्षित का एक ख़ास दोस्त उससे अक्सर मिलने आता था,उसका नाम डेनियल था जो कि शायद किसी ईसाई परिवार से था,वो देखने में खूब लम्बा चौड़ा और भरे पूरे शरीर वाला सुन्दर लड़का था और उसकी आँखें नीली और बाल भूरे थें,उसका व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि कोई भी लड़की उसकी ओर आसानी से आकर्षित हो जाती थी,उन लड़कियों में गीता का नाम भी शामिल था,डेनियल गीता को भी अच्छा लगता था और जब भी डेनियल हर्षित के घर आता तो दोनों दरवाजा बंद करके भीतर घुस जाते और ना जाने क्या खुसर फुसर होती रहती दोनों के बीच ,वें दोनों गीता से कुछ ना कुछ खाने के लिए बनाने को कहते रहते और गीता चुपचाप बनाकर उन्हें दे आती,लेकिन वो उनके कमरेँ में ना जाती क्योंकि हर्षित उससे कहता था कि बनाकर दरवाज़े के पास रख दो मैं उठा लूँगा,
भला इस बात से गीता को क्या आपत्ति होती ,घर का छोटा मालिक जो उससे कहता तो वो उसका हुक्म मान कर अपना फर्ज पूरा करती रहती,ऐसे ही कई दिन बीत गए लेकिन गीता ने गौर किया अब डेनियल उनके घर नहीं आता,हर्षित भी आजकल कुछ कुछ खोया खोया और उदास सा रहता है,तभी एक दिन हर्षित की दोस्त विदुषी उससे मिलने आई और बोली....
हर्षित!तू इतने दिनों से मिला नहीं इसलिए मैं ही तुझसे मिलने चली आई,
वो बस मेरा मन नहीं किया कहीं जाने को,हर्षित बोला।।
और डेनियल भी आजकल दिखता नहीं है,कहाँ है वो?विदुषी ने पूछा।।
वो आजकल मुझसे नाराज है,हर्षित बोला।।
लेकिन क्यो?विदुषी ने पूछा।।
उसे कोई और दोस्त मिल गया है शायद,हर्षित बोला।।
लेकिन यार!तुम लोगों की दोस्ती इतनी पक्की थी,विदुषी बोली।।
खैर!ये सब छोड़ बोल क्या लेगी?काँफी या कोल्डड्रिंक,हर्षित ने पूछा।।
कुछ नहीं यार!मैं तो बस तुझसे ये कहने आई थी कि कल मेरे घर पर मेरे बर्थडे पार्टी है और तुझे आना है,विदुषी बोली।।
पक्का नहीं कह सकता लेकिन आने की पूरी कोशिश करूँगा,हर्षित बोला।।
मैनें डेनियल से भी कहा है पार्टी में आने के लिए,विदुषी बोली।।
लेकिन उसे क्यों बोला?हर्षित ने पूछा।।
वो भी तो हम सबका दोस्त है,हम सब एक ही ग्रुप के हैं और सभी माँडलिंग के फील्ड से हैं तो हमें एकदूसरे का ख्याल रखना चाहिए,विदुषी बोली...
शायद तुम सच कहती हो?हर्षित बोला।।
अच्छा तो मैं चलती हूँ कल पार्टी में मिलते हैं और इतना कहकर विदुषी चली गई.....
दूसरे दिन हर्षित पार्टी मे गया ,वो वहांँ डेनियल से मिला और दोनों के बीच के गिले शिकवें दूर हो गए,आपस में फिर से दोनों के बीच दोस्ती हो गई...
अब डेनियल फिर से हर्षित के घर आने लगा,दोनों फिर से घण्टों कमरें बैठकर बातें करते रहते,गीता भी ये सब देखती रहती,लेकिन एक दिन डाँक्टर सुभद्रा कुलकर्णी क्लीनिक नहीं गई,वें घर पर थीं,गीता काम के लिए पहुँची तो सुभद्रा ने गीता को अपने बेडरूम में आने को कहा....
गीता डरते डरते वहाँ पहुँची और सुभद्रा से पूछा....
जी!कहिए!क्या बात है मेमसाब?
तब सुभद्रा बोली....
तुम हर्षित के सभी दोस्तों को जानती हो,जो जो घर आतें हैं,
जी!जानती हूँ,एक विदुषी दीदी आतीं हैं,एक नैनसी दीदी आतीं हैं,एक स्मृति दीदी आतीं हैं,साथ में कभी कभी सौरभ भइया,अनिमेक भइया भी आतें हैं लेकिन सबसे ज्यादा डेनियल जी यहाँ आते हैं,गीता डेनियल को भइया ना कह सकी क्योंकि वो उसे पसंद करती थी,वे तो घंटो यहाँ रहते हैं और छोटे साहब के साथ कमरें में बैठकर बातें करते हैं,छोटे साहब तो मुझसे यहाँ तक कहते हैं कि खाना दरवाजे के बाहर रख दो मैं उठा लूँगा,गीता बोली।।
तो ये सब होता है यहाँ मेरे घर में,सुभद्रा गुस्से से बोली।।
मेमसाब!कोई बात है क्या?गीता ने पूछा।।
नहीं!तुम जाओ,मैं हर्षित से ही बात करूँगी इस बारें में,सुभद्रा बोली।।
गीता को कुछ भी समझ नहीं आया कि दोनों की दोस्ती से आखिर मेमसाब को क्या एतराज़ है?डेनियल की जगह कोई लड़की होती तो अलग बात थी,वो ये सोच ही रही थी कि हर्षित उसके पास रसोई में आया और बोला....
गीता!दो पराँठे बना दो बहुत भूख लगी है,मेरे कमरें में ले आना,
गीता पराँठे बनाकर देने के लिए हर्षित के कमरें में जैसे ही गई तो वैसे ही हर्षित ने पूछा....
मम्मा क्या पूछ रही थी तुमसे?
वो आपके दोस्तों के बारें में पूछ रही थी और मैनें सबकुछ सच सच बता दिया,गीता बोली।।
डेनियल के बारें में भी,हर्षित बोला।।
हाँ!क्यों नहीं बताना था क्या?गीता ने पूछा।।
बता दिया तो कोई बात नहीं,हर्षित बोला।।
फिर गीता हर्षित के कमरें से बाहर आकर और काम निपटाने लगी....
उस दिन के बाद अब सुभद्रा घर पर ही रहकर अपने बेटे हर्षित पर निगरानी रखने लगी,वो हर्षित को भी बाहर नहीं जाने देती थी,इससे हर्षित काफी उदास हो उठा और एक दिन वो अपने कमरें में उदास बैठा था,सुभद्रा के कहने पर गीता उसे खाना देने गईऔर कहा....
छोटे साब खाना खा लीजिए?
तुम मुझे साब क्यों कहती हो?हर्षित ने पूछा...
तो क्या कहूँ?साब को साब ही कहूँगी ना!गीता बोली।।
गीता मेरी कोई बहन नहीं है,क्या तुम मुझे भइया कह सकती हो?हर्षित ने द्रवित आँखों से उससे कहा...
जी!आज से भइया ही कहूँगी,गीता बोली।।
तो ठीक है इस बार तुम मेरे लिए रक्षाबंधन पर अच्छी सी राखी लाकर मेरी कलाई पर बाँधना और मैं तुम्हें शगुन दूँगा,हर्षित खुश होकर बोला।।
जी!अच्छा,गीता ये कहते हुए हँसी,
तो तुम बहन होने के नाते मेरी बात सुनोगी,ऐसा कोई नहीं है जो मुझे समझ सकें,मेरी माँ भी आज तक मेरे साथ घुल मिल नहीं पाई,उन्होंने जीवन भर अपने काम को प्राथमिकता दी है मुझे नहीं,अब मेरे दोस्तों से भी उन्हें एतराज़ है खासकर डेनियल से,हर्षित बोला।।
उन्हें आपके लड़कियों से दोस्ती पर एतराज़ होना चाहिए ना कि लड़को से दोस्ती पर,गीता बोली।।
डेनियल मेरा खास दोस्त है ना इसलिए उन्हें वो पसंद नहीं है,हर्षित बोला।।
डेनियल उन्हें पसंद क्यों नहीं है इसकी वज़ह क्या है?गीता ने पूछा।।
वो मैं फिर कभी बताऊँगा,अभी तुम यहाँ से जाओं नहीं तो माँ कुछ और ना सोचने लगें,आज तुमसे बात करके अच्छा लगा,एक भाई और बहन तो होना ही चाहिए मन की बात कहने के लिए,जैसे कि तुम अब मेरी बहन हो,मैँ तुमसे अपनी बात कह सकता हूँ,हर्षित बोला।।
जी!भइया!आपकी बात सुनने को मैं हमेशा हाजिर हूँ और इतना कहकर गीता हर्षित के कमरें से चली आईं...
इस तरह अब दोनों के बीच काफी बातें होने लगी,हर्षित जब भी उदास होता तो गीता से सब कह देता,
फिर एक रोज़ गीता जैसे ही हर्षित के घर पहुँची तो दरवाजा खुला हुआ था और माँ बेटे के बीच चिल्लमचिल्ली हो रही थी,उसने सुना कि सुभद्रा जी कह रही थी कि....
तुमने डेनियल को आज फिर से टेलीफोन किया,मुझे उससे तुम्हारा मिलना या बात करना बिल्कुल पसंद नहीं,ये जानते हुए भी....
मैं उसे पसंद करता हूँ और वो भी मुझे पसंद करता है,मैं उससे बात करूँगा,आप को जो करना है कर लीजिए,हर्षित बोला।।
लड़कों के बीच ऐसा सम्बन्ध अनैतिक है,दुनिया थूकेगी हम पर,सुभद्रा बोली।।
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,हर्षित बोला।।
लेकिन मुझे फर्क पड़ता है,मुझे शर्म आती है कि मेरे लड़के के सम्बन्ध किसी लड़के के साथ हैं?सुभद्रा बोली।।
लेकिन मुझे शर्म नहीं आती ये कहते हुए कि मैं एक "गे"हूँ,मैं क्या करूँ मुझे लड़कियांँ पसंद नहीं,मेरा रूझान तो लड़को की तरफ है और ऐसा ही वो डेनियल है उसे भी लड़कियांँ पसंद नहीं,हर्षित बोला।।
मैं तुम्हारा ये नाटक ज्यादा दिनों तक चलने नहीं दूँगी,दो दिन बाद मिस्टर सिंघानिया अपनी बेटी सोनिया के साथ आष्ट्रेलिया से भारत आ रहे हैं ,सोनिया के आते ही मैं तुम्हारी सगाई उसके साथ कर दूँगी और फिर कुछ ही दिनों में शादी भी कर दूँगी,सुभद्रा बोली।।
लेकिन मैं सोनिया को पति का सुख नहीं दे पाऊँगा माँ!हर्षित गिड़गिड़ाया,
ये अब होकर ही रहेगा,सुभद्रा बोली।।
फिर उस दिन गीता उनके घर के दरवाज़े से ही लौट आई,उसे भीतर जाने की हिम्मत ना हुई फिर उसने उस दिन वहाँ काम नहीं किया लेकिन उसने फिर अपनी हमउम्र सुहाना से पूछा कि "गे"का मतलब क्या होता है?
ये सुनकर सुहाना मुस्कुराई और पूछा....
क्या चक्कर है ये?
फिर गीता ने उसे सारा माजरा सुनाया,तब जाकर सुहाना ने उसके सवाल का जवाब दिया,जवाब सुनकर गीता ने अपने दाँतों तले उँगलियाँ दबा लीं और बोली....
ऐसा भी होता है....
हाँ!समाज में ये भी होता है,सुहाना बोली।।
उस दिन गीता समाज की एक और कड़वीं सच्चाई से रूबरू हुई थी और उसे अब डेनियल अच्छा नहीं लग रहा था उसके बारें में सोचकर अब उसे उल्टी आ रही थी......
क्रमशः....
सरोज वर्मा.....