Mere Ghar aana Jindagi - 16 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 16

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 16


(16)

डॉ. नगमा सिद्दीकी को दिखाने के बाद मकरंद नताशा को उसके मम्मी पापा से मिलाने ले गया था।‌ दोनों अपनी बेटी और दामाद को देखकर बहुत खुश थे। खासकर नंदिता के पापा। अब उनकी तबीयत पहले से बहुत अच्छी थी। वह खुलकर हंस रहे थे और बातें कर रहे थे। नताशा भी अपने मम्मी पापा से बातें करते हुए खो गई थी। किसी को ध्यान ही नहीं था कि मकरंद कमरे में एक तरफ चुपचाप बैठा है।
उन तीनों को बातें करते हुए देखकर मकरंद‌ सोच रहा था कि उसे जीवन में कभी इस तरह के पल बिताने को नहीं मिले। जब वह तेरह साल का था उसके माता पिता की मृत्यु हो गई थी। लेकिन उससे पहले भी कभी उन लोगों ने उसके साथ इस तरह बातचीत नहीं की थी। दोनों अपनी अपनी ज़िंदगी में उलझे रहते थे। उनका मानना था कि मकरंद की ज़रूरतों को पूरा कर देना ही उनका कर्तव्य है। इसलिए कभी उसे अपने पास बैठाकर हालचाल भी नहीं पूछते थे।
उनके जाने के बाद जब वह मौसा मौसी के घर पर रह रहा था तब अक्सर मौसा मौसी अपनी बेटी के साथ इसी तरह बातें करते थे। वह कमरे के बाहर खड़ा होकर देखता था। एकबार मौसा जी की नज़र पड़ गई तो उन्होंने उसे अंदर बुला लिया। वह भी उन लोगों के साथ बातें करने लगा। उसी बातचीत में मौसा जी ने कह दिया था कि भगवान ने मुझे बेटा नहीं दिया था। इसलिए तुम्हें भेज दिया। उसके बाद से ही मौसी जी का व्यवहार उसके लिए बदल गया था। उनके मन में डर बैठ गया था कि मौसा जी कहीं सचमुच उसे अपना बेटा ना बना लें।
मकरंद अपने विचारों में खोया हुआ था तभी नंदिता के पापा ने आवाज़ लगाई,
"मकरंद तुम उधर चुपचाप क्यों बैठे हो। हमारे पास आकर बैठो।"
नंदिता उसके पास आकर बोली,
"सही कह रहे हैं पापा। सबसे अलग क्यों बैठे हो। आओ उधर चलो।"
वह उसका हाथ पकड़ कर ले गई। नंदिता के पापा ने मकरंद को अपने पास बैठाकर कहा,
"तुम बेवजह संकोच करते हो। तुम हमारे परिवार का हिस्सा हो। पहले हमारे बीच कुछ मन मुटाव था। अब दूर हो गया है। सब भूल जाओ। जैसे नंदिता यहाँ रहती है वैसे ही तुम भी रहो।"
नंदिता की मम्मी ने हंसते हुए कहा,
"दोनों बाप बेटी आपस में एक होकर सबको भूल जाते हैं। इसलिए मैं भी बीच में कूद जाती हूँ। अब सोचती हूँ कि मैं और तुम भी अपना ग्रुप बना लें।"
उन लोगों की बातों से मकरंद का बचा हुआ संकोच भी चला गया था। वह हंसते हुए बोला,
"अच्छा होगा कि मैं भी आपके साथ इन दोनों के बीच कूद जाया करूँ। एक बड़ा ग्रुप बन जाएगा।"
उसकी इस बात पर नताशा के पापा ज़ोर से हंस दिए। उसके बाद चारों आपस में हंसी मज़ाक करते हुए बातें करने लगे।
मकरंद जब घर लौटकर आया तो बहुत अच्छा महसूस कर रहा था। उसने अपनी डायरी में कुछ हिसाब लिखा‌‌। उसके बाद बेडरूम में चला गया। नताशा चेंज करके बिस्तर पर लेटी हुई थी। मकरंद उसके बगल में लेट गया। उसने नंदिता को गले लगाकर कहा,
"आज ऐसा लग रहा है कि जैसे मुझे मेरा परिवार मिल गया है।"
नंदिता ने उसके माथे को चूमकर कहा,
"मैं भी बहुत खुश हूँ।"
मकरंद ने कुछ सोचकर कहा,
"चलते समय मम्मी जी ने उस बैग में क्या दिया था ?"
नंदिता हंस पड़ी। उसने कहा,
"उसमें वह कपड़े हैं जो मेरे पैदा होने पर मम्मी ने मुझे पहनाए थे।"
मकरंद ने आश्चर्य से कहा,
"इतने पुराने कपड़े उन्होंने अभी तक संभाल कर रखे हैं।"
"कह रही थीं कि तुम्हारे बच्चे के लिए संभाल कर रखे हैं। बच्चों को पुराने कपड़े पहनाना अच्छा होता है।"
मकरंद मुस्कुरा रहा था। फिर कुछ सोचकर बोला,
"लेकिन उन्होंने तो तुम्हारे कपड़े दिए हैं। अगर लड़का हुआ तो।"
नंदिता ने प्यार से उसकी नाक पकड़ते हुए कहा,
"बुद्धू इतने छोटे बच्चों को एक जैसे कपड़े ही पहनाए जाते हैं। जब थोड़ा बड़ा होगा तब उसके हिसाब से कपड़े खरीदेंगे। कुछ महीने तो इनसे काम चल जाएगा। उसके बाद बहुत सारी चीज़ें लेनी होंगी।"
नंदिता याद करके बता रही थी कि कब बच्चे के लिए किस चीज़ की ज़रूरत होगी। मकरंद का दिमाग मन ही मन हिसाब लगा रहा था।

योगेश का ऑपरेशन सफलतापूर्वक हो गया था। अभी कुछ दिन और उन्हें अस्पताल में रहना था। वह उर्मिला को देखने के लिए बेचैन थे। इसलिए सुदर्शन उर्मिला के पास गया था। उसे वीडियो कॉल के ज़रिए उनकी बात उर्मिला से करवानी थी। योगेश वीडियो कॉल का इंतज़ार कर रहे थे। फोन की घंटी बजी उन्होंने कॉल आंसर की। सुदर्शन ने कैमरा उर्मिला की तरफ कर दिया था। उर्मिला मोबाइल स्क्रीन को घूर रही थीं। उनकी आँखों में कोई पहचान नहीं थी। योगेश कुछ क्षणों तक अपनी स्क्रीन पर दिखाई पड़ रही उर्मिला को निहारते रहे। फिर उनकी आँखें आंसुओं के पर्दे से ढक गईं। उन्होंने अपने आंसू पोंछे। बड़े प्यार से कहा,
"उर्मिला....अच्छी हो ना।"
उर्मिला उसी तरह स्क्रीन को ताक रही थीं। कुछ देर देखते रहने के बाद उन्होंने फोन को अपने मुंह के आगे से हटा दिया। योगेश परेशान हो गए। सुदर्शन ने समझाते हुए कहा,
"अंकल परेशान मत होइए। आजकल आंटी कुछ अनमनी सी रहती हैं। कहीं भी एक जगह टिककर नहीं बैठती हैं। पर अब आप ठीक होकर उन्हें ले जाएंगे तो वह भी पहले की तरह हो जाएंगी।"
सुदर्शन ने फोन काट दिया। योगेश के मन में एक नई हलचल पैदा हो गई थी। वह सोच रहे थे कि कहीं उर्मिला इस बात से नाराज़ तो नहीं हो गईं कि वह उन्हें उस संस्था में छोड़ आए हैं। उन्होंने अपने मन की बात नर्स से कही। नर्स ने समझाया,
"आप बेकार परेशान हो रहे हैं। उन्हें अपना ही होश नहीं रहता है तो वह नाराज़ कैसे होंगी।"
यह कहकर नर्स बाहर जा रही थी तभी नंदिता ने कमरे में प्रवेश किया। उसने मुस्कुराते हुए कहा,
"हैलो अंकल.....कैसे हैं आप ?"
नंदिता को देखकर योगेश खुश हो गए। उन्होंने कहा,
"ठीक हूँ। तुम लोगों के प्यार के कारण बच गया।"
स्टूल खींचकर उनके पास बैठते हुए नंदिता ने कहा,
"आप सिर्फ आंटी के प्यार की वजह से ठीक हुए हैं। आपको अभी आंटी के साथ कई साल रहना है।"
योगेश ने नंदिता को वीडियो कॉल वाली बात बताकर कहा,
"मुझे ऐसा लगा कि उर्मिला मुझसे नाराज़ है।"
नंदिता ने कहा,
"अगर ऐसा है तो कोई बात नहीं। आप उन्हें मना लीजिएगा। मैंने अभी डॉक्टर से बात की थी। उन्होंने कहा है कि आने वाले संडे को आप डिस्चार्ज हो जाएंगे। फिर आंटी को घर ले जाइएगा। उनकी नाराज़गी अपने आप दूर हो जाएगी।"
डिस्चार्ज की बात सुनकर योगेश के चेहरे पर चमक आ गई। नंदिता उठते हुए बोली,
"अब आपके घर पर मिलूँगी। आपकी और आंटी की फोटो खींचने के लिए।"
नंदिता चली गई। योगेश अपने मन में सपने बुनने लगे। डिस्चार्ज के बाद जब घर जाएंगे तो क्या क्या करेंगे। सब सोचते हुए ईश्वर के लिए उनका दिल कृतज्ञता से भर गया। अपने हाथ जोड़कर उन्होंने भगवान को धन्यवाद दिया।

आज योगेश डिस्चार्ज हो रहे थे। सुबह सुदर्शन आकर फ्लैट की साफ सफाई करवा गया था। अभी योगेश और उर्मिला दोनों को ही देखभाल की ज़रूरत थी इसलिए एक हेल्पर की व्यवस्था कर ली गई थी। वह कुछ दिनों तक उन लोगों के साथ ही रहने वाला था।
नंदिता, मकरंद, अमृता और सोसाइटी के कुछ लोग योगेश और उर्मिला के स्वागत के लिए सोसाइटी के गेट पर खड़े थे। सुदर्शन का फोन आया था कि कुछ ही देर में वो लोग पहुँचने वाले हैं। योगेश के लिए यह सारा इंतज़ाम एक सरप्राइज़ था।
योगेश की कैब गेट के अंदर आकर रुक गई। मकरंद ने आगे बढ़कर दरवाज़ा खोला। योगेश आश्चर्यचकित नीचे उतरे। लोगों ने एकसाथ कहा,
"वेलकम होम...."
उसके बाद तालियां बजाने लगे। अपने इस स्वागत को देखकर योगेश भावुक हो गए। उन्होंने सबका धन्यवाद किया‌। उर्मिला को कैब से उतार कर कैब को विदा कर दिया गया। योगेश ने उर्मिला का हाथ पकड़ा और उन्हें अपनी बिल्डिंग की तरफ लेकर चल दिए। मकरंद, नंदिता और अमृता भी उनके साथ थे।
फ्लैट में पहुँचने पर योगेश ने दरवाज़ा खोला। उर्मिला को लेकर अंदर घुसे। इतने दिनों बाद अपने घर को देखकर उनकी आँखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। नंदिता ने उन्हें और उर्मिला को एकसाथ खड़ा करके कहा,
"अब उस फोटो का समय है जिसका इतने दिनों से इंतज़ार था।"
उसने उनकी दो तीन फोटो क्लिक कीं। योगेश से एक फोटो पसंद करवा कर बोली,
"इसे उस फोटो फ्रेम में लगाकर दूँगी।"
योगेश और उर्मिला को आराम करने के लिए छोड़कर सब चले गए। योगेश उर्मिला को अपने कमरे में ले गए। उन्हें गले लगाकर बोले,
"मुझसे नाराज़ हो गई थी।"
उर्मिला ने इधर उधर देखा। फिर अपने आप को छुड़ाकर बोलीं,
"इतने दिन लगा दिए शादी में। विशाल तो बहुत नाराज़ है। अभी आएगा तो पूछेगा कि इतने दिन क्यों लगा दिए।"
यह कहकर वह फिर इधर उधर ऐसे देखने लगीं जैसे कि कुछ तलाश रही हों। योगेश ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया। वह कह रहे थे,
"अब तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा। तुम्हारे पास ही रहूँगा।"
योगेश अब निश्चिंत थे। उन्हें लग रहा था कि ज़िंदगी दोबारा उन पर इतनी कठोर नहीं होगी कि जीते जी उन्हें उर्मिला से अलग कर दे। बचे हुए दिन अब वह उर्मिला के साथ ही बिताना चाहते थे। उन्होंने तय कर लिया था कि जब तक हो सकेगा वह पहले की तरह उर्मिला की देखभाल खुद करेंगे। अपनी मदद के लिए उन्होंने संस्था से एक हेल्पर नियुक्त करवा लिया था। वह बस कुछ ही देर में आने वाला था।