Achhut Kanya - Part 20 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अछूत कन्या - भाग २०

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अछूत कन्या - भाग २०

विवाह के पश्चात विवेक अपनी पत्नी गंगा को लेकर गाँव पहुँचा। इतने वर्षों के बाद अपने गाँव की धरती पर पहुँचते ही गंगा की आँखों में अपना बचपन, यमुना के साथ बिताए खूबसूरत लम्हे, आँखों में दृष्टिगोचर होने लगे। उसे दूर से जैसे ही गंगा-अमृत दिखाई दिया, उसे घुंघरुओं की आवाज़, कुएँ की तरफ़ दौड़ती हुई यमुना दिखाई देने लगी। यूँ तो हमेशा ही वह घटना गंगा को याद आती रहती थी; लेकिन आज उसे ऐसा आभास हो रहा था मानो वह सब साक्षात अभी घट रहा हो।

विवेक कार ड्राइव कर रहा था। उसने गंगा की तरफ़ देखा। गंगा की आँखों में आँसुओं की लड़ी बह रही थी।

विवेक ने कहा, “गंगा संभालो अपने आपको, जो हो चुका, उसे हम बदल नहीं सकते। लेकिन आज भी जो कुछ यहाँ वीरपुर में हो रहा है उसे अवश्य ही बदल सकते हैं।”

गंगा ने हाथ से अपने आँसू पोंछते हुए कहा, “विवेक मुझे बहुत डर लग रहा है। यदि तुम्हारे माता-पिता ने मुझे नहीं अपनाया तो?”

“गंगा हो सकता है वह आज हमें वापस भेज दें। नाराज़ हो जाएँ लेकिन एक ना एक दिन उन्हें हमारी ज़िद के आगे झुकना ही होगा। उन्हें गंगा-अमृत को सबका बनाना होगा। मैं समझ सकता हूँ गंगा तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के ऊपर क्या बीती है। मेरा तो तुम्हारे परिवार से तब कोई नाता नहीं था, फिर भी उस दिन जो कुछ हुआ आज तक मैं भी नहीं भूल पाया। मैं भी तब तुम्हारी तरह बच्चा ही तो था। उस समय भी उस अन्याय को मैं समझ नहीं पाता था पर फिर भी मुझे वह बुरा ज़रूर लगता था।”

“विवेक मेरे मन में इस बात को लेकर बहुत बेचैनी हो रही है कि जिस आँगन में मेरी बहन ने अपनी जान दे दी। मैं उसी आँगन में दुल्हन बन कर जा रही हूँ।”

“गंगा मैं समझ सकता हूँ तुम्हारी इस दुविधा को। लेकिन यह भी सच है ना गंगा कि अपनी बहन के त्याग को इंसाफ़ दिलाने के लिए ही तुम उस आँगन में अपने क़दम रख रही हो।”

बात करते-करते विवेक का घर आ गया । आँगन में बैठे गजेंद्र कार देखते ही समझ गए विवेक आया है ।

उन्होंने ख़ुश होते हुए अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई, “अरे भाग्यवंती देखो तो कौन आया है?”

भाग्यवंती तुरंत ही बाहर आ गई। वे दोनों ख़ुशी से चलते हुए कार की तरफ़ जाने लगे लेकिन तभी कार का एक नहीं आगे के दोनों दरवाज़े एक साथ खुले। विवेक के साथ गुलाबी रंग की साड़ी और मंगलसूत्र पहने मांग में सिंदूर लगाए एक दुल्हन बाहर निकली। इस तरह उन्हें देखकर उसके माता-पिता के पाँव वहीं रुक गए। उन्होंने एक दूसरे की तरफ़ देखा तब तक विवेक और गंगा उनके नज़दीक आ गए और झुक कर उनके पाँव छूने लगे।

तब गजेंद्र ने पूछा, “विवेक क्या है यह सब? कौन है यह लड़की?”

विवेक ने कहा, “बाबूजी यह गंगा है मेरी पत्नी। यह मेरे साथ डॉक्टर है। हम एक ही साथ पढ़ाई कर रहे थे और उसी बीच हम एक दूसरे से प्यार करने लगे। उसके बाद पढ़ाई पूरी होते से हमने विवाह कर लिया।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः