Achhut Kanya - Part 18   in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अछूत कन्या - भाग १८  

Featured Books
Categories
Share

अछूत कन्या - भाग १८  

गंगा की माँ नर्मदा के मुंह से अपना नाम सुनते ही विवेक ने प्रश्न किया, “अरे आंटी आप मुझे कैसे जानती हैं?”

“जानूँगी कैसे नहीं बेटा। दिन भर में कितनी ही बार इस गंगा के मुंह से तुम्हारा नाम सुनती रहती हूँ। कुछ ना कुछ, किसी ना किसी बात पर से तुम्हारी चर्चा हमारे घर में रोज होती है।” 

गंगा ने कहा, “क्या अम्मा आप भी ना…”

नर्मदा ने कहा “तुम्हारे बारे में, मैं सब कुछ जानती हूँ। इसके मुंह से सब सुना है मैंने, बस देखा आज पहली बार है।” 

विवेक मन में सोच रहा था, नहीं आंटी आप मेरे बारे में सब कुछ कहाँ जानती हैं। इतना सोचते हुए विवेक ने नर्मदा और सागर दोनों के पैर छुए फिर वह सब बैठ कर बातें करने लगे। गंगा और विवेक बार-बार एक दूसरे की तरफ देख रहे थे। विवेक को समझ नहीं आ रहा था कि बात कहाँ से शुरू करे? कैसे शुरू करे? दोनों के दिल में डर भी था कि विवेक कौन है; यह सच्चाई जानने के बाद कहीं वे दोनों नाराज़ ना हो जाएँ। विवेक और गंगा जो भी बात करने आए थे, वह तो उन्हें करनी ही थी। 

हिम्मत करके विवेक ने कहा, “अंकल आंटी में गंगा के साथ विवाह करना चाहता हूँ, यदि आप दोनों का आशीर्वाद हो तो?”

नर्मदा ने कहा, “विवेक यह प्रश्न तो एक ना एक दिन हमारे सामने आने वाला ही था। इसीलिए इस प्रश्न का उत्तर हम दोनों ने पहले से ही तय कर लिया है। यदि हमारी गंगा तुम्हारे साथ उसका जीवन बिताना चाहती है तो हम दोनों को क्या आपत्ति हो सकती है।”

बीच में सागर ने पूछा, “लेकिन विवेक तुम्हारे माता-पिता? तुमने क्या उनसे अनुमति ले ली है?”

कुछ देर के लिए गंगा और विवेक शांत एक दूसरे की तरफ देखने लगे। वहाँ एक सन्नाटा-सा छा गया।

सागर के इस प्रश्न का उत्तर देने में जब देर लगी तब सागर ने फिर पूछा, “क्या हुआ विवेक? क्या तुम्हारे माता-पिता इस विवाह के लिए तैयार नहीं हैं?”

“हाँ अंकल शायद वह तैयार नहीं होंगे। मैं आपसे कुछ मांगना चाहता हूँ, कुछ कहना चाहता हूँ।”

“लेकिन तुम्हारे परिवार की अनुमति के बिना यह विवाह नहीं हो सकता। अंकल पहले आप शांति से मेरी पूरी बात सुन लीजिए। गंगा और मैं पिछले ५ साल से एक साथ है लेकिन कभी हमने एक दूसरे के परिवार के विषय में जानने की कोशिश ही नहीं की। आज बात करने पर हमें, दोनों के परिवारों के विषय में सब कुछ मालूम हो गया। हाँ अंकल मैं उसी गाँव वीरपुर का रहने वाला हूँ। मैं यमुना के विषय में भी सब जानता हूँ।”

विवेक के मुंह से यह सुनकर नर्मदा और सागर एक दूसरे की तरफ़ अचरज भरी नजरों से देख रहे थे।

वह कुछ बोलें उससे पहले ही विवेक ने फिर कहा, “अंकल मैं वीरपुर गाँव के सरपंच गजेंद्र का बेटा हूँ।”

“क्या…? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आकर गंगा का हाथ मांगने की? निकल जाओ यहाँ से।”

तब गंगा ने अपने माता-पिता दोनों का हाथ पकड़कर आँखों ही आँखों में ना जाने क्या कह दिया कि वह दोनों शांत होकर नीचे बैठ गए। शायद गंगा की आँखें उनसे विनती कर रही थीं। 

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः