Achhut Kanya - Part 15 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अछूत कन्या - भाग १५  

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अछूत कन्या - भाग १५  

गंगा की बात को बीच में ही काटते हुए विवेक ने पूछा, “गंगा तुम किस गाँव की बात कर रही हो?”

विवेक का यह प्रश्न गंगा के कानों से टकराकर लौट गया। मानो इस वक़्त वह कुछ भी सुनना नहीं चाह रही थी; केवल और केवल अपने मन की बातें ही बताना चाह रही थी। वह बोलती रही उसने कहा, “विवेक अब मैं तुम्हें जो बताने जा रही हूँ उसके लिए तुम्हें अपने दिल को मज़बूत करना होगा।”

विवेक एक गहरी सोच में डूबा यह जानने को आतुर था कि गंगा क्या बताने वाली है।

“विवेक मेरी मुझसे बड़ी एक बहन भी थी यमुना। वह मुझ से ७ साल बड़ी थी और उसे माँ का दूर से पानी लाना बहुत तकलीफ़ देता था। हमारे गाँव में एक ऐसा कुआँ भी था जो पूरे ३६५ दिन पानी से भरा रहता था। उसका नाम था गंगा-अमृत लेकिन उस पर केवल ऊँची जाति के लोगों का ही हक़ था। हम पिछड़ी नीची जाति के लोग उस कुएँ के पास फटक तक नहीं सकते थे। मेरी बहन यमुना यह भेद-भाव मिटाना चाहती थी। वह वीरपुर गाँव में क्रांति लाना चाहती थी। एक दिन मेरी माँ बीमार थी उस दिन यमुना ने कहा था, माँ पानी लेने मत जाओ कहीं गिर जाओगी पर माँ मान ही नहीं रही थीं। तब यमुना ने उनके हाथ से मटकी ले ली और वह गंगा-अमृत की तरफ़ भागी।” 

गंगा को अब आगे बोलने में तकलीफ़ हो रही थी। वह दर्द उसके सीने में घुटन पैदा कर रहा था। 

तब विवेक ने कहा, “गंगा तुम चुप हो जाओ, इसके आगे की घटना मैं तुम्हें सुनाता हूँ। गंगा तुम्हारी बहन दौड़ते हुए कुएँ के पास आ गई। पीछे-पीछे तुम्हारे माता-पिता और तुम दौड़ते हुए आ रहे थे। उसे आवाज देते हुए, यमुना रुक जा, यमुना रुक जा लेकिन वह नहीं मानी। कुएँ पर आकर वह स्वयं के हाथों से कुएँ से पानी लेना चाह रही थी लेकिन सरपंच ने उसे ऐसा नहीं करने दिया।”

गंगा हैरान होकर विवेक की तरफ देखे जा रही थी। विवेक ने आगे कहा, “उसके बाद यमुना, गंगा-अमृत की तरफ दौड़ी और कूद कर उस में छलांग लगा दी। कोई कुछ समझ पाता, तब तक सब ख़त्म हो चुका था।”

गंगा विवेक के मुंह से यह सारी सच्चाई सुनकर उठकर खड़ी हो गई। उसने कहा, “यह सब तुम्हें कैसे पता है विवेक? कौन हो तुम और यह सब कैसे जानते हो?”

“मुझे तो यह भी पता है गंगा की यमुना ने गाँव में छुआ छूत मिटाने के लिए अपनी जान दे दी; लेकिन उसके इस बलिदान का कोई फायदा नहीं हुआ। एक तरफ तुम्हारी बहन का पार्थिव शरीर शमशान अपनी अंतिम यात्रा पर जा रहा था और दूसरी तरफ गंगा-अमृत के शुद्धिकरण के लिए पूजा अर्चना चल रही थी। मैं यह सब कुछ जानता हूँ गंगा। यह सब मैंने अपनी आंखों से देखा है। वह पूरा दृश्य जिसने भी देखा होगा उनमें से कोई भी भूल ना पाया होगा।” 

“विवेक मेरे सवाल का जवाब दो? तुम कौन हो और यह सब कैसे…?” 

“गंगा मैं कौन हूँ यह जानने के बाद शायद तुम मेरी शक्ल भी देखना पसंद नहीं करोगी।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः