अब आगे..............
तभी एकांक्षी अपने चेहरे को साइड में करते हुए कहती हैं...." तुम कितने चीप हो , जबरदस्ती मेरे करीब आने की कोशिश करते रहते हो , एक बार इंर्जड होने के बाद दोबारा वही हरकत दोहरा रहे हो...."
विक्रम उसकी बात को सुनकर धीरे से उसके कानों में कहता है......" ठहरो उपचारिका.... तुमने जो इस ह्रदय पर अपने कटिले नैनो से वार किया है , उसका उपचार नहीं करोगी...."
विक्रम इतना कहकर उससे दूर हट जाता है और एकांक्षी अपलक उसे देखने लगती है और हड़बड़ा कर कहती हैं...." त त तुम , , कौन ..हो..?.."
विक्रम एकांक्षी के गालों पर हाथ रखते हुए कहता है...." डोंट वरी मैं अब तुम्हें पहले जैसा परेशान नहीं करूंगा , , जो तुम्हें परेशानी पहुंचा रहा था , मैंने उसे उसके शरीर से ही अलग कर दिया , बस तुम मेरे सच्चे प्यार को समझ लो ...."
इसके बाद विक्रम घुटनों के बल बैठकर उसके हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कहता है......" देखो एकांक्षी मैं तुम्हें अब नहीं खोना चाहता , , मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं बस एक बार तुम मुझे अपना लो फिर मैं किसी को भी तुम्हारे नजदीक नहीं आने दूंगा.... बोलो उपचारिका , करोगी हमारे हृदय का उपचार , , !
एकांक्षी के चेहरे पर परेशानी साफ दिख रही थी इसलिए विक्रम से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहती हैं...." तुम मुझे बार बार उपचारिका क्यूं कह रहे हो....?..."
" और क्या कहूं.... वैदेही..."
वैदेही शब्द की आवाज एक बार फिर से एकांक्षी के कानों में गूंजने लगी , , जिससे अब स्मृतिका की शक्ति भी खत्म हो चुकी थी और एकांक्षी दोबारा अपने आप कह उठती है ...." तुम मुझे वैदेही क्यूं बुला रहे हो, , ओह ! मेरा सिर इतना दर्द क्यूं होने लगा..."
विक्रम उसे संभालते हुए कहता है....." देखो एकांक्षी अपने माइंड पर इतना स्ट्रेस मत डालो , , "
" तुम ... मुझे वैदेही नाम से बुला क्यूं रहे हो .... क्या तुम ही हो जो उस दिन मेरे पास से वैदेही कहकर गये थे.... बोलो विक्रम बोलो....."
एकांक्षी को की हालत बिगड़ते देख विक्रम उसे अपने सीने से लगा लेता है लेकिन एकांक्षी उससे दूर रहने के लिए उसे धक्के से अलग करती हुई कहती हैं...." पहले मुझे सच बताओ , , क्यूं मुझे तुम परेशान कर रहे हो , ....और ये अधिराज कौन है...?..."
एकांक्षी के मुंह से अधिराज का नाम सुनकर उसके चेहरे पर गुस्सा आ जाता है और उसके पास जाकर कहता है...." तुम जानना चाहती हो , ये अधिराज कौन है....?...."
एकांक्षी मासुमियत से हां में सिर हिला देती है जिससे विक्रम कहता है....." ठीक एकांक्षी , मैं तुम्हें तुम्हारे अतीत से जुड़ी बातें जरूर बताऊंगा लेकिन कुछ दिनों के बाद , ...."
" अभी क्यूं नहीं विक्रम , ...?.."
" अभी टाइम नहीं है , पहले मुझे कुछ जानना है उसके बाद... और हां एक खास बात तुम इस बूटी के रस को पी लो , जिससे अनचाहा व्यक्ति तुम्हारे करीब नहीं आएगा और तुम भी तसल्ली से सो पाओगी....."
एकांक्षी उसके दिये हुए उस बूटी के रस को पी लेती है लेकिन उसे क्या पता था उसके पीते ही उसके अंदर बैचेन शुरू हो जाती है और कुछ ही पलों में वो बिल्कुल बेहोश होकर विक्रम की बांहों में सिमट जाती है.....
विक्रम उसे देखते हुए कहता है......" तुम्हें थोड़ी तकलीफ़ जरूर होगी लेकिन मैं तुम्हें किसी और को छूने नहीं दूंगा , एकांक्षी सिर्फ माणीक की नहीं विक्रम मल्होत्रा की है.... विक्रम मल्होत्रा , तुम्हारा शरीर मुझे मेरे लक्ष्य तक जरूर पहुंचाएगा , , एकांक्षी मेरी होकर रहेगी....." इतना कहकर उसके चेहरे पर हंसी आ जाती है और फिर उसके फोन से किरन को काॅल करके एकांक्षी की बेहोशी वाली बात उसे बता देता है , जिससे पांच मिनट बाद किरन तान्या और आद्रिक के साथ उसी कोरिडोर में पहुंच जाती है और एकांक्षी को उसकी बांहों में देखकर तिलमिलाते हुए कहती हैं...." तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई एकांक्षी के पास आने की .... तुम्हारी वजह से ये बेहोश हो गई है...."
विक्रम गुस्से में किरन को देखते हुए कहता है...." ये मेरी वजह से बेहोश नहीं हुई है , , मैं तो यहां से जा रहा था और एकांक्षी को यहां पर बैठे देखा तब आया हूं....."
तान्या उसे शकी नजरों से देखती है लेकिन आद्रिक को लगता है कि उसके गिटार बजाने से ऐसा हुआ है इसलिए उसका बचाव करते हुए कहता है......" किरन शायद एकांक्षी की तबीयत ठीक न हो , इसलिए बेहोश हो गई हो , तुम इसे घर ले चलो...."
आद्रिक की बात सुनकर किरन सहमति से कहती हैं...." तुम ठीक कह रहे हो आद्रिक..." किरन और तान्या मिलकर एकांक्षी को संभालते हुए लेकर चली जाती हैं लेकिन तान्या औअभी भी विक्रम को देखते हुए अपने आप से कहती हैं..." ये विक्रम , पहले जैसा नहीं लग रहा है आखिर ये मरने के बाद दोबारा कैसे जिंदा हो सकता है... अगर प्रक्षिरोध है तो मैं इसे अधिराज और वैदेही के बीच में नहीं आने दूंगी... मैं इस बार अधिराज को उनका प्रेम जरुर मिलेगा , , इसलिए मैं यहां आई हूं....बस मुझे अब अधिराज को ढूंढ़ना होगा , बस एक बार मैं उन तक पहुंच जाऊं फिर वो खुद ही एकांक्षी को सब याद करवा देंगे......"
विक्रम तान्या के नजरों को देखकर सोचने लगता है...." ये मुझे शक्की नजरों से क्यूं देख रही है , जो भी हो मैं अब अपने रास्ते में किसी को नहीं आने दूंगा.... मुझे अब याद है वैदेही तुम्हारा वो प्यार से हमारे घाव पर मरहम लगाना..."
फ्लैशबेक.....
वैदेही अपने घाघरे को एक हाथ से समेटे हुए , दूसरे हाथ में अपनी औषिधि की टोकरी लिए चल रही थी , रास्ते भर उसकी पायलों की छम छम पूरे विरान से जंगल को गूंजा रही थी....
धीरे धीरे सुरज की रोशनी मधम हो रही थी , जिससे वैदेही चिढ़ते हुए कहती हैं....." ये संध्या काल भी इतनी शीघ्रता से क्यूं होने लगता है और ये वृषपूर की सीमा और कितनी दूर है.....
वैदेही धीरे धीरे आगे बढ़ ही रही थी तभी अचानक उसे लगता है जैसे झाड़ियों में से किसी के आने की आहट सुनाई पड़ती है जिसे सुनकर वैदेही डर जाती है और वही खड़ी रह जाती है.....
थोड़ी देर होने के बाद भी जब कोई बाहर नहीं आता तब वैदेही डरते हुए पूछतीं है...." कौन है वहां...?... सामने आओ....."
वैदेही के इतना पूछते ही उन झाड़ियों को चीरता हुआ एक विशाल शेर उसके सामने आ जाता है , जिससे वैदेही बहुत डर चुकी थी , , वो शेर वैदेही के चारों तरफ घूमने लगता है और उसपर झपटने लगता है....
वैदेही उसे देखकर चिल्लाने लगती है तभी उस शेर के मुंह पर एक तीर आकर लगता है , जिससे शेर बौखला जाता है और गुस्से में तीर वाली दिशा में देखने लगता है तभी एक धनुष धारी नौजवान वैदेही के सामने आकर खड़ा होता है और उस शेर पर तीरो की बौछार कर देता है जिससे शेर वहां से चला जाता है , ,
तब वो नौजवान वैदेही की तरफ घुमकर कहता है ....." आपको घबराने की जरूरत नहीं , वो सिंह जा चुका है ..."
लेकिन वैदेही तो अभी भी सहमी सी लग रही थी इसलिए वो नौजवान उसके सामने जाकर उसके चेहरे को थुड्डी से पकड़कर ऊपर करता हुआ कहता है..." आप अब सुरक्षित है..."
वैदेही के चेहरे को देखकर वो उसकी आंखों की गहराई में खो जाता है ....
" कौन है आप...?.."
................to be continued.............