That rainy night... in Hindi Horror Stories by Saroj Verma books and stories PDF | बरसात की वो रात...

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बरसात की वो रात...

बरसात के दिन थे,मुझे एक शहर में किसी काम से जाना था,आँफिस के बहुत जरूरी कागजात पहुँचाने थे वहाँ, इसलिए मैं वहाँ ट्रेन से पहुँचा,पहुँचते पहुँचते शाम हो चली थी,मैनें आँफिस के कागजात हिफाज़त के साथ आँफिस के बाँस तक पहुँचा दिए,फिर बाहर आकर एक दुकान पर चाय पी और एक समोसा खाया,रेलवें स्टेशन पहुँचा तो वापस जाने की ट्रेन रात तीन बजे की थी,मैनें सोचा,यहाँ रूककर समय क्यों बर्बाद करना,मैं बस-स्टाँप जाकर देखता हूँ कि शायद कोई बस मिल जाएं,बस-स्टाँप पहुँचा तो उन्होंने कहा कि रात ग्यारह बजे की बस है,मैनें सोचा तीन बजे की ट्रेन से ग्यारह बजे की बस तो ठीक ही है,इसी आपाधापी में शाम के साढ़े सात बज गए,मुझे बहुत भूख लग रही थी,इसलिए मैं खाना खाने के लिए एक रेस्टोरेंट ढूढ़ने लगा,बहुत खोजने पर बस-स्टाँप से थोड़ी ही दूर पर मुझे एक छोटा सा रेस्टोरेंट दिखा,मैं वहाँ पहुँचा और खाने का आर्डर दिया,मैने केवल दाल फ्राई और रोटियाँ ही मँगाई,बरसात में ज्यादा हैवी खाना ठीक नहीं था ऊपर से मुझे बस में सफर करना था,तो मैनें हल्का भोजन ही लिया,खाना खाते खाते आठ बज चुके थे....
खाना खाकर मैनें रेस्टोरेंट का बिल अदा किया और एक पानी की बोतल खरीदकर जैसे ही मैं बाहर आया तो बहुत जोर की बरसात शुरू हो गई,मैं रैनकोट लेकर चला था इसलिए बैग से मैनें रैनकोट निकालकर पहन लिया और बरसात से बचते बचाते बस-स्टाँप तक पहुँचा,वहाँ मैनें वेटिंग रूम तलाशा और उसके भीतर चला गया,मैं उसके भीतर चला तो गया लेकिन मैनें तब गौर किया कि वेटिंग रूम बस-स्टाँप से इतनी दूर क्यों है?वो भी इतनी सुनसान जगह पर,मैं जैसे ही बेंच पर बैठा तो वहाँ की लाइट चली गई,ऊपर से बादल गरज रहे थे और बिजली चमक रही थी,मुझे बहुत डर लग रहा था,इसलिए मैनें अपने मोबाइल फोन की लाइट जला ली फिर लगा कि ना जाने कितनी देर बाद लाइट आएगी,मेरा फोन डिस्चार्ज हो गया तो,इसलिए मैनें फोन आँफ कर लिया,अब मुझे बहुत डर लग रहा था,बाहर बहुत जोरो की बरसात थी और मैं बाहर भी नहीं जा सकता था,लेकिन भगवान का भला हो कुछ ही देर में लाइट आ गई,लाइट आई तो मैनें राहत की साँस लीं,
मैं अब वेटिंग रूम की बेंच पर लेट गया,उस पर बहुत धूल थी लेकिन मैनें उसे अपने बैंग में रखे न्यूज पेपर से झाड़ दिया था और आँखें बंद करके यूँ ही लेट गया कुछ ही देर में मुझे नींद आ गई.....
फिर कुछ देर बाद पायल की घुँघरुओं की छम छम से मेरी नींद टूटी और मैं जाग उठा,मैने वेटिंग रूम के दरवाज़े की ओर देखा तो एक लड़की सफेद साड़ी मेंं आई थी,उसने छतरी ले रखी थी,पहले उसने अपनी गीली छतरी को एक कोने में रखा और अपने गीले बालों से पानी झटकने लगी,उसने सफेद साड़ी पहन रखी थी जो कि बिल्कुल गीली हो चुकी थी,साथ में स्लीपलैस ब्लाउज पहन रखा जिससे उसके गोरे और सुडौल बाजू बहुत ही आकर्षक लग रहे थें,उसने कानों में झुमके पहने थे और माथे पर छोटी सी बिन्दी लगा रखी थी,होठों पर लगी सुर्ख लाल लिपस्टिक उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहें थें,उसका बदन छरहरा था और कमर पतली ऊपर से साड़ी गीली होने पर पारदर्शी हो गई थी जिससे उसका बदन साड़ी से बाहर छाँक रहा था,
वो अपने बालों से जब पानी झटक चुकी तो मुझसे बोली....
क्या मैं आपकी बेंच पर बैठ सकती हूँ आपको कोई एतराज़ तो नहीं॥
मैं ने कहा, जी!जरूर!
और वो इतना सुनकर बेंच पर बैठ गई,अब भी उसका ध्यान उसकी गीली साड़ी पर था और मेरा उस पर,हम मरदों की आदत ही होती है कि खूबसूरत लड़की देखी नहीं कि उस पर नजर गड़ा लेते हैं और कुसूर मेरा नहीं था वो थी ही इतनी खूबसूरत,मैं भला उस पर से अपनी नज़रें कैसें हटा सकता था?
कुछ ही देर में फिर से लाइट चली गई,वेटिंग रूम के भीतर घुप्प अँधेरा छा गया,लेकिन इस बार मुझे डर नहीं लग रहा था क्योंकि वो जो मेरे बगल में बैठी थी,एकाएक किसी ने मेरा हाथ पकड़ा,मैं थोड़ा सहम गया,मैनें सोचा ना जान ना पहचान आखिर ये लड़की करना क्या चाहती है?
पहले उसने मेरा हाथ पकड़ा,फिर वो अपने हाथ को मेरे सीने पर फिराने लगी,अब उसका हाथ मेरे सीने से होता हुआ मेरी गरदन तक पहुँच गया,जब बात इतनी बढ़ गई तो मैनें उससे कहा...
ये क्या कर रहीं हैं आप?
वो बोली,क्यों अच्छा नहीं लग रहा आपको?
मैनें शरमाते हुए कहा.....
नाम तो बता दीजिए अपना,
वो बोली,पिशाचिनी हूँ मैं!
मैनें इतना सुना तो उसका हाथ झटककर दूर भागा और फौरन ही अपने मोबाइल की लाइट जलाई,रौशनी में देखा तो सच में वो खूबसूरत लड़की अब पिशाचिनी में तब्दील हो चुकी थी,उसकी आँखें लाल और दाँत बड़ें बड़े थे और जिन होठों की खूबसूरती पर मैं मर मिटा था अब उन पर खून लगा था,मैं डर के मारे थर थर काँपने लगा और तभी लाइट आई और वो पिशाचिनी गायब हो गई.....
अचानक ही मेरी आँख खुली तो मैनें देखा कि मैं बेंच पर लेटा हुआ हूँ और वेटिंग रूम में कोई नहीं है,तब मेरी जान में जान आई ,मैं शायद कोई भयानक सपना देख रहा था,डर के मारे मेरा गला सूख गया था तो मैनें बोतल खोलकर पानी पिया तभी वेटिंग रूम में बस-स्टाँप का एक कर्मचारी आया और बोला...
साहब!आप यहाँ क्या कर रहे हैं?
मैनें कहा, मेरी बस लेट थी इसलिए यहाँ आकर आराम करने लगा,
लेकिन अब ये वेटिंग रूम नहीं रहा,ये तो बहुत पुराना वेटिंग रूम है,मैनें तो यहाँ की लाइट जलते देखी इसलिए बंद करने चला आया,वो कर्मचारी बोला।।
ओह....तो मैं गलत जगह आ गया,मैनें कहा।।
तब वो कर्मचारी बोला,
हाँ!साहब कहते हैं कि इस वेटिंग रूम में कोई पिशाचिनी आती है और लोगों का गला दबाती है,
अब ये सुनकर मेरे होश उड़ गए और मैने मन में सोचा ,तो क्या मेरे सपने में मैनें वही पिशाचिनी देखी थी,
और फिर मैं उस पुराने वेटिंग रूम से अपना सामान उठाकर बाहर आने लगा तभी वो कर्मचारी बोला...
साहब!आप अपना छाता तो उठा लीजिए,इसे तो आप यहीं भूले जा रहे हैं....
अब तो मैं बिल्कुल सन्न था और मुझे होश ही ना था,उसकी छतरी वेटिंग रुम में कैसें,क्या वो सच में यहाँ आई थी..?
अब भी जब कभी मुझे बरसात की वो रात याद आ जाती है तो मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं....

समाप्त....
सरोज वर्मा.....