Hudson tat ka aira gaira - 27 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | हडसन तट का ऐरा गैरा - 27

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 27

ऐश कुछ समझ पाती इससे पहले ही उन उड़ते पंछियों को नीचे ज़मीन छोड़ती हुई हरियाली और नीला पानी दिखाई देने लगा।
उन्हें समझते देर न लगी कि वो फ़िर किसी दरिया के ऊपर से गुज़रने वाले हैं।
और तब ऐश को भी समझ में आई उस युवा परिंदे की शरारत। वह मन ही मन शरमा कर रह गई। वह उत्साही युवा पक्षी एक प्रकार से ऐश को ये संकेत दे रहा था कि अब फ़िर न जाने कितनी देर तक समंदर के ऊपर से उड़ते रहना होगा, अगर ऐश चाहे तो थोड़ी देर के लिए किनारे के पेड़ों पर उस नौजवान के साथ विश्राम करने के लिए आ जाए।
ऐश सोच में पड़ गई। उसे ये समझते देर न लगी कि अकेले एकांत में एक खूबसूरत युवा परिंदे और जवान-जहीन ऐश के विश्राम करने का मतलब क्या है!
ऐश ने सोचा, क्या करे, क्या उस नटखट पंछी की इल्तज़ा मान ले?
क्या ये उसका प्यार है?
- नहीं, प्यार नहीं, ये बदन का बुखार ही है। जिसके जिस्म पर आएगा, वो कहीं न कहीं गुल खिलाएगा ही। और थोड़ी सी देर का मज़ा, उसके बाद तुम अपने रास्ते, मैं अपने रास्ते।
ऐश नहीं गई। लेकिन उसे ये देख कर थोड़ी बेचैनी और जलन ज़रूर हुई कि उसके मना करते ही वो नया- नया नर एक दूसरी मादा के साथ पंख फड़फड़ाता हुआ नीचे उतर रहा था, किसी घने पेड़ की ओर।
ऐश ने उधर से नज़र हटा ली।
आसमान में उड़ते इन सैंकड़ों पंछियों के झुंड में ऐसा अक्सर होता था कि इक्का- दुक्का पक्षी अपनी मनमानी करने के लिए भीड़ से इधर- उधर हो जाते थे, पर बाद में अपनी साहसी और तेज़ उड़ान से पीछा करते हुए अपने दल को फ़िर से पकड़ लेते थे।
उनकी भी मजबूरी थी। मल- मूत्र विसर्जन तो उड़ते उड़ते भी किया जा सकता था लेकिन शरीर के इस सृजन- अमृत को त्यागने के लिए तो किसी न किसी दूसरे बदन की ज़रूरत पड़ती ही थी। इससे उड़ते-उड़ते निजात पाना संभव न था। इस आग में पंछी किसी दूसरे तन का सहारा लेकर ही पिघलते थे।
ओह, ऐश अब सोच रही थी कि वो बूढ़े चाचा पर उस दिन नाहक ही नाराज़ हुई। एक पल को उसे पश्चाताप सा हुआ।
लेकिन अगले ही पल ठाठें मारते हुए सागर को देख कर सबका दिल खुश हो गया। वो सागर के ऊपर से उड़ रहे थे और हवा भी कुछ तेज़ तथा ठंडी हो चली थी। बदले मौसम के उत्साह- अतिरेक में उन्हें ये ख्याल भी नहीं आया कि अब काफ़ी देर तक विश्राम करने या दाना- पानी पाने की कोई जगह नहीं आएगी। हर सहरा के नखलिस्तान भी तो नहीं होते। लेकिन इससे क्या? परिंदों को परवाज़ से कैसी थकान! नीला पानी और सुनहरी धूप सबको भा रही थी।
ऐश ने पीछे मुड़कर देखा तो कुछ फर्लांग की दूरी पर वो दोनों परिंदे भी तेज़ी से उड़ते हुए चले आ रहे थे जो कुछ देर के लिए वहां किनारे पर रुक गए थे। शायद विश्राम के जादू ने उनके पंखों में आनंद की चपलता भर दी थी। उन्होंने अकेले में न जाने ऐसा क्या किया था कि उनके डैने जादुई हो गए थे। अब वो तेज़ी से उड़ते आ रहे थे।
कुछ घंटों की उड़ान के बाद उन्हें कुछ दूरी पर एक पानी का जहाज जाता हुआ दिखाई दिया।
दल के मुखिया की आंखों में चमक आ गई कि फिर से एक ठिकाना मिला।
लेकिन इस जहाज की ऊपरी सतह पर ढेरों लोगों का जमावड़ा था। अधिकांश पुरुषों और महिलाओं के हाथों में दूरबीन थी। बच्चे तो और भी उत्साह से एक दिशा में देख रहे थे। न जाने क्या था वहां? समुद्र के बीचों- बीच।