'निशा भागे जा रही थी जंगल में, उसके पैर पत्थरों व कंकरों पर लहूलुहान हो रहे थे। अचानक उसके सामने एक परछाई बहुत तेजी से गुजरी। निशा रुकी, तब अचानक वो परछाई उसके पीछे से गुजरी। वो झटके से मुड़ी, पर वापस उसके पीछे से वो परछाई गुजरी। कोई था जो उसके आस-पास मंडरा रहा था और उसकी तेजी साफ इंगित कर रही थी कि वो कोई इंसान न था। उसके इरादे भी ठीक न थे। वर्ना इतनी रात को उसे भटका कर, यहाँ लाना और उसके आस-पास मंडराना कोई अच्छी नीयत की तो सुचना न दे रहा था। निशा घबरा रही थी, साथ ही चौकन्नी भी हो रही थी। उसने पास पड़ी एक तीखी लकड़ी उठा ली।
अचानक उसने देखा वो परछाई उसके सामने आ गयी। वो परछाई कोई और नहीं बल्कि पियूष था और आश्चर्यजनक रूप से उसका बाँया हाथ राहुल के गले पर था। हाँ राहुल, पता नहीं कैसे वो राहुल को यहाँ तक ले आया था?? उसके गंदे, तीखे, पीले और लम्बे नाखून राहुल के गले को सहला रहे थे। जाहिर था कि वो उसको खुजा न रहा था बल्कि बिना कहे निशा को धमकी दे रहा था कि 'लड़की, लकड़ी फेंक दो, वर्ना राहुल के नरम-नरम गले में नाखून चले जायेंगें।'
अचानक वहाँ आयुष आ गया। उसने चुपके से आकर पीछे से पियूष को जकड़ लिया। राहुल उसकी पकड़ से आजाद होकर अपनी दीदी की बाहों में समा गया। निशा ने देखा कि पियूष ने आयुष को धोबी पछाड़ देकर आगे की तरफ फेंक दिया। आयुष ने भी वहाँ पड़ी एक मजबूत लकड़ी उठा ली थी। परन्तु अब दोनों चौंक गए। क्यूँकि पियूष का रूप बदल रहा था और वो नीले हत्यारे का रूप ले रहा था। परन्तु अब पियूष के बड़े-बड़े पंख भी थे। एकदम विशाल पंख। अब वो बहुत ही खतरनाक लग रहा था। आयुष अपेक्षाकृत जल्दी संभला और उस पर लकड़ी का वार करने के लिए उद्यत हुआ। पियूष ने पंखों को हरकत दी और वो हवा में लहराया। उड़ते हुए ही वो राकेट की तरह आयुष से टकराया और आयुष सीधा पेड़ के तने पर...
आयुष में अब दम नहीं बचा था वो बुरी तरह चोटिल हो चूका था। उसकी पसलियों में चोट लगी थी, और उसके मुँह से खून आने लगा था। फिर भी वो जैसे-तैसे उठा और खून थूकते हुए पियूष की तरफ बढ़ा। परन्तु पियूष ने हाथ के एक झटके से ही उसे दूर उछाल दिया और आयुष बेहोश हो गया। अब पियूष निशा की तरफ बढ़ा, उसने उसे पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। निशा और उसका भाई डर से एक-दूसरे में सिमटते जा रहे थे....'
निशा की नींद टूट गयी, वो पसीने से भरी हुई थी। उसकी साँसें बहुत ही तेजी से चल रही थी। जो काफी देर तक सही न हुई। वो अभी तक सदमे से बाहर न आयी थी।
वो बड़बड़ाई- "बड़ा अजीब सपना था। पियूष का सपने में आना तो समझ आता है, पर आयुष से तो मैं कल ही मिली हूँ, वो कैसे?? और ये सपना महज एक सपना ही है या किसी आने वाली महत्वपूर्ण घटना की सूचना है?? कुछ भी समझ नहीं आ रहा, आखिर ये पियूष का इन हत्याओं से क्या सम्बन्ध है?? क्यूँकि इतना तो तय ही है कि ये पियूष गड़बड़ इंसान है। कहीं सपने की तरह सच में भी यही वो हत्यारा तो नहीं?? क्यूँकि जब भी जहाँ भी हत्याएँ हुई है वहाँ ये संदिग्ध तरीके से उपस्थित था और उस दिन वो कार भी कहाँ से आयी ये भी समझ से बाहर है। मुझे अच्छी तरह याद है कि उस रात (भाग-4) वो पैदल ही था। हालाँकि इसने इन दिनों कोई बदतमीजी तो नहीं की मुझसे, पर घूरता बहुत अजीब तरीके से है। गुस्सा तो बहुत आता है पर क्या करें नौकरी तो करनी ही है।"
______________________
इधर आयुष उस से ज्यादा खुलने लगा था। आयुष की अब राहुल से भी ज्यादा अच्छी दोस्ती हो गयी थी। वो राहुल को अपने साथ ज्यादा रखने लगा था जिससे निशा को अब उसके अकेले रहने की इतनी फिक्र नहीं रहती थी। निशा अब पियूष पर भी ज्यादा नजर रखने लगी थी। उसको अब प्रोजेक्ट्स सँभालने पड़ते थे जिनमें वो ज्यादा व्यस्त रहते हुए भी नजर रखने और ज्यादा सोचने का अपना महत्वपूर्ण काम भी करने लगी थी, वो भी सही तरीके से।
लगभग हफ्ते भर बाद पियूष ने निशा को बुलाया और कहा-" मिस निशा हमें कुकरेजा प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए शिमला चलना पड़ेगा। वहाँ हमें कुकरेजा ग्रुप से मिलकर लैंड प्रॉपर्टी डिसकस करनी है। तो आप रेडी हो जाएं हमें कल सुबह 6 बजे निकलना होगा।"
निशा बोली -"बट सर, इतने शॉर्ट नोटिस पर ऐसे कैसे चल सकते हैं?? मेरे भाई को भी अभी देखभाल की जरुरत रहती है। ऐसे में कुछ दिनों के लिए बाहर जाना....!!!!!"
To be continued.....